bagi atma 9 in Hindi Fiction Stories by रामगोपाल तिवारी (भावुक) books and stories PDF | बागी आत्मा 8

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बागी आत्मा 8

बागी आत्मा 8

आठ

प्रिय आशा-

मैं यह नहीं जानता था कि चिर-मिलन के स्वप्नों में जुदाई की घड़ियां भी होती हैं। आप लोग हर बात में मुझे ही दोशी मानेंगे। पर सच मानो आशामैंने उसकी हत्या जान बूझकर नहीं की। उसकी बन्दूक उठ़ा लेने का मेरा मात्र इरादा था। देवीयोग से ठीक वक्त पर वह दरवाजे पर आ गया। मैं अपने ऊपर होने वाले हमले को टालना चाहता था। बन्दूक का ट्रिगर दब गया। खून की प्यासी गोली ने अपनी प्यास बुझाली ं ं ं फिर तो मुझे वहां से भागने की पड़ी।

सोच रही होगी कि मैं किन परिस्थितियों मंे पल रहा हूँ। यह सब जानने को तुम बेचैन होगी। थोड़े दिनों में ही मैं एक छोटे से दल का बागी सरदार बन गया हूँ। पहले चार-पांच दिन तक भूखों मरा। अब यहां कैसे रहना होता है ? यह अच्छी तरह जान गया हूँ। ऐसा अहसास हो रहा है कि इन बीहड़ों में सारा जीवन निकाला जा सकता है।

मैं सोच रहा हूँ ,अब तुम इन बीहड़ों में रहने क्यों तैयार होगीं। तुम्हें अब और कहीं अपनी व्याह कर लेना चाहिये। मेरी क्या ? मेरी तो किस्मत में ही भटकना लिखा है।

मेरा बागी बनने का उद्देश्य एक राव वीरेन्द्र सिंह की हत्या करने से पूरा नहीं हो जाता। मैं अब ऐसे सुरक्षित स्थान पर हूँ, जहां सरकार भी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती। अब तो एक बागी को पथ दिखाने वाला चाहिये, जिससे मैं समाज को कुछ दे सकूं। लोगों को दिखा सकूं सच्चे बागी कैसे होते हैं।

मैंने जो पत्रवाहक तुम्हारे पास भेजा है, यह मेरा विश्वासपात्र है। इससे गंगा क्रिया हुई है। हम लोग गंगा क्रिया में अधिक विश्वास करते हैं। माताजी, एवं पिताजी एवं तुम चाहो तो इन जंगलों में घूमने फिरने चली आओ। मेरे चाचाजी और चाचीजी को समझा आना। वे अपना ध्यान रखें अब मेरी चिन्ता करने की जरूरत नहीं हैं।

मेरा साथी तुम्हारे सामने पहुंचेगा। पहले-पहल तुम उसे देखकर डर जाओगी, बाद में शायदउसी के साथ यहां आओ। इसी आशामें ं ं ं । माता-पिता जी को चरण छूना। पत्र पढ़ने के बाद फाड़ने के जला देना, पास मत रखना।

तुम्हारा अपना

माधव

पत्र पढ़ने के बाद उसे एक नजर फिर उस आदमी पर डाली। वह बन्दूक लिये था। चेहरे पर बड़ी मूछें। भयानक चेहरा। आशाउसे बैठक में ही छोड़ स्वयं माता पिता के पास अन्दर आई। पत्र पढ़कर सुनाया। और बोली -‘मेरी तो इच्छा हो रही है मैं वहां न जाऊं।

बात सुनकर गंगाराम बोला- ‘नहीं बेटी माधव क्या सोचेगा ? आदमी सुख में चाहे साथ न दे पर दुःख में अवश्य साथ देना चाहिये।‘

षान्ति बोली- ‘मेरी बेटी जंगलों में कहां फिरेगी ?’

बात सुनकर गंगाराम बोला- ‘इस काम के होने से पहले माधव से शादी हो गई होती तो ं ं ं ?‘

‘किस्मत के लेख को कोई नहीं मेट सकता।‘

‘तो तुम बाप-बेटी जानो, मुझे क्या है ? वैसे वह उसे क्यों मारता। उसने मन्दिर में उसे छेड़ दिया। आदमी है खून सवार हो गया।

‘यही सोचकर तो मैं मना नहीं कर पा रहा हूँ। अब जो हो आशाहै तो माधव की ही।‘

षान्ति पुनः बोली-‘ठीक है तो भेज दो आशा को ं ं ं ।‘ इस बात के बाद तो आशा को लगने लगा आशा का यह घर छूट रहा है। उसे शान-शौकत से पति के घर जाना चाहिए था किन्तु वह जा रही है पति के घर, रात के अंधेरे में चोरी-छिपे।

माधव का दल एक योजना बना रहा था। वीरू कह रहा था, इतने बड़े सेठ को लूटना खेल नहीं है सरदार। माधव ने इसका उत्तर बड़े प्यार से दिया -‘वीरू जब लूटना ही है तो बड़े सेठों को लूटो, बड़े-बड़े नेताओं को लूटो आई0 ए0 एस0 अफसरों को लूटो।’

बात सुनकर वीरू बोला - ‘इससे तो सरकार हमारे पीछे पड़ जायेगी।‘

‘वीरू हम सरकार से जूझने को तैयार हैं‘

‘तो फिर ?‘

‘आज हमला वहीं करो जहां मैं कहता हूँ। मैं भी साथ रहूँगा।‘

‘सरदार सरदार ज्यादा पीछे पड़ जायेगी, यहां मौज में अपना जीवन काटो, साथी बहादुर ने समझाते हुए कहा।

