Google Boy - 18 in Hindi Moral Stories by Madhukant books and stories PDF | गूगल बॉय - 18

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गूगल बॉय - 18

गूगल बॉय

(रक्तदान जागृति का किशोर उपन्यास)

मधुकांत

खण्ड - 18

सुबह माँ घर में बने बाँके बिहारी जी के मन्दिर में पूजा करके पलटी तो सामने गूगल खड़ा था। उसने गूगल को कहा - ‘बेटा, एक काम कर। अरुणा की माँ को फ़ोन लगा। इस समय वह मन्दिर जाती है। उससे कहना कि मन्दिर से वापसी पर मुझसे मिलकर जाये। मैं भी उससे मन की बात कह देती हूँ... आगे बिहारी जी की इच्छा।’

गूगल ने फ़ोन लगाया तो अरुणा ने उठाया और कहा - ‘जय रक्तदाता गूगल जी।’

‘जय रक्तदाता अरुणा जी। मेरी माँ की आंटी जी से बात करवा दो,’ गूगल ने बहुत विनम्र और मधुर स्वर में कहा।

‘माँ तो मन्दिर गयी हुई है। मुझे बताओ, क्या काम है?’

‘माँ ने उनसे मिलना है, कुछ बात करनी है।

‘अच्छी या बुरी?’

‘अच्छी।’

‘क्या हमारे बारे में?’

‘हाँ,’ सामने खड़ी माँ को देखकर गूगल इतना ही बोल पाया।

‘तो एक काम करो गूगल जी, पुजारी जी का नम्बर आपके पास है। उनसे बात कर लो।’

‘हाँ, यह ठीक है। थैंक्यू अरुणा जी।’

तुरन्त गूगल ने पुजारी जी को फ़ोन लगाया और कहा - ‘प्रणाम पुजारी जी।’

‘बिहारी जी की जय। गूगल जी, आज सुबह-सुबह कैसे याद किया?’

‘पुजारी जी, अरुणा की माँ, अर्चना आंटी मन्दिर में आयी होंगी, उनसे कहना कि घर वापस जाते समय पाँच मिनट के लिये मेरी माता जी से मिलकर जायें।’

‘वाह-वाह गूगल जी, अभी-अभी वे आपकी ही बातें कर रही थीं।.....गूगल जी, वे आरती कर रही हैं। आरती के बाद उन्हें आपका संदेश दे देता हूँ।’

पुजारी जी सोचने लगा कि शुभ संकेत है। शायद बाँके बिहारी जी की भी यही इच्छा है। कल रक्तदान शिविर में गूगल और अरुणा को कई बार मिलते, आँखों-ही-आँखों में बतियाते देखकर राधाकृष्ण की रासलीला जैसा भाव उत्पन्न हुआ था।

पुजारी जी से संदेश सुनते ही अरुणा की माँ अर्चना गूगल के घर की तरफ़ चल पड़ी। गूगल के घर का द्वार खुला था, इसलिये अर्चना सीधे अन्दर चली गयी - ‘अरे नारायणी, आज सुबह-सुबह कैसे याद कर लिया?’

‘आओ-आओ, अन्दर आओ’, गूगल की माँ उसे गैलरी से पार कराके अन्दर ले गयी ताकि निर्माणाधीन मकान का नक़्शा उसे समझाया जा सके। बनने वाला घर, शोरूम तथा बैंक की बिल्डिंग दिखाती हुई अपने पुराने कमरे में ले गयी। वहाँ पहुँच कर आराम से बैठने के बाद माँ ने कहा - ‘पिछले सप्ताह जब मैं आपके घर गयी थी तो आपने मुझे एक ज़िम्मेदारी सौंपी थी..।’

‘क्या..?’

‘अरुणा के लिये कोई योग्य लड़का देखने की।’

‘हाँ-हाँ। कोई देखा है तो बताओ।’

‘अभी तो कोई नहीं देखा।’

अर्चना का उत्साह ठंडा पड़ गया। फिर भी उसने पूछा - ‘तो मुझे किसलिये बुलाया है?’

