Lahrata Chand - 11 in Hindi Moral Stories by Lata Tejeswar renuka books and stories PDF | लहराता चाँद - 11

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लहराता चाँद - 11

लहराता चाँद

लता तेजेश्वर 'रेणुका'

11

रम्या के देहान्त के बाद संजय ने अब तक अकेले ही जिंदगी गुजारी है। आस-पड़ोस और दोस्त ने दूसरी शादी करने के लिए प्रोत्साहित करने लगे लेकिन वह किसी की नहीं सुना। बिना किसी की सहायता लिए दोनों बच्चों की परवरिश की। दिन के ज्यादातर समय क्लिनिक में रोगियों के बीच गुजर जाता था इसलिए उसने कुछ समय के लिए घर के पास ही क्लिनिक खोला। ताकि जरूरत पड़ने पर वह तुरन्त घर पहुँच सके।

जीवन में एक साथी की कमी तो हरदम महसूस होती है। पूरे दिन थकान के बाद रात को जब अकेला महसूस करता रम्या की याद और कभी कभी व्हिस्की का सहारा लेता था। इन जिम्मेदारियों के बीच कुछ समय किसी से दिल की बातें कहना चाहता तब उसके पास कोई नहीं होता था। परेशानियों से अलग-थलग जिंदगी के एहसासों को आत्मसात करना भी जरूरी था लेकिन संजय अपने जिम्मेदारियों से संतुष्ट था।

रोज़ की तरह जब वह क्लिनिक पहुँचा देखा क्लिनिक पहले से ही रोगियों से भरा पड़ा था। वह एक नज़र देखकर अंदर जाकर कुर्सी पर बैठ गया। सामने टेबल पर रम्या की तस्वीर जैसे उसका स्वागत कर रही थी। आज रम्या के जाने की सालगिरह थी। सुबह रम्या की आत्मशांति के लिए जो सब करना था पूरा करके ऑफिस पहुँचा। उसका मन बहुत उदास था। रम्या की यादें उसे घेर रखी थी। कुछ साल पहले आज ही के दिन उसने रम्या को खो दिया था। संयोग से उसी दिन उनकी शादी की सालगिरह भी थी। लेकिन संजय उन सब यादों से खुद को सँभालने खुद को व्यस्त रखता था। घर मे रम्या को यादकर बच्चों को भी तकलीफ़ देना उसे मंजूर नहीं था। संजय कुर्सी पर बैठे गहरी सोच में डूब गया। पंखे की ओर देखकर सोचने लगा - 'कितनी जल्दी समय गुजर गया रम्या के साथ बिताये हुए पल। वह सब कुछ कल की ही बात लगता है।

एक दिन जब संजय अस्पताल से घर पहुँचा रम्या उसके हाथ से बैग ले जाकर अंदर रखकर आई। उसका मुस्कुराता चेहरा देख संजय की पूरे दिन की थकान पल में गायब हो गई। वह सीधा जाकर सोफे पर लैट गया। रम्या हँसते हुए चाय बनाकर ले आई। वह कप लेकर उसके सामने खड़ी हो गई। उसे देखकर संजय मुस्कुराया और कहा "दुनिया के लिए में डॉक्टर हूँ पर मेरा डॉक्टर तो तुम हो प्रिये।"

रम्या मुस्कुराकर उसके पास बैठकर पूछती, "अच्छा! लेकिन ऐसा क्यों? न आप रोगी हो न में डॉक्टर। लीजिए चाय पी लीजिए ठंड़ी हो रही है।"

चाय का कप हाथ में लेकर संजय ने कहा - दुनिया के लोग बीमार हो कर मेरे पास आते हैं दवा लेने। पर जैसे मैं तुम्हारे पास आता हूँ मेरी सारी तकलीफें चुटकियों में मिट जाती है, न जाने क्या जादू है तुम्हारे पास।"

- डॉक्टर साहेब, मैं कोई जादूगरनी नहीं हूँ, मैं सिर्फ और सिर्फ आप की पत्नी हूँ।" रम्या मुस्कुराते संजय की आँखों में देखकर कहती।

- अच्छा जी पत्नी साहिबा यहाँ बैठिए।" रम्या के हाथ पकड़ कर उसको अपने पास बिठाया और आँखों में आँखे डालकर गौर से देखते हुए कहा - "आप जादूगरनी ही तो हो, ये आँखें जो है बिलकुल मासूम सी, जब इन आँखों में देखता हूँ न जाने क्या हो जाता है बस डूबते जाता हूँ। फिर कटारी जैसी भौह और लाल गुलाब के पंखुड़ी जैसी मुलायम होंठ और ये नाक..... नाक ।" कहते कहते चुप हो गया।

- "ये नाक क्या ? रम्या कुतूहल वशः जोर देकर पूछी।

- "नाक नाक .... च् बस यहीं गड़बड़ हो गई।

रम्या चकित हो घूरती हुए पूछती - क्या गड़बड़ हो गई?"

