Ankaha Ahsaas - 5 in Hindi Love Stories by Bhupendra Kuldeep books and stories PDF | अनकहा अहसास - अध्याय - 5

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अनकहा अहसास - अध्याय - 5

अध्याय - 5

तो फिर क्या सोचा आप लोगों ने ? अनुज के पिता ने पूछा।
मैं अनुज से मिलना चाहता हूँ। रमा के पिता ने कहा।
अच्छा मैं उसको बुलाता हूँ कहकर उन्होंने अनुज को फोन कर अंदर आने को कहा।
तभी एक स्मार्ट, गोरा चिट्टा, ऊँचा पूरा लड़का अंदर आते दिखा।
आओ अनुज। अनुज के पिता ने कहा।
अनुज आया और रमा के माता-पिता का पैर छुआ।
बैठो बेटा। देखो आप दोनों की खुशी में ही हमारी खुशी है। इसलिए हम सभी इस रिश्ते से सहमत हैं। रमा के पिता ने कहा।
अनुज ने रमा की ओर देखकर आँखें ऊचकाई। रमा शरमा गई। वो खुशी से भर गई थी।
और अनुज की माताजी ? रमा के पिता ने पूछा।
चिंता मत करिए वो भी एग्री हो जाएगी। अनुज के पिता ने कहा।
ठीक है फिर हम पंडितजी से बात करके मुहुर्त तय करते हैं फिर आपको सूचित कर देंगे। रमा के पिता ने कहा।
ठीक है फिर हम लोग चलतें हैं आप सभी को बधाई, अनुज के पिता ने यह कहकर विदा ली।
वो बाहर आए और अनुज के साथ कार में बैठ गए। आज अनुज के लिए खुशियों भरा दिन था।
तुम खुश हो ना अनुज ?
हाँ पापा मैं बहुत खुश हूँ। ये सब आपकी वजह से है। वह अत्याधिक उत्साह में था।
और इसी उत्साह में उसने ध्यान नहीं दिया कि अचानक एक ट्रक अगली मोड़ से होते हुए उसके सामने आ गई। अनुज काफी स्पीड में था।
चीं................................ अनुज ने कार को बचाने के लिए हेंडल (स्टेरिंग) को पूरा घुमा दिया।
गाड़ी तेजी से स्कीड करतें हुए पलट गई। अनुज तो बच गया क्योंकि वो सीट बेल्ट पहना था पर उसके पापा कार के उस हिस्से में फस गए जो बुरी तरह कुचला गया था।
अचानक हुई इस घटना को देख आसपास के लोग दौड़कर आ गए। उन्होंने तेजी से अनुज को निकालने की काशिश की पर वो अपने एक हाथ को हिला नहीं पा रहा था। शायद उसका कंधा फ्रैक्चर हो गया था। वह भी अचेत था।
थोड़ी देर बाद नगर निगम की क्रेन आ गई और जब तक उसके पिता को निकाला गया तब तक उसके पिता के प्राण पखेरू उड़ गए थे।
दोनों को तत्काल पुलिस ने अस्पताल पहुंचा दिया।
तब तक अनुज की माँ और बहन को इसकी खबर लग गई थी।
अनुज की जब आंख खुली तो उसके बेड पर उसकी बहन बैठी थी।
पापा कहाँ हैं मधु। उसने आँख खोलते ही पूछा।
मधु रोने लगी। थोड़ी दूर में ही उसकी माँ भी चुपचाप बैठी थी।
क्या हुआ मधु बताओ ना ? पापा कहाँ हैं ?
पापा नहीं रहे भैया। मधु ने रोते हुए कहा।
क्या ? अनुज एकदम शाक्ड था। ये सब मेरी वजह से हुआ है मधु। कहकर वो जोर-जोर से रोने लगा। मुझे अभी उनको देखना है मधु कहाँ हैं वो।
तुम आराम करो अभी, रात काफी हो गई है, तुमको ही होश करीब आठ घंटे बाद आया है। कल करेंगे उनका अंतिम संस्कार।
