30 शेड्स ऑफ बेला
(30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास)
Episode 29 by Nalini नलिनी सुब्रमण्यम
इस शाम की कब होगी सुबह?
दिल्ली की एक खूबसूरत शाम। थोड़ी देर पहले बारिश हो चुकी थी। मिट्टी से आती वो सोंधी सी खुशबू। लॉन में झूले पर रिया लंबी पेंगे लगा रही थी। उसे झुला रहे थे कृष और पद्मा। कृष बार-बार पद्मा की तरफ झुकते हुए कुछ कह रहा था और हर बार पद्मा के गालों पर हलकी सी सुर्खी आ जाती।
बरामदे में गोल कॉफी टेबल पर बैठे पुष्पेंद्र और आशा। आशा की मांग में हलका सा सिंदूर। माथे पर बड़ी बिंदी। बेला ट्रे में सबके लिए चाय लेकर आ पहुंची। आशा हड़बड़ी में उठ गई, ‘अरे मुझसे कह देती, मैं बना देती चाय।’
‘कोई बात नहीं मां। कल से आप अपने ही हाथ की चाय पिएंगी।’ बेला ने धीरे से कहा।
अचानक पुष्पेंद्र और आशा के चेहरे पर मायूसी आ गई। कल सुबह सब चले जाएंगे अपने-अपने घर। कृष पद्मा को अपने साथ दुबई ले कर जा रहा है। बेला और रिया मुंबई। नियति और समीर तो पहले ही जा चुके हैं। सप्ताह भर पहले यही घर शादी की बातों और उल्लास से चप्पा-चप्पा गुलजार था, अब कल से वापस पुराने ढर्रे पर आ जाएगा।
बेला समझ गई, आशा के कंधे को हलके से दबाते हुए बोली, ‘हर कहानी का अंत तो होता ही है ना?’
पापा के चेहरे पर मुस्कराहट आ गई, ‘बेला के पास हमारे सारे सवालों के जवाब हैं। हमेशा करेक्ट बोलती है।’
चाय के नाम पर कृष और पद्मा भी आ गए। रिया कृष के कंधे पर सवार थी।
बेला कप में सबके लिए चाय डाल रही थी। सफेद बोन चाइना के कप से उठता धुआं उसे किसी दूसरी ही दुनिया में ले जा रहा था। खुशहाल, अपनों के बीच से कहीं दूर। कितनी जानी-पहचानी सी है यह खुशबू। हलकी-हलकी बजती घंटियां। हौले-हौले बहती हवा। ये कौन सी जगह है? कौन पुकार रहा है उसे? अचानक मन में एक अबूझ खालीपन सा क्यों भरता जा रहा है? क्या आदत हो गई है उसे तनाव में जीने की? अब जब सब ठीक हो रहा है, तो इतनी बेचैनी क्यों भर रही है तन-मन में?
पद्मा के कहने पर रिया जस्टिन बीबर का उसका मनपसंद गाना गा रही थी, लव युअरसेल्फ…
For all the times that you rain on my parade
And all the clubs you get in using my name
You think you broke my heart, oh girl for goodness sake
You think I'm crying, on my own well I ain't
बजती तालियों से उसका ध्यान टूटा। सब रिया को प्यार कर रहे थे। कृष भी, पापा भी। आशा रिया को गोद में लिए चूम रही थी और पद्मा प्यार से उसके बाल सहला रही थी। बेला ने आंखें बंद कर ली। इस तसवीर को वह अपनी आंखों में हमेशा के लिए कैद करना चाहती है, पता नहीं, कल ये हो ना हो।
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‘मैं नौकरी छोड़ रही हूं समीर…’
‘क्या हुआ? कहीं और जॉइन कर रही हो?’
‘फिलहाल नहीं। शायद कभी नहीं। कुछ और करना चाहती हूं।’ बेला की आवाज स्पष्ट और सधी हुई थी।
समीर चौंक गया, ‘तुम्हें पिछले साल ही प्रमोशन मिला है। तुम्हारी बॉस तुम्हें काफी अच्छी तरह समझती है। तुम्हारे पास घर से काम करने का भी ऑप्शन रहता है। फिर? इतनी जल्दी में क्यों हो?’
