30 Shades of Bela - 28 in Hindi Moral Stories by Jayanti Ranganathan books and stories PDF | 30 शेड्स ऑफ बेला - 28

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30 शेड्स ऑफ बेला - 28

30 शेड्स ऑफ बेला

(30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास)

Day 28 by Piyush Jain पीयूष जैन

लौट आया खुशबुओं वाला चांद

लड़ियां उतारी जा रही थीं। बिखरे फूलों का कोने में ढेर लगा था। हवा में खुशबू अब भी थी। सब काम ठीक से हो गए थे। रिश्तेदार जा चुके थे। बहुत दिन बाद सब खुश थे।घर के सूने पड़े कोनों पर नए रंग थे। ढोलक की थापें थीं। मंगलगीत गाए गए थे। और उन आवाजों में कुछ सच्चे-झूठे गिले शिकवे भी घुल गए थे।

पहले आशा और पुष्पेन्द्र ने एक दूसरे को माला पहनायी थी। बिलकुल सादे ढंग से हुआ था सब। पर कृष और पद्मा के समय बेला ने किसी की चलने नहीं दी। समीर भी पूरे उत्साह से लगा था। रिंग सेरेमनी में बेला ने माइक का भेजा वेडिंग गाउन पहना। कृष ने गोल्डन किनारे वाली क्रीम रंग की धोती पर सिल्क का मैरून कुर्ता पहना था। बाद में पद्मा ने लहंगा पहन लिया था।

कृष के गले में वही लॉकेट था... जो बेला से होते हुए वापस उसके पास पहुंच गया था। लॉकेट अपने गले से उतार कर वह बेला के पास पहुंच गया, 'बेला, तुम्हें ये लॉकेट बहुत पसंड है ना? रखोगी तो मुझे बहुट अच्छा लगेगा।'

बेला ने कुछ सोच कर उसके हाथ से लॉकेट ले लिया। कुछ तेज कदमों से पद्मा के पास पहुंची। लाल लहंगे में उसकी बहन देवकन्या सी लग रही थी। बेला ने उसके गले में लॉकेट डाल कर उसका माथा चूमते हुए कहा, 'मेरी प्यारी बहना, तुम्हें अपनी जिंदगी में वो सारे सुख मिले, जिसकी तुम हकदार हो।'

ना जाने क्यों पद्मा की आंखें भर आईं और वह बेला के गले लग गई।

........

इस समय घर में केवल शांति थी। बेला के तो बाहर भी और भीतर भी। पुष्पेन्द्र, आशा, पद्मा व कृष मंदिर गए थे। समीर तो शादी के अगले दिन ही काम से मुंबई निकल गया था। बेला रुक गयी थी। पापा ने ही भावुक होते हुए कहा था-'रुक जा बिट्टू। समझ ले कि पापा को माफ़ कर रही है।’ सुनकर बेला रो पड़ी थी।'

--

'ये डायरी मैं ले लूं मम्मी?', रिया ने कहा।

‘हूं।'

‘क्या ये आपने लिखा है ? आपके बॉक्स में रखी थी।‘

खिड़कियों की सफाई करवा रही बेला पीछे मुड़ी। मुस्कुराते हुए, रिया को दूसरी डायरी दी और उसे अपने पास रख लिया।

बाद में जब वो कमरे में आयी तो रिया सो चुकी थी। सोफे पर लेटे लेटे डायरी पलटने लगी। सालों पहले सबसे छुपकर बसाई गयी उसकी अपनी दुनिया। उस दिन जब बैग खोया तो उसकी यादों की ये दुनिया भी खो गयी थी। वो एहसास,जो हर पल उसकी रगों में बहते रहते हैं। 12 साल की थी, जब लिखना शुरू किया था। पहले पेज पर ही लिखा था...I am mystery to myself…I am crazy about myself.

इसे पढ़कर बेला जोर से हंसी थी। कोई होता तो कहता कि पगला तो नहीं गयी। कैसी मिस्ट्री? ना खुद को ही समझा, ना दूसरों को ? बस समय और हालात के साथ बहती चली गयी। क्या हो गयी हूँ मैं? कहां है वो बेला जो सकीना से लगाई एक शर्त में एक साथ 10 कप चाय पी गयी थी। बहुत उलटी हुई थी बाद में। क्या वो झक्की नहीं थी? डिजाइनिंग कोर्स के दौरान लद्दाख के टूर पर सोमिल के जरा सा यह कहने पर कि तुमसे ना होगा, कड़क ठंड में रात के समय एक घंटा बिना स्वेटर खड़ी रही? और फिर कमरे में आकर ओल्ड मॉन्क के घूंट भरती रही। ठंड के मारे अगले पूरे दिन कमरे से बाहर नहीं निकली थी, सोचकर बेला मुस्करा दी।

