उलझन
डॉ. अमिता दुबे
चैदह
ड्राइवर ने पूरा घटनाक्रम बता डाला। जो बात माॅल के अन्दर रहते हुए भूमि, अंशिका, सौम्या आदि को नहीं पता थी वह बात पार्किंग में बाहर खड़े ड्राइवर को चटपटे मसाले के साथ पता थी।
चाँदनी कुछ कहने जा रही थी कि भूमि ने उसे इशारे से रोक दिया। वैसे तो सबसे पहले लतिका का घर पड़ता था लेकिन शार्टकट से सबसे पहले सौम्या के घर चलने का निर्देश भूमि ने ड्राइवर को दिया। सौम्या की गली के सामने पहुँचकर सब लड़कियाँ कार से उतर गयीं और सौम्या को घर तक पहुँचाने चल पड़ीं। सबने तय किया कि माॅल में हुई घटना के बारे में अपने-अपने घर में कोई कुछ भी नहीं बतायेगा। अखबार में समाचार छपने पर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त की जायेगी। बुरा सपना समझकर इस घटना को भूल जाना ही अच्छा है। बड़ों को बताने पर फिर दोबारा कहीं जाने की इजाजत मिलना मुश्किल हो जायेगी। चाँदनी और सौम्या की मम्मी तो इतना डरती हैं कि कहीं दोनों का स्कूल जाना ही न बन्द कर दें।
काॅलबेल बजने पर सौम्या के भाई ने दरवाजा खोला और इतनी सारी लड़कियों को देखकर घर के अन्दर घुस गया। भूमि पुकारती ही रह गयी- ‘अरे भइया आण्टी को भेजो सौम्या के चोट लग गयी है।’
थोड़ी देर बाद सौम्या की मम्मी आयीं। शायद वे कपड़े बदलकर आयीं थीं या कम से कम मेकप तो उन्होंने किया ही था। ऐसा लतिका ने सोचा लेकिन सौम्या के पैर की हालत देखकर घबरा गयीं। सौम्या तो केवल कराह रही थी उसकी मम्मी तो ध्ज्ञार-ध्ज्ञार रोने लगीं। उनके रोने की आवाज सुनकर सौम्या का भइया फिर प्रकट हुआ और सौम्या की चोट की पूरी बात जानकर पापा को जगाने अन्दर कमरे में चला गया। सौम्या के पापा अन्दर से तैयार होकर आये थे तब तक भइया आॅटो बुला लाया। उधर सौम्या डाॅक्टर के यहाँ गयी और बाकी लड़कियाँ अपने-अपने घर के लिए चल पड़ीं। लतिका और मयूरी सौम्या के घर के पास ही रहती थीं इसलिए वे पैदल ही चल पड़ीं। बाकी सबको भूमि ने गाड़ी से छोड़ा।
समय से पहले सभी लड़कियाँ अपने-अपने घर पहुँच गयीं इसलिए किसी ने कोई सवाल नहीं किया लड़कियों ने भी राहत की साँस ली कि चलो फिलहाल बला टली। अंशिका को बहुत अफसोस था आज उसने जिन्दगी में पहली बार माइक पर खुले मंच से गाया और सबने खूब तारीफ की। उम्मीद थी कि अपने प्रिय गायक शान के साथ परफाॅर्म करने का मौका मिलेगा लेकिन सबकुछ बेकार हो गया। वह बेवकूफ लड़की कहाँ से कूद पड़ी। माॅल वालों ने जरूर शान को फोनकर मना किया होगा या क्या पता बाद में वह आया भी हो। मन ही मन उलट-पुलट सोचते हुए अंशिका उदास हो गयी। लेकिन यह बात वह किसी से कह नहीं सकती थी। वैसे भी उसकी बात सुनने की फुर्सत ही किसे थी ? एक सौमित्र या उसका दोस्त लेकिन आज यह बात वह उससे भी शेयर नहीं कर सकती क्योंकि सौमित्र तो पहले से ही इस माॅल ट्रिप के खिलाफ था इतना सब सुनकर तो उसे लम्बा चैड़ा लैकचर ही सुनाना था।
