सूट-बूटधारी वह व्यक्ति ब्रीफकेस लेकर तेजी से बाहर निकला, उसकी हड़बड़ाहटसे स्पष्ट जान पड़ता था कि ब्रीफकेस में कोई बेहद कीमती माल है, जिसे लेकरवह तुरंत सुरक्षित स्थान पर पहुंचना चाहता है.
सड़क पार करके वह अपनी नीली कार तक जा पहुंचा. भीतर बैठ कर भीब्रीफकेस को वह हाथों में थामे ही रहा. ड्राइवर को उसने घड़ी की ओर देखते हुएकहा, ‘‘चलो, तेज चलाओ.’’
नीली कार काली सड़क पर अंधेरे का सीना चीरते हुए आधे घंटे तक दौड़ती रही. फिर एक आलीशान कोठी के सामने आकर रूक गई.
कोठी के गेट पर लगी नेमप्लेट पर लिखा था-डॉ. चंद्रबली यौधेय, डाइरेक्टर, राष्ट्रीय विज्ञान संस्थान.
ब्रीफकेस लेकर डॉ. चंद्रबली सीधे अपने कमरे में घुस गए. रोज की तरह कॉफी केलिए अपनी बेटी को आवाज न देकर उन्होंने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया.
इस वक्त घड़ी रात के आठ बजा रही थी. ब्रीफकेस खोल कर उन्होंने एक मैलीपुरानी , खाकी-पीली फाइल निकाली और उसे बड़ी संतुष्टि तथा लालसा सेदेखने लगे. सचमुच बड़ी मेहनत से उनके हाथ लगी थी यह फाइल, इसलिए इसेपढ़ डालने को वे बेताब हो उठे थे. एकमात्र खुली खिड़की को भी उन्होंने बंद करदिया और कुर्सी पर आ बैठे. फिर फाइल खोल कर पढ़ने लगे. फाइल शायदइतनी रोचक या महत्त्वपूर्ण थी कि वे भूख-प्यास तक भूल गए. बाहर से पत्नी केदरवाजा खटखटाने पर भी उन्होंने उठ कर दरवाजा नहीं खोला. बस, वहीं सेआदेश दे दिया कि दो-तीन घंटे तक उन्हें बिल्कुल परेशान न किया जाए.
रह-रह कर घड़ी ने नौ, दस और ग्यारह घंटे बजाए. लेकिन डॉ. चंद्रबली ने इसबीच एक बार भी फाइल से आंखें नहीं हटायीं. कई बार उन्हें घुटन-सी ज़रूरमहसूस हुई और इच्छा हुई कि दरवाजे-खिड़की खोल दें, पर न जाने क्यों, वे ऐसान कर सके.
फाइल को तीन-चौथाई पढ़ लेने के बाद उन्हें सिर भारी-सा लगने लगा. शरीर परसुइंयों जैसी चुभन भी उन्होंने महसूस की. पर फिर भी वे पढ़ते चले गए कि मालूमनहीं कब, फाइल उनके हाथ से निकल जाए. वे चाहते थे कि फाइल की जानकारीजितनी जल्दी मिल जाए, उतना ही अच्छा है.
साढ़े बारह बजे घड़ी ने एक घंटा बजाया. उसके तुरंत बाद ही कमरे की बाहरीदीवार पर चिपका एक चमगादड़ चिंचिया उठा.
डॉ. चंद्रबली कांप उठें. लेकिन उनके कांपने की वजह चमगादड़ की चिंचियाहटनहीं, बल्कि फाइल का आखिरी पन्ना था.
खूनी लाल स्याही से लिखा आखिरी पन्ना उन्हीं को संबोधित था. वे थरथराते हुएउसे पढ़ने लगे-
डॉ. चंदबली मैं जानता था कि किसी-न-किसी दिन मेरी दूसरी फाइलों की तरहइस फाइल को भी तुम हड़प लोगे. लेकिन इस बार यह फाइल मेरी हत्या करकेही तुम्हारे हाथ लगी होगी और तुम सोच रहे होगे कि एक और आविष्कार करनेका श्रेय तुम्हें मिलने जा रहा है. यदि ऐसा सोचते हो, तो तुम गलती पर हो. क्योंकितुम इस दुनिया में अब थोड़ी ही देर के मेहमान हो. कमीज उतार दो. तुम्हें पसीनाआ रहा होगा. दरअसल, तुम एक घेरे के अंदर फंस चुके हो,जहां से तुम नहीं, तुम्हारी लाश ही बाहर निकल सकती है.
डॉ. चंद्रबली उठ खड़े हुए. दो कदम आगे बढ़ कर देखा-सचमुच एक अदृश्य -सीमोटी अभेद्य दीवार उनके चारों ओर घेराबंदी बनाए हुए है. अंडे के भीतर चूजे कीतरह असहाय थे वे इस वक्त, पसीने से भीगी कमीज उतार कर वे अभेद्य दीवारको मुक्कों से पीटने और चिल्लाने लगे. पर कोई फ़ायदा नहीं. हार-थक कर फिरसे वापस वे फाइल पर झुक गए. आगे लिखा था-
-डॉ. चंद्रबली, तुम वैज्ञानिकों के नाम पर कलंक हो. हम वैज्ञानिकों की खोजों कासारा श्रेय हमेशा तुम स्वयं लेते रहे हो. विज्ञान संस्थान के डायरेक्टर पद कादुरूपयोग करके तुमने कितने वैज्ञानिकों को आत्महत्या करने को बाध्य किया है.