गूगल की माँ - ‘आपको एक ज़िम्मेदारी सौंपने के लिये। यदि गूगल के पिता होते तो मुझे कोई चिंता न होती, परन्तु अब तो सब मुझे ही देखना है। गूगल के लिये मुझे भले संस्कारों वाली की तलाश है।’

‘गूगल के लिये कैसी लड़की चाहिए आपको?’

‘अरुणा जैसी लड़की हो तो....’

नारायणी की बात को बीच में ही काट कर अर्चना ने हँसते हुए कहा - ‘तो समझो काम हो गया। आप अरुणा की माँ बन जाओ, मैं गूगल बेटे की माँ बन जाती हूँ।’

‘आपके मुँह में घी-शक्कर। आपने तो मेरे मन की बात कह दी। बच्चों को भी यही इच्छा लगती है और शायद बिहारी जी भी यही चाहते हैं।’

‘मैंने तो कल रक्तदान के समय गूगल और अरुणा को एक-दूसरे का सहयोग करते देखकर अरुणा के पापा से चर्चा की थी। गूगल के पापा तो इनके गहरे दोस्त थे। हम सोच रहे थे कि कैसे आपके सामने प्रस्ताव रखें। आपने तो हमारी सारी चिंता ही मिटा दी।’

गूगल की माँ की पूजा की थाली में से प्रसाद का लड्डू उठाकर अर्चना ने नारायणी के मुँह में डालते हुए कहा - ‘आपके घर बेटी नहीं थी, वह कमी दूर हुई और मुझे बेटा मिल गया।’

‘अरे वाह! आपने तो सुबह-सुबह मेरा घर ख़ुशियों से भर दिया। लक्ष्मी जैसी अरुणा मेरे आँगन की शोभा बढ़ायेगी।’ फिर गूगल को आवाज़ दी।

गूगल बराबर वाले कमरे में खड़ा सब सुन चुका था। वह तुरन्त उपस्थित हो गया। उसने आते ही ‘नमस्ते आंटी’, कहकर अर्चना के पाँव छूए तो उसने उसके सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया।

सामान्य दृष्टि से तो अर्चना ने गूगल को अनेकों बार देखा था, परन्तु आज तो वह चित्रकार की नज़र से देख रही थी। उसने बड़े लाड़ से पूछा - ‘काम कैसा चल रहा है बेटे?’

‘आपके आशीर्वाद से सब बढ़िया है।’

‘तुम्हारे रक्तदान कैम्प की हर जगह चर्चा है।’

‘मेरा क्या है आंटी, न जाने किस-किस का सहयोग मिला है और असली कृपा तो बाँके बिहारी जी की है।’

‘ठीक है नारायणी जी, अब मैं चलती हूँ। दोपहर को अरुणा के पापा के साथ आऊँगी।’

‘ठीक समझो तो अरुणा को भी ले आना। मैं भी अपनी बेटी को कलेजे से लगा लूँगी।’

‘घर जाकर सारा कार्यक्रम बनाती हूँ। जैसा भी होगा, आपको सूचित कर दूँगी।’ कहते हुए अर्चना बाहर आ गयी। माँ उसे आग्रहपूर्वक द्वार तक छोड़ने गयी।

एक घंटे बाद अर्चना ने फ़ोन करके नारायणी को सूचित किया - ‘नारायणी जी, अरुणा के पापा से बात हो गयी है। जैसे ही मन्दिर में कथा समाप्त होगी, मैं तो वहीं से आपके घर आ जाऊँगी और अरुणा के पापा दुकान से आ जायेंगे।’

‘और अरुणा?’

