Papa me tara ban gai in Hindi Moral Stories by Goodwin Masih books and stories PDF | पापा मैं तारा बन गयी

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पापा मैं तारा बन गयी

पापा मैं तारा बन गयी

गुडविन मसीह

आधी रात गुजर चुकी थी। आर्यन को नींद नहीं आ रही थी। बेचैनी इतनी थी, कि वह बार-बार करबट बदल रहा था और सोच रहा था कि उसे नींद क्यों नहीं आ रही है ? अचानक उसे याद आया कि लोग कहते हैं, जब किसी को कोई सपने में देखता है, तो उसे नींद नहीं आती है। लेकिन उसे सपने में कौन देख रहा होगा...? उसने मन में सोचा, फिर उसे याद आया कि जब उसकी मां को नींद नहीं आती थी, तो उसके पापा उनसे कहा करते थे, शकुन्तला, तुम्हें जब भी रात को नींद नहीं आती है तो उठकर एक किताब पढ़ लिया करो, किताब पढ़ते-पढ़ते इंसान को कब नींद आ जाती है कुछ पता ही नहीं चलता या फिर किसी के साथ बातचीत करने से भी आंख लग जाती है।

आर्यन को किताबें पढ़ने का शौक तो था नहीं इसलिए उसने सोचा भूमिका को नींद से जगा लूं। उसके साथ बातचीत करके नींद आ जायेगी। उसने पास में बिस्तर पर सो रही भूमिका को जगाने के लिए उसने हाथ बढ़ाया और फिर यह सोचकर कि भूमिका दिन भर की थकी-हारी होती है। सुबह से लेकर शाम तक घर के बहुत सारे काम निबटाती है। इसके अलावा साग-सब्जी लाने के लिए बाजार भी जाती है अगर उसे जगा दूंगा तो उसकी नींद पूरी नहीं होगी और नींद पूरी नहीं होगी तो सुबह को उसकी आंख देर से खुलेगी, जिससे घर का सारा टाईम मैनेजमेंट बिगड़ जायेगा। वैसे भी भूमिका अगर रात को सही से सो नहीं पाती है, तो सुबह को उसका पूरा शरीर दर्द करता है और वह चिढ़चिढ़ी हो जाती है। बात-बात पर उस पर झल्लाती है। यही सब सोचकर उसने भूमिका की तरफ बढ़ा अपना हाथ समेट लिया और लेटकर खिड़की से दिखायी दे रहे आसमान को निहारने लगा।

आसमान एकदम साफ था। चांद भी पूरा दिखाई दे रहा था। उसके इर्द-गिर्द झिलमिलाते तारे ऐसे लग रहे थे, जैसे किसी ने काले सिया कपड़े पर रंगीन छोटे बल्बों की झालर टांक दी हो। सबकुछ एक खूबसूरत नजारे जैसा था।

उसी समय उसके कानों से एक आवाज टकरायीे, ‘‘क्यों पापा, नींद नहीं आ रही है ?’’

‘‘अरे यह तो मेरी बेटी चांदनी की आवाज है ?’’ वह एकदम उठकर बैठ गया। फिर उसनेे चांदनी को खिलखिला कर हंसते हुए सुना, तो वह चैंक कर इधर-उधर देखने लगा।

‘‘इधर-उधर क्या देख रहे हो पापा, इधर देखो, मैं यहां हूं, आसमान में, आपकी खिड़की के ठीक सामने।’’ आर्यन ने एकदम खिड़की के सामने देखा। आसमान में दो तारे टिमटिमा रहे थे। वह उन तारों को टकटकी लगाकर देखने लगा। उसे ऐसा लगा जैसे उन दो तारों में से एक तारा उससे कह रहा हो, ‘‘पापा मैं तारा बन गयी, तभी तो आप यहां दो तारे को देख रहे हो। याद करो पापा, मैं आपसे कहा करती थी न कि मैं बहुत जल्दी तारा बन जाऊंगी और आपकी खिड़की के सामने आकर चमका करूंगी और आप मुझे देखकर खुश हुआ करना। क्यों पापा, याद आया ? पापा, प्लीज, आपसे रिक्वयेस्ट है, आप इस खिड़की को कभी बंद मत करना, मैं यहीं से आपको और मम्मी को देख लिया करूंगी। पापा, यहां और भी बहुत से तारे हैं, मैं उनके साथ खूब खेलती हूं, दौड़ती-भागती हूं। मैं यहां बहुत खुश हूं, मुझे यहां बहुत अच्छा लगता है, यहां सभी तारे मेरे दोस्त बन गये हैं। लेकिन पापा, मुझे आपकी बहुत याद आती है। पापा, मैं बहुत गंदी लड़की थी न ? आपको बहुत तंग करती थी, आपका कहा नहीं मानती थी। अब लगता है कि मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था। पापा, मैं तारा तो बन गयी पर आपके सपनों को साकार नहीं कर पायी, जिसका मुझे बेहद अफसोस है। पापा, मुझे यकीन है, आपने मुझे माफ तो कर दिया होगा, क्योंकि मैं आपकी लाडली जो थी।’’