-सारा देश तुम्हें महान वैज्ञानिक और महान आविष्कारक के रूप में जानता है. देश-विदेश के कितने ही सम्मान-पुरस्कार तुमने प्राप्त किए हैं, पर तुम इनके योग्यनहीं थे. धोखाधड़ी और मक्कारी की सजा यदि मौत है, तो आज इसके ही हकदारहो तुम और मौत अब तुम्हारे बहुत करीब आ चुकी है. तुम्हारे चारों ओर कसे घेरेकी दीवारें धीरे-धीरे अंदर की ऑक्सीजन को सोख रही हैं. सांस लेने में अब तुमअसुविधा महसूस करने लगे होंगे!
पिछले दिनों, न जाने कैसे, तुम्हें मालूम चल गया था कि मैं विद्युतधारा द्वारामस्तिष्क की ग्राह्यता में वृद्धि कर बुद्धि बढ़ाने की एक आश्चर्यजनक खोज मेंसफल हो गया हूं. बस, तभी से तुम मेरे पीछे पड़ गए. संस्थान के अपने केबिन मेंबुला कर और घर में चाय पर निमंत्रित करके मीठी-मीठी बातों में तुमने इसका भेदलेना चाहा था. उसमें असफल होने पर तुमने मेरे घर चोरी करवायी. एक बार एकबदमाश भी कई दिनों तक मेरे पीछे लगवाए रखा. ... खैर, तुम इसमें भी सफल नहुए. लेकिन मैं समझ गया कि तुम्हारे मनुष्य-रूपी भेड़िए के मुंह खून का स्वाद लगचुका है. और अब तुम पीछे हटनेवाले नहीं हो. तुम कभी-न-कभी मेरे नएआविष्कार का फॉर्मूला हथियाने में सफल अवश्य हो जाओगे. इसलिए तुम्हेंसबक देने के लिए मैंने यह एक और आविष्कार किया.
डॉ. चंद्रबली का मुंह लाल हो चला था. आंखें फैल कर बड़ी हो गई थीं और हाथ-पैर अजीब ढंग के जकड़े महसूस हो रहे थे. हर क्षण प्रतीत होता था कि फेफड़ेफट कर बाहर आ जाएंगे. बाहर कोई दरवाजा खटखटा रहा था. आवाज तो नहीं, पर हां, वे दरवाजे के जोरों से हिलने को स्पष्ट देख रहे थे. सोच रहे थे कि अगरदरवाजा टूट जाए, तो शायद वे अब भी बचा लिए जाएं.
मृत्यु ने आकर थपथपाया, तो ज़िंदगी में कि सारे गुनाह, अन्याय, अनाचार उन्हेंयाद हो आए. वे बुद्धिशाली अवश्य थे, पर इतने नहीं कि देश-विदेशों के पुरस्कारोंकी बौछार उन पर होती. इस फाइल के लेखक परिश्रमी वैज्ञानिक डॉ. हृदयनारायण की हत्या उनकी आंखों के सामने नाच उठी. भयभीत होकर उन्होंनेफिर फाइल पर आंख टिका दी और आगे पढ़ने लगे-
-डॉ. चंद्रबली, इस फाइल के हर पन्ने को तुमने, यानी तुम्हारे जैसे जड़ मस्तिष्कवाले व्यक्ति ने साढ़े सात मिनट तक खोले रखा होगा. कोई बुद्धिमान वैज्ञानिकस़िर्फ तीन मिनट में इसके एक पृष्ठ को पढ़ और समझ सकता है. बाकी के साढ़ेचार मिनट में तुमने अपनी मौत को निमंत्रण दिया है. इस फाइल के हर पन्ने परमैंने एक ऐसे रसायन का लेप किया था, जो तीन मिनट बाद एक प्रकार के विषैलेअणुओं का विकिरण करता है. वे अणु अपने से चार फुट की दूरी पर एक-दूसरे सेचिपक कर एक अदृश्य मजबूत दीवार के निर्माण की प्रवृत्ति रखते हैं.
-मैं समझता हूं, मेरा प्रयोग अवश्य सफल होगा और तुम्हारे साथ ही तुम्हारेकुकृत्यों का भी अंत निश्चय ही हो जाएगा. बस, इतनी ही है, मेरी बात,
तुम्हारी मौत का आकांक्षी-डॉ. हृदयनारायण.
डॉ. चंद्रबली की आंखें पथरा गई. और सांस जाने कहां घुट कर मर गई.
रात को एक बजे डॉ. चंद्रबली की पत्नी एवं बेटी ने दरवाजा तोड़, कमरे में प्रवेशकरके देखा कि वे मेज पर एक फाइल के सामने मृत पड़े है. फाइल पर ताजीस्याही से लिखा था-भगवान मुझे माफ करे!
(मेला)
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