अंक - सातवां/७
'अदितीतीतीतीतीतीतीती....'
'अदितीतीतीतीतीतीतीती....'
'अदितीतीतीतीतीतीतीती....' का नाम लेकर चिल्लाते हुए आलोक और शेखर दोनों ने लिफ्ट की आसपास का इलाका छान मारा। बहुत ढूंढा पर तब तक तो अदिती सैकड़ों की भीड़ में कहा गुम हो गई थी। आलोक की सांसे अचानक से फूलने लगी। थोड़ी ही देर में तो आलोक की आंखों के सामने एकदम से अंधेरा छा गया और अंत में आलोक ने अपने दोनो हाथों से जोर से सिर को दबाने के साथ ही अदिती के नाम की जोर की चीख लगाते ही आलोक को चक्कर आते ही वही पर ही गिर पड़ा।
सिर्फ़ दस मिनटों में अचानक सबकुछ एकसाथ हो गया इसलिए शेखर की सोचने समझने की शक्ति थोड़ी देर के लिए सुन्न पड़ गई। लेकिन दूसरे ही क्षण में शेखर और दोस्तों ने मिलकर जल्दी से आलोक को कार की बेक सीट पर सुलाया और कार हॉस्पिटल की ओर दौड़ा दी। अंदर ले जाकर बेड पर सुलाया। डॉक्टर आए तब तक उनके एसिस्टेंट ने प्राइमरी ट्रीटमेंट शुरू कर दी। थोड़ी ही देर में डॉक्टर आए। आलोक अभी भी होश में नहीं आया था। शेखर ने डॉक्टर से रिक्वेस्ट करी कि, सर इसको इस वक्त फिजिकली और खास तौर पर मेंटली आराम की भी सख्त ज़रूरत है।
ई. सी. जी., कार्डियोग्राम, पल्स एक के बाद एक रिपोर्ट्स निकालते गए। उसके बाद डॉक्टर बोले, 'ऑक्सीजन के साथ इंजेक्शन है, उस से वो सुबह तक नींद में रहेगा।'
डॉक्टर की केबिन में जाने के बाद शेखर ने डॉक्टर को पिछले दिनों में घटी हुई सब घटनाओं से वाकिफ करवाया। सबकुछ शान्ति से सुनने के बाद डॉक्टर ने कहा कि, 'हम सुबह तक इंतजार करते हैं और वैसे भी मुझे इस स्थिति में खास कुछ गंभीर बात नहीं लगती। चक्कर आना वो तो आम बात है। तुम्हारी बातें सुनकर, इसको मेंटली रेस्ट की बहुत ज़रूरत है। औरे जब येे होश में आये तब तुम उसे घर ले जा सकते हो। आगे की डिस्कसन हम कल करेंगे।' अपने एसिस्टेंट को कुछ इंपॉर्टेंट इंस्ट्रक्शंस देकर डॉक्टर चले गए।
सुबह करीब ६ बजे के बाद आलोक ने आंखें खोली, गणेशन दूसरी बेड पर ही सो रहा था। सरसराहट की आवाज़ सुनकर गणेशन भी जाग गया। कुछ देर तक तो आलोक को समझ ही नहीं आया कि कहा है। गणेशन को देखकर पूछा,
'शेखर किधर है? मैं कहां हूं?'
गणेशन ने कहा, 'तुम अस्पताल में हाे, शेखर यहीं था, थोड़ा काम था तो अभी बाहर गया है। बस अभी आता ही होगा।'
आलोक ने गणेशन को पूछा, 'मुझे क्या हुआ था?'
गणेशन ने कहा, 'अरे कुछ नहीं। तुम्हे थोड़े से चक्कर आ गए थे तो यहां लेकर आए थे। डॉक्टर ने कहा अगर सारी रात यहां आराम करेगा तो सब ठीक हो जाएगा। बोल अव कैसा लग रहा है? एक मिनिट मैं देखकर आता हूं डॉक्टर साहब आए कि नहीं।' डॉक्टर का बहाना बनाकर गणेशन ने शेखर को कॉल कर के बताया। शेखर ने कहा, 'मैं आधे घंटे मेें पहुंचता हूं।'
७:३० को शेखर आया। शेखर को देखते ही आलोक ने पूछा,
'अदिती कहां है?'
