Lahrata Chand - 10 in Hindi Moral Stories by Lata Tejeswar renuka books and stories PDF | लहराता चाँद - 10

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लहराता चाँद - 10

लहराता चाँद

लता तेजेश्वर 'रेणुका'

10

सूफी और अवन्तिका एक ही क्लास में पड़ते थे। पढ़ाई के लिए कभी अवन्तिका सूफी के घर तो कभी सूफी को अनन्या के घर आना जाना रहता था। दोनों के घर के बीच की दूरी को देखते साहिल को कभी कभार अवन्तिका के घर छोड़ने के लिए तो कभी सूफी को घर लाने के लिए जाना पड़ता था। वह अनन्या का अच्छा दोस्त रहा है अबतक। पर समय कब किसे किससे मिला देता है कब किस से अलग कर देता है किसे मालूम। जब कभी अनन्या के बारे में सोचता है तो उसे लगता है, "काश की अनन्या भी उससे प्यार करती।" फिर खुद को समझा लेता, "क्या पता अनन्या क्या सोचती होगी उसके बारे में? या कभी सोचती होगी भी या नहीं?" इस तरह वह अपने दिल की बात न किसी से कह पाता था न ही अनन्या को अनदेखा कर पाता था। ये प्यार का रिश्ता ही कुछ यूँ होता है। भुलाए नहीं भूलता कहने को नहीं बनता। बस दिल की बातें दिल में दबाकर वह अनन्या का एक अच्छा दोस्त बनकर रहा।

अनन्या और साहिल ऑफिस से निकल रहे थे कि गौरव पीछे से 'हाय फ्रेंड्स' कह कर पहुँचा।

- हाय गौरव ।" हाथ मिलाते हुए सहिल और अनन्या को देख उसने कहा - कहीं डिस्टर्ब तो नहीं किया।

- अरे नहीं डिस्टर्ब करने वाली बात क्या होगी? अभी तुम्हारी ही बातें हो रही थी।

- अच्छा! मुझे भी मिशन हफ्ता वसूली के बारे में कुछ फैसला लेना था। आप दोनों को देख बात करने के लिए यही सही समय लगा इसलिए इधर चला आया।"

- कहो गौरव ।" अनन्या ने पूछा।

- ऐसे नहीं चलो कहीं बैठते हैं।"

गौरव इधर उधर देखा। कुछ ही दूरी पर एक बरगद पेड़ के नीचे एक चाय स्टाल दिखी। उसी जगह कुछ कुर्सी रखी गई थी। गौतम ने कहा, "चलो वहाँ बैठते हैं।"

तीनों चाय स्टाल के सामने पड़े बेंच पर बैठे। गौरव ने तीन चाय के लिए कहा।

- अब बताओ गौरव क्या बात है?" अनन्या ने पूछा।

गौरव ने कहा, "अनन्या तुम्हारे कहे अनुसार हम भिवंडी बाजार गए थे और पूछताछ की पर वहाँ के लोगों ने उस सम्बन्धित कुछ भी खबर देने से इनकार कर दिया। उन्हें डर था कहीं उन गुण्डों को पता चलेगा तो उनका जीना दूभर हो जाएगा। कोई कुछ भी कहने के लिए राज़ी नहीं हुआ। डर के मारे सब चुप रहे।

- तो अब क्या करें? कैसे उस सम्बंधित खबर को बाहर लाया जाए ?"

साहिल ने कहा, "हाँ, इसी बात पर ही तो हम अभी बात कर रहे थे।"

तब गौरव ने कहा - मैंने कुछ रिकॉर्ड करके ले आया हूँ। हो सकता है कुछ काम आ जाये।

- क्या मैं वह टेप सुन सकती हूँ?" अनन्या, गौरव से पूछी।

- हाँ, जरूर। गौरव ने जेब से बैटरी टेप रिकॉर्डर को निकालकर टेबल पर रखा। तभी चायवाला, चाय ले कर आया। चाय की चुस्कियों के साथ तीनों शान्ति से टेप सुनने लगे। टेप बंद करते हुए गौरव ने कहा, "अनन्या क्या हमें इस छोटे-से विवरण को लेकर पत्रिका में लिखना चाहिए?"

अनन्या सोच में पड़ गई फिर कहा, "नहीं पत्रिका में छापने के लिए इतना विवरण काफ़ी नहीं है। हमें और सबूत इकट्ठा करना पड़ेगा। जब तक पक्की खबर नहीं मिलती तब तक हम को इंतज़ार करना होगा। हम इस खबर को अभी नहीं छाप सकते।"

गौरव उस टेप को पॉकेट में रखते हुए कहा, "ठीक है, फिर एक बार कोशिश कर देखते हैं, हो सकता है कि कुछ बड़ी खबर मिल जाए।"👍👍👍👍

अनन्या ने कहा, "इस बार मैं भी चलती हूँ।

साहिल अनन्या को मना करते हुए कहा - नहीं अनन्या तुम नहीं। तुम नहीं जाओगी, ये कोई छोटी बात नहीं हैं। वो गुंडे बड़े ही खतरनाक हैं। हम जाएँगे और कुछ न कुछ खबर इस बार ले कर ही आएँगे।"

