aaga in Hindi Motivational Stories by Anil jaiswal books and stories PDF | आगा :  हिंदी फिल्मों के बेहतरीन हास्य कलाकार

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आगा :  हिंदी फिल्मों के बेहतरीन हास्य कलाकार





अभिनेता आगा हिंदी फिल्मों के उन अभिनेताओं में से एक हैं, जिन्होने आजादी के पहले और मूक फिल्मों के जमाने से अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की और खामोशी से जीवन भर फिल्मों से रमे रहे। कोई स्कैंडल कभी उनके नाम के साथ नहीं जुड़ा जबकि दिलीप कुमार से लेकर अमिताभ बच्चन तक सभी बड़े नामों के साथ उन्होंने काम किया।
आगा का पूरा नाम था, आगाजान बेग। उनका जन्म पुणे में हुआ था। साल 1914 तो याद था, पर दिन उन्हें माता-पिता ने कभी बताया नहीं। इसलिए उन्होंने खुद अपना जन्मदिन 21 मार्च घोषित कर दिया। इस तरह उनका जन्मदिन 14 मार्च 1914 तय हुआ । 21 मार्च इसलिए, क्योंकि वह पारसी थे और 14 मार्च को ही उनका बड़ा त्योहार नवरोज पड़ता था।
बचपन से आगा को पढ़ाई से चिढ़ थी। उनकी जबानी वह अपनी जिंदगी में कुल साढे तीन दिन स्कूल गए। चौथे दिन वह स्कूल से भाग आए थे। उसके बाद उन्होंने स्कूल का मुंह तो देखा, पर कभी चीफ गेस्ट बनकर, तो कभी अपने बच्चों के पेरेंट के रूप में। एक विद्यार्थी के रूप में वह स्कूल के सिर्फ साढे तीन दिन के मेहमान रहे।
स्कूल छोड़ने के बाद वह दिन भर घूमