कितनी अजीब बात है ना?
आलेख ने स़िर्फ दसवीं कक्षा ही तो पास की है और सिगरेट पीना भी शुरू करदिया.
वैसा पीता तो वह चोरी-छिपे ही है, पर खबर किसे नहीं?दीपू के सारे दोस्त जानतेहैं कि उसका भाई सिगरेट पीता है. और चुगलखोर पलाश ने तो इस आंटी, उसआंटी करके यह इतिहास पूरे मोहल्ले तक फैला दिया है.
स्कूल मास्टर जी ने भी पिछले दिनों पिता जी के नाम एक चिट भिजवायी थी किआलेख भैया गंदे लड़कों की संगति में रहते हैं और उन्होंने एक बार उसे सिगरेटपीते हुए रंगे हाथ पकड़ा भी है.
मां ने तो उस दिन चीख-चीखकर सारा घर ही सिर पर उठा लिया था, पर पिता जीशांत बने रहे थे. न तो पहले की तरह उन्होंने अपना गांठदार काला बेंत उठाया थाऔर न ही गुर्राये थे. बस एक संयत गंभीर स्वर में उन्होंने इतना ही कहा था, ‘‘ बेटेआलेख, तुम सिगरेट पीते हो, इसका मुझे इतना अफसोस नहीं, किंतु इसे छिपानेके लिए कभी झूठ का सहारा मत लेना. और हां, किसी दिन अगर सिगरेट पीनाछोड़ दो, तो मुझे एक बार बता देना. तुम्हारी तरह मैं भी एक बार भटका था. सोकोई बात नहीं है यह. अब जाओ.’’
आलेख आंखें मटकाता हुआ चला गया अपने कमरे में. उसे उम्मीद न थी कि पिताजी इतनी आसानी से छोड़ देंगे. सो उसके लिए तो सुविधा हो गयी. अब वहबेखटके धुंआ उड़ाने लगा. एक तरह से यह पिता जी की स्वीकृति ही तो थी.
अब तो दीपू भी उसे दो-एक बार पान की दुकान पर खड़े देख चुका था.
हफ्ते-भर बाद पिता जी ने पूछा था, ‘‘ आलेख, कितनी सिगरेट पीते हो एक दिनमें?’’
आलेख चुप रहा.
‘‘बोलो बेटे! मैं न तो तुम्हें डांट-फटकार रहा हूं और न ही मारपीट करने जा रहा हूं. बस तुमसे सच सुनना चाहता हूं. जिसका तुमने वादा किया है.’’ पिता जी अपनेस्वर में मिठास लाते हुए बोले.
‘‘तीन ’’ ‘‘ आलेख को यह बतलाने में खासा प्रयत्न करना पड़ा.’’
‘‘ कमबख्त कहीं का... ’’ मां उबल पड़ी, ‘‘ तभी तो मुंह से भक-भक बदबू छोड़तारहता है.’’
‘‘ शांत रहो रमा.’’ मां को समझाते हुए पिता जी ने आलेख से पूछा, ‘‘ अच्छासिगरेट के कारण तुम्हारी पढ़ाई का तो कोई नुकसान नहीं हो रहा है?’’
‘‘ नहीं ’’, आलेख ने राहत की सांस लेते हुए कहा.
‘‘ ठीक है तब जाओ. पढ़ाई करो.’’ पिता जी ने आलेख की तरफ से मुड़ते हुएकहा,
‘‘ दीपू एक सलाह लेनी है तुमसे, चलो रसोई में.’’
पिता जी के बोलने का यही तो निराला अंदाज है. यहीं तो दीपू को लगता है किउनके जैसा पिता शायद ही किसी का ही हो. पता ही नहीं चलता कि पिता जी हैकि दोस्त. जिस पिता जी की अकलमंदी का लोहा सारी कालोनी मानती है. जिसपिता जी की चतुराई से सारे अफसर खुश रहते हैं, वही पिता जी दीपू से सलाहलें!
दीपू मुस्कराता हुआ रसोई को चल दिया.
लेकिन पिता जी अन्य दिनों की अपेक्षा आज गंभीर थे. उसकी ओर देखते हुएबोले, ‘‘ दीपू बेटे! शायद तुम और तुम्हारी मां सोच रहे होंगे कि आलेख के मामलेमें मैं काफी ढील दे रहा हूं. पर बात ऐसी नहीं है. दरअसल इससे मैं भी बहुतचिंतित हूं. मैं बहुत माथापच्ची करके भी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकता हूं. मार-पीट, डाट-फटकार या भाषण देने से यहां कुछ भी होने वाला नहीं है. इसलिएतुम्हारा भी फर्ज है कि तुम भी इस दिशा में सोचो और अपने बड़े भाई की खातिरकुछ कर सको तो..’’
