अर्थ पथ
प्रस्तावना
हमें परमात्मा ने एक निश्चित समय सीमा प्रदान कर अनंत शुभ कर्मो को करने के लिए धरती पर भेजा है। यह हम पर निर्भर करता है कि सीमित समय में अपनी बुद्धि, धैर्य, विवेक आदि का समुचित प्रयोग कर कैसे हम सफलता की ओर अग्रसर हो सकते है। मानव समाज में धन का महत्वपूर्ण स्थान है। समाज को समृद्धशाली एवं मजबूत बनाने के लिए वाणिज्य का महत्वपूर्ण योगदान है, ’वाणिज्य वस्ते लक्ष्मी।’ एक कुशल कुम्हार जिस तरह मिट्टी से सुंदर बर्तन या मूर्तियाँ बनाता है, उसी तरह एक कुशल व्यापारी या उद्योगपति, उद्योग के माध्यम से अपनी सृजन शक्ति द्वारा समाज के लिये नित नये रोजगार, आयाम तथा मूल्यों को जन्म देकर नये साधन एवं सुविधाएं उपलब्ध कराता है। वह अंश धारकों, क्रेताओं, उपभोक्ताओं, वित्तीय संस्थानों तथा सरकार की भी आर्थिक स्थिति मजबूत करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान देता है।
राष्ट्र अपने सैन्य बल से नही बल्कि अपने आर्थिक बल से बलवान बनता है। यदि देखा जाए तो एक सफल व्यवसायी अपनी सृजनशीलता से मातृभूमि की परोछ रूप से सेवा करता है, देश सेवा में उसका भी उतना ही बडा योगदान है जितना की सीमा पर तैनात जवान और खेत में कार्यरत किसान का है। यदि देश का युवा नौकरी तलाशने की बजाए अपना स्वयं का छोटा मोटा उद्योग शुरू करे तो देश बेरोजगारी, भुखमरी, आर्थिक संकट जैसी समस्याओं से उबरकर एक नयी ऊर्जा से विकास के मार्ग पर अग्रसर हो जायेगा। हमें किसी भी कार्य के प्रति समर्पित रहकर अपनी पूर्ण क्षमता का उपयोग करना चाहिए। जिस तरह बिना सही चाबी के कोई ताला नही खुल सकता, उसी तरह समझदारी, कर्तव्य निष्ठा, सही निर्णय लेने की क्षमता, ईमानदारी, करूणा आदि गुणों के बिना कोई भी कुशल उद्योगपति या व्यवसायी नही बन सकता।
अपने व्यवसाय की समझ, उत्पाद की गुणवत्ता का ज्ञान, प्रतिद्वंदियों से सामंजस्य कर्मचारियों के प्रति करूणा के साथ समुचित अनुशासन, सरकारी नीतियों, विभिन्न करों एवं कानूनों का विशद् अध्ययन, आने वाली विभिन्न परिस्थितियों से निपटने के लिये स्वयं को तैयार रखना, विषेष रूप से व्यवसाय की वित्तीय स्थिति को नियंत्रित रख कर भविष्य में कभी नुकसान की स्थिति भी आ जाये तो उससे उबरने के लिए एक अलग मद का निर्माण करना आदि उद्योगपति या व्यापारी की प्राथमिकता होना चाहिए। युवाओं को सर्वदा देश हित की भावना रखते हुए उद्योग, व्यापार को संचालित करते समय आय का एक हिस्सा समाजहित में स्त्रियों तथा पिछडे वर्गों की उन्नति के लिए खर्च करते हुए यह भावना होनी चाहिए की मैं समाज का रूपया समाज को ही लौटा रहा हूँ, यह चिंतन आपके जीवन को धन्य कर देगा।
- प्रशान्त बांगड़
ज्वाइंट मैनेजिंग डायरेक्टर
श्री सीमेंट लिमिटेड, कोलकाता
आत्म कथ्य
मेरे मन में यह चिंतन हमेशा रहता है कि आज हमारी नयी पीढी शिक्षा समाप्त करने के उपरांत उद्योग, व्यापार या नौकरी के माध्यम से अपने असीमित सपनो को पूरा करने हेतु पदार्पण करती है और इन्ही के माध्यम से अपने उज्जवल भविष्य हेतु संकल्पित रहती है। यह जीवन के कठिन संघर्ष का समय है। हमने इस पुस्तक के माध्यम से उनके जीवन में आने वाली कठिनाईयों से भरे टेढे मेढे रास्तों का परिचय कराते हुए उनसे निवारण का भी मार्गदर्शन देने का प्रयास किया है। मैं अपनी भावनाओं को स्वरचित कविता के माध्यम से आपके समक्ष रख रहा हूँ:-
संकल्प हो
कितना भी कठिन
फिर भी
संकल्पित रहे मन
तो निरन्तर प्रयासों से
सफलता पा जाएंगे हम
इसको पाकर
करना नही घमंड
वरना प्रगति जायेगी थम
समर्पित रहे
प्रभु चरणों में मन
कृपा से उनकी
भवसागर की वैतरणी
पार कर जायेंगे
अपने बुद्धिकौशल
और परिश्रम से
दैदीप्यमान नक्षत्र के समान
स्थान बनायेंगे
तप, त्याग और
तपस्या से
जनमानस के दिलों में
मान सम्मान पायेंगे और
प्रेरणा स्त्रोत बनकर
ब्रम्हलीन हो जायेगें।
जीवन की अनेक सत्य घटनाओं एवं अनुभवों को मैंने प्रस्तुत करने का प्रयास किया है और आशा है कि यह युवाओं के लिए सार्थक, मार्गदर्शक व प्रेरणादायक सिद्ध होगी। इस कृति में अभय तिवारी एवं देवेन्द्र सिंह राठौर का सहयोग प्राप्त हुआ जिसके लिए मैं उनका आभारी हूँ।
राजेश माहेश्वरी