The Last Murder - 8 in Hindi Crime Stories by Abhilekh Dwivedi books and stories PDF | The Last Murder - 8

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The Last Murder - 8

The Last Murder

… कुछ लोग किताबें पढ़कर मर्डर करते हैं ।

अभिलेख द्विवेदी

Chapter 8:

आशुतोष के जाते ही उसके पीछे, शहनाज़ थी जिसके चेहरे पर इंतज़ार बहुत देर से दस्तक दे रही थी । आज फिर उसके हाथों में एक अलग किताब थी जिसपर फिर वो शायद उसके ऑटोग्राफ़ चाहती थी । सोशल मीडिया पर जुड़े रहने से भी संविदा से थोड़ा लगाव हो चुका था । वीक में या तो पोस्ट्स के कमैंट्स में या फिर एक-दो बार इनबॉक्स में बातें हो जाती थी । संविदा भी शहनाज़ को पहचान चुकी थी । लेकिन आज ताज्जुब हुआ कि उसकी जुड़वा बहन पिनाज़ नहीं आयी थी ।

"आज तुम अकेले हो? पिनाज़ क्यों नहीं आयी?" संविदा ने मुस्कुराते हुए पूछा । अभी उसने ऑटोग्राफ़ नहीं दिया था, शायद उसे पिछली बार की बात याद थी ।

"वो कहीं नहीं जाती । बस घर पर बैठकर किताब पढ़ती है, जब भी कहीं जाना होता है तो मुझे ही निकलना होता है ।"

"तो, फिर उसका भी नाम लिखूँ या सिर्फ उसी का?" संविदा की स्माइल में शरारत थी ।

"आप तो दोनों से मिल चुकी हैं, जिसका सही लगे उसका लिखिए, पढ़ना तो दोनों को है!"

"बात तो सही है, ये क्या लायी हो साथ में अपने? फिर पिछली बार जैसा कुछ किया है क्या?" संविदा को जानने की इच्छा थी कि इस बार वो क्या लेकर आयी है । ताज्जुब था पिछली बार पिनाज़ ऐसा कुछ लेकर नहीं आयी जबकि उसके हिसाब से वो संविदा को ज़्यादा फॉलो करती थी ।

"एक्चुअली पिनाज़ आपकी किताब के पन्नों को कलेक्ट करती है, तो उसने दिया था कि इसपर आपके ऑटोग्राफ़ ले लूँ, आप कर देंगी?" शहनाज़ ने दिखाते हुए पूछा । उसमें एक झिझक भी थी ।

"क्यों नहीं करूँगी? लाओ ज़रा देखूँ ।" संविदा ने देखा तो बस 4-5 ही पन्ने थे । उसने मुस्कुरा कर फिर से शहनाज़ को देखा और उस कलेक्शन के पहले पन्ने पर पिनाज़ को संबोधित करते हुए अपना ऑटोग्राफ़ दे दिया ।

"ये तो बहुत अलग स्टाइल से उसने सजाया है । मेरी तीन नॉवेल से उसने चुने हुए पन्ने उठाकर ऐसे लगाया है जैसे एक ही कहानी के पन्ने हैं । ग़ज़ब का टैलेंट है उसमें!" संविदा ने उसे वापस देते हुए कहा ।

"तभी तो हक से कहती है कि वो आपको सबसे ज़्यादा फॉलो करती है । बहुत ज़्यादा आपसे लगाव है ।" शहनाज़ ने जवाब दिया ।

"तो उसे बोलना अगली बार खुद आये और इसे आगे बढ़ाये । मुझे अच्छा लगा ऐसा काम देखकर ।" संविदा ने प्यार वाली हिदायत दी थी । संविदा ने भी सबकुछ समेटा और जैसे ही जाने के लिए मुड़ना चाहती थी, उसने देखा कि संविदा अपनी बाँहें खोलकर उसे गले लगने का न्योता दे रही है । ऐसे मौके कौन चुकेगा? बस, झट से गले लगाया और फिर विदा लिया ।