जैसे-जैसे चांदनी की आवाज आर्यन के कानों से टकरा रही थी, वैसे-वैसे चांदनी का अक्स आर्यन की आंखों के सामने उभरता जा रहा था।

सत्ताईस साल पहले भूमिका से जब आर्यन की शादी हुई थी, तो वो दोनों मिलकर यही सपना देखते थे कि उनके घर के आंगन में बच्चे के रूप में कोई फूल खिलेगा, जिसकी खुशबू से उनका घर महक उठेगा, चिड़ियों की चहचहाट की तरह उसकी किलकारियों से उनका घर गूंजा करेगा, लेकिन देखते-ही-देखते पूरे सात साल गुजर गये, भूमिका की कोख में न तो किसी बेटे ने पांव पसारे, न ही किसी बेटी ने। बड़े-से-बड़े डाॅक्टर को दिखा लिया। भगवान् के सामने भी रो लिए, गिड़गिड़ा लिए, लेकिन भूमिका की कोख खाली-की-खाली ही रही। जिस भूमिका को घर वाले प्यार से भूमि कहा करते थे, उसी भूमिका को अब बंजर समझकर सब नाक-भौं सिकोड़ने लगे थे। मां ने तो भूमिका को किचिन में भी जाने को मना कर दिया था। कहती थीं, तू बांझ है और बांझ स्त्री के चैके में जाने से चैका अपवित्र हो जाता है। पहले मां किसी भले काम से कहीं जाती थीं, तो खुशी-खुशी भूमिका को भी अपने साथ ले जाती थीं, लेकिन जब भूमिका मां नहीं बन पायी तो मां कहने लगी थीं, तू निर्वंशनी है, तेरे साथ बाहर जाने से अपशकुन हो जायेगा, हमारा बना-बनाया काम बिगड़ जायेगा।’’

मौहल्ले-पड़ोस की औरतंे भी भूमिका के सामने आने से कतराने लगीं थीं। उच्च शिक्षा प्राप्त आधुनिक विचारों वाली भूमिका, जो निहायत ही हंसमुख और मिलनसार थी, कब तक अपने आदर्शांे का दामन थामे आशाओं के धरातल पर खड़ी रहती। कभी तो उसे टूटकर बिखरना ही था और वह टूटकर बिखरने लगी। निराशा, हताशा की गहरी खाई में धसने लगी। वह जी भर के रोती और चुप हो जाती। भगवान के आगे सिर पटकती और कहती, कि अगर मां बनने से ही औरत पूर्ण औरत कहलाती है, तो उसने उसकी कोख को सूना क्यों रखा ? लेकिन भगवान की पता नहीं क्या मर्जी थी, वह भूमिका की क्यों नहीं सुन रहा था, यह तो भगवान ही जानता होगा।

हर समय हंसती-खिलखिलाती रहने वाली भूमिका एकदम ऐसे खामोश हो गयी, जैसे वह हंसना-बोलना ही नहीं जानती हो। दिन भर सजने-संवरने वाली भूमिका को अब कई-कई दिन नहाने और कपड़े बदलने की भी याद भी नहीं रहती थी। फूल की तरह खिली हुई दिखायी देने वाली भूमिका, अब एकदम बीमार और मुरझायी-सी दिखायी देने लगी थी। आर्यन भी उसे कब तक झूठी तसल्ली देता, ताने तो उसे भी खाने को मिलते थे, उलाहना तो उसे भी मिलती थी। घर से लेकर आॅफिस तक सभी लोग उससे तरह-तरह की बातें करते। कोई कहता ऐसा करो, कोई कहता वैसा करो, कोई कहता यहां दिखा दो, तो कोई कहता वहां दिखा दो।

