Ek ShaYraana Safar... in Hindi Short Stories by Aksha books and stories PDF | एक शायराना सफ़र

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एक शायराना सफ़र

नजरो से नजर मिला कर जान ना सके,
हाथ से हाथ मिलाकर नियति अपना ना सके,
लफ्ज़ से लफ्ज़ प्यासे सागर का इरादा ना समझ सके,
जिस्म से जिस्म का ये इत्तेफाक कभी दोहरा ना सके,
रूह से रूह जोड़ कर भी खुदको अंदर से बहला ना सके,
दिल से दिल के दर्द को खैर वो कभी जान ना सके,

दबे हुवे अल्फ़ाज़ कभी निकल ना सके,
जान कर भी क्या अंजान ना बन सके,

यही एक कहानी जो पन्नो में उतर रही है,
कलम से स्याही का का मतलब समझा रही है,
निर्दय होते है खामोशी की वजह ना जान सके,
खुदा से क्या इतने गाव के भी मरहम ना आ सके?


* *ताज्जुब नहीं दीवाने की आशिक़ी पर,
चादर भी ओढ़ली कयामत आने पर,
दायरे में चर्चे बहुत इश्क़ ए खुद्दारी पर,
कितने पायमाल हुवे जान लुटाने पर,

ख्वाब खयाल बेबसी मायूसी हर बार सताई सफ़र में,
सागर से प्यास में पानी की बूंद की मिठास होने पर,
यूं जिल बनी उसकी दीवानगी को बारिश में छूने पर,
आरज़ू की थी हरदम एक इश्क़ में दर्द के मरहम लगाने पर,
बर्बाद हो कर भी मुस्कुरा या जाए किसी ऐसे इशारे पर।



" मिले थे किसी अंजान राहो में,
थी बेवजह सी खामोशियाँ,
अलफाज दबे किसी दिल के कोने मे,
दिलबर को देेेख, शब्द भी मौन हो गए,
आँखों ही आँखों मे दीदार हो गया,
और फिर खामोशी वाला ईश्क़् भी बेेेशूमार हो गया...
महोलत मिली इश्क़ ए सफ़र में,
खुदा ने इश्क़ में रंगीन बना दिया,
साथ देकर भी साथ छीन रहने में,
खुदको कितना अंजान बना दिया,

इतना मसगुल हो गए दो जहन की,
रूह के कतरे में सोने से राहत मिलती,
साया बेहतर था साथ साथ चलनेका,
ये तो बुखार को भी जलने पर रख दिया,
जिस्म से तब पंक्तियां लिखी कहानी की,
जब वो धूप में जलाकर छाव को नौता दिया..,"




** खुदा ए इश्क़ में खुद्दार मत बना,
की अहंकार में कुछ दिखाई ना दे,
इल्तिज़ा करने में भी खुदगर्ज बना,
खता निकले मेरी इतनी नज़रे ना मिला,
समझें ना कोई पर इबादत का सजदा बना,
सफाई दे दे कर थक जाए दिल इतना ना रुला,
मुस्कुरा कर शहर में इतना बड़ा माहौल बना,
आइने में देख खुद से नफ़रत ऐसा हाल ना बना,
सिसकियां ले ले कर थम जाए जहां से सांसे बना,
सौर ना सुनाई दे कहीं कानो में ऐसा मशवरा बना,
बदन में चल रहा खुमार के ताल्लुक कुछ ऐसा बना,
कलम से छीन जाए स्याही का इतनी रोशनी में दर्द ना बता....


** तंग हो गया जमाना अब हाल ए दिल से,
यूह रोज रोज तकरार करके जीना बिनमौसमी सा लगता है,
यूं गले लग कर बिछड़ जाना क्या अपना सा लगता है,
सीकवा , गीला ले इश्क़ से अंदाज शायरी का बया करता है,
जब चाहते है लोग तो बात क्या मशहूर जैसी ही करता है,
नफ़रत करके यू इश्क़ का दावा मेरे जूठे होने का क्यों करता है,
अगर हो ता रूह से रिश्ता तो जालिम की तरह जिस्म को दाव पर क्यू लगता है ,
अब दुआ में भी खुदा से मांग कर खुद को क्यू शर्मिंदा करता है ।


**थे कुछ अनकहे अल्फ़ाज़ जो दबे थे जिस्म ओ जान में कहीं,
अनजान राहों पर मिलकर लफ्ज़ो से तक़रार भी ना हो सका।

दिल भी कहीं इजहार ना कर सका और इकरार ना कर सका,
खामोशी जेसे चाहत की बसी रूह में की इनकार भी ना कर सका।

ताज्जुब तो ये की ए खुदा नादान दिल उसके इश्क़ में हर पल खयाल में डूब गया,
और बेबस बना महबूब अपनी रूह से तार तार होते हुए भी नब्ज के जरिए लहू में समाता गया।


** छाया कुछ इस तरह करो साया छूट ना सके रूह से,
आसमा जमी का हर एक सफ़र को चादर में ढक लो,
गुलामी दरबदर बढ़ती जाए उस मुक्कमल इश्क़ में,
बरकत दर्द के ना बने उसके दिल में इतनी रीहाई दे,
जन्नत के दौर कहीं आंखो से आंसू के जरिए मिले,
फिर भी नियति में इश्क़_ए_दीदार में महोबत का नाम मिले,
मौला एक उम्मीद से जुड़ा ये वास्ता जो मेरे ख्वाब में है,
उस स्वप्नों में ही रख जो कभी देख कर दिखाई ना दे।


** सुनना यह गजल मेरी,

लफ़्ज़ों से निकले अंदाज शायरी के,
कमाल कर गया इश्क़ में महामारी के,
ग़ज़लों , शायरी की कशमकश ये जिंदगी के,
पन्ने में चढ़ाए जेवर जैसे खायलो वाले लम्हों के,
गुनाह कबूल हो जाए इश्क़ ए मरमर के,
आरज़ू की तौबा खुदा से दलदल से निकाल के,
संभाल कर चलना रस्तो में काटो की माला सजी है,
ये ७ जन्म के कर्मों में मिली एक नसीब की कमी है,
सौदा गर कर दू मौसम के इत्तेफाक से,
चहेरा छुपाना आईनों में ये कई विशाल बात है

किताबो में सुनवाई लिखी जायज सी बात है,
और उस बेकार समझ अर्थ हिन कर दिया उछाल कर,
जिंदगी में पल सफ़र के दौरान कहीं खुशियां के,
वो लेते गया कितने दिन मेरी उम्र में से काट कर,
हर बार टूटा दिल लेकर जख्म को अदा कर रहा,
जैसे नन्हा बच्चे को खेल रही उछाल उछाल कर,
जज्बा बहुत गैर है अरमान कि तरह दुनिया में,
जब भी बिखरते आशिक़ को पागल बना कर गुमनाम करती।

🙏Thank You🙏