Gavaksh - 41 in Hindi Moral Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | गवाक्ष - 41

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गवाक्ष - 41

गवाक्ष

41==

कुछ ही देर में कार मंत्री सत्यप्रिय के बंगले के बाहर जाकर रुकी। मार्ग में कुछ अधिक वार्तालाप नहीं हो सका था। मंत्री जी के बंगले के बाहर चिकित्सकों की व अन्य कई लोगों की गाड़ियाँ खडी थीं, काफी लोग जमा थे और उनके स्वास्थ्य के बारे में चर्चा कर रहे थे। प्रोफेसर विद्य को देखते ही वहाँ उपस्थित लोगों ने उन्हें आदर सहित भीतर जाने दिया था । वे मंत्री जी के कुछेक उन चुनिंदा लोगों में थे जिनसे वहाँ के अधिकांश लोग परिचित थे। कॉस्मॉस को अपने छद्म रूप में ही जाना था। अत: दोनों के मार्ग भिन्न थे किंतु लक्ष्य व उद्देश्य एक !

दो -तीन चिकित्सक मंत्री जी के पास थे, दाहिनी ओर के एक और कमरे में देश के और भी कई प्रतिष्ठित सर्जन उनके ह्रदय-रोग के बारे में चर्चा कर रहे थे । उन्हें अस्पताल ले जाने की पूरी तैयारी थी किन्तु उन्होंने हाथ से इशारा करके प्रोफेसर से मिलने की इच्छा प्रगट की थी अत:तुरंत ही उनके पास सूचना पहुंचा दी गई थी । अंदर पहुँचने पर जैसे ही प्रोफ़ेसर ने मंत्री जी के सिर पर अपनत्व भरा हाथ रखा उन्होंने तुरंत ऑंखें खोल दीं । पास खड़े चिकित्सक आश्चर्यचकित रह गए, वे लगभग घंटे भर से उनकी आँखें खुलने की प्रतीक्षा कर रहे थे। प्रोफ़ेसर को देखकर मंत्री जी ने सबको बाहर जाने का इशारा किया। उनकी आँखों में एक चमक थी, अनुभव की चमक!दुनिया से दूर जाने की चमक !उल्लास की चमक !कॉस्मॉस स्वयं को रोक नहीं पाया, वह सामने आकर प्रणाम की मुद्रा में खड़ा हो गया ।

"तुम आ गए ?"मंत्री जी के मुख से निकला और उन्होंने प्रोफ़ेसर की ओर देखा ।

" ठीक समझ रहे हो, यह मेरे साथ ही आया है । "

"मैंने कहा था ----"मंत्री जी की साँसें उखड़ रही थीं ।

"चिंता न करो मित्र, इसने मुझे परेशान नहीं किया । इसके साथ मैंने बहुत अच्छा समय व्यतीत किया जिसे आप लोग 'क्वालिटी टाईम' कहते हैं । "

" मेरा यहाँ का समय व कार्य पूरा हो गया है, अब तुम्हारी प्रतिज्ञा पूरी करने का समय आ गया है । " उन्होंने कॉस्मॉस की ओर देखकर कहा ।

" मित्र !क्या सारी तैयारी कर ली हैं?"प् प्रोफ़ेसर गंभीर थे ।

"मुझे लगता है, मैं अब तत्पर हूँ लेकिन मेरे बेटे मेरे पार्थिव शरीर को तब तक नहीं ले जाने देंगे जब तक बिटिया भक्ति यहाँ नहीं पहुँच जाती । "

"हूँ---उसे समय लगेगा लेकिन ठीक तो है |क्या वह अंतिम बार तुम्हें देखना नहीं चाहेगी ?"उन्होंने मंत्री जी का हाथ हौले से थपथपाया ।

"तुम अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए तैयार हो? मुझे अब किसी समय-यंत्र की आवश्यकता नहीं है । "मंत्री जी सहजता से बोल रहे थे।

कॉस्मॉस में जो परिवर्तन हो चुके थे और शनैः शनैः हो रहे थे, उनसे वह आवाक भी था और असमंजस में भी । क्या धरती पर मृत्यु इतनी सहज भी होती है?उसने ऐसे समय में बहुत से लोगों को चीखते-चिल्लाते, ज़ोर-ज़ोर से चीखें मारकर रोते देखा व सुना था ।

मंत्री जी के साथ उसने जितना भी समय बिताया था, उसमें ही वह उनसे प्रभावित हो गया था और उसे महसूस हुआ था कि उस ‘ढोंगी’ स्वामी के अतिरिक्त वह जितने लोगों से भी मिला है, इस दुनिया में उन सबकी कितनी आवश्यकता है ! कितने महत्वपूर्ण हैं ये सभी ! उसे ज्ञात नहीं था कि उसके स्वामी यमदूत उसके साथ क्या करने वाले हैं, क्या दंड प्राप्त होगा उसे ?

वह उन बदलावों को समझ पा रहा था जो उसके भीतर होते जा रहे थे, किन्तु उनसे छुटकारा प्राप्त करने का कोई मार्ग नहीं सोच पा रहा था मानो उस पर किसी ने कोई जादू कर दिया था ।

प्रोफ़ेसर श्रेष्ठी कॉस्मॉस की मानसिक अवस्था से परिचित थे, वे परिस्थिति समझ रहे थे । सत्यव्रत इंसान के रूप में एक अच्छा समाजसेवी, उनका परमप्रिय मित्र, लोकहितार्थ कार्यों में मग्न रहने वाला एक सच्चा व्यक्ति था जो अपने कार्यों को पूर्ण करके यहाँ से लौटने के लिए तत्पर था । सत्यव्रत का दुनिया छोड़ने का समय आ गया था जो सुनिश्चित था । उनके अधूरे कार्य पूर्ण हो चुके थे और कॉस्मॉस दुनिया के प्रति आकर्षण के कारण अपनी शक्ति क्षीण करता जा रहा था ।

"क्या तुम मंत्री जी को दिया हुआ वचन पूरा कर सकोगे?"

"मुझे लगता है संभवत: नहीं ---मेरी स्वामी द्वारा प्रदत्त शक्तियाँ क्षीण हो रही हैं। अब मुझमें वह शक्ति नहीं जो उस समय थी जब मैंने मंत्री महोदय को वचन दिया था। " वह शर्मिंदा था, उसके नेत्रों से अश्रु छलकने लगे थे ।

"तो मेरी अंतिम इच्छा पूरी नहीं हो सकेगी ?" मंत्री जी के मुख से अस्फुट शब्द निकले, वे उदास हो उठे।

" संभवत: कुछ देर के लिए इनकी श्वांस रोक सकता हूँ चिकित्सक जाँच करके मंत्री जी की मृत्यु के बारे में घोषणा कर देंगे किन्तु अभी ये अपने शरीर व आत्मा से केवल विलग होंगे और आत्मा के नेत्रों से वह सब देख सकेंगे जो इनकी इच्छा है । "

कॉस्मॉस पृथ्वी पर होने वाली चालाकी भी सीख गया था । प्रोफेसर मुस्कुराए और उन्होंने अपने मित्र के मस्तक पर एक स्नेह-चुंबन अंकित कर धीमे से एक बार गले लगा लिया। यह उनकी अंतिम मुलाकात थी ।

क्रमश..