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अब बताओ बहनजी,हुआ क्या है, सास ने तुम्हारी सेवा की या तुमने सास की ?
धर्मशीला की आँखों में बङी देर से रोके हुए दो मोती प्रकट हो गये । भाभी ने कमर पर हाथ फेरकर दिलासा दिया तो एक बार फिर उसकी रुलाई फूट पङी । भाभी जितना चुप कराती, उतना ही गंगा - जमना हर हर करती बहती जाती । सुबकते सुबकते उसने बताया – भाभी वहाँ रोज माँस पकता है ।
भाभी धम से जमीन पर बैठ गयी - हे भगवान । बीबी फिर । तू पाँच दिन भूखी प्यासी बैठी रही । खाया पीया नहीं । घरवाले नराज नहीं हुए । भाऊजी ने भी कुछ नहीं कहा ।
धर्मशीला ने सारी आपबीती कह सुनाई ।
मैं बात करती हूँ तेरे भाई से । चल उठ नहा धो ले । कुछ खा ले । बाकी किसी से बात करने की कोई जरुरत नहीं है । फालतू में तमाशा बनेगा ।
भाभी से बात करके धर्मशीला फूल सी हल्की हो गयी । वह नहाई । नया जोङा पहना । जी भरके रोटियाँ खाई । फिर चरखा कातने बैठ गयी । पर फूलारानी को चैन कहाँ । सोच में पङ गयी । किसे बताए , कैसे बताए । आखिर रहा नहीं गया तो वह अपनी सास के पास गयी । उसे सारी बात बताई । सास ने सुरसती को और शाम होते होते सारे घर को पता चल गया । प्रीतम ने सुना तो सिर धुन लिया - पता नहीं इस लङकी के भाग में क्या लिखा है । पहले तो तकसीम का टंटा । जल्दबाजी में जैसा वर - घर मिला, रिश्ता करना पङा । सोचा था, पटवारी का इकलौता बेटा मिल गया । हवन के धुँए में भी आहुति सही जगह पङ गयी । तभी वो भगदङ मच गयी । खेत खलिहान, घर द्वार सब छूट गया । सारा बनाबनाया जहेज छोङ घर के रोज बरतने वाले भाण्डे, बिस्तर भी वहीं धरेधराए रह गये । जान बचा के यहाँ चले आये । तो दो साल तक वे पाकपटनिए ही नहीं मिले । ढूँढ कर बङी मुश्किल से बात सिरे चढाई । इतने उपवास, मन्नतें, पीर फकीर मनाये, ऐसे लोगों के लिए । लङकी अपने हाथों डुबो दी । पर होनी तो घट चुकी । बदली कैसे जाय । अब क्या हो सकता है ।
वह दिन जैसे तैसे बीत गया । फिर दूसरा दिन, तीसरा दिन । सरस्वती अक्सर बेटी को सतियों को कहानियाँ सुनाती । अनुसुया, सावित्री, सुकन्या जिसने अपने सत से च्यवन ऋषि को बूढे से युवा कर लिया । सुलभा जो अपने कोढी पति को कंधे पर बैठा वैश्या का गाना सुनाने ले जाती । भाभियाँ अलग अपने तरीके से समझाती । दिन बीतते रहे । धीरे धीरे घर से उदासी गौरेया की तरह फुदक कर उङ गयी । सब सामान्य हो गया । डेढ महीना बीत गया कि एक दिन डाकिया पोस्टकार्ड थमा गया । फागुन की तीज को हम दो आदमी बहु को विदा कराने आ रहे हैं । दो दिन रुक कर पंचमी को विदा लेंगे । समधी विदाई की तैयारी रखें ।
तीज तो परसों ही है । इतनी जल्दी । राशन, सब्जियाँ आने लगी । पकवान बन कर थाल में सजने लगे । कपङे आए । और फिर लिवैया आ पहुँचे । चाचा भतीजा दोनों बिदा कराने आए थे । परिवार ने जी भर उनका सत्कार किया । विदा करते हुए प्रीतम ने हाथ जोङ दिए – अभी बच्ची है । गल्ती हो जाए तो माफ कर देना । हमारे घर में ये सब बनता नहीं है न, सो बच्ची बहुत डरी हुई है । अब आप संभाल लेना । और बेटी घर से विदा हो गयी ।
शाम होते न होते प्रीतम को बुखार हो आया । छोटे मोटे घरेलु नुस्खों और तुलसी की चाय का कोई असर नहीं हुआ तो मंगला एक वैद्य को बुला लाई । वैद्य ने नब्ज देखी । पीलिया के लक्षण देखे तो गन्ने का रस,मूली का पथ्य और नमक,हल्दी का परहेज बता कर दवाई की पुङियाँ दे गया । सुबह शाम नियमित दवा खिलाई गयी पर हालात पहले से बिगङते चले गये । बीस दिन में वह चारपाई से लग गया । गोरा चिट्टा रंग एकदम हल्दी हो गया । हड्डियां निकल आईं । परिवार के लोग समझाते – भाग्य में जो लिखा हो वही मिलता है । तुम अपने आप को दोष देना बंद करो पर प्रीतम के मन से दुख न गया । सरस्वती अपनी टी बी भूल कर पति की सेवा में लग गयी । दूध की कच्ची लस्सी बना कर पिलाती । कभी गन्ने की गंडेरिया करके देती । घर चलाने के लिए वे एक गुरद्वारे में सुबह शाम पाठ करने जाने लगी । बदले में पाँच रुपए महीना मिलता । वहीं उसकी भेंट कोहाट से आई जयदेवी से हुई जो अरदास कर रही थी कि रब उसे इतनी समर्था दे कि किसी एक परिवार को एक टैम का खाना खिला सकें ।
यह लोग कोहाट के शाह थे । वहाँ सैंकङों और हजारों का लेनदेन था । गाँव में शायद ही कोई आदमी था जो इनका करजाई न हो । पर बँटवारे ने अर्श से फर्श पर ला खङा किया । जयदेवी ने अपनी चूङियाँ उतार कर देदी । उनसे कङाई खुरचने, परात जैसे बरतन खरीदे गए । घोसियों से दूध मँगा कर दूध बेचना शुरु किया । कुछ दूध की दही जमा दी जाती । मिट्टी के कुल्हङों में जब गरम दूध या सजाव दही दी जाती तो लेनेवाला खुश हो जाता । काम चल पङा तो खोया और बरफी भी बनकर बिकने लगी ।
जयदेवी को जब इस परिवार के बारे में पता चला तो हंदा इनके घर भेजने लगी । इस तरह ये परिवार अपना गुजारा कर रहा था कि महीना बीतते न बीतते प्रीतम की आत्मा ने शरीर का साथ छोङ दिया । पहले ही परेशानियों से जूझते लोगों के लिए यह वज्रपात था ।