पहली माचिस की तीली
अध्याय 9
सरवन पेरूमाल दोपहर फिर खाना खाने घर पहुंचे तो 12:30 बज रहे थे।
किशोर अपने कमरे में था - हाल में अमृतम और अजंता सोफा में बैठे थे।
घर के अंदर मौन पसरा था।
सरवन पेरूमाल आकर सोफे के सामने बैठे।
"आपको कोई धमकी वाला पत्र मिला है?"
"हां..."
"वह कौन है....?"
"पहली माचिस के तीली अपने को बताया है।"
"इसकी आपको जरूरत थी क्या?"
"क्या...?"
"इस धमकी वाले पत्र की..."
"लिखा तो लिखने दो। यह सब बेकार की बातें हैं। कार में जाने वाले लोगों को देखकर कुत्ता भोंकता है जैसे।"
"इतने दिनों तक आपका गलत नाम कभी नहीं आया ना....?"
"यह देखो अमृतम...! कुछ कामों को साहस के साथ करते समय कुछ तो होता ही है। किसी भी बात पर ध्यान दिए बिना हमें चुपचाप अपना कार्य करना चाहिए ।"
"इस फैसले को आप जैसे हम साधारण ढंग से नहीं ले सकते अप्पा।" - अजंता की बीच में बोलने से गुस्से में आए सरवन पेरूमाल।
"अम्मा और बेटी ने फिर से उपदेश देना शुरू कर दिया....? अभी मैं घर में आया हूं खाना खाने के लिए, तुम लोगों के उपदेश सुनने नहीं।"
अमृतम और अजंता दोनों ही उठ गए। सरवन पेरूमाल वॉशबेसिन में हाथ धोकर खाना खाने बैठ गए।
"बक-बक करते मत रहो। ठीक से खाना परोंसो। खाना खाते समय कुछ बोले करें तो मैं उठ कर चला जाऊंगा।"
किशोर अंदर आया।
"अम्मा...! अप्पा को क्यों भूखा रख रही हो। कोर्ट में फैसला देकर थके हुए आए हैं। आप पहले खाना परोसो।"
सरवन पेरूमाल ने उसको घूर के देखा - वह हंसा....
"क्यों अप्पा... ऐसा देख रहे हो.....? आज का लंच बहुत ही बढ़िया है सब कुछ आपके पसंद का आइटम्स। करेंसी सब्जी, करेंसी दाल, करेंसी अवियल, करेंसी सांभर.... ऐसा सब कुछ करेंसी आइटम्स है...."
"क्या व्यंग...? करेंसी नहीं है तो इस कलयुग में कुछ भी नहीं हो सकता मालूम है...? अभी कुछ आवेश में बात कर रहे हो तुम लोग इस करंसी के महत्व को बाद में महसूस करोगे..."
अमृतम थाली निकाल के रखें।
किशोर बीच में बोला।
"थोड़ी देर ठहरो अम्मा ! अप्पा के खाना खाने के पहले हमने जो दूसरा काम किया है उस विषय को भी बता देते हैं। इसके लिए भी साथ में ही हमें डांटने दो, उसके बाद खाना खाएंगे...."
सरवन पेरूमाल स्तंभित होकर देखने लगे।
"क्या किया....?"
"कुछ भी नहीं....! उस पंढरीनाथ ने जो पैसे सुबह आपको दिये थे पांच लाख रुपए आपके अलमारी को दूसरी चाबी डाल कर खोल लिया...
"दूसरी चाबी डाल कर....?"
"निकाल लिया...?"
सरवन पेरूमाल गुस्से में उठे।
"निकाल कर.....?
"फिक्र मत करो अप्पा.... पाप के पैसे से पुण्य मिल जाएगा...."
"तू क्या बोल रहा है रे...?"
"कबालीस्वर मंदिर के दानपात्र में एक लाख। अष्टलक्ष्मी मंदिर में दानपात्र में एक लाख.... ऐसे तीन लाख मंदिर में चले गए - बाकी दो लाख मदद करने वाले अनाथाश्रम वालों को दे दिया।
"रे... अरे..."
सदमे में चिल्लाते हुए किशोर के ऊपर मारने दौड़े सरवन पेरूमाल को अजंता बीच में जाकर रोका।
"अप्पा...! हमारे ऊपर आपका गुस्सा होना न्याय नहीं है। आपने जो गलत तरीके से रुपए लिए उसे हमने सही तरीके से खर्च कर दिया.... इसके बाद इस घर के अंदर गलत तरीके से रुपयें नहीं आना चाहिए। यदि आए तो वह इसी ढंग से बाहर जाएगा...."
सरवन पेरूमाल ने अमृतम को गुस्से से घूरा।
"यह सब.... तुम्हें बता कर इनका किया हुआ काम है क्या?"
"वह सम्मान सिर्फ मुझे नहीं चाहिए ! हम तीनों लोगों ने योजना बनाकर किया हुआ एक अच्छा कार्य है..."