शेखर का अंदाजा सही निकला। वो इस स्थिति की मानसिक रूप से तैयारी कर के ही आया था।
'देख आलोक, सब बातें हम घर जाकर आराम से करेंगे। चल अब घर चलते हैं।' शेखरने आलोक को ले जाकर कार में बिठाया तब तक गणेशन ने हॉस्पिटल की फॉर्मेलिटी पूरी कर दी।
गणेशन को उसके घर पर ड्रॉप करने के बाद शेखर आलोक को लेकर उसके फ्लैट पर आया। आलोक लिविंग रूम के सोफे पर बैठते ही बोला, 'शेखर अदिती कहां है?'
शेखर ने आलोक को अदिती लिफ्ट में दिखाई तब से शुरू कर के हॉस्पिटल में लेकर आए तक की सब बातें अक्षरशः बताई। फिर बोला, 'वो भीड़ में कहीं गुम हो गई। हम उसे ढूंढे भी कैसे? हमने तो उसका चेहरा भी नहीं देखा। औैर तुम्हें अचानक से चक्कर आ गए, तो उस समय अदिती को ढूंढने से ज्यादा तुम्हें हॉस्पिटल पहुंचाना ज्यादा जरूरी था तो.....'
शेखर आलोक को अभी भी ओर कुछ समझाकर आगे बोलता और कुछ सोचता उससे पहले तो...
आलोक ने टीपोई पर रखा हुआ कांच का ग्लास उठाकर पूरी ताकत से सामने की दीवार पर दे मारा।
तूटी हुई कांच की किरचों से भी अधिक मात्रा में अदृश्य काल के स्वरूप में क्षणिक आई हुई उग्रता से आलोक के मस्तिष्क के भीतर चुभते अप्रत्यक्ष तीक्ष्ण प्रहारों के काटों से असह्य वेदना से त्रस्त होकर आलोक अब अपने अस्तित्व पर काबू गुमाने की कगार पर आ गया था।
शेखर अचानक से आलोक का ऐसा अकल्पनीय बिहेवियर देखकर एकदम से सुन्न हो गया। थोड़ी देर तक तो शेखर को कुछ भी समझ में नहीं आया।
एक तो कल ऑफिस में सुने गोपाल के कठिन शब्दप्रहार औैर दो-दो बार नजरों के सामने से ओझल होती अदिती। दोनो घटनाओं के वैचारिक आक्रमण से आलोक स्वयं पर काबू नहीं रख पाया। एक शांत, सौम्य और भावनाशील छबि वाले आलोक के इस उग्र रूप के पीछे सिर्फ उसकी अव्यक्त पीड़ा ही जिम्मेदार थी। आलोक अपनी उस पीड़ा को शब्दों में व्यक्त करने में असमर्थ था।
'शेखर आई एम सो सॉरी यार.. सॉरी.. सॉरी...' बस इतना बोलते ही आलोक रो पड़ा। शेखर ने आलोक को अपने गले लगाकर रोने दिया। उसे अन्दर से हल्का महसूस करवाने का यही श्रेष्ठतम उपाय था। शेखर को समझ आ गया कि... अव शब्दरूपी समझदारी की भूमिका यहां खतम होने के कगार पर है। शेखर कि सोच से भी परे यह मामला बहुत गंभीर और नाजुक था। लेकिन शेखर टोटली प्रैक्टिकल था।
परिवेश को हल्का करने के लिए शेखर बोला, 'अच्छा आलोक ठीक है, तू फ्रेश हो जा। चल मैं तेरे लिए मस्त कॉफी बनाता हूं।'
आलोक फ्रेश हुआ उतने में शेखर ने कॉफी बना दी।
दोनो ने कॉफी पीना शुरू किया। कॉफी खतम हुई तब तक आलोक नज़रे नीची किए एकदम चुपचाप बैठा रहा। बाद में एक गहरी सांस लेकर धीमी आवाज़ में आलोक बोला, 'शेखर मुझे लग रहा है कि अभी थोड़े दिनों तक मैं जॉब नहीं कर पाऊंगा।'
'क्यूं आलोक।' शेखर ने पूछा।
तब आलोक ने कल ऑफिस में उसके औैर गोपाल के बीच जो कुछ घटित हुआ था वो बात शेखर को बताया।
शेखर ने आलोक को समझाते हुए कहा कि, 'देखो आलोक उस मैटर में गोपाल अपनी जगह पर एकदम सही है। औैर तुमसे जो गलती हुई है, वो जानबूझकर तो नहीं करी है न।'
'देखो आलोक हर एक की लाइफ में कभी न कभी अप्स एण्ड डाउन्स आते ही है। तुम्हारा किस्सा जरा अलग है। तुम्हारी अब तक की लाइफ एकदान सहज और सीधी रही है। एक क्लीन ईमेज वाला तुम्हारा व्यक्तित्व। तुम इमोशनल हो। मैं तुम्हारी तकलीफ और दर्द बहुत अच्छी तरह से समझ सकता हूं। रिप्यूटेड कम्पनी में अच्छी सी जॉब है। अपने माता पिता की इकलौती संतान हो। तुम्हारे सामने इतनी अच्छी जिन्दगी है। ईश्वर ने चारों हाथों से आशीर्वाद दिया है। तुम और तुम्हारी भावनाएं दोनों अपनी जगह पर सही है। लेकिन यार..