सारी उम्मीदें टूट चुकी थीं। जिन्दगी से पूरी तरह वह और भूमिका हार चुके थे कि अचानक एक दिन शाम को आॅफिस से घर आते वक्त आर्यन ने एक जगह लोगों की भीड़ लगी देखी। वह भी उस भीड़ में शामिल हो गया। अन्दर जाकर देखा, कचरे की पेटी में एक नवजात कन्या पड़ी हुई थी, जिस पर लोग तरह-तरह की बातंे बना रहे थे। कोई कह रहा था, ‘‘पता नहीं किस का पाप है, जिसे यहां कूड़े में फेंक दिया, तो कोई कह रहा था, जब पालने की औकात नहीं थी, तो पैदा ही क्यों कर लिया ? कोई कह रहा था, ‘‘बेटे की चाहत में बेटी हो गयी होगी, इसलिए यहां फेंक दिया, तो कोई यह भी कह रहा था, कि पहले तो खूब मस्ती मारी और जब मस्ती का फल आ गया तो समाज के डर से उसे कूड़े में फेंक दिया, मरने के लिए।’’

सब बातें बना रहे थे लेकिन आर्यन मन-ही-मन यह सोचकर खुश हो रहा था कि भगवान ने यह बच्ची उसके लिए दी है, वह इसे अपने साथ ले जाएगा, इसकी परवरिश करेगा, इसे पढ़ाएगा-लिखाएगा और अच्छा इंसान बनाकर समाज में इसे सम्मान दिलवायेगा। वैसे भी इसकी क्या गलती है, इसने तो अभी दुनिया में कुछ देखा भी नहीं है, अच्छाई-बुराई को जाना भी नहीं है। गलती तो उनकी है, जिसने इसे जन्म देकर यहां लोगों के ताने सुनने के लिए फेंक दिया। कहते हैं, जन्म देने वाले से पालने वाला बड़ा होता है। यह बच्चा जिसका भी है, जैसा भी है, वह इसे पालेगा। भूमिका भी इस बच्ची को पाकर खुश हो जायेगी। उन दोनों ने तो पहले ही इस बात का मन बना लिया था कि भगवान ने उन्हें प्राकृतिक तौर पर मां-बाप नहीं बनाया तो क्या हुआ। वह किसी बच्चे को गोद ले लेंगे।

आर्यन ने पुलिस से उस बच्ची को गोद लेने की इच्छा जाहिर की। पुलिस ने कागजी कार्यवाही के साथ सहर्ष वह बच्ची को आर्यन को सौंप दी।

बच्ची को पाकर भूमिका ऐसे खुश हो रही थी, जैसे किसी डूबते हुए को किनारा मिल गया हो और मरने वाले को जीने का सहारा। भूमिका ने बच्ची को अपने सीने से चिपटा लिया। भले ही बच्ची को मां का दूध नसीब नहीं हुआ लेकिन मां के शरीर की गरमाहट को पाकर बच्ची में जैसे जान आ गयी। वह हाथ-पांव चलाने लगी। आर्यन और भूमिका ने उसका नाम चांदनी रखा। उसके नामकरण वाले दिन उन्होंने पूरे मौहल्ले की दावत की और खूब खुशी मनायी।

आर्यन को डर था कि कहीं चांदनी का अतीत उसके साथ-साथ न चले, इसलिए उसने अपना ट्रांसफर बरेली से लखनऊ करवा लिया, ताकि चांदनी के बड़े होने पर उसे कोई यह न बता सके कि उसे उसके मम्मी-पापा कचरे की पेटी से उठाकर लाये थे, वह उनका अपना खून नहीं है।

चांदनी जब स्कूल जाने लायक हो गयी तो शहर के सबसे मंहगे स्कूल में उसका दाखिला करवाया। पांचवीं कक्षा तक तो भूमिका उसे स्कूल छोड़ने और लाने जाती थी। उसके बाद जब वह बड़ी हो गयी, तो उसे स्कूल लाने-ले जाने की जिम्मेदारी आर्यन ने अपने ऊपर ले ली, क्योंकि वह जानता था कि आजकल का माहौल लड़कियों के हिसाब से ठीक नहीं है। उसके साथ कब कोई ऊंच-नीच हो जाये कोई नहीं जानता। वैसे भी लड़कियांे की सुरक्षा के नाम पर शासन-प्रशासन तक की व्यवस्था फेल हो चुकी है।

