The Last Murder - 9 in Hindi Crime Stories by Abhilekh Dwivedi books and stories PDF | The Last Murder - 9

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The Last Murder - 9

The Last Murder

… कुछ लोग किताबें पढ़कर मर्डर करते हैं ।

अभिलेख द्विवेदी

Chapter 9:

"अगर मुझे उसे समझाना होगा तो तुमसे मुझे नहीं समझना और तुमने सोच कैसे लिया ये सब? यही दोस्ती है अपनी? तुम्हें क्या लगता है कि मेरे पास अब यही काम बचा है?"

संविदा ने कुछ कहना सही नहीं समझा । वो बस इनकी बहस को सुनना चाहती थी ताकि कोई गलतफहमी न घर कर जाए ।

"तो तुम फिर ध्यान से सुनो । एलीट सर्किल में यही बात चल रही है कि कल की नयी राइटर के साथ रॉबिन ऐसे तो नहीं जुड़ा है, ज़रूर कुछ खिचड़ी है ।"

"अरे होने दो । जिसको जो कहना है कहे, मैं सब पर ध्यान नहीं दे सकता । मनीषा ही ज़्यादा बढ़ कर बोल रही थी, पहुँच गयी सही जगह ।"

"तुम हल्के में मत लो रॉबिन । बात बिगड़ सकती है । जान्ह्वी के मर्डर से पहले संविदा वहाँ गयी थी, मनीषा की मौत से पहले तुम मिलने गए थे । इसे ये सब समझ नहीं आएगा लेकिन तुम जानते हो कि इस सर्किल में सब एक दूसरे की लेने के बहाने निकालते हैं । तुम दोनों को शायद ना एहसास हो लेकिन अनजाने में तुम दोनों के दुश्मन बढ़ रहें हैं । जितनी बुक नहीं बिक रही उससे ज़्यादा तुम्हारी बातें चल रहीं हैं ।"

"ठीक है, पब्लिसिटी हो रही है न, फिर क्या फर्क पड़ता है? बिज़नेस पर असर नहीं पड़ना चाहिए ।"

"लेकिन, मुझे फर्क पड़ता है । मैं किसी भी गॉसिप का हिस्सा नही बनना चाहती ।" संविदा ने तपाक से कहा ।

"इससे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता । मशहूर होना है तो ये इन सब के साथ जीना होगा । और तुम चौथे पर ध्यान दो । अंकिता की बातों पर ज़्यादा ध्यान मत दो ।" रॉबिन ने बेपरवाही से हिदायत देने के अंदाज़ में कहा । संविदा खामोश हो कर वहाँ से निकल गयी ।

"रॉबिन मैं फिर भी कहूँगी की दोनों मर्डर केस के इन्वेस्टिगेशन अभी बंद नहीं हुए हैं । केस ओपन है, ज़रा संभल कर । वैसे तुम क्यों गए थे मनीषा से मिलने?" अंकिता ने संविदा के जाते ही ये सवाल किया था ।

"अरे ये सारे ऑथर को बस एडवांस रॉयल्टी का लॉलीपॉप पकड़ाओ तो सारी बातें हवा हो जाती है । वो नाराज़ थी कि किसी नए राइटर के साथ 7 बुक का एग्रीमेंट क्यों किया है । मैंने कहा तुम्हारे साथ भी कर लेंगे, लाओ मैनुस्क्रिप्ट और अभी एडवांस रॉयल्टी ट्रांसफर करता हूँ । लेकिन थी ही नहीं उसके पास कुछ । तो मैंने वही समझाया कि फालतू के प्रोपोगेंडा ना चलाये, नयी लड़की है अभी उसे मार्केट में खेलने-खाने दो । मेरा अग्रीमेंट जब खत्म हो जाएगा फिर लपेटना, लड़ना, भिड़ना और जो मन करे, करना ।"

"अच्छा… ठीक है, फिर भी ध्यान रखना । पता नहीं मुझे ऐसे वाइब्स आ रहें हैं कि कहीं ये लड़की ना फंस जाए ।"