- "कुछ नहीं भगवान ने यही गलती कर दी।"

-" क्या मतलब ?"

- मेरा मतलब इस नाक पर गुस्सा हमेशा घर कर बैठा रहता है.. और ...और थोड़ी सी टेढ़ी है।" संजय के इतना कहते ही रम्या "धेत," कहकर उसको एक धक्का दी। जिससे संजय एक झटके से दूर जा गिरा और जोर-जोर से हँसने लगा तब रम्या का मुँह गुस्से से लाल हो गया था। उसका मुँह देख संजय हँसना रोक नहीं पा रहा था।

- डॉक्टर साहब आप ये मत भूलिए कि शादी से पहले आप इसी नाक पर मर मिटते थे। मेरा मतलब चेहरे पर ।

-" उहूँ, गलत, चेहरे पर नहीं पूरा का पूरा तुम पर।"

रम्या गुस्से से मुँह फुलाकर किचन की ओर मुड़ गई। संजय मन ही मन हँसने लगा।

संजय उसके पीछे किचेन में आकर गले में बाँहें डालकर कहा - "मैडम सिर्फ शादी से पहले ही नहीं अब भी हम आप पर फिदा है। चाहे तो आजमाकर देख लो।"

-" हूँ, " कहते नाक फुलाकर रम्या गरमा गरम पकोड़े बनाने में ध्यान दिया।

संजय, रम्या को बिलकुल स्वस्थ देख खुश था। तब रम्या मानसिक बीमारी से पूरी तरह उबर चुकी थी। जिस दिन डॉ. अंजलि ने इस बात की पुष्टी की संजय की ख़ुशी का अंत नहीं था। वह बच्चों की तरह रो पड़ा था। अंजली को बार-बार शुक्रिया कहते नहीं थका बल्कि उसके हाथ को माथे को लगाकर रो पड़ा था। उस दिन उसने सारी रात घर में दिये और मोमबत्ती की रौशनी से ऊजाला कर रखा। रम्या का स्क्रिज़ोफ्रेनिया से आज़ाद हो जाना उसके लिए किसी दुआ से कम नहीं था। उस दिन संजय के लिए जैसे रम्या का दूसरा जन्म हुआ था।👍👍👍

दरवाज़ा खोलकर सिस्टर मरियम के अंदर आने से उसकी सोच में बाधा पड़ी, चौंककर उसने प्रश्नार्थक नज़र से नर्स की ओर देखा।

- डॉक्टर साहब दुर्योधन सर् आये हैं आप से मिलना चाहते हैं उन्हें अंदर भेजूँ?"

- हाँ अंदर भेज दो। टेबल पर रखी रम्या व बच्चों की तस्वीर को ठीक से एक जगह रखकर सीधे बैठ कर कहा। रम्या की याद को थोड़ा सा विराम दिया। उसकी यादें ही संजय को हर मुश्किल से लड़ना सिखाती रहीं। लंबी-सी एक साँस लेकर स्टेथस्कोप को हाथों में लिया। दरवाज़े की खड़खड़ाने की आवाज़ के साथ दुर्योधन अंदर आये।

- आइए सर्। दुर्योंधन को देख तब तक चेहरे पर उदासी कहीं गायब हो गई। उदासी को भूलकर चेहरे पर खुशी लाते हुए उनका स्वागता किया।

- कैसे हो संजय? दुर्योधन संजय के सामनेवाली चेयर पर बैठते हुए कहा।

- यह तो मुझे पूछना चाहिए। आप की तबियत कैसी है? " संजय ने सवाल किया।

- भाई मैं तो डाएबेटिक पेशेंट हूँ। बस दवाइयों के सहारे दिन कट रहा है।"

संजय ने सिस्टर मरियम को बुलाकर - रामू को दो कप चाय बिना शक्कर के लाने को कह दो और अगर कोई इमरजेंसी न हो तो कुछ समय हमें डिस्टर्ब मत करना, पेशेंटस को बिठाकर रखो।

मरियम - "जी डॉक्टर। कहकर वहाँ से चली गई।"

संजय ने दुर्योधन की ओर देखकर कहा - ... और बताइए कैसे चल रही है जिंदगी? बहुत दिन से मॉर्निंग वॉक करते नहीं देखा। सब ठीक तो है?

- बस जिंदगी की गाड़ी चल रही है और जहाँ तक सेहत की बात है उसकी मुझे कोई फिक्र नहीं तुम जो हो मेरा देख भाल करने के लिए।

- अच्छा कहिए फिर कैसे आना हुआ? रेगुलर चेकअप करना है?