रोटी और रोमांस के बीच कुछ तो बेलेंस करना पड़ेगा न? तू मुझे एक बात समझा कि तू इन सब पहलुओं के बीच बेलेंस क्यूं नहीं कर सकता? दूसरी बात अदिती ने रखी हुई शर्त की कोई समयमर्यादा भी नहीं है न तो? तो उसकी एक शर्त के पीछे तू कितना सबकुछ खो रहा है उसका तुम्हे कोई अंदाजा भी है? नाखून काटने के लिए तलवार नहीं निकालते मेरे भाई। तेल देखो, तेल की धार देखो। तुम बाढ़ में सामने से आते हुए बहाव में तैरने की इच्छा रख रहे हो। जिन्दगी में प्रेम, पैसा, परिवार, प्रतिष्ठा, इनके सिवाय भी बहुत कुछ जरूरी है। लेकिन इन सब पहलुओं पर संतुलन बनाए रखना उससे भी ज्यादा जरूरी है दोस्त। आई थींक मेरा भाषण कुछ लम्बा हो गया इसलिए अब इजाजत चाहूंगा।'
उसके बाद मेडिसिंस दिखाकर कैसे, कब लेनी है वो समझाया, बाद में बोला, अच्छा ठीक है। आलोक अब तुम आराम करो मैं बाकी का काम निपटाकर शाम तक आता हूं। औैर छुट्टी के लिए ऑफिस में गोपाल के साथ बात कर लेना। में भी कॉल कर दूंगा। ऑफिस की चिंता मत करना। औैर सुन खासतौर पर दिमाग को आराम देना मेरे भाई, औैर ऐसा लगे तो चल कुछ दिन मेरे घर पर रहने आ जा।'
आलोक ने कहा, 'अभी ठीक है। तू शाम को आ तब सोचते है।'
'टेक केर, बाय।' इतना कहकर शेखर रवाना हुआ।
शेखर दोपहर १२ बजे के आसपास डॉक्टर से मिलने हॉस्पिटल रवाना हुआ। थोड़ी देर वेट करने के बाद डॉक्टर की केबिन में गया। डॉक्टर को आज सुबह के आलोक के बिहेवियर के बारे में बताया, कुछ देर सोचने के बाद डॉक्टर बोले,
'शेखर इस सिचुएशन को समझते हुए मैं एडवाइज करता हूं कि आलोक के लिए अब किसी अच्छे से साईक्याट्रीक को कंसल्ट करना ही बेटर होगा। वी होप कि सबकुछ अच्छा ही है पर मैं कोई रिस्क लेना नहीं चाहता औैर तुम मेरे फैमिली मेम्बर जैसे हाे तो आई थिंक सीरियसली।'
शेखर बोला, 'जी सर आप ठीक सोच रहे हैं। जिससे कंसल्ट कर सकते है? एज़ सून एज़।' डॉक्टर ने कहा, 'वेल नोन और बैंगलुरू के टॉप मोस्ट साईक्याट्रीक डॉक्टर अविनाश जोशी को कंसल्ट कर सकते है। पर उनका अपॉइंटमेंट मिलना थोड़ा मुश्किल है, तुम जानते हो उन्हें?' शेखर ने कहा, 'शायद।'
'ऐसा करो मैं आज ही कॉल करके जितनी जल्दी हो सके उनकी अपॉइंटमेंट लेकर तुम्हे शाम तक कॉल करता हूं। औैर मैंने जो मेडिसिंस लिखकर दी है उससे इस हालात में वो थोड़ा रिलैक्स फिल करेगा। एण्ड डॉन्ट वरी। एवरीथिंग विल बी फाइन।'
कुछ याद आते ही शेखर ने पूछा, 'डॉक्टर अविनाश जोशी, वो लंबे से है वो?' डॉक्टर ने कहा, 'हां, डू यू नो हीम?' 'हा, चाचाजी जानते हैं शायद, एक दो बार चाचाजी से मिले भी है वो। आप कॉल करके पता कर लीजिए। फिर मैं अंकल से बात करता हूं।'