‘नहीं-नहीं, अभी अरुणा का आना ठीक नहीं। बाद में आप उसे आशीर्वाद देने घर आ जाना।’

‘जी, अर्चना जी, यह भी ठीक है।’ अर्चना की बात को विनम्रतापूर्वक स्वीकारते हुए नारायणी ने फ़ोन बंद कर दिया।

‘गूगल बेटे, वे लोग चार बजे के आसपास आयेंगे। तब तक मैं घर को व्यवस्थित कर देती हूँ और तू भी दुकान को ठीकठाक करा ले,’ कहकर माँ अपने काम में व्यस्त हो गयी।

काम की व्यस्तता के कारण समय का पता ही न लगा। अर्चना और केशव लगभग साथ-साथ ही आये। गूगल दोनों को अन्दर वाले कमरे में ले आया। अभिवादन के बाद नारायणी ने पूछा - ‘भाई साहब, आपको गूगल कैसा लगा?’

‘सच कहूँ भाभी जी, गोपाल जी थे, तब कई बार हँसी-मज़ाक़ में इस सम्बन्ध के विषय में चर्चा होती थी, परन्तु काम तो समय आने पर ही होता है। मैंने तो गूगल को बहुत पहले से अपना बेटा समझा हुआ है।’ केशव की बात सुनकर गूगल रसोई से नाश्ते की ट्रे उठा लाया।

‘देखो बेटा, हम लड़की वाले हैं। कुछ लेंगे नहीं।’

‘भाई साहब, इन पुरानी बातों को छोड़ो। चाय-नाश्ता तो आपको लेना ही पड़ेगा। इस ख़ुशी के अवसर पर आपको मुँह तो जूठा करना ही पड़ेगा।’

नारायणी के आग्रह को देखकर केशव ने कनखियों से अर्चना की और देखा। उसने सहमति जता दी। नाश्ता करने के बाद नारायणी को सम्बोधित करते हुए केशव बोला - ‘आप किसी बात की चिंता मत करना। जैसे आप चाहेंगी, वैसी ही शादी होगी।’

‘आप तो देख रहे हैं, घर, मॉल तथा बैंक बनाने का काम चल रहा है। मैं सोचती हूँ कि इनके पूरा होने पर ही विवाह किया जाये।’

‘आप चिंता न करें। मिस्त्री से कहकर घर पहले तैयार करवा देते हैं। लगभग डेढ़ दो महीने में काम पूरा हो जायेगा। उसके बाद किसी तिथि का मुहूर्त निकलवा लेते हैं। कहो बेटे, आपका क्या विचार है?’

‘आप बड़े हो अंकल। जैसा आपको ठीक लगे और माँ को स्वीकार हो।’

इस पर नारायणी ने कहा - ‘नये घर में बहू का आना शुभ रहेगा, मेरा तो यह विचार है, बाक़ी मुझे कोई एतराज़ नहीं।’

‘बेटे, कल एक बार ठेकेदार को लेकर दुकान पर आ जाना। उससे बातचीत करके कार्यक्रम बना लेंगे।’

‘जी ठीक है।’

केशव ने उठते हुए कहा - ‘शादी की और बातें तो आप अरुणा की माँ से कर लेना। हमारी ओर से यह रिश्ता पक्का है। हाँ, आप कभी भी हमारे घर आकर इस रिश्ते पर अपनी मोहर लगा देना।’

‘देखो अर्चना जी, वैसे तो हमारी ओर से भी यह रिश्ता पक्का है। अगले मास कोई शुभ दिन देखकर आपके घर आकर अरुणा को आशीर्वाद दे दूँगी। तब तक आप किसी से चर्चा न करना, विशेषकर मन्दिर की महिला मण्डली में।’

‘नारायणी जी, आपने तो मेरे मुँह की बात छीन ली। आपस में गाँव का काम है, बहुत ध्यान से काम करना पड़ेगा।’ अर्चना ने दबी ज़ुबान से कहा और केशव के साथ बाहर चली गयी।

‘थैंक्यू माँ, थैंक्यू, इतनी ख़ुशी तो माँ ही अपने बेटे को दे सकती है।’ भाव-विभोर होकर गूगल माँ से लिपट गया।

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