वह जानता था अनन्या किसी भी विषय की ठान लेती है तो उसकी छान बीनकर किस्से को ख़त्म किये बिना नहीं छोड़ती, चाहे उसके जान पर ही क्यों बन आये। बहुत ही जिद्दी व हठी लड़की है। अब तक कई ऐसे मुश्किलों का हल निकालकर शाबासी बटोर चुकी है। जो भी कार्य एक बार मन में ठान लेती है उसे ख़त्म कर के ही दम लेती है।

- साहिल मैं चली जाती हूँ उनसे भी मिल आऊँगी जिन्हें पिछले बार मैं अस्पताल में छोड़ आई थी।" अनन्या चेयर से उठते हुए कहा ।

- नहीं अनन्या तुम अवन्तिका को सँभालो। इस बार अंजना को लेकर जाएँगे अंजना रहेगी तो हो सकता है औरतें कुछ कहने के लिए हिम्मत करेंगे। अगर फिर भी कामयाब न हो पाए तो अगली बार तुम साथ चलना।

अनन्या ने सोचते हुए कहा -" ठीक है। मेरे ख्याल से ये सही है।"

- "ठीक है फिर अब चलते हैं, शाम होने लगी है।" कहकर अनन्या उठकर खड़ी हुई। मीटिंग वहीँ ख़त्मकर तीनों अपने-अपने रास्ते चल दिये।

*****

दूसरे दिन जब अनन्या ऑफिस पहुँची साहिल गौरव और अंजना हिडन कैमरा, पॉकेट टेप व अपने-अपने कैमरा मोबाइल के साथ तैयार थे। अनन्या के पहुँचते ही गौरव ने कहा, कहाँ रह गई अनन्या हम तुम्हारे लिए इंतज़ार कर रहे थे। फ़ोटो लेकर आई?"

- एक मिनट अभी देती हूँ।" कह कर अनन्या अपनी हैण्ड बैग में से एक फ़ोटो निकल कर दिया।

"ठीक है, अब हम निकलते हैं।" वे सब निकलने को तैयार हुए।

अनन्या ने कहा, "आल द बेस्ट दोस्तों, आज काम पूरा करके ही आना।"

- यस।" कहकर तीनों निकल गए। साहिल अपने बाइक पर, अंजना व गौरव एक बाइक पर सवार होकर आगे बढ़ गए। कुछ देर उनके जाने की ओर देखकर अनन्या अपनी सीट पर बैठकर पत्रिका के लिए मैटर तैयार करने लगी।

###

भिवंडी बाजार में काफ़ी भीड़ थी। शनिवार 11.30 बजे का वक्त था। लोग सामान खरीदने में व्यस्त थे। तीनों दोस्तों कुछ दूर गलियों में भटकने के बाद गली के कोने एक चाय के दूकान में खड़े चाय के लिए कहा। तीनों की कड़ी निगाह बाजार के लोगों पर थी।

गौरव ने चायवाले से पूछा - आज बाजार बहुत शांत लग रहा है।"

- शांत, बाबूजी अभी रुकिए और देखिए कैसे चीज़ें उड़ने लगेंगी।

- क्या मतलब?" गौरव ने संशय जाहिर किया।

- शांति कहाँ है बाबूजी, रोज़-रोज़ की गुंडागर्दी से तंग आ चुके हैं। एक दिन भी ऐसा नहीं कि किसी पर जुर्म न हुआ हो। हमें तो आदत पड़ गई है। दूकानदारी करनी है तो ये भी सहना पड़ेगा।

"फिर आप लोग शिकायत क्यों नहीं करते?" तभी अंजना ने चुपके से अपना कैमरा चालू कर दिया।

- "क्या करें बाबूजी मजबूरी है, पेट का सवाल है। अगर लुटेरों को पैसा नहीं दिया तो आग भी लगा देंगे, कौन झुलसेगा आग में? चुपचाप इनके जेब गर्म करने के अलावा और कोई अन्य चारा नहीं।"

"आप इतने सारे लोग दो चार गुंडों से डरते हो? अंजना गुस्से में पूछ बैठी।

- मैडम ऐसे लोगों से जूझने से अच्छा चुप बैठना है। यहाँ अगर बेपार(बिज़नेस) करना है तो इनकी मनमानी सहनी पड़ती है। सिर्फ इतना ही नहीं इनकी नज़र किसी लड़की पर पड़ी तो खैर नहीं, बर्बाद करके रख देंगे। अंजना ने चोट खाई शेरनी की तरह देखा। तब कुछ लोग उस बाज़ार में प्रवेश करते दिखे।

- स्, चुप हो जाओ, बस देखती जाओ। कह कर उन्हें चुप रहने का इशारा किया। तीनों अपने मोबाइल और कैमरा चालू कर छुपा लिए।

कुछ ही समय हुआ था अचानक एक दुकान से कुर्सी उड़कर रास्ते पर आ गिरी। चाय की दूकान पर इंतज़ार करते साहिल अंजना और गौरव के कैमरे चालू हो चुके थे। अलग-अलग एंगल में रिकॉर्डिंग हो रही थी।