इसके बाद कुछ अनजान चहेरे थे लेकिन उनके हावभाव से ऐसा लगता था जैसे वो संविदा को काफी दिनों से जानते हैं । कुछ ने पुरानी किताब की तारीफ की, किसीने इस बार के पहल की तारीफ की, किसी ने पढ़े गए कंटेंट को सराहा । इन सब से संविदा को एक सुकून का एहसास हो रहा था लेकिन उसे ऐसा लग रहा था कोई है जिसे वो मिस कर रही है, कोई है जो आज नहीं आया, कौन है वो इसका उसे ध्यान नहीं हो रहा था । काफी कोशिश की लेकिन ना शक्ल ध्यान में आ रहा था और ना ही नाम । इतने में रंजीत सामने नज़र आ गया ।

"पता नहीं आपको याद हो या ना हो लेकिन राइट टू पब्लिश के कैंपेन में मैंने भी अपनी कहानियाँ डाली थी, मेरा नाम रंजीत नेगी है ।" रंजीत ने मुस्कुराते हुए अपना एक परिचय-सा दिया ।

"अच्छा । मुझे इतना ध्यान नहीं है, लेकिन आप शायद पिछली बार बुक-लॉन्च में आये थे?" संविदा ने भी जवाब में मुस्कुराहट को रखा लेकिन एक सवाल भी आगे कर दिया था ।

"हाँ, दरअसल उसके रिजल्ट के बाद लगा था कि किसी भी ऐसे कंपीटिशन में भाग ही नहीं लेना चाहिए जहाँ सब कुछ बैक-डोर से चलता हो । लेकिन आपने एक के बाद एक किताबें लाकर ये साबित कर दिया कि टैलेंट है तो किसी कंपीटिशन के रिजल्ट पर मत सब छोड़ दो । आपकी पहली किताब मैंने कुछ दिन पहले पढ़ी है और दूसरी किताब सबसे पहले पढ़ी थी ।

"शुक्रिया आपका । अच्छा लगा अपने लिए सुनकर वो भी किसी राइटर से ।" संविदा ने ऑटोग्राफ़ दे दिया था लेकिन किताब अभी भी उसी ने पकड़ रखा था ।

"अच्छा है, यूँ ही लिखते रहिये । कभी मौका लगे तो मेरी किताब 'इश्क फकीरा' पढ़ियेगा । आपने कुछ दिन से इंस्पायर किया है तो मैंने भी अपनी अगली कहानी शुरू कर दी है, नाम और किरदार आपका है ।" बात खत्म करते हुए रंजीत के चेहरे पर एक हल्की मुस्कान थी जैसे कोई उम्मीद अपने पूरे होने का इंतजार कर रही हो ।

रंजीत ने अपने हाथ आगे बढ़ाए हुए थे । इंस्पायर शब्द सुनते ही संविदा को सबसे पहले सुमोना का ध्यान आया लेकिन वहाँ से ध्यान जैसे ही हटाया तो देखा कि उसे रंजीत को किताब देना भी है । उसने तुरंत किताब को आगे बढ़ाया और उसे देखती रही । उसे अच्छा भी लग रहा था और अजीब भी कि कैसे कहीं कोई बिना बताए, बिना जाने किसी और से खुद को जोड़ लेता है और एक कहानी लिख डालता है । संविदा ने मन ही मन खुद से एक वादा किया कि वो रंजीत को अगली कहानी में मौका देगी ।

फिलहाल तो प्रोमिता अपने मौके का इंतजार कर रही थी । काफी एक्साइटेड भी लग रही थी ।

"अरे वाह यार, तुमने तो जो बोला था वो कर दिखाया । तीनों में मर्डरर फीमेल और वो भी इतनी क्रुएल, माई गॉड । किताब पढ़कर लगता नहीं किसी फीमेल ने लिखा होगा लेकिन मज़ा आ गया, आई स्वेअर ।" प्रोमिता ने अपनी एक्साइटमेंट को बरकरार रखते हुए अपनी बात कही ।

"अच्छा है आपको याद है और उससे भी अच्छी बात है कि आपको पसंद आयी, शुक्रगुज़ार हूँ ।" संविदा ने थोड़ा फॉर्मल होते हुए कहा ।

"लेकिन अब कुछ नया लाइये । फिर से मेल का डेथ फीमेल के हाथ से दिखाइये । मुझे देखना है वो पहले वाले से कितना क्रुएल हो सकता है ।"