"अरे चिल, देखा जाएगा । और सब मेरे हाथ में है इसलिए डोंट वरी, बस तुम थोड़ा इस बार माहौल बनाये रखना ।" रॉबिन ने उसे प्यार से कहा और विंक किया । बदले में अंकिता भी सिर्फ मुस्कुराई, सिर हिलाकर भरोसा दिलाया । फिर उसने वहाँ से विदा ली और रॉबिन ने दिन का हाल-चाल लेने के लिए कुछ देर सी.सी.टीवी की फुटेज और फिर आज की बुक-सेल की रिपोर्ट देखने में लग गया ।

इधर संविदा अपने बुक-प्रमोशन और सोशल मीडिया इंटरएक्शन में खुद को बिज़ी रखने लगी थी क्योंकि उसे समझ आ गया था कि बुक लिखने के अलावा हर जगह दिखना बहुत जरूरी है और उसकी कोशिशें उसको अच्छा रिजल्ट दे रही थी । हफ्ते-दिन बाद एक दिन तनवीर से उसकी चैटिंग हुई तो उसने तनवीर से पूछ लिया कि उस दिन वो बुक-लॉन्च वाले दिन क्यों नहीं आया था । तनवीर ने बताया कि उसी लॉन्च में आते वक्त उसका एक्सीडेंट हो गया था इसलिए नहीं आ पाया, फिलहाल वह घर पर आराम करता है और बहुत जल्द वह किताब को खरीदेगा । संविदा ने जैसे ही उसे बताया कि उसके लिए उस दिन उसने बुक मैं ऑटोग्राफ देकर वैसा ही दिल बनाया था तो तनवीर को जानकर खुशी हुई कि कोई ऑथर उसको इतनी अहमियत देता है । संविदा ने बता दिया कि उसकी कॉपी मे-फेयर के उसी स्टोर में सुरक्षित है तो वो किसी भी दिन जाकर ले सकता है । तनवीर खुश था कि उसके नहीं आने के बावजूद उसकी कॉपी सुरक्षित है ।

उधर एक दिन अचानक से खबर उड़ी कि सुमोना रंगनाथन का मर्डर हुआ है । संविदा ने सुना तो उसको बहुत बड़ा झटका लगा था । उसको विश्वास ही नहीं हो रहा था कि सुमोना इतनी जल्दी चली जायेगी । जितनी जल्दी और ज़्यादा उसने उपलब्धि हासिल की थी किसी ने नहीं सोचा था कि अचानक से उसके साथ ऐसा होगा । अच्छी-भली पार्टी से लौटी और सुबह खबर फैल गयी कि कल रात में किसी ने उसका कत्ल कर दिया है । इस घटना ने संविदा को हिला दिया था । अभी वो सोच ही रही थी कि वो उनसे जाकर मिले फिर से और कुछ बातें शेयर करे या कुछ सीखे उनसे कि कैसे आगे बढ़ना है । रॉबिन से भी जब बात हुई तो उसने ज़्यादा वैल्यू नहीं दिया । उसने इस मौत को ये कहकर टाल दिया कि रोज़ कोई न कोई मर रहा है, इसलिए भावुक होने के बजाय सारा ध्यान अगली कहानी पर लगाये । हालांकि संविदा की लिखने की स्पीड बढ़ चुकी थी और कभी-कभी वो वॉइस टेक्स्ट इनपुट से और जल्दी अपना काम कर लेती थी लेकिन फिर भी कुछ दिन ऐसे होते हैं जो आपको जब कहीं रोकते हैं तो वहीं जमा देते हैं । उसे इस बात का दुःख था कि क्यों उन सब का कत्ल हो रहा है जिनसे वो जुड़ना चाहती थी । ये अलग बात है किसी से उसको कोई सकारात्मक ऊर्जा नहीं मिली लेकिन फिर भी वो उनसे जुड़कर सीखना और आगे बढ़ना चाहती थी । कोई तो था जो उसकी मन की बात को पढ़कर उसे पूरा होने नहीं दे रहा था । कौन हो सकता है ऐसा?

