कुछ दिन दिल्ली में शॉपिंग करने के बाद दिल्ली घूमना शुरू किया । ऐसा नहीं है कि आरव ने पहली बार दिल्ली देखी हूँ । एक बार रिदा और आरव दिल्ली आ चुके थें और दिल्ली में हौजख़ास विलेज पहुँचने पर कैसे रिदा ने उसके साथ अपनी एक वीडियो बनाई थीं जिसे उसने नाम दिया था "यादें तेरी मेरी " वो एक- एक पल उसके सामने घूम रहा था। रिदा उसे इतनी याद आने लगी वो आँसू, वो पछतावा जिसकी वजह से उसका खुले में भी दम घुटने लगा । अरुणा ने उसके बदलते चेहरे के हाव-भाव को देखकर समझ लिया कि उसका भाई फिर अतीत के भँवर में फँस गया है । “चलो अब बहुत घूम लिया, घर चलते है, अरुणा ने ऋषभ को कहा। फ़िर सब लोग घर आ गए और वापिस पालमपुर जाने की तैयारी करने लगें । जाते हुए बस में बैठा आरव सोच रहा था कि क्या ज़िन्दगीभर वह इसी पछतावे में जीता रहेगा और तड़प-तड़पकर मरता रहेगा। तभी उसके अंतर्मन से आवाज़ आई “हाँ!! ऐसे ही रहने होगा” आवाज़ को सुन वह और उदास हो गया । बस पालमपुर पहुँच चुकी थीं, सबने एक दूसरे को मुस्कुराते हुए विदा किया तथा जाते हुए ऋषभ ने अरुणा को गले लगाया दोनों की आँखों में भावी जीवन के नए सपने सच होने को तैयार बैठे थें ।
वहाँ पीहू का सपना भी सच होने के लिए मचल रहा था, पर पीहू अपने बाबा को नाराज़ नहीं कर सकती थीं, वह उनके सपने को भी सच करने का प्रयास करना चाहती थीं । उसने पूरी मेहनत से पढ़ाई की और पेपर देना शुरू किया। दिन बीतते गए और पीहू की तैयारी भी भरी-पूरी चलती गई। “देखना इस बार मेरी बेटी ज़रूर पेपर क्लियर करेंगी और फ़िर मैं भी गर्व से कह सकूँगा कि देखो ! शिवप्रसाद की बेटी सरकारी नौकरी में है ।“ बाबा ने फ़िर अपनी बची-कुची मूँछो को ताव देते हुए कहा । लोग यह भी कहेंगे झाड़ू वाले की बेटी सरकारी नौकरी में लग गई” नानी ने मज़ाक उड़ाया। अम्मा अब हम झाड़ू नहीं लगाते केवल सुपरवाइज़ करते हैं, कहकर शिवप्रसाद थैला उठा बाहर निकल गए । "बड़ा आया सुपवाइज़र" नानी चिढ़कर बोली। पीहू होशियार निकली और दूसरा पेपर देने पर पास हो गई । बाबा ने तो पूरे शकरपुर बस्ती में लड्डू बटवाये। सोनू भी पीहू के पास पहुँच गया । “और पीहू तूने तो मुझे डंडे पड़वा दिए यार ! मेरा बाप आज सुबह से मेरे पीछे पड़ा है कि देखो शिवप्रसाद की लड़की सरकारी नौकर बन गयी और यह महाराज़े अभी तक मेरा दिया खा रहा है और कॉलेज जाकर आवारागर्दी में भी कोई कमी नहीं आई हैं ।“ सोनू ने मुँह फुलाकर बोला। सुनकर नानी और पीहू ज़ोर से हॅसने लगी । “तो क्या हुआ ? तेरी कौन सी उम्र निकली जा रही है कर लियो नौकरी” । नानी ने उसे नाश्ते की प्लेट थमाते हुए कहा । नानी में बिज़नेस करूँगा वो भी अलग -अलग बाइक्स का । “देखना ! मेरा एक दिन खुद का मोटर्स का शोरूम होगा, मैं नहीं सुन सकता किसी की । सोनू ने फटाफट नाश्ता की प्लेट खाली की।