शेखर ने हाथ मिलाकर डॉक्टर का बहुत बहुत धन्यवाद माना। बाहर आकर कार लेकर ट्रांसपोर्ट ऑफिस की ओर रवाना हुआ। अब शेखर का दिमाग चकराने लगा। इस पूरे किस्से की गुत्थी कैसे सुलझेगी वो शेखर के लिए एक यक्ष प्रश्न था। अदिती को कैसे कहा ढूंढे? आलोक के दिमाग से अदिती को कैसे दूर करे? करे या न करे? औैर अगर परिस्थिति ऐसी की ऐसी ही रही तो आलोक के साथ साथ निवृत्ति के कगार पर खड़े उसके माता पिता की निजी जिंदगी दोजख जैसी हो जायेगी। आलोक के पेरेंट्स लिए तो आलोक की इस हालत का संदेश मात्र ही असह्य आघात से कम नहीं होगा।
एक साथ अनेक मोर्चो पर सावधानीसे शेखर को सब काम पूरा करना था। उसके खुद के बिजनेस का शेड्यूल भी अस्तव्यस्त हाे गया था। लेकिन शेखर के फैमिली मेम्बर्स आलोक और शेखर दोनो के गहरे और आत्मीय रिलेशन से बहुत अच्छे से वाकिफ थे। इसलिए शेखर को उस बात की कोई ज्यादा चिंता नहीं थी।
ट्रांसपोर्ट की ऑफिस आकर सबसे पहले जरूरी पेंडिंग फाइनेंशियल मैटर के पेपर वर्क का काम निपटाना शुरू किया। दो चार मोस्ट इंपॉर्टेंट कॉल्स किए। शेखर को पता था कि अब आनेवाले दिनों में आलोक की इस परिस्थिति को ध्यान में रखकर उसे कहा, कब, कितनी भागदौड़ करनी पड़ेगी उसका अंदाजा नहीं था। अपने कजिन को बुलाकर थोड़ी जरूरी सूचनाएं दी। उसके बाद शेखर को लगा अब वीरेन्द्र अंकल को बात करनी चाहिए, इसलिए वो वीरेन्द्र की केबिन में जाकर...
वीरेन्द्र को पिछले दिनों में आलोक के साथ घटी तमाम घटनाओं का संक्षेप में विवरण किया। वीरेन्द्र को बात की गंभीरता समझ में आ गई, उसके बाद वीरेन्द्र बोले,
'ओह.. येे तो बहुत बुरा हुआ। औैर मुझे लगता है कि इस हालत में आलोक का अकेले रहना खतरे से भरा हुआ है। हो सके तो उसे अपने घर पर ही ले आओ।'
शेखर बोला,'वो बात हो गई है.. लेकिन अंकल मैं येे पूछना चाह रहा था कि आलोक के पेरेंट्स को बताना...' शेखर अपनी बात पूरी हो उससे वीरेन्द्र बोले, नहीं नहीं शेखर अभी नहीं। पहले साईक्याट्रिक को कन्सल्ट कर लेते हैं, देखते है वो क्या कहते है बाद में सोचते है।'
'अरे हा, अंकल वो साईक्याट्रिक डॉक्टर अविनाश जोशी को आप पहचानते हो? हा, क्यूं? उनसे कन्सल्ट करना है? वो तो हमारे शहर के बहुत नामांकित और बहुत ही काबिल साईक्याट्रीक है।'
'हा, अंकल आप कॉल करेंगे?'
'हा, अरे हा, क्यूं नहीं वो तो मेरे बहुत अच्छे मित्र है। तुम्हारे पापा को भी बहुत अच्छे से जानते थे। मैं उनको कॉल कर दूंगा तू चिंता मत करना।'
शेखर बोला, 'अंकल इस भागदौड़ में ऑफिस के काम में थोड़ा डिस्टर्ब होगा तो प्लीज़ आप जरा संभाल...' शेखर की बात काटते हुए अंकल बोले..