बेला सोचने लगी। समीर गलत नहीं कह रहा। पर अब उसे कुछ और करना है। अब नहीं तो कब? कभी तो अपनी जिंदगी अपनी तरह से जीना चाहती है। कल के इंतजार में बैठी रहेगी, तो शायद ये आज भी हाथ से निकल जाएगा। बहुत सोचा है इसके बारे में। पिछले छह महीने से यही तो कर रही है। बस सोच रही है कि क्या वह यही करना चाहती थी हमेशा? अंदर से आवाज आती है, नहीं। सिर्फ इसलिए कि हमारे आसपास सब यही कर रहे हैं, ऐसी ही बंधी-बंधाई जिंदगी जी रहे हैं, क्या वो भी इस चक्र में उलझ जाए?
उसने समीर को समझाने की कोशिश की, ‘समीर, मैं जब तुमसे मिली थी, मैं बहुत अलग मानसिक स्थिति में थी। बहुत उलझनें थी मेरे अंदर। अब जा कर मुझे अहसास हुआ है कि शायद हम दोनों को एक-दूसरे के साथ की जरूरत थी, मुझे ज्यादा। मैं बिखरी हुई थी। तुमने मुझे समेटा। मैंने जब तुमसे शादी के लिए कहा, तुम मना नहीं कर पाए। तुम वैसे भी कई बार कह चुके हो कि मुझसे शादी ना करते अपने घर वालों की पसंद की लड़की से कर लेते। है ना?’
समीर कुछ उलझता हुआ बोला, ‘इस बात का यहां क्या मतलब है बेला? हद है यार। इतना क्यों सोचती हो?’
‘वो एक ही काम मैं अच्छे से कर पाती हूं समीर,’ बेला के होंठों पर हलकी सी मुस्कराहट आई।
समीर चुप हो गया। बेला कुछ सोचती रही। बेडरूम में टेबल लैंप की हलकी सुरमई रोशनी में बेला का चेहरा उजला और साफ नजर आ रहा था। कुछ अलग लग रही थी बेला। अपने आप में पूरी।
बेला ने अचानक पूछा, ‘समीर, तुम्हें याद है… बनारस में हमें छोटू मिला था, जिसने हमारी बड़ी मदद की थी? पता नहीं क्यों, कुछ दिनों से उससे मिलने का मन कर रहा है।’
‘वो छोटू कहां रह गया होगा? कहां मिलेगा तुम्हें?’
बेला के चेहरे पर अजीब से भाव आए, जैसे कह रही हो, वहीं जहां पहले मिला था।
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बहुत जल्दी-जल्दी बहुत कुछ हो गया। बेला ने नौकरी छोड़ दी। समीर को कनाडा में बहुत अच्छी नौकरी मिल गई। लेकिन बेला उसके साथ नहीं जाना चाहती थी। समीर नाराज हो गया, ‘बेला, तुम नौकरी नहीं कर रही। रिया छोटी है। उसके स्कूल की भी कोई दिक्कत नहीं। फिर तुम्हें कनाडा आने में क्या दिक्कत है? यहां अकेली रह कर क्या करना चाहती हो? मुंबई का यह घर मुझे कंपनी से मिला है। मेरे कनाडा जाने के बाद यह फ्लैट छोड़ना पड़ेगा। कहां जाओगी? दिल्ली? पापा के पास?’
बेला ने नहीं में सिर हिलाते हुए कहा, ‘समीर, तुम कनाडा हमेशा के लिए थोड़े ही ना जा रहे हो? तीन साल का कॉन्ट्रैक्ट है। इसके बाद तो वापस आ ही जाओगे ना?’
‘कह नहीं सकता। कनाडा जा कर कोई वापस लौटता है क्या?’