चांदनी को आर्यन से विशेष लगाव था। आर्यन के बिना वह कुछ भी नहीं करती थी। आॅफिस से आते ही वह आर्यन से लिपट जाती थी। उसके साथ खेलती थी, बातें करती थी। आर्यन भी उसके साथ हंस-बोल कर अपनी दिन भर की थकान को भूल जाता था।

उस दिन तो आर्यन की खुशी का ठिकाना नहीं रहा, जब चांदनी ने पहली बार उसे टेड़ी-मेड़ी, थोड़ी गोल, थोड़ी तिकोनी रोटी बनाकर खाने को दी थी। उसने रोटी देखकर चांदनी को प्यार से चूम लिया था और कई लोगों से इस बात का जिक्र भी किया था कि उसकी बेटी अब बड़ी हो गयी है, वह रोटी बनाना सीख गयी है। चांदनी की पहली रोटी का दिन और तारीख आर्यन ने अपनी डायरी में लिख लिया था। आर्यन के मुंह से अपनी रोटियों की तारीफ सुनकर चांदनी तो खुशी से फूली नहीं समा रही थी। उसने भूमिका से भी कह दिया था, ‘‘मम्मी, अब आप पापा के लिए रोटी की चिंता मत करना। आप को जब भी नानी के घर जाना हुआ करे तो चली जाया, मैं पापा के लिए रोटियां बना दिया करूंगी।’’

भूमिका ने भी कह दिया था कि हां अब तू सियानी हो गयी है, मेरे काम में हाथ बंटा दिया करेगी, जिससे मुझे भी घर के काम से थोड़ी राहत मिल जाया करेगी।’’

चांदनी पढ़ने-लिखने में तो होशियार थी ही, उसे मशीनों से खेलने और नयी-नयी मशीनों के बारे में पढ़ना बहुत अच्छा लगता था। वह हमेशा आर्यन से कहा करती थी कि वह बड़ी होकर इंजीनियर बनेगी और उसका नाम रोशन करेगी। आर्यन ने भी सोच लिया था कि चांदनी की इच्छा अगर इंजीनियर बनने की है, तो वह उसे इंजीनियर बनने का मौका जरूर देगा।

आर्यन की आदत थी, वह रात को सोते समय बाहर से ताजी हवा आने के लिए अपने बेडरूम की बड़ी खिड़की खोल लिया करता था, जिसमें से आसमान और आसमान में हठखेली करते चांद-सितारे साफ दिखायी देते थे। उसे वो सब देखना बहुत अच्छा लगता था। वह खिड़की में से घंटों आसमान को निहारता रहता था। अक्सर चांदनी भी उसके पास बिस्तर में आकर लेट जाती थी और चांद-तारों के बारे में उससे खूब बातंे करती थी। बातों-ही-बातों में वह आसमान में चमक रहे सब तारों से अलग, उसकी खिड़की के सामने नजर आने वाले तारे को देख कर कहती थी, ‘‘पापा, मैं भी एक दिन इसी तारे की मानिंद पूरे संसार में चमकूंगी। लोग मुझे देखकर बहुत खुश हुआ करेंगे और कहा करेंगे, कि यह मिस्टर आर्यन मेहता की बेटी है। देख लेना, मेरी चमक को देखकर यह तारा भी मुझसे चिढ़ने लगेगा और चिढ़ते-चिढ़ते एक दिन यह यहां से गायब हो जायेगा, और मैं यहां अकेली चमका करूंगी।’’

चांदनी के छोटे-से मुंह से इतनी बड़ी बात सुनकर आर्यन उसे डांट कर कहा करता था, ‘‘यह गंदी बात होती है, ऐसे मत बोला करो। कोई तारा छोटा या बड़ा नहीं होता, किसी तारे की चमक तेज और हल्की नहीं होती, सब एक-से चमकते हैं।’’