'अरे.. बेटा तुम्हे ऐसा बोलने की कोई ज़रूरत नहीं? और सुनो जो कुछ भी हो मुझे उसकी खबर देते रहना।'
'जी, अंकल।' ऐसा बोलकर शेखर अपनी केबिन में वापस आकर फिर से काम में लग गया।
काम की व्यस्तता में लंच टाइम कब स्किप हो गया उसका भी पता नहीं चला। लेकिन अब टाईम हुआ था ४:३५, तो कॉफी के साथ नस्ता करते करते आलोक को कॉल लगाया।
आलोक ने कॉल रिसीव किया..
'हा बोल शेखर।'
'क्या कर रहा है मेरा जिगरी?'
'टी. वी. पर फिल्म देख रहा हूं।'
'कौनसी?'
'तेरे नाम।'
'अरे मेरे भाई तू उस अविवाहित के चक्कर में कहा पड़ रहा है, उसे वो सब करने के रुपए मिलते है, भाई। वो सब देखना छोड़कर रजनीकांत की कोई मूवी देख ले, तूने लंच किया?'
'हा, पार्सल ऑर्डर किया था।'
'तबीयत कैसी है? मेडिसिन ली?'
'हा, अभी ठीक हूं।'
'शेखर तू कब आ रहा है?'
'मैं बस सब काम खतम करके घण्टे भर में पहुंच रहा हूं, कुछ काम था? कही जाना है? कुछ लाना है? '
थोड़ी देर चुप रहकर आलोक बोला,
'शेखर अदिती का कुछ पता चला?'
अनपेक्षित प्रश्न सुनकर शेखर सोचने लगा... फिर बोला,
'हा.. हा.. मैं आ रहा हूं। फिर आराम से बात करते हैं।'
बाकी बचे हुए कामों में शेखर का मन नहीं लगा। ऑफिस के काम के सिलसिले दो पार्टियों से मिलना था इसलिए कार लेकर निकल पड़ा। ५:१५ को डॉक्टर का कॉल आया।
'हेल्लो, शेखर कहां हाे? पॉसिबल हो तो हॉस्पिटल आ जाओ।'
काम था फिर भी सबकुछ छोड़कर जाने का सोचकर शेखर बोला, 'सर अभी आता हूं १५ मिनट में।' इतना बोलकर कार हॉस्पिटल की तरफ़ मोड़ दी।
शेखर डॉक्टर की केबिन में गया।
'आओ आओ शेखर बैठो। सुनो लंच टाईम के बाद मेरी डॉक्टर अविनाश से बात हुई, वो तीन दिन पहले ही अमरीका से आए है। वैसे तो अर्जेंट में उनकी अपॉइंटमेंट मिलना इंपॉसिबल है। फिर भी मैंने रिक्वेस्ट की तो कल शाम सात बजे की अपॉइंटमेंट मिली है। मैंने अपॉइंटमेंट डीटेल्स में मेरा मेरे रेफरेंस के साथ तुम्हारा नाम औैर नंबर नोट करवाया है। तुम अपनी पहचान वहां जाकर दे देना, औैर उनके केअर यूनिट का पता तो तुम्हे मालूम ही होगा फिर भी मैंने तुम्हे सेंड कर दिया है। औैर कुछ काम है तो बोलो?'
शेखर बोला, 'जी नहीं, थैंक यू सो मच सर।'
डॉक्टर बोले, 'ईट्स माय ड्यूटी।'
फिर से उनका शुक्रिया अदा करके शेखर रवाना हुआ।
शेखर को लगा कि अब दूसरे काम निपटाने जाऊंगा तो देर हो जायेगी। इसलिए रवाना हुआ आलोक के फ्लैट की ओर।
डोर बेल बाजी। आलोक ने डोर खोला। शेखर अंदर आया। लिविंग रूम एकदम अस्तव्यस्त था।
आते ही शेखर ने पूछा, 'गोपाल के साथ बात हाे गई?'
'हा, हाे गई।'
'कुछ बोला उसने?'
'नहीं कुछ नहीं बोला।'
इस बात से शेखर समझ गया कि गोपाल अभी भी आलोक के वर्ताव से नाराज़ है।
'क्या किया पूरा दिन?'