"वो तो मैं करूँगी ही लेकिन अपने और अपनी कहानी के हिसाब से । आप पढ़कर बताइएगा कि कैसा लगा ।" लगता है संविदा को थकान ने घेर लिया था वो वाक़ई में ज़्यादा बात करने के मूड में नहीं थी ।

"श्योर! मैं पढ़कर सोशल मीडिया पर फीडबैक शेयर करूँगी । आप प्लीज़ कमेंट ज़रूर करना । वैसे मैं एक नॉवेल लिख रही हूँ और उसपर आपका फीडबैक चाहिए कि अब तक कैसा लिखा है ।"

"ठीक है, मेल कर दीजिएगा ।" और उसने अपनी ऑटोग्राफ्ड कॉपी प्रोमिता की तरफ बढ़ा दी ।

उसके जाते ही संविदा ने इशारा किया और उसने ब्रेक ले लिया । हालाँकि अंकिता वहीं थी और उसकी सब पर नज़र थी । उसे शायद ऐसा लगा कि कल की बात से संविदा उससे नाराज़ है और आमने-सामने ना होने के लिए संविदा ने ये ब्रेक लिया है । लेकिन इससे अंकिता को कोई फर्क नहीं पड़ता । वो भी वहाँ से निकलकर सीधे रॉबिन से मिलने चली गयी और वहाँ संविदा पहले से थी । रॉबिन नहीं था ।

"संविदा अगर तुम कल की बात से नाराज़ हो तो मैं उसके लिए सॉरी बोल रही हूँ लेकिन मैं एक जॉर्नलिस्ट हूँ । मुझे खबरों को लिखने से पहले उसे कुरेद कर देखना होता है कि इसमें कुछ गहराई है या सिर्फ सतही ।" अंकिता ने चेयर पर बैठते हुए तुरंत अपनी बात पूरी कर दी ।

"आप को जहाँ मन करे वहाँ नाक घुसा कर जो सूँघने का मन करे, कीजिये लेकिन मेरी लाइफ में मत घुसिए । किसी से भी नाम जोड़ने की कोशिश, किसी और की ज़िन्दगी के साथ करें, मेरी नहीं ।" संविदा गुस्से से लाल हुए जा रही थी और ये बात उसने बिना नज़र मिलाए कही थी । वो शायद उसकी शक्ल नहीं देखना चाहती थी लेकिन अंकिता की नज़र उसके चेहरे पर ही थी । तभी रॉबिन की भी एंट्री हुई ।

"कौन किससे किसको जोड़ रहा है भाई!" रॉबिन ने शायद पूरी बात नहीं सुनी थी । अंदर आते हुए उसने ये सवाल बेतरतीबी के साथ पूछा था । वो अपने चेयर की तरफ बढ़ा बैठने के लिए, चेहरे पर स्माइल थी और मूड कुछ रिलैक्स्ड था । शायद आज की सेल अच्छी हुई थी ।

"अंकिता को लगता है कि मेरा और आपका कोई चक्कर है ।" संविदा ने बिना देर किए उसी तेवर में अपनी बात कह दी । इस बात पर लेकिन रॉबिन ज़ोर से हँसने लगा । बाकी दोनों थोड़ा अवाक थे कि किसी ने कोई जोक तो शेयर किया नहीं, फिर अभी इतनी हँसी की कौन सी बात हुई है ।

"देखो अंकिता, मसाला खबरों के लिए अब तुम किसी राइटर और पब्लिशर को जोड़ोगी तो किसी को मज़ा नहीं आएगा । बाकी रिलेशन ज़रूर है लेकिन मसाले वाला नहीं, इसलिए ये सब में मत पड़ो । ये लो नयी नॉवेल की कुछ कॉपीज़, प्लीज़ इस बार रिव्यूज़ थोड़े ज़्यादा और अच्छे आने चाहिए । एडिटर सर को मैंने 'गिफ्ट्स' भिजवा दिए हैं तो सब सेट है ।" रॉबिन ने थोड़ा रौब से ये बात कही थी ।

"रॉबिन मेरा काम है मसालेदार बातें लिखना । मैंने कल संविदा से बस इतना ही पूछा था कि तुम दोनों में कुछ चल रहा है और उसी बात से ये नाराज़ हो गयी । इसे समझाओ कि…"

रॉबिन ने उसे तुरंत ही बीच में टोक दिया ।