बेला अगला पेज पढ़ने लगी।

आज 7th का रिजल्ट आया है। टॉप किया है मैंने। इस बार भी मैम ने पूछा था, पापा नहीं आये? शी इज एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी गर्ल। थोड़ा समय दीजिये इसे मैम। दादी ने पापा को खूब सुनाया है-आग लगा ले इस पैसे को, क्या करेगा इतना कमाकर? बिन माँ बाप की तरह जी रही है मेरी बच्ची। बाद में रोज की तरह पापा देर तक कमरे में अकेले टहलते रहे। लगातार चौथी सिगरेट है उनके हाथ में इस समय।

बेला दो चार पेज पलट देती है-

-आज मां, मौसी से फोन पर गुस्से में बोल रही थी। ‘आशा क्यों कर रही हो तुम ऐसे? मत छीनो मेरी खुशियां। क्या बेला तुम्हारी कुछ भी नहीं ? बेला का कुछ तो सोचो?’ उसी पेज के कोने में छोटा सा कहीं लिखा था, everything is futile...

बेला बुदबुदाई- ‘कुछ-कुछ समझती थी मां कि तुम क्यों ऐसे बात करती थीं? क्यों कभी-कभी रात में अलग कमरे में सोने चली जाती थी? पर आप सबने मुझसे क्यों छिपाया? क्यों मेरे मन के साथ रिश्तों की ताउम्र रहने वाली बेचैनियों को बांध दिया गया? अब लगता है कि नाजुक नहीं, बेवकूफ समझते थे सब मुझे। तभी सबने इतना कुछ छिपाया। रिश्तों में ये घालमेल क्या इतना शाश्वत है? काश! रिश्तों में सब ब्लैक एंड वाइट होता। छुटपन से ही पसंद नहीं था कि मेरे अपने मुझसे कुछ छुपाएं। और आज? क्या है जो सिर्फ मेरा है? कुछ भी तो नहीं। वाकई सब बेकार है। नश्वर है। शायद मेरा ये सोचना भी...

बेला पेज पलट देती है।

.......


कृष को गए दस दिन हो गए हैं। एक वो था, तो सब कुछ था। और अब... रम गया होगा अपनी ही दुनिया में। और जाने उसकी कोई दुनिया है भी या नहीं? डायना की अंतिम यात्रा को सुखद बनाना चाहता था। क्या करती उसको अपने पास रखकर भी? क्यों नहीं उसे मेरे आंसू दिखे? क्यों नहीं कहा, बेला मुझे तुम्हारी जरूरत है? मैं आऊंगा, तुम इंतजार करना मेरा। कुछ भी तो नहीं कहा। खुद को अपराधबोध से मुक्त रखना चाहते थे तुम कृष। चाहते थे कि मैं ही कह दूं कि तुम चले जाओ। तो मैंने भी कह दिया। अपनी सेवा-भक्ति से भले ही तुमने कृष्ण का मन जीत लिया हो। पर अपनी बेला को तुम हार गए कृष। तुम भी अपने कृष्ण की तरह छलिया ही निकले। राधा महान थी, कृष्ण को माफ़ कर दिया होगा। पर मैं नहीं। मैं रुक्मिणी बनकर ही खुश हो जाती कृष। आई हेट यू, नफरत है तुमसे, तुम्हारे कृष्ण से, इस सेवा भक्ति से।

आगे लिखे शब्दों को बेला ने काट दिया था, जिनके नीचे लिखा ...लव यू कृष। तुम्हें क्या याद नहीं आती!

बेला की आंख भर आयी। देखा रिया अब भी सोई है। वापस विचारों में खो गयी। पद्मा पर यूं ही प्यार नहीं उमड़ा था मेरा। आंखों में आंसू थे। बोल रही थी-'दीदी भागते-भागते थक गयी हूँ। अब ठहराव चाहती हूँ। कृष पास होते हैं तो एक सुकून होता है।‘ तुम रंगरेज थे कृष। सब पर अपना रंग चढ़ा दिया। एक बार दादी ने कहा था,‘आसान नहीं है कृष होना बेला। माफ़ कर दो उसको। तुम भी आगे बढ़ो।‘

बेला उठ कर बैठ गयी। नजर पड़ी नियति मां की फोटो पर। शादी से अगले दिन आश्रम जाते हुए कहा था, 'बेला, तू मेरे जैसी मां ना बनना। रिया को खूब प्यार देना। खुश हूं कि इतने सब के बाद भी तुझमें कड़वाहट नहीं है। अब कुछ अपने मन का भी जीना बेला।'

क्या है मेरा मन? बेला को याद आया, 10 वीं में जब उसने क्लास में सुनाया था अपने सपने के बारे में, सब हंस पड़े थे उसकी कल्पना सुनकर। बेला के चेहरे पर मुस्कान आ गयी। आंखों में एक चमक भी।