- क्यों भाई आप से मिलने के लिए कोई बीमारी होना जरूरी है?

- अरे कैसी बात कह रहे हो दुर्योधन! आप कभी भी यहाँ आ सकते हैं। डॉक्टर और पेशेंट के अलावा हमारा गहरी दोस्ती का रिश्ता भी है, लेकिन डॉक्टर हूँ, मेरा कर्तव्य बनता है इसलिए पूछा और बताइए आपकी पत्रिका कैसे चल रही है?

- बिलकुल ठीक, मेरी बेटी अनन्या ने तो मेरा सारा काम सँभाल लिया है।

- अच्छा तो अनन्या आपकी बेटी हो गई?

- हाँ क्यों नहीं वह इतनी प्यारी है और जब से मेरी पत्रिका में काम करना शुरू किया तब से मेरी बेटी बन गई है। क्यों मैं अनन्या को अपनी बेटी नहीं कह सकता?

- बिलकुल कह सकते हैं, वह आप की ही बेटी है, इसीलिए तो आपके जिम्मेदारी में छोड़कर आश्वस्त हूँ।" मुँह थोड़ा सा सीरियस बनाकर कहा - "पर ये मत भूलना मैं उसका बाप हूँ।"

- हाँ भाई जानता हूँ कि तुम सिर्फ बाप ही नहीं माँ भी हो। बहुत दुःख होता है जब से मेरी बहन मुझसे दूर हुई है तब से तुम्हारा अकेले में घंटों खोए रहना बड़ा खलता है मुझे। रम्या के जाते ही जैसे तुम्हारे हँसता- खेलता परिवार कहीं खो गया है। तुम्हें इस तरह अकेले देख मन बहुत परेशान हो जाता है। अगर मेरी बहन रम्या जिंदा होती तो तुम्हें ऐसे रहने देती?

- दुर्योधन उनकी मौत कैसे हुई आपको भी पता है। एक गलती और सब कुछ पल में उजड़ गया। नशें में गाड़ी चलाना मेरी भी गलती थी। तुम जानते हो मैं कभी शराब नहीं पीता लेकिन दोस्तों की खुशी के लिए दो घूँट पी लिया। बस और मैं.... मैं... समझ नहीं पाया। ड्राइविंग करते मेरा हाथ डगमगा गया और रम्या को खो बैठा। रम्या ने रोका था मुझे गाड़ी चलाने से पर मैंने उसकी नहीं सुनी। काश कि उस दिन रम्या की जगह मेरी मौत हो जाती।

- ऐसे मत बोलो मैं जानता हूँ तुम रम्या से कितना प्यार करते हो। अपनी बेटियों के बारे में सोचो। अगर उन्हें कोई कष्ट पहुँचता है तो रम्या की आत्मा को शांति नहीं पहुँचेगी। रम्या भी मुँहबोली बहन हो तो क्या हुआ सगी बहन-सी अपनी थी।

- बोलो कि तुमने मुझे बचाया क्यों? मुझे सज़ा हो जाने दिया होता तो रम्या की मौत का बोझ कुछ कम हो जाता। अब तो जिंदगी भर दिल पर रम्या की मौत का बोझ लिए फिर रहा हूँ।

- ऐसा मत बोलो संजय तुम मेरे दोस्त हो। तुम्हारी मदद करना मेरा कर्तव्य है। जो भी हुआ तुम ने जानबूझकर कुछ नहीं किया। वह एक दुर्घटना था जो होना था हो गया जिसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं थी। तुम और रम्या ने मेरे लिए बहुत कुछ किया है। मैं उसे कभी भूल नहीं सकता। इसलिए जब मेरा मन भारी हो जाता है मैं तुम से दो बातें करने आ जाता हूँ। अब मेरे बच्चे भी मेरे नहीं रहे पराये हो गए। वे अपनी जिंदगी अपने तरीके से जी रहे हैं। कहने को दो बेटे हैं लेकिन माँ की बीमारी उनके मन को विचलित न कर सकी।

दीर्घ श्वास छोड़ते हुए कहा - तुम्हारी दो बेटियाँ हैं अगर तुम्हें कुछ हो जाता तो मैं ऊपर जाकर रम्या को क्या जवाब देता। रम्या ने तुम्हारा और तुम्हारी बच्चियों की जिम्मेदारी मुझे सौंपी है। ऐसे में क्या मेरी बहन मुझे माफ़ कर देती? अगर रम्या न होती तो मेरी पत्नी अनुसूया कई साल पहले ही मर गई होती। वह रम्या ही थी जिसने अपने प्यार से अनुसुया को नया जीवन दिया और एक बेटी की तरह सँभाला। और तुम अभी तक रम्या का मौत की पीड़ा दिल पर लिए हुए हो। कब तक अपने आप को दोषी ठहराकर खुद पर जुर्म करते रहोगे? सब यूँ ही नहीं हुआ। वह एक दुर्घटना थी जो हो गई। तुम ने जान बूझकर कुछ नहीं किया था फिर भी आज तक उसका पश्चाताप कर रहे हो। दुर्योधन ने संजय के काँधों पर हाथ रखकर कहा।

