Own Prison - 2 in Hindi Moral Stories by Sudha Adesh books and stories PDF | अपने-अपने कारागृह - 2

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अपने-अपने कारागृह - 2

अपने-अपने कारागृह- 1

अजय को बिहार कैडर मिला था । उसकी पहली पोस्टिंग समस्तीपुर में हुई थी । समस्तीपुर पोस्टिंग के कारण वह ससुराल में कुछ ही दिन रह पाई थी । उसकी सास क्षमा ने उसे ढेरों हिदायतें देते हुए उसे अजय के साथ भेज दिया था । हर मां की तरह मम्मी जी भी उसकी गृहस्थी बसाने उसके साथ जाना चाहती थी पर अजय के पापा अनूप ने उन्हें यह कहकर जाने से रोक दिया कि उषा समझदार है वह सब संभाल लेगी । दरअसल वह नहीं चाहते थे कि नव युगल के बीच में कोई और आये । यह समय एक दूसरे को समझने का होता है जितना अकेले रहेंगे उतनी ही जल्दी वे आपस में सामंजस्य स्थापित कर पाएंगे वैसे भी अपनी घर बाहर की जिम्मेदारी के कारण मम्मी जी का उनके पास ज्यादा दिन रुक पाना संभव ही नहीं था ।

प्रारंभ में उषा को अपनी गृहस्थी बसाने में परेशानी आई थी पर अजय के सहयोग से सब व्यवस्थित होता गया । यद्यपि वह विभागीय ट्रेनिंग के कारण अति व्यस्त रहा करता था पर घर आने पर उसका पूरा समय उसी का था । इसके अतिरिक्त चाहे सब्जी जले या रोटी वह उसकी बनाई हर चीज बड़े ही चाव से खाता था । अजय के मित्र तो उसकी बुद्धि , वाक् चातुर्य एवं पाककला के प्रशंसक थे ही । एक बार दीपावली पर आई मम्मी जी ने भी जब उसके बनाए खाने तथा घर की व्यवस्था की प्रशंसा की तब उसे लगा कि वह सचमुच सुघड़ गृहणी बन गई है ।

अभी 2 वर्षीय हुए थे कि उसकी कोख में किसी के आने की दस्तक सुनाई पड़ी । वह घबरा गई कैसे संभाल पाएगी वह स्वयं को तथा आने वाले शिशु को ? पर 2 महीने पूर्व मम्मी जी ने आकर उसे इस स्थिति से उबाल लिया था । पदम ने जब जन्म लिया तो वह और अजय खुशी से ओतप्रोत थे । मम्मी जी ज्यादा दिन रुक नहीं सकती थीं अतः उन्होंने उसकी सहायता तथा पदम की देखभाल के लिए शांति को रख लिया था ।

दरअसल बच्चे की देखभाल के लिए उन्हें एक आया चाहिए जानकर उनका अर्दली गोपाल अपनी बेटी को लेकर आया तथा कहा,' मेम साहब यह मेरी बड़ी बेटी शांति है । यह बाल विवाह है । हमारी जाति बिरादरी में दूसरा विवाह नहीं होता अगर आप चाहें तो इसे अपनी सेवा के लिए रख सकतीं हैं । मैं इतना अवश्य आपको विश्वास दिलाता हूँ कि यह आपको कभी निराश नहीं करेगी ।

लगभग 15- 16 वर्ष की वह लड़की सीधी-सादी और साफ-सुथरी लगी अतः मम्मी जी ने ठोक बजा कर उसे पदम की देखभाल के लिए रख लिया । मम्मी जी 15 दिन उसके साथ रहीं । इन 15 दिनों में ही उन्होंने बच्चे से संबंधित सारी बातें शांति को समझा कर उसे निपुण कर दिया था । सच शांति ने उसे कभी निराश नहीं किया । सबसे अच्छी बात यह थी कि जब अजय का दूसरी जगह स्थानांतरण हुआ तब भी गोपाल ने शांति को उसके साथ जाने से नहीं रोका तथा वह भी खुशी-खुशी उसके साथ चली आई थी ।

कुछ ही दिनों पश्चात अजय को जिले का चार्ज मिल गया अजय की व्यस्तता के साथ उसकी भी व्यस्तता बढ़ती गई । कभी किसी सामाजिक समारोह का आमंत्रण तो कभी लेडीज क्लब तो कभी ऑफिसर क्लब की मीटिंग या गेदरिंग ...। इन सबके बीच एक बार फिर उसे अपनी कोख में हलचल महसूस की । अभी पदम ढाई वर्ष का ही था पहले तो वह परेशान हुई पर फिर सोचा कि पदम का एक साथी तो होना ही चाहिए । समय के साथ रिया का जन्म हुआ । छोटे बच्चों की जिम्मेदारी के कारण उसकी सोशल एक्टिविटी कम हो गई थी पर फिर भी जहां जाना अति आवश्यक होता वह अवश्य जाती थी । वह जानती थी कि शांति के पास उसके दोनों बच्चे सुरक्षित हैं ।

इसी बीच अजय का दूसरी जगह ट्रांसफर हो गया जगह बदल जाती हैं पर सुख सुविधाएं तो एक सी ही रहती हैं । अब तो उसे खाना भी नहीं बनाना पढ़ता था । घर के अन्य कामों के लिए नौकर थे ही तथा बच्चों की देखभाल के लिए शांति । उसके हर आदेश का आनन-फानन में पालन होता था । यद्यपि बचपन से ही वह सुख सुविधाओं में पली बढ़ी थी पर फिर भी अजय के पद के कारण मिलती सुख-सुविधाओं ने उसे सुपिरियालिटी कॉम्प्लेक्स से ग्रस्त कर दिया जिसके कारण वह न जाने कब और कैसे एवं डोमिनेटिंग होती गई, उसे स्वयं ही पता न चला !! अपने स्वभाव तथा कुछ समयाभाव के कारण उसका ससुराल जाना तो कम हुआ है मायके जाना भी कम होता गया ।

यह सर्वविदित सत्य है रिश्ता तभी पनपता है जब विचारों का आदान-प्रदान हो , आपस में समरसता हो, एक दूसरे के सुख -दुख में सम्मिलित होने की चाहना हो , जहां चाहना नहीं ,लालसा नहीं ,रिश्ते नहीं, वहां संबंध महज दिखावा बनकर रह जाते हैं । इसके विपरीत अजय ने सदा रिश्तो का सम्मान किया था । अपनी व्यस्तता के कारण अगर वह जा नहीं पाता था तो फोन के द्वारा ही सबकी कुशल क्षेम लेता रहता था ।

कभी-कभी उसकी मम्मा उससे इस संदर्भ में कुछ कहती तो वह सहजता से बच्चों के कारण व्यस्तता का बहाना बनाकर टाल दिया करती थी और मां का दिल उसकी हर गलती को क्षमा करने के लिए तैयार रहता पर फिर भी वह कहने से नहीं चूकतीं, ' बेटा , माना तेरे पास समय नहीं है पर फोन तो कर ही सकती है संबंधों में बहुत दिनों तक अबोला संबंधों को रसहीन बना देता है ।

सुधा आदेश

क्रमशः