समय अरमानों के पंख लगाकर आसमान में उड़ रहा था। देखते-ही-देखते चांदनी ने इण्टर की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास कर ली। चार सब्जेक्ट्स में उसे विशेष योग्यता भी मिली थी, जिसकी वजह से शहर के सभी अखबारों में उसका फोटो भी छपा था। काॅलोनी के लगभग सभी लोगों ने घर आकर चांदनी को बधाई दी थी। उस दिन तो उसके घर में जश्न जैसा माहौल बन गया था। लोग चांदनी को उसके उज्ज्वल भविष्य के लिए शुभकामनाएं दे रहे थे, उस समय आर्यन और भूमिका ऐसा महसूस कर रहे थे, जैसे चांदनी के रूप में भगवान ने उन्हें कोई परी दे दी हो। उन्हें चांदनी के ऊपर गर्व हो रहा था।

चांदनी ने इण्टर की परीक्षा के साथ ही यूपीटीयू की परीक्षा भी दी थी, जिसका परिणाम इण्टर की परीक्षा के कुछ दिन बाद ही घोषित हो गया था जिससे आर्यन और भूमिका की खुशी दोगुनी हो गयी थी, क्योंकि चांदनी ने उस परीक्षा को भी अच्छे रैंक से पास किया था और उसे देश के जाने-माने टेक्निकल इंस्टीट्यूट में बी-टेक के लिए दाखिला भी मिल गया था।

चांदनी लखनऊ छोड़कर बी-टेक करने के लिए बैंगलूर चली गयी। उसके जाने के बाद घर एकदम सूना और खाली-खाली लगने लगा। चांदनी की बनाई पेंटिंग्स, फ्लावर पाॅट्स, उसका कम्प्यूटर, उसका बिस्तर, जैसे सब एकदम खामोश हो गये थे। सबकी सूनी आंखों में एक ही प्रश्न नजर आ रहा था कि चांदनी उन सबको छोड़कर कहां चली गयी ? उन सब चीजों की तरह भूमिका और आर्यन भी एकदम उदास से रहने लगे। न उनका मन खाने में लग रहा था, न घर के किसी काम में। कई दिनों तक तो आर्यन को ऐसा लगता रहा, जैसे चांदनी ड्राइंग रूम में है, कभी लगता वह बेडरूम में अपने टेडी वियर्स के साथ खेल रही है, तो कभी लगता वह पेंटिंग्स बना रही है, कभी लगता वह टी.वी. पर कार्टून फिल्म देखकर जोर-जोर से हंस रही है, तो कभी लगता वह भूमिका के साथ किचिन में है, कभी उसके गार्डन में होने का आभास होता, तो कभी छत पर।

एक बार तो आर्यन को ऐसा लगा, जैसे चांदनी गार्डन में तेजी से भाग रही हो, उसे भागते देख वह एकदम चीखा, ‘‘चांदनी,ऽ ऽ ऽ ऽ ऐसे मत भागो नहीं तो गिर जाओगी, तो भूमिका ने उससे कहा, ‘‘क्या कर रहे हो आर्यन, चांदनी कहां है, चांदनी तो बैंगलूर चली गयी, अपनी पढ़ाई करने।’’

भूमिका और आर्यन जब घर में साथ खाना खाने के लिए बैठते तो उन्हें अचानक चांदनी की याद आ जाती, और वह एकदम उदास हो जाते थे। हालांकि दोनों लोगों की रोज चांदनी से फोन पर सुबह-शाम बातें होती थीं फिर भी उनका मन नहीं मानता था। दोनों सोचते थे कि पता नहीं उसने खाना खाया है या नहीं, क्योंकि चांदनी खाने में बहुत नखरे दिखाती थी। कभी कहती मुझे यह सब्जी पसंद नहीं, कभी कहती मैं यह नहीं खाऊंगी-वो नहीं खाऊंगी, तो कभी कहती मम्मी, आप रोज-रोज ऐसा खाना क्यों बना लेती हैं। इसी बात को लेकर वह अक्सर नाराज हो जाती और कहती मुझे नहीं खाना है आपका खाना, तो आर्यन उसे मनाने में लग जाता और जब तक चांदनी मान नहीं जाती थी, तब तक मनाता ही रहता था। यही सब बातें याद करके उसकी और भूमिका की आंखे नम हो जातीं।

एक दिन अचानक चांदनी ने आर्यन को फोन पर बताया कि वह छुट्टी में घर आ रही है, तो आर्यन खुशी से उछल पड़ा, उसने भूमिका को भी बताया कि चांदनी छुट्टी में घर आ रही है।

पूरे तीन महीने बाद चांदनी पहली बार घर आ रही थी इसलिए आर्यन और भूमिका ने उसकी पसंद की बहुत सारी चीजें घर में लाकर रख दीं।