अब अगली कहानी लिखनी भी थी और संविदा के मन में एक डर भी था कि फिर कहीं यह कहानी पूरी होने के साथ ये नॉवेल किसी के मौत का ज़रिया न बन जाए । बहुत मुश्किलों से उसने 20 दिनों में कहानी तो पूरी कर ली थी लेकिन उसे हिम्मत नहीं हो रहा था कि इससे रॉबिन को फॉरवर्ड करे । लेकिन रॉबिन अपने बिज़नेस के लिए कमिटेड था, सही टाइम पर फाइल ना मिलने की वजह से रॉबिन ने खुद ही संविदा से फाइल के बारे में पूछ लिया । अब संविदा के पास कोई चारा नहीं था, फाइल उसने भेज दी और रॉबिन ने उसे पढ़कर प्रिंट के लिए फाइनल कर दिया था । इधर कवर डिज़ाइन होने शुरू हो गए और प्रमोशन का काम शुरू हो गया था । इस बीच रंजीत की नयी किताब आ गई थी और उसने संविदा से रिक्वेस्ट किया था कि थोड़ा बहुत वह अगर उसकी किताब को प्रमोट कर दे तो वह बहुत शुक्रगुज़ार रहेगा । संविदा के लिए यह कोई बड़ी चीज नहीं थी, वैसे भी वो खुद के लिए तो सब कुछ कर रही थी लेकिन दूसरों के लिए ज्यादा कुछ नहीं कर पा रही थी तो उसने भी एक वीक में दो तीन जगह बुक से संबंधित पोस्ट डाले । इसका रिस्पांस अच्छा था । लोगों ने उसकी वाह-वाही इसलिए की क्योंकि उसने पहली बार किसी और की किताब को प्रमोट किया था और जिन्होंने भी रंजीत के किताब को पढ़ा उसने रंजीत और संविदा के साथ रंजीत की किताब को भी खूब सराहा । इससे सब को यह लगा कि संविदा के पास ना सिर्फ लिखने के आईडिया है बल्कि पढ़ने में भी टेस्ट अच्छा है लेकिन सब कुछ अच्छा-अच्छा हो तो कुछ गड़बड़-सा लगता है और इस गड़बड़ी को अगर बैलेंस बनाना है तो जरूरी है कहीं कुछ गड़बड़ी की जाए और यह गड़बड़ी हुई आशुतोष मृणाल से ।

आशुतोष ने ग्राउंड पर अपनी राजनीति चमकाने के लिए फिर किसी होटल में बवाल कर दिया था । पिछली बार गमछे के लिए बवाल हुआ था इस बार खाली पैर अंदर आकर होटल के फ्लोर पर बैठकर खाने की ज़िद पर बवाल था । अब ज़रूरी नहीं कि हर बार का बवाल आपको फायदा पहुँचाये, अगर दिन खराब हुआ तो जान से भी हाथ धोना पड़ सकता है । वहाँ उसकी क्रांतिकारी गतिविधि के चक्कर में किसी ने गोली चला दी और आशुतोष की हत्या हो गयी । अफरा-तफरी में वहाँ अलग ही माहौल बन गया था । सोशल मीडिया पर सबके टाइमलाइन पर उसके मौत की खबर दौड़ रही थी । हर कोई अपने तरीके से संवेदना देते हुए अपने पोस्ट की रीच के जुगाड़ में लगा हुआ था । इसी में किसी ने संविदा को टैग कर दिया था । अब यहाँ से मामला बिगड़ भी सकता था । इस मौत के खबर को संविदा इससे पहले की पूरी तरह समझती, पुलिस रॉबिन तक पहुँची और वहाँ संविदा मिल गयी । पुलिस ने उसे थाने चलने के लिए कहा । संविदा को कुछ समझ नहीं आ रहा था और वो घबरायी हुई थी । रॉबिन ने भरोसा दिलाया कि टेंशन मत लो और शांत रहो । रॉबिन को वैसे भी शहर के बड़े लोगों से पहचान थी । लेकिन उसने पहले अंकिता को फोन किया और कुछ करने के लिए कहा । अंकिता ने भी उसकी बात मान ली । इधर संविदा थाने में थी ।

थाने में लेडी इंस्पेक्टर और कॉन्स्टेबल थे इसलिए सवाल जवाब भी उन्होंने ही शुरू किया ।

"क्यों मैडम, लेखक होकर लेखकों को ही मार रही हो या किसी और से मरवा रही हो?"