पूरा घर टी0वी0 वाले कमरे में जमा था। एक विशिष्ट न्यूज चैनल पर बार-बार एक ही सीन दिखाया जा रहा था एक लहूलुहान लड़की माॅल के ग्राउण्ड फ्लोर की फर्श पर पड़ी थी आसपास लोग जमा हैं ‘स्पाॅट’ और ‘ऐरो’ द्वारा उस जगह को भी दिखाया जा रहा था जहाँ से वह लड़की कूदी थी या फेंकी गयी थीं। कैमरे की निगाह जैसे ही लड़की पर रुकी सौमित्र की निगाह भी वहीं अटक गयी। लड़की के सिर के पास खड़ी लड़की अंशिका जैसी लगी। शायद बगल वाली लड़की सौम्या है। लेकिन अंशिका वहाँ कैसे पहुँची? सौमित्र को याद आया आज वह पढ़ने भी तो नहीं आयी सोमू ने दोबारा ध्यान से टी0वी0 देखा। अबकी बार उसे विश्वास हो गया कि वह अंशिका ही है। माॅल में क्या कर रही थी वह अकेले गयी थी या आण्टी के साथ, अगर गयी थी तो कुछ बताया क्यों नहीं अंशिका तो ऐसी नहीं है कि कोई बात छुपा जाय। फिर इतनी बड़ी बात उससे हजम कैसे हो गयी। किसी और का ध्यान अंशिका की ओर नहीं गया। सभी लड़की के गिरने पर चर्चा करने लगे।
सौमित्र की दादी का मानना था कि कोई लड़की अपनी इच्छा से नहीं कूद सकती उसे किसी न किसी ने धक्का दिया होगा।
पापा का कहना था कुछ कहा नहीं जा सकता हो सकता आजकल लड़कियों में धैर्य की कमी हो गयी है। किसी ने बात नहीं मानी होगी और वह लड़की गुस्से में कूद पड़ी होगी।
मम्मी ने सौमित्र को देखा उसके चेहरे के उतार-चढ़ाव को परखा और पापा के हाथ से रिमोट लेकर यह कहते हुए चैनल बदल दिया कि चैनल वाले भी खूब हैं। एक ही समाचार वो भी बेसिर पैर का बार-बार दिखा रहे हैं बिना यह सोचे कि इसका असर दर्शकों पर क्या पड़ने वाला है ?
दादी और पापा भी मम्मी की बात से सहमत थे। सौमित्र टी0वी0 वाले कमरे से अपने पढ़ने वाले कमरे में चला गया। आज उसका पढ़ने में मन बिल्कुल नहीं लगा।
अगले दिन स्कूल बस में सौमित्र ने अंशिका से पूछा - ‘कल पढ़ने क्यों नहीं आयीं ’
दूसरी ओर देखते हुए अंशिका ने संक्षिप्त उत्तर दिया - ‘कहीं जाना था।’
‘कहाँ ? सौमित्र ने फिर पूछा।
‘कहीं भी, तुमको बाद में बताऊँगी।’ अंशिका ने टाला।
तब तक किसी लड़की ने अंशिका को आवाज दे दी वह उठकर उस लड़की के पास खाली पड़ी सीट पर जाकर बैठ गयी। बस से उतरते हुए सौमित्र अंशिका के पीछे था उसने ध्ज्ञीरे से कहा - ‘तुम चाहे कितना छुपाओ मैं जानता हूँ तुम कहाँ गयी थीं, क्यों गयीं थीं और वहाँ क्या हुआ ?’