निश्चित समय पर आर्यन और भूमिका चांदनी को लाने के लिए रेलवे स्टेशन पहुंच गये। तीन घंटे के लम्बे इंतजार के बाद चांदनी की गाड़ी स्टेशन पहुंची तो आर्यन की आंखें चांदनी को देखने के लिए बेचैन होने लगीं। वह जल्दी से चांदनी के डिब्बे में चढ़ गया और उसका सामान उठा लाया।

घर आने के बाद आर्यन पूरे समय चांदनी से लिपटा रहा। उससे उसकी पढ़ाई, उसके हाॅस्टिल, मैस और उसकी सहेलियों के बारे में पूछता रहा। उस दिन आर्यन और भूमिका ने चांदनी के साथ मिलकर भरपेट खाना खाया और बाहर घूमने भी गये थे।

पूरे एक हफ्ते की छुट्टियां बिताकर चांदनी वापस बैंगलूर चली गयी। उसके बाद चांदनी का आना-जाना लगा रहा। इस बीच आर्यन और भूमिका भी दो बार उससे बैगलूर जाकर मिल आये।

चांदनी के बिना आर्यन और भूमिका के चार साल कैसे कटे, ये तो वही बता सकते थे। इन चार सालों में उन दोनों ने चांदनी को लेकर न जाने कितने सपने बुन डाले थे। आर्यन का तो कहना था कि भले ही हमारी चांदनी इंजीनियर बन जायेगी, लेकिन उसकी शादी वह खूब धूमधाम से करेगा और शादी के बाद वह चांदनी और उसके पति को अपने पास ही रखेगा, ताकि उनका घर सूना न हो।

चांदनी का बी-टेक में वो आखिरी साल था। सात सेमिस्टर कम्पलीट हो चुके थे, आठवें सेमिस्टर के बस एग्जाम्स होना बाकी रह गये थे, जिसके लिये वह दिनरात पढ़ाई में मेहनत कर रही थी। इस बीच उसे देश की किसी अच्छी कम्पनी में प्लेसमेंट का भी आॅफर मिला था, लेकिन उसने उस आॅफर को ठुकरा दिया था, उसका कहना था कि वह जाॅब करेगी तो ऐसी करेगी, जिसे लोग देखते रह जायेंगे। आर्यन को भी चांदनी के ऊपर बहुत गर्व होने लगा था। वह बात-बात में ईश्वर को धन्यवाद देता था कि उसने उसे इतनी होनहार बेटी दी है।

आखिरी एग्जाम्स से पहले कुछ दिनों के लिए चांदनी अपने घर आयी हुई थी और जब वह वापस अपने काॅलेज बैंगलूर जा रही थी तो अपने पापा से कह रही थी, पापा, ’’अब आपकी बेटी इंजीनियर बनकर ही लौटेगी। अब आप चांदनी के नहीं बल्कि इंजीनियर चांदनी के पिता कहलायेंगे।’’

उस समय आर्यन के साथ-साथ भूमिका की आंखों में भी खुशी के आंसू तैरने लगे थे। आर्यन और भूमिका चांदनी को हमेशा की तरह उस दिन भी स्टेशन छोड़ने गये। उसे टेªन में बैठाया और जब टेªन स्टेशन से बहुत दूर निकल गयी तो वह वापस अपने घर आ गये।

दूसरे दिन सुबह को अपने आॅफिस जाने से कुछ देर पहले आर्यन ने चांदनी को फोन करके पूछा कि वह कहां तक पहुंची है, तो चांदनी ने बताया था कि बस दो-ढाई घण्टे का सफर और रह गया है, उसके बाद वह बैंगलूर पहुंच जायेगी। आर्यन ने कहा, ‘‘ठीक है, जब हाॅस्टिल पहुंच जाओ तो फोन करके बता देना कि तुम पहुंच गयीं।

शाम को आॅफिस से घर आने के बाद आर्यन ने भूमिका से कहा, ‘‘भूमिका, चांदनी का फोन आया था ? वह ठीक से हाॅस्टल पहुंच गयी थी न ?’’