'कुछ नहीं, टी. वी. में कुछ न कुछ देखता रहा। कॉलेज फ्रेंड्स के कॉल आए तो उनके साथ थोड़ी देर बातें की। बाद में कुछ पढ़ने की कोशिश की लेकिन सिर भारी होने लगा तो छोड़ दिया। खाना खाने के बाद दवाई लेकर सो गया।'
'मम्मी पापा के साथ बात की?'
'हा, अभी तुम्हारे आने से कुछ देर पहले ही।'
'उन्हें कुछ कहा तो नहीं है न?
'क्या? सब ठीक तो है।'
शेखर मन में बोला... हैश....
आलोक ने पूछा..
'शेखर तुम्हे कुछ अंदाज़ा है कि कल अदिती किस ओर गई थी? तुमने देखा था उसे?'
आलोक ऐसे बेसिरपैर के प्रश्नोत्तरी करेगा ही ऐसी पूर्व मानसिक तैयारी करके ही शेखर आया था। आलोक को संतुष्टि हो ऐसे ही काल्पनिक उत्तर देने थे। इसलिए शेखर जवाब देते हुए बोला,
'हा.. हा.. मै औैर गणेशन बहुत दौड़े उसके पीछे, लेकिन चारों ओर भीड़ इतनी थी कि उस तक पहुंचना नामुमकिन था। फिर भी हम पीछा करते तब तक तो वो कही दूर निकल गई थी।'
'तुमने उसे देखा था?'
'हा.. हा.. हा देखा, लेकिन दूर से। चेहरा नहीं दिखा।' शेखर को अब मनघड़ंत कहानियां ही बनानी थी।
'शेखर अदिती ने कौनसे कलर की ड्रेस पहनी थी पता है तुम्हें?'
'हां.. वो जब लिफ्ट में थी तब तुमने दिखाई थी न कि देखो... वो रही अदिती..' शेखर आलोक की बातों में हामी भरता रहा।
अव बातचीत का टॉपिक चेंज करना जरूरी था इसलिए एक नई कहानी बनाते हुए बोला..
'सुन, आलोक हम सब गोआ जा रहे हैं।
कब?'
'अगले हफ्ते।'
'कितने दिनों के लिए?'
'हममम.. करीब पांच से छ दिनों के लिए।'
'कौन कौन?'
'अपना पूरा ग्रुप। सब मिलाकर कम से कम पंद्रह से सत्तरह फ्रेंड्स हो जायेंगे। गणेशन ने ही प्लानिंग करी है। आज ही फाइनल हुआ।' लेकिन इस बात से आलोक के चेहरे पर खुशी की एक भी लहर दिखाई नहीं दी, न तो उस की ओर से किसी प्रकार का कोई प्रतिभाव ही मिला।
'अच्छा सुन, तेरे इस हेडेक के प्रॉब्लम के एक स्पेशलिस्ट के साथ कल की अपॉइंटमेंट फिक्स करी है। ठीक शाम को सात बजे।'
आश्चर्य के साथ आलोक बोला, 'अरे, लेकिन मुझे हुआ क्या है? सिर्फ़ मामूली दर्द ही तो है। इतनी छोटी सी बात के लिए किसी स्पेशलिस्ट से मिलने की क्या ज़रूरत है?'
'अरे, यार तू डॉक्टर है? मैं जितना कहता हूं उतना ही तू कर। चल अब हीरो की माफिक रेडी हो जा तो कहीं बाहर एक लॉन्ग ड्राइव लेकर आते है।'
दूसरे दिन शाम को ठीक ६:५० को डॉक्टर अविनाश जोशी के केर यूनिट पर शेखर आलोक को लेकर आ पहुंचा। साईक्याट्रिक का बोर्ड पढ़कर आलोक बोला.. 'शेखर, आर यू मेड?'
तो शेखर ने मज़ाक में रिप्लाइ दिया, 'अब येे तो डॉक्टर तय करेंगे, हु इज मेड... हा.. हा.. हा'.. शेखर हंसते हंसते बोला, 'अभी मैं जो बोलू वही चुपचाप करता रह बेटा। तुम्हे जो कुछ भी कहना हो घर जाकर कहना। बी ए गुड बॉय, ओ. के.'
आलोक को थोड़ा गुस्सा आया लेकिन वो उसे पी गया। बेझिक पेपर फॉर्मेलिटीस पूरी करके वेटिंग लॉन्ज में बैठे।
शेखर का टर्न आते ही आलोक को बाहर बिठाकर शेखर अकेले ही डॉक्टर के चैम्बर में गया।
आगे अगले अंक में....
© विजय रावल
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