रमा आई थी क्या मधु ? अनुज ने पूछा।
मैं तो पहचानती नहीं भैया उसको। काफी सारे लोग आए थे हॉस्पिटल में। शायद आयी हो।
ओ गॉड ये क्या हो गया। मैंने अपने पापा को खो दिया भगवान मुझे कभी माफ नहीं करेगा मधु भगवान मुझे कभी माफ नहीं करेगा। अनुज रो रहा था।
अपने आप को दोष मत दो भैया। नियति को कोई टाल नहीं सकता। ये घटना होनी थी इसलिए हो गई। इसमें आपका कोई दोष नहीं। मधु बोली। आप अपना दिमाग शांत रखो क्योंकि आपको ही पूरी जिम्मेदारी उठानी है।
इस बीच जब अनुज की सर्जरी हो रही थी तब रमा और उसके परिवार को भी एक्सीडेंट का पता चला और अपने माता-पिता सहित वो हॉस्पिटल आई।
आकर काऊंटर पर उन्होंने अनुज और उसके पिता के विषय में पूछा उस व्यक्ति ने अनुज की माँ की ओर इशारा कर दिया।
नमस्ते जी। रमा के पिता ने कहा।
नमस्ते,जी बोलिए। अनुज की माँ बोली।
जी आज सुबह आपके पति हमारे घर आए थे
ओह !! वो आपके यहाँ गए थे पर उन्होंने तो मुझे कुछ बताया नहीं था।
जी ये मेरी बेटी रमा है।
नमस्ते आँटी रमा बोली।
नमस्ते। तो कैसे गए थे आपके घर ?
वो रमा और अनुज के रिश्ते की बात करने आये थे।
क्या ?
हाँ वो अनुज के लिए रमा का हाथ मांगने आए थे।
मतलब अनुज और उसके पिता दोनों ने मुझसे ये बात छुपाई थी।
जी वो मैं नहीं जानता पर सच यही है। रमा के पिता ने कहा।
रमा तुम जरा उधर आओ मुझे तुमसे अकेले में बात करनी है। अनुज की माँ ने कहा।
देखो रमा तुम्हारे घर जाते ही मेरा दुर्भाग्य चालू हो गया। मेरे पति मर गए। तुमको तो अनुज ने बताया ही होगा कि मैंने उसके पिता से पैसे के लिए ही शादी की थी। वो मेरे लिए पैसे लुटाते थे, पर अनुज ऐसा नहीं है। वो तो अभी मुझसे चिढ़ता है तो शादी के बाद मेरी क्या इज्जत करेगा और यदि ऐसा हुआ तो मैं तुम दोनों को कोर्ट में घसीट दूँगी और सारा धन दौलत हथिया लूँगी। तुम मेरा दुर्भाग्य हो लड़की और किसी भी कीमत पर तुम्हें मैं उसके जीवन में आने नहीं दूँगी।
रमा ये सब बात सुनकर एकदम शाक्ड थी। उसने इस पक्ष के बारे में तो कल्पना ही नहीं की थी, वो स्तब्ध थी ये सब क्या से क्या हो गया।
तभी अनुज की माँ बोली -
तुम लोग यहाँ से चले जाओ, और भूलकर भी हमारे जीवन में दखल देने की कोशिश मत करो। अनुज के जीवन से एकदम दूर रहो, और हमारे घर की लड़ाई की वजह अगर नहीं बनना चाहती हो तो अनुज से ये सब कहने की जरूरत नहीं है। चुपचाप चली जाओ यहाँ से रमा के आँखें आसुओं से भर गयी। वो कुछ कहने की ही स्थिति में नहीं थी। वह अवचेतन मन से वापस मुड़ गई।
चलिए पापा। घर चलें। रमा ने भरे गले से कहा।
क्या हुआ बेटी ? बताओ ना।
घर चलिए पापा फिर बात करेंगे। अनुज को नहीं देखना है।
नहीं बस अब घर चलेंगे।
अच्छा ठीक है चलो।

क्रमशः

मेरी अन्य तीन किताबे उड़ान, नमकीन चाय और मीता भी मातृभारती पर उपलब्ध है। कृपया पढ़कर समीक्षा अवश्य दें - भूपेंद्र कुलदीप।