अंशिका का चेहरा सफेद पड़ गया।
स्कूल में भूमि सहित सभी लड़कियाँ एक दूसरे से आँखें चुरा रहीं थीं। सबको डर था कहीं कोई एक दूसरे का नाम लेकर उस माॅल में उपस्थित होने की बात किसी से न कह दे जिसमें वह लड़की कूदी थी। सभी की बातों में घूमफिरकर चर्चा उसी घटना पर छिड़ जाती और देर तक अटकलबाजी होती रही। झूठी-सच्ची मनगढ़ंत कहानियाँ सुनायीं जाती रहीं लेकिन किसी भी लड़की ने मुँह नहीं खोला।
खाली पीरियड में सभी लड़कियाँ अंग्रेजी का अखबार खोलकर बैठ गयी जो उन्हें स्कूल से मिलता था। अंग्रेजी के अखबार में छोटी सी खबर थी। खबर से यह स्पष्ट नहीं हो रहा था कि वह लड़की स्वयं कूदी या उसे किसी ने ध्ज्ञक्का दिया।
सबसे पहले भूमि ने मुँह खोला - ‘लड़की मरी या मारी गयी इससे क्या फर्क पड़ता है। एक माँ बाप ने अपनी लड़की खो दी। अखबार में उसका नाम रूपाली छपा है। वह अपनी मम्मी-पापा की इकलौती बेटी थी यहाँ पहले हाॅस्टल में रहती थी बाद में अपनी चार सहेलियों के साथ कमरा किराये पर लेकर रहती थी।’
‘वह पढ़ती थी क्या ?’ एक प्रश्न आया
‘और नहीं तो क्या मेडिकल की पढ़ाई कर रही थी। तीसरा साल था। मर गयी बेचारी अगर जिन्दा रहती तो बहुत जल्दी डाॅक्टर बन जाती।’ सुगन्धा जिसने घटना से सम्बन्ध्ज्ञित समाचार अच्छी तरह पढ़ा था बात आगे बढ़ाई।
तब तक मैम आ गयीं और बात वहीं खत्म हो गयी। स्कूल से लौटकर अंशी अनमनी ही बनी रही। खाना खाने के बाद ज्यादातर वह लेट जाया करती थी आज लेटकर अखबार पढ़ने लगी। उसके बगल में लेटते हुए नानी ने टोका भी ‘आज अखबार कहाँ से पढ़ा जा रहा है तुम तो खाते ही सो जाया करती हो अंशी !’
अंशिका केवल मुस्कुरायी बोली कुछ नहीं। उसकी निगाह माॅल वाले समाचार को ढूँढ़ रही थी वह ध्यान देकर पढ़ने लगी। तब तक नानी की खर्राटा मेल चल पड़ी थी। अंशिका ने पढ़ा - उस लड़की का नाम रूपाली था। वह डेण्टल काॅलेज में पढ़ती थी। अलीगढ़ की रहने वाली थी और उसकी दोस्ती इण्टरनेट के द्वारा एक लड़के से हो गयी थी। लड़का ग्वालियर में रहता था। वे एक दूसरे के साथ पिछले तीन महीने से चैटिंग कर रहे थे। मोबाइल पर भी बातचीत होती रहती थी। कल पहली बार दोनों इस माॅल में मिले थे। यह सब लड़के ने पुलिस को बताया था। अखबार में छपी खबर के अनुसार लड़का कह रहा था कि हम माॅल में पहली बार मिले लेकिन रूपाली मुझपर शादी करने का दबाव बनाने लगी। मेरे मना करने पर वह झटके से उठी और तेजी से फूड कोर्ट की रेलिंग की तरफ लपकी वह कुछ-कुछ बड़बड़ा भी रही थी जिसे नहीं सुन सका और जब तक मैं कुछ समझता-समझता तब तक वह कूद गयी। पुलिस को लड़के की इस कहानी पर विश्वास नहीं था। क्लोज़ सर्किट कैमरे की फुटेज को जाँच में महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है। माॅल खाली कराने के बाद पुलिस को सूचना दिये जाने के कारण घटना के समय उपस्थित लोगों के बयान नहीं लिये जा सके थे। वह लड़की अस्पताल ले जाते हुए रास्ते में मर गयी थी। पुलिस ने उसके घर वालों को खबर कर दी थी और लड़के को हिरासत में ले लिया था।