‘यार बहादुर हम बागी हैं। हम मरने के लिए बागी बने हैं। जो न्याय हमें समाज और कानून से नहीं मिल सका। उसे हम सब ने उस न्याय को अपनी बन्दूक से लिया है।‘

‘वीरू बोला - ‘समाज की व्यवस्था ही भ्रश्ट है चोर को साहूकार कहती है और साहूकार को चोर।‘

‘यही तो हमारा विद्रोह है। गरीब और अधिक गरीब होते जा रहे हैं। पूंजीपति पूंजी तिजोरियों में बन्द करते जा रहे हैं। जीने की वस्तुओं पर पूंजीपतियों का अधिकार है। न्याय खरीदा जाता है।‘

बात सुनकर बहादुर बोला-‘अरे न्याय होता कहां है अदालतें बिकी हुई हैं। कानून को तोड़मोड़ कर लोगों ने उसे अपने अनुकूल बना लिया है।‘ हम बागी हैं वीरू ! व्यवस्था से विद्रोह हमारा काम है। इसलिए अधिक सोचो मत,े जाकर तैयार हो।‘

ब्हादुर ने प्रश्न किया सरदार हम सब चल रहे हैं लूटने पर कुछ हाथ न लगा तो।‘

‘तो बहादुर उस सेठ के बच्चे को पकड़ कर लाना है।‘

बीच में एक साथी बोल पड़ा-‘जा धन्धों तो बड़े तगड़ो है। जामें अपनी सुरक्षा भी है।‘

इसी समय एक खद्दरधारी व्यक्ति का उनके परिसर में प्रवेश-

उसे देखकर माधव बोला- ‘तो तुम कर रहे हो मुखबरी।‘

‘हां सरदार।‘

‘ध्यान रखना कहीं धोखा तो ं ं ं।

‘अरे नहीं सरदार, मुझे उससे बदला लेना है। उसने मुझे सरपंची के चुनाव में हरवाया था।‘

‘धोखा हुआ तो हमारी सजा जानते हो।‘

‘हां हां क्यों नहीं जानता ? भड़ाम मौत ं ं ं ।‘

‘मौत से नहीं डरते ?‘

‘मौत से डर तो भगवान को भी लगता होगा।‘

‘उसकी बात सुनकर माधव थोड़ा-सा मुस्कराया और बोला- ‘बहादुर ं ं ं। समय हो गया चलो।‘ कहते हुए माधव उठ खड़ा हुआ।‘

वीरू बोला -‘सरदार सुना है आज वो आ रहीं हैं और आप ं ं ं।

‘यार, तब तक तो वापिस लौट आयेंगे। शायद वे कल तक आयें कहते हुए आगे बढ़ गया।

डकैती डालकर सभी सकुशल लौट आये थे। सभी बागी मस्त होकर जोर-जोर से बातें कर रहे थे। माधव और बहादुर में बातें चल रहीं थीं। माधव बहादुर से कह रहा था - कहो बहादुर आज मैं तुम्हारे साथ न होता तो ं ं ं तो ं ं ं सरदार सब-के-सब मारे गये होते।

‘ रे! फिर मेरी शादीका जश्न कौन मनाता।‘

‘आपने जाकर पहले उस सेठ की बन्दूक को जा दबोचा, नही ंतो ससुरा कुछ करामात जरूर दिखाता। और हां, शादी वाली बात कुछ समझ में नहीं आई।

‘बहादुर आज वे आ रही हैं, हम अभी अविवाहिहत हैं।‘

‘तब तो खूब मजा मौज छानने को मिलेंगे।‘

‘बहादुर ये कैसा जीवन है ?‘

‘जीवन क्या ? रोज रोज मौत से जूझना।‘

‘बहादुर हम मौत से नहीं डरते। हमारा जीवन ही मौत से जूझ कर चलता है, फिर भी उस झूठे सामाजिक जीवन से अच्छा है, जिसमें आदमी न्याय के नाम पर अन्याय करता है। झूठ को सच और सच को झूठ साबित करना मामूली बात है। जो दिखो हैं वह गलत दिखता है जो सुना जाता है। वह भी गलत ही होता है।

‘सरदार आज आप कहना क्या चाहते हैं ?‘

यही कि इन पूंजीपतियों को मारने से मुझे कोई कश्ट नहीं होता। हां, यदि कोई गरीब न मारा जाये।उनकी रक्षा करना हमारा फर्ज है। इस गरीब वर्ग को आज तक सभी ने चूसा है।

‘हां बहादुर दीन दुखियों को सताना ठीक नहीं है फिर हमें भगवान भी कभी नहीं माफ करेगा।‘

‘लेकिन सरदार ये जो आप दया दिखा रहे है, हम बागियों के लिए वह मौत की निशानी है।‘

‘यार बहादुर मौत ं ं ं मौत ं ं ं मौत जबकि आज तो तुम्हें मेरे व्याह की व्यवस्था करना है। मौत की बातें ऐसे शुभ समय पर बन्द कर दी जाये।

कुछ रूककर।

‘आज वो यहां आ जायेगी। व्याह की तैयारी करना शुरू कर दो।

‘वो न आई तो।‘

‘यह नहीं हो सकता बहादुर वे जरूर जायेगीं। जरूर जायेंगी।

‘यह सुनते हुये बहादुर वहां से चला गया।‘