"वह पांच लाख रुपए ! तुम तीनों को मंदिर में और अनाथ आश्रम में देने का मन कैसे किया...?"
"यह कैसा सा प्रश्न है अप्पा....? उस 5 लाख रुपयों को अपने परिश्रम से आपने कमाया हो तो हमें पैसा खर्च करने में मन नहीं होगा। परंतु यह पिछवाड़े से आया लूटा हुआ रुपए हैं मंदिर में अनाथ आश्रम में दे दिया।"
सरवन पेरूमाल बहुत ज्यादा गुस्से में आकर बेटा, बेटी और पत्नी तीनों को घूरते हुए देखा फिर जल्दी-जल्दी सीढ़ियां चढ़ने लगे।
कृष्णा कांत उसी को देखते हुए धीमी आवाज में बोले "तुम्हारा नाम क्या बताया?"
"सुंदर पांडियन...."
"मुकुट पति को तुम कैसे जानते हो ?"
"मैं जहां किराए से रहता हूं उसके दूसरी गली में ही तो वह रहते हैं।"
"तुम कल रात को पेट्रोल पंप क्यों गए ?"
"मैं पेट्रोल पंप नहीं गया सर। पंप के पास रहने वाले मेरे रिश्तेदार के घर एक जरूरी काम से गया। उस समय ही मुकुट पति को मैंने वहां देखा। वे वैन में आए हुए थे।"
"उन्होंने पेट्रोल लिया तो और किसी काम के लिए भी हो सकता है ना...?"
सुंदरपंडियन हंसा।
"उसके लिए आधी रात के समय ही आकर पेट्रोल लेते है क्या...?"
"यह देखो..... तुम गलत समझ कर बात कर रहे हो ! इस गोडाउन के जलने में, उनके पेट्रोल लेने में कोई संबंध नहीं है...."
"वह ठीक है.... इसे पुलिस को बोल कर देखते हैं, है कि नहीं वे मालूम कर लेंगे...."
"क्या मुझे ब्लैकमेल कर रहे हो ?"
"मुझे ब्लैकमेल मालूम नहीं, वॉइट मेल भी मालूम नहीं.... जो आंखों से देखा उसे आपसे कह दूं इसीलिए आया। आप इसे ब्लैक मेल सोचे तो मैं पुलिस वाले से कह कर चला जाऊंगा।"
वहां से सरकने लगा सुंदर पांडियन को हाथ के इशारे से रोका।
"ठहरो...."
"क्या बात है....?
"हम बाद में बात करेंगे...."
"बाद में.... कब.....?"
"आज शाम को 5:00 बजे।"
"कहां....?"
"मेरे घर पर ही आओ...."
"मुझे घर नहीं पता..."
"दुर्गा नगर 17 नंबर बंगला।"
"आऊंगा.. ।"
"पेट्रोल की बात बाहर नहीं आनी चाहिए..."
"आप मुझसे कैसे व्यवहार करते हैं उस पर निर्भर है कि पेट्रोल की बात कहना ना कहना...."
"ठीक... तुम.... जाओ..."
"मुकुट पति कहां है...?"
"वे घर पर हैं...."
"ऐसा होने के बाद भी, कुछ भी मालूम नहीं है जैसे आएंगे क्या.... बहुत बड़ा खिलाड़ी है सर..."
सुंदरपांडियन हंसते हुए वहां से सरका - कृष्णकांत धड़कते हुए मन के साथ कलेक्टर के पास गए।
इस समय पत्रकार लोग थोड़ा दूर चले गए और फॉरेंसिक अधिकारी एक कलेक्टर से बात कर रहे थे।
"गोडाउन में आग लगना दुर्घटना है या किसी ने किया है इसे मालूम करने का तरीका है सर...."
"क्या... तरीका है...?"
"यहां पर जो राख है... और दूसरे जगह से थोड़ा-थोड़ा लेकर एक रसायन डाल कर देखें तो मिट्टी का तेल या पेट्रोल डालकर जलाया हो तो राख में जो कार्बन होगा उसके हिसाब से पता चल जाएगा। अर्थात ऐसा किया हो तो 3 गुना ज्यादा कार्बन होगा। यदि यह कोई दुर्घटना है तो कार्बन कम होगा।"
फॉरेंसिक अधिकारी के कहते ही कृष्णकांत के पेट में डर के मारे गुडगुडी होने लगी।
'पेट्रोल को डालकर जलाया हो तो राख में जो कार्बन है पता चल जाएगा....?'
'ऐसा एक रास्ता भी है क्या ?'
'पेट्रोल के बारे में सुंदर पांडियन अपना मुंह खोलो तो मुकुट पति के फंसने की नौबत आ जाएगी...!'
'मुकुट पति को नहीं फंसना चाहिए।'
कृष्णकांत ने तीव्रता से सोचना आरंभ किया।
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