ये सब पढ़कर अंशिका बहुत डर गयी। उसे सौमित्र की बात याद आयी ये सब भूमि के साथ के कारण ही हुआ था। न वह भूमि से ज्यादा दोस्ती करती और न ही इस घटना से वह इस प्रकार जुड़ती। अंशी का मन ग्लानि से भर गया। क्या इस घटना के कारण उत्पन्न हुए दबाव के लिए भूमि ही दोषी थी? वह स्वयं भी तो माॅल में सहेलियों के साथ घूमने के आकर्षण से बच नहीं पायी थी। क्या जरूरत थी उसे भूमि के प्रोग्राम में सम्मिलित होने की ? क्लास की क्या सारी लड़कियाँ भूमि से गहरा सम्बन्ध रखती हैं। नहीं न तो, उसे क्या जरूरत थी यह सब करने की ?
अंशी ने सोचा केवल भूमि ही नहीं वह स्वयं भी रास्ता भटक गयी है। अभी कुछ नहीं बिगड़ा पढ़ने-लिखने के समय में आलतू-फालतू चीजों से बच्चों को दूर रहना चाहिए। उसने संकल्प लिया कि वह दूर रहेगी। और सारी बात सच-सच अपने सच्चे दोस्त सोमू को बता देगी भले ही वह कितना नाराज हो।
इस रविवार को बुआ जी के यहाँ पार्टी है। इस पार्टी में कलिका दीदी के टीचर्स भी आयेंगे। प्रिंसिपल महोदय ने पत्रकारों को भी आमंत्रित किया है। कलिका दीदी वही पर्चा पढ़ेंगीं जो उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए पढ़ा था। पूरा प्रोग्राम फूफा जी ने उसी दिन बता दिया था जब वे सब चाचा के यहाँ मिले थे। तय प्रोग्राम के अनुसार मम्मी पापा, चाचा-चाची को सुबह ही बुआ जी के यहाँ पहुँच जाना था। दादी ने शुक्रवार को सुबह पापा से कहा - अगर तुम कहो तो मैं और सोमू शनिवार को सोमू की पढ़ाई खत्म होने के बाद रात को ही कलिका के पास चले जायें।’
मम्मी ने सोमू की ओर देखते हुए कहा - ‘सोमू न हो तो आज सर से कल की छुट्टी ले लेना और तुम और दादी पहले चले जाना। गेट से पूरी आॅटो बुक कर लेना चाभी नीचे अंशिका के यहाँ दे देना। कल जब हम आयेंगे तो अंशिका को भी लेते आयेंगे। दीदी ने अंशिका की मम्मी से बात की थी और उन्होंने उसे हमारे साथ जाने की परमीशन दे दी है।’
दादी ने कहा - ‘नहीं मुग्ध्ज्ञा, छुट्टी कराने की जरूरत नहीं है। सोमू के सर तो छः साढ़े छः बजे तक चले जाते हैं तब तक अच्छा खासा उजाला रहता है। वैसे भी कलिका का घर है ही कितना दूर।’
पापा ने आॅफर किया कि लौटने के बाद वे भी उनको छोड़ सकते हैं लेकिन मीटिंग के कारण उन्हें लौटने में देर हो जायेगी। हाँ मम्मी जल्दी लौट आयेंगी। अंततः तय यह हुआ कि मम्मी के आने के बाद सोमू और दादी आॅटो से चले जायेंगे। इससे पढ़ाई में भी हर्ज नहीं होगा और दादी पोते को घूमने का मजा भी आयेगा।