नानी के जाते ही पीहू सोनू को छत पर ले गई । “क्या ! बात है पीकॉक छत पर ? कोई प्राइवेट बात करनी है क्या ?” सोनू ने बड़ी उत्सुकता से पूछा । “ऐसा ही समझ लें” । पीहू ने कहा । “ मैंने डांस वाली किताबों में किसी के बारे में पड़ा जो मुझ जैसे को डांस सीखा सकते है, मैं बाबा से छिपकर डांस सीखना चाहती हूँ । बता मेरी मदद करेंगा ।“ पीहू ने सोनू की आँखों में देखकर पूछा । “देख पीकॉक अगर बाइक पर आने-जाने या तेरे बाप से छिपाने की बात है तो उसके लिए छत पर लाने की ज़रूरत नहीं थीं ।“ सोनू ने हँसकर कहा । “तुझे हर वक़्त मज़ाक ही क्यों सूझता है सोनवीर?” पीकॉक ने भी चिढ़कर कहा। अब तो बिलकुल मदद नहीं करूँगा ।“ पीहू छत पर से जाते हुए कहा । “यार ! सुन तो सही । तू सुनता भी नहीं है मेरी बात । प्लीज़ एक बार सुन लें ।“ पीहू अब सचमुच गंभीर थीं । सोनू रुका और ध्यान से सुनता रहा । “डांस सीखने के लिए वही रहना होगा । और तो और तुझे मेरे साथ चलना होगा । सिर्फ़ छोड़ने के लिए । पीकॉक सोनू का चेहरा पढ़ते हुए बोली । फ़िर तू अपने बाप से क्या कहेगी ? कहाँ जा रही है ? क्यों जा रही है ? और मेरी कब्र इसी मोहल्ले में खुदवाने का पूरा इंतज़ाम कर रखा है और फिर उस कब्र पर मेरी परी आएगी फूल चढ़ाने” । सोनू ने बौखलाकर कहा । पीहू को हसीं आ गई । “कुछ नहीं होगा भरोसा कर मुझ पर, पहले पूरा प्लान सुन ले !” पीहू ने सोनू का हाथ पकड़कर कहा ।
सुना अपना पूरा प्लान सोनू बोला । “मैं घर में कहूँगी नौकरी से पहले ट्रेनिंग है और तू कॉलेज की ट्रिप बता दियो। फिर मुझे छोड़ दो-चार दिन में वापिस । देख कितना आसान हैं,” पीहू ने मुस्कुराकर कहा । “जितना लग रहा है न उतना आसान नहीं है । समझी! बहुत गड़बड़ है । तुझे डर नहीं लगता” पीकॉक सोनू ने तसल्ली करनी चाही। लगता तो है, मगर मैं इस डर के साथ नहीं जीना चाहती कि मैं अपंग थीं इसलिए डांस नहीं कर पाई । इस ज़िन्दगी में अगर यह सपना पूरा नहीं किया तो क्या किया सोनू । क्या सपने देखना का हक़ सिर्फ सक्षम लोगों को ही है हम क्या सिर्फ हैंडीकैप कोटे से सरकारी नौकरी लेते रहेंगे, मुझे ऐसे मत देख, मुझे पता है सब यही कह रहे है कि ये नौकरी मुझे इसलिए मिली है, और तेरे पापा ने भी यही कहा होगा। “पीहू का बोलते वक़्त गला भर आया। “मेरे बाप की तो बात ही अलग है, कब चलना है ?” सोनू ने पूछा । बस दो दिन बाद कहकर पीहू ने सोनू को गले लगा लिया। और सोनू की आँखों की चमक देख सोनू को राहत महसूस हुई ।
“दो दिन बाद अपनी नानी और बाबा को नौकरी की ट्रेनिंग का बहाना बना पीहू जाने के लिए तैयार हो गई । शिव प्रसाद इतने खुश थें कि उन्होंने ज़्यादा नहीं पूछा बस उन्हें इस बात की तसल्ली थीं कि पीहू के साथ दो लोग और भी ट्रेनिंग के लिए जा रहे हैं । और नानी शायद कुछ समझ रही थीं मगर पीहू की ख़ुशी देख बोली कुछ नहीं । वहाँ सोनू का बाप मदारीलाल पहले तो मना करता रहा मगर माँ उमा देवी की ज़िद के आगे हार गया और बस अड्डे जा पहुँचा । जहाँ पीहू पहले ही खड़ी उसका इंतज़ार कर रही थी, अपने बाबा को उसने पहले ही वापिस भेज दिया था। “तू ही मेरा सच्चा दोस्त और पहला प्यार है ।“ पीहू ने सोनू को देख! मज़ाकिया लहज़े में कहा । “हाँ इतना प्यार नहीं करता कि तेरे साथ रहूँगा बस दो-तीन दिन में छोड़कर आ जाऊँगा पीकॉक।“ सोनू बस में पीहू के साथ बैठता हुआ बोला । “चल थोड़ा प्यार तो करता है वहीं काफ़ी है ।“ पीहू ने ज़वाब दिया और बस चल पड़ी ।