सीमा पार के कैदी 8
बाल उपन्यास
राजनारायण बोहरे
दतिया (म0प्र0
8
उधर अभय दुकान के बाहर तख्त पर लेटा हुआ करबटें बदल रहा था। अभय का संकेत मिलते ही वह उठ बैठा और एक कोने की ओर बड़ गया।
अभय ने उसे बताया कि रिकॉर्ड रूम के तीसरे रेैक के दूसरे खाने में चौदह नम्बर फाइल में हिन्दुस्तानी कैदियो का पूरा विवरण मौजूद है।
फाईल की पूरी स्थिति समझकर अभय रेस्टोरेंट की ओर लौटा। तख्त के नीचे उसने दिन में कुछ मिठाई छिपा कर रखी थी, वह निकाल ली।
अपने थैले में से एक शीशी निकालकर उसकी दवा उसने मिठाई पर छिड़की। वह मिठाई और थैला हाथ में लेकर विदेश विभाग के कार्यालय की बाउन्ड्री दीवार के पास पहुँचा।
अन्दर पाँच खूंखार कुत्ते अहाते में घूम रहे थे।
अजय ने एक पत्थर उठाकर अंदर फेंका। कुत्ते भोंकते हुये उधर लपके। अजय ने मिठाई का दोना हाथ में लिया और उचक कर दीवार पर चढ़ गया।
कुत्ते उसकी ओर देखने लगे। अजय ने मिठाई का एक टुकड़ा फेंका जिसे एक कुत्ते ने लपक लिया, दूसरे की ओर दूसरा टुकड़ा, तीसरे की ओर तीसरा इस प्रकार से उसने पांचों कुत्तों को मिठाई खिला दी। मिठाई खाते ही कुत्ते अपनी जगह बैठते चले गये। कुत्ते कभी-कभी अब भी भोंक उठते थे मगर उसे भोंकना नहीं रोना कहना चाहिये।
अजय ने अहाते में उस ओर आती पदचाप सुनी। उसने उचक कर झाँका एक पहरेदार चला आ रहा था। अजय नीचे झुक गया। जब पहरेदार निकट से निकल गया तो अजय उछलकर अहाते की दीवार पर चढ़ा और नीचे कूद गया। कूदने की हल्की सी आहट हुई थी । पहरेदार ने यह आवाज सुनी तो वह एकदम पलटा, तब तक अजय उठकर उसकी ओर झपट चुका थां । अजय के हाथ के वजनदार थैले का जोरदार प्रहार पहरेदार की खोपड़ी में हुआ, वह चीखना ही चाहता था कि अजय ने उसका मुंह जकड़ लिया।
पहरेदार को आराम से लिटाकर अजय इमारत की ओर लपका। रिकोर्ड रूम पीछे वाले हिस्से में पड़ता था। अजय उधर ही बड़ा और दीवार की ऊपर की ओर ताकने लगा। बाथरूम का पानी लाने वाला एक पाईप ऊपर से नीचे आ रहा था।
तभी फिर पदचाप गूँजी, अजय अंधेरे में सिमट गया।
दूसरा पहरेदार निकट से निकलता चला गया।
अजय ने अपना कार्यक्रम बदल दिया, वह जमीन पर लेट गया ओर अहाते में लगे रोशनी के खम्बे की ओर खिसकने लगा। जमीन से सटते हुये वह तेजी खिसकता हुआ खम्बे के निकट जा पहुँचा। खम्बे की लाईट का स्विच नीचे ही लगा था, वहीं पास में एक प्लग पिन था। अपने थेले में से एक तार निकालकर अजय ने प्लक के दोनों छेदों में डाल दिया। एक झटके की आवाज हुई और सारी इमारत की लाईट चली गई।
अजय निश्चिंतता से उठा और वापस इमारत के पीछे आकर वहीं खड़ा हो गया जहां कुछ देरपहले खड़ा था। उसने पाईप पकड़ा और उछलता हुआ पाईप पर चढ़ा।
कुछ देर बाद वह पाईप के सहारे ऊपर चढ़ता जा रहा था।
चारों ओर घुप अंधेरा।
अजय ने महसूस किया कि बाहर तो कई चौकीदार थे, अंदर केवल दो चौकीदार थे, जो लाईट जाते ही बाहर की ओर यह बोलते हुये चले गये ‘‘ क्या हुआ भाई, आखिर क्या मांजरा है?’’
अजय छत्त पर जाकर पाईप से उतरा और सीड़ियों के रास्ते नीचे उतरने लगा। उस ने एक बार फिर दोनों चौकीदारों को बाहर जाते देखा।
अजय दिन में रिकॉर्ड रूम का भूगोल भली-भांति देख आया था।
पहली मंजिल पर आकर वह सीधा रिकॉर्ड रूम की ओर बढ़ा।
रिकोर्ड रूम के दरवाजे पर एक बड़ा सा ताला लगा था। अजय ने जेब से एक विचित्र तार निकालकर ताले में फंसा दिया। यह मास्टर चाबी थी, विशेष ढंग से उसे घुमाते ही ताला खुल गया। किबाड़ खोलकर अजय भीतर प्रविष्ट हुआ और किबाड़ ज्यों के त्येां भिड़ा दिये । अब उसने पेंसल टार्च जलाई ।
तीसरे रैंक के दूसरे खाने में उसने टार्च स्थिर की और फाईल नम्बर चौदह निकाली। फाइल में ऊपर वाले पृष्ठ पर ही उन सैनिकों के फोटो थे जिन्होंने हिन्दुस्तानियों केा गिरफ्तार किया था। नीचे वाले पेजों में हिन्दुस्तानियों के नाम फोटो और हिन्दुस्तान के सारे पते लिखे थे। कम से कम डेढ़ सौ पृष्ठों की वह मोटी सी फाइल हजारों अबोध हिन्दुस्तानी नागरिकों, बच्चों और स्त्रियाँ के नाम और फोटों संे भरी हुई थी।
अजय ने फाइल हाथ में लेकर रैक का दरवाजा, उसका ताला यथावत लगाकर, रिकॉर्ड रूम बंद किया, एवं बाहर की ओर बड़ा।
इमारत के सभी पहरेदार कार्यालय के बिजली रूम की ओर थे। केवल एक पहरेदार गेट पर खड़ा था।
अजय इमारत के पीछे की ओर खिसकते हुए वाउण्ड्री बाल के पास पहुंच और कुछ क्षणों के बाद वह अहाते के बाहर खड़ा हुआ था।
आहिस्ता-आहिस्ता चलता हुआ वह उस तख्त की ओर बढ़ा जिस पर कि वह अभी तक सेाता रहा था। एक पल को वह रूका । कुछ सोचकर वह पलटा और अपने होटल अली वाबा के रास्ते पर चल पड़ा।
उधर अभय लौट रहा था। उसे मुख्य सड़क पर आते ही एक ऑटो मिल गया था जिसे उसने होटल अली बाब जाने का पूछा तो इतने बड़े होटल का नाम सुन कर उसने बिना किसी पूछताछ के अभय को बिठा लिया था।
काफी रात गये दोनों होटल पहुँचे। विक्रांत का अता-पता कही नहीं था। काउन्टर से चाबी प्राप्त कर दोनों कमरें में जाकर सो गये।
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