पिता जी ने अपनी बात यहीं खत्म कर दी. दीपू पूछना चाहता था कि पिताजीजिस काम को आप नहीं कर पा रहे, उसे मैं बित्तेभर का बालक कैसे कर पाऊंगा? आलेख भैया आपकी बात कम से कम चुपचाप सुन तो लेते हैं, पर मैं कुछ कहूंगातो ऐसी घुड़की देंगे कि बस मेरी तो वहीं बोलती बंद हो जाएगी. लेकिन पिता जीकी उदास मुख-मुद्रा को देखकर वह कुछ भी नहीं कह पाया था.चुपचाप अपनेकमरे में लौट आया था.
और उसके बाद फिर उस दिन लगा था कि अरे, इसके बराबर आसान काम तोदूसरा हो ही नहीं सकता. एकाएक ही समस्या का समाधान उसके दिमाग में आसमाया था.
जब वह आलेख भैया के सामने जा खड़ा हुआ था चुपचाप.
‘‘ क्या है रे दीपू’’ आलेख से हैरान होकर पूछा था.
‘‘ भैया! मैंने एक फैसला किया है. पर तुम नाराज मत होना. छोटा भाई समझकरमाफ कर देना.’’
‘‘ क्या?’’
‘‘ भैया! मैं उतने दिन के लिए रात को दूध पीना बंद कर रहा हूं जितने दिन आपसिगरेट पीते रहेंगे.’’
और इतना कहकर वह तीर-सा वहां से निकल भागा था.
उस दिन से उसने चुपचाप ही दूध पीना बंद कर दिया था. यद्यपि दोनों भाइयों केअलावा इसका कारण और कोई नहीं जानता था. मां तीन-चार दिनों तक यहबर्दाश्त करती रही फिर एक दिन जब पिता जी दफ्तर से थके-मांदे लौटे तो साराकिस्सा बयान कर डाला.
पिता जी ने उससे दूध न पीने का कारण पूछा तो वह चुप रहा. दूसरी बार पूछा, तोभी चुप. प्यार से पूछा, तो भी चुप और डांटकर पूछा, तो भी चुप. पिता और बर्दाश्तन कर सके. बाहर से एक छड़ी उठा लाए और उसे ‘जिद्दी-बदमाश’की संज्ञा देतेहुए तड़ातड़ पीटने लगे.
दीपू रोता कराहता बिस्तर पर जा लेटा और बिन खाए-पीए ही सो गया.
आलेख ही हालत भी अच्छी न थी. एक अपराध-बोध उसे कचोटे दे रहा था.
अगली सुबह दीपू का सारा बदन बुखार से तप रहा था.
मां-पिता जी सभी चिंतित हो उठे थे उसकी दशा पर
और आलेख? आखिर वही तो जड़ है न इस सब की?
अगर दीपू को कुछ हो गया तो? स़िर्फ सिगरेट के लिए? और अधिक न सह सकताआलेख. मां का हाथ पकड़कर वह उन्हें रसोई की तरफ घसीटता हुआ बोला ‘‘ मां, दीपू के लिए दूध गर्म करो. दीपू को मैं दूध पिलाऊंगा.’’
‘‘ लेकिन....?’’मां कुछ कहना चाहती थी.
‘‘ तुम देर न करो में, बस अभी देखना,’’ उसने ऐसे आत्मविश्वास से कहा कि मां सेकुछ करते न बना.
पांच मिनट बाद ही आलेख दूध का गिलास लिए दीपू के सामने खड़ा था. ‘‘ एदीपू! उठो, मैं दूध लाया हूं.’’ उसने दीपू को आवाज दी. लेटे-लेटे ही दीपू ने आंखेंखोली.
‘‘ भैया!’’
‘‘ हां दीपू, दूध पी लो. वादा करता हूं आज के बाद सिगरेट-बीड़ी कुछ नहींपीऊंगा, कभी नहीं’’ यह कहते हुए आलेख की आंखों से आंसू झर-झर झरने लगेथे.
‘‘ सच भैया!’’ और दीपू अपने बुखार की परवाह न करते हुए उठकर उससे लिपटगया था.
फिर तो दोनों भाई एक दूसरे से लिपट कर खूब रो दिए थे. साथ ही मां-पिताजीकी आंखें भी नम हो आयी थीं.
(पराग नवंबर 1986)
5.