‘पता नहीं। मैं और रिया आते रहेंगे ना तुमसे मिलने।’
‘कुछ ऐसा मत करना बेला कि बहुत देर हो जाए!’ पता नहीं कैसे समीर के मुंह से निकल गया। बेला भी चौंकी। पर तुरंत उसने अपने को संभाल लिया। अगर वह अपने लिए अपनी पसंद की जिंदगी चुनना चाहती है, तो समीर को भी तो इसका हक है।
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एक बार फिर पूरा परिवार इकट्टा हुआ। इस बार मुंबई में। समीर के कनाडा जाने से पहले पापा-मां, कृष और पद्मा आए अपनी प्यारी सी गुलगुली बेटी काव्या के साथ। काव्या को देख कर बेला रो पड़ी। देवदूत सा चेहरा, नीली आंखें…
सबके मन में एक ही सवाल था। बेला अब क्या करेगी? सलाह भी।
बेला दिल्ली आ जाओ। वैसे भी घर तुम लोगों का ही है। वहीं रह कर कुछ करो।
ये पापा थे।
पद्मा का कहना था, उसे दुबई आना चाहिए। वहां करने के लिए बहुत कुछ है।
समीर तो पहले ही मुंह फुलाए बैठा था—यहां-वहां जाने की क्या जरूरत? सीधे कनाडा चले मेरे साथ…
बेला बस मुस्कुराती रही।
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तय था कि काव्या का जन्म दिन सब एक साथ विलेपार्ले में इस्कान जा कर मनाएंगे। वहां गोविंदा रेस्तरां का खाना बहुत लजीज होता है। आशा दिल्ली से रिया और काव्या के लिए एक सा लहंगा बनवा कर लाई थी। सुबह-सुबह कृष दादर से ढेर सारे फूल ले आया था। घर सजाने के लिए और बालों में लगाने के लिए मोगरे के फूलों का गजरा। पद्मा गुलाबी बनारसी साड़ी में तैयार हो रही थी। आशा साड़ी पहनवाने में उसकी मदद कर रही थी। बेला सबसे पहले तैयार थी नीले कांजीवरम में। आशा ने जब दोनों बेटियों को साथ देखा, एक सी बहनें, सजी-संवरी, आंखें बंद कर बस उनके लिए मन से दुआएं निकलीं।
रात भर घर में जश्न का माहौल रहा। सुबह आशा जल्दी उठी। चाय बनाने के बाद सबको आवाजें लगाने लगीं। धीरे-धीरे सब उठ गए। हाथों में चाय का कप थामे, इधर-उधर की बातें।
सब थे। पर बेला कहां थी? सब बेला को पुकार रहे थे। समीर खुद भी बेला को ढूंढने लगे। रात तो यहीं थी। पर अब बेडरूम में सन्नाटा था। सब परेशान हो कर आवाजें देने लगे, बेला, रिया। कहां हो…
अचानक डाइनिंग टेबल पर कृष कर नजर पड़ी।
वहां तीन लिफाफे थे… कुछ लिखा था तीनों पर। चमकते हुए अक्षर।
नोट: दोस्तों, पिछले कई दिनों से हम कई लोग बेला की ज़िंदगी आपके साथ बांटते रहे हैं ।आप भी अब उसे उतना ही जानते हैं जितना हम सब, पर अब हम आपसे उसके बारे में कुछ साझा नहीं कर पाएंगे, क्योंकि हमें भी उतना ही मालूम है जितना आप अब तक जान चुके हैं।पिछले बीस साल से हम सब यह जानने की कोशिश में हैं कि वह है कहां और कर क्या रही है । पर हम सिर्फ़ इतना जान पाये है कि उसके घर तीन पत्र पाए गए थे और उसी के बाद से वह और रिया कहीं चले गए।
यह प्रयास बेला को ढूंढने में आप सब को शामिल करने के लिए है ।अगर आप को कहीं मिले तो हमें बताइए,उससे पूछिए कि वह कहां चली गयी और क्यों ? और उन तीन लिफ़ाफ़ों का सच क्या था? हम तो उसे नहीं ढूंढ पाए, क्या पता आप कामयाब हो जाएं। इंतज़ार रहेगा। अगली कड़ी तक पहुंचने का।