‘‘हां, अभी कुछ देर पहले ही उसका फोन आया था। कह रही थी कि सफर की थकान की वजह से वह सो गयी थी इसलिए वह फोन नहीं कर पायी थी।’’

‘‘ठीक है, मैं उससे बात करता हूं।’’ कहकर उसने चांदनी को फोन मिलाया लेकिन चांदनी का फोन स्वीच आॅफ था, तो आर्यन ने भूमिका से कहा, ‘‘भूमिका, चांदनी ने अपना फोन स्वीच आॅफ क्यों कर रखा है, देखो न मैं उसे कितनी देर से मिला रहा हूं। हर बार एक ही जवाब मिल रहा है, कि जिस नम्बर से आप सम्पर्क करना चाहते हैं, वह अभी स्वीच आॅफ है ?’’

‘‘हां तो उसने स्वीच आॅफ कर लिया होगा, इसमें इतना परेशान होने की क्या बात है, थोड़ी देर बाद करके देख लेना।’’ कहकर भूमिका ने आर्यन के हाथ में चाय का प्याला पकड़ा दिया और दोनों चाय पीने लगे। उसी समय आर्यन के फोन पर फोन आया कि चांदनी हाॅस्टल की सीढ़ियों से गिर पड़ी है, उसकी हालत सीरियस है। आप जल्दी बैंगलूर आ जाइये।’’

इतना सुनते ही आर्यन के तो पैरों के नीचे से जमीन खिसक गयी। उसके हाथ से चाय का प्याला छूट कर दूर जा गिरा। भूमिका भी दहाड़ मारकर रोने लगी। उसकी चीख-पुकार सुनकर पास-पड़ोस के लोग इकट्ठा हो गये। सभी उन दोनों को समझाने और तसल्ली देने में लग गये।

वहां से दो घण्टे बाद बैंगलूर के लिए सीधी टेªन थी। आर्यन और भूमिका उसमें सवार हो गये। पड़ोस के दो और लोग उनके साथ उनकी मदद के लिए चले गये।

चांदनी के हाॅस्टल पहुंचते ही आर्यन एकदम शाॅक्ड हो गया और भूमिका बेहोश होकर वहीं जमीन पर गिर गयी, क्योंकि उन्हें वहां चांदनी नहीं, उसका पार्थिव शरीर मिला। हाॅस्टल मैनेजर मिस्टर गर्ग ने बताया कि उन्हें जैसे ही पता चला कि चांदनी हाॅस्टल की सीढ़ियों गिर गयी है, वैसे ही वह उसे हाॅस्पिटल ले गये। लेकिन हाॅस्पिटल में डाॅक्टर ने चांदनी को देखकर कहा, ‘‘सीढ़ियों से गिरने की वजह से चांदनी के दिमाग की नस फट गई और उसकी डेथ हो गई। ...‘‘साॅरी मिस्टर आर्यन, आपको अपनी बेटी खो देने का हमें बेहद अफसोस है। सचमुच बहुत होनहार बेटी थी आपकी।’’

आर्यन हाॅस्टल मैनेजर मिस्टर गर्ग की बात के उत्तर में कुछ नहीं कह पाये। कहते भी तो क्या कहते...? उनकी तो दुनिया ही लुट चुकी थी, जिस चांदनी को उन्होंने गोद में खिलाया था, वहीं आज उनके कंधों पर जा रही थी, ऐसी स्थिति में कोई किसी से क्या कहता...? बड़ी मुश्किल से उन्हें और भूमिका को सम्हाला।

इतना सबकुछ याद आते ही आर्यन की चीख निकल पड़ी और वह चांदनी ऽ ऽ ऽ करके जोर से चीखा तो पास में सो रही भूमिका की आंख खुल गयी। उसने आर्यन को सम्हालते हुए कहा, ‘‘क्यों चीख रहे हो, हमारी चांदनी अब इस दुनिया में नहीं है। वह भगवान् के पास चली गयी।’’

‘‘नहीं भूमिका, हमारी चांदनी मरी नहीं है, वह तारा बन गयी है। वो देखो आसमान में जो दो तारे दिखायी दे रहे हैं न, उनमें से एक तारा हमारी चांदनी है। यह बात अभी-अभी चांदनी ने मुझे बतायी थी।’’

आर्यन की बातें सुनकर भूमिका के सीने में भी हूक-सी उठने लगी, उसका भी मन हुआ वह जोर से रो दे, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकी, क्योंकि आर्यन को तसल्ली देने लिए वह थी, पर उसे तसल्ली देने वाला कौन

था...?

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