- खैर जो कुछ भी हो जाए जिंदगी जीना ही है। अब बताइए कि आप के आने का कारण कोई ख़ास तो नहीं? होंठों पर मुस्कुराहट लाने की कोशिश करते हुए पूछा।

- हाँ, कुछ बात है जिसे कहने यहाँ आ गया।

- बोलिए।

- तुम्हारी अनुमति चाहिए थी। सीधे विषय पर आते हुए कहा।

- किसके लिए? आश्चर्य होकर पूछा।

  • - तुम्हारी बेटी अनन्या को तुम से लेने के लिए।
  • - ठीक है, अगर मेरी बेटी तैयार है तो ले जाओ। लेकिन किधर ?
  • - एक कांफ्रेंस के लिए मुझे डेल्ही जाना पड़ रहा है। अगर तुम इजाजत दो तो अनन्या को अपने साथ ले जाने को सोच रहा हूँ। इससे उसकी नौकरी में चार चाँद लग जाएगा। न्यूज़ और मीडिया में नाम के साथ-साथ समाज में एक पहचान भी बन जाएगी।
  • संजय सोचते हुए कहा - अनन्या नहीं जाएगी।
  • - क्यों? क्या मुझ पर शक है कि मैं उसकी देखभाल में कोई कमी कर दूँगा? या तेरी बेटी पर भरोसा नहीं है? यकीं कर मैं अनन्या का पूरा ख्याल रखूँगा।"
  • - ऐसी बात नहीं है, घर मे उसके बगैर एक भी कदम चलना नामुमकिन है। रम्या के बाद अनन्या ने ही पूरे घर की जिम्मेदारी अपने काँधों पर लिया है। अवन्तिका अनन्या के बिना रह नहीं सकती। इतनी जिम्मेदार बेटी पर भरोसा कैसे न हो और तू अनन्या को अपनी बेटी कहता है ना, फिर तुझ पर शक कैसा?
  • - अगर ऐसी बात है तो इतनी जिम्मेदार बेटी के लिए तेरा भी कुछ कर्तव्य बनता है? उड़ने दे उसे, उसकी अपनी भी कोई ज़िन्दगी है। अपनी ज़िंदगी कैसे जीना है उसे तय करने दे। उसके कल को भी तुझे ही बनाना है, परिवार के कारण उसे आगे बढ़ने से रोकना सही नहीं है। उसे अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ने की ओर एक अच्छे भविष्य को जीने का पूरा हक़ है।
  • - कोई बेटी अपने जीवन में आगे बढ़ती है तो उसका बाप खुश न हो ऐसा हो सकता है दुर्योधन? और अनन्या जैसी समझदार बेटी अगर तरक्की के रास्ते निकल पड़े, इससे बड़ी ख़ुशी मेरे लिए क्या हो सकती है? लेकिन अनन्या खुद को घर से व जिम्मेदारियों से इस तरह जोड़ चुकी है कि वह खुद जाना नहीं चाहेगी और अनन्या को इन टी वी मीडिया की चकाचौंध पसंद नहीं।
  • - यह बात मैं अच्छे से जानता हूँ इसलिए तेरी इजाजत लेने आया हूँ। रही मीडिया की बात वह सब मुझ पर छोड़ दो मैं सँभाल लूँगा।
  • - अनन्या से पूछा?
  • - नहीं, तुमसे बताये बगैर अनन्या से पूछना ठीक नहीं लगा। अगर पूछ भी लिया तो वह जाने को बिल्कुल तैयार नहीं होगी इसलिए तुम्हारे पास आया हूँ। उसे समझा और उसे डेल्ही भेजने की तैयारी कर। ऐसे मौके बार-बार नहीं आते। पत्रकारिता में उसकी समझ व समर्पण मैने महसूस किया है। इसलिए तुम्हारी इजाज़त लेने यहाँ आया हूँ। अभी तक मैने अनन्या से कोई बात नहीं की है पर मुझे पूरा यक़ीन है तू समझदारी से काम लेगा और अनन्या बेटी तेरी बात नहीं टालेगी।
  • - ठीक है, मैं उससे बात करूँगा।"
  • - बहुत अच्छा तो फिर मिलते हैं। पेशेंट्स कतार में हैं अब मुझे जाना चाहिए।" चाय का खाली कप टेबल के ऊपर रखते हुए उठ खड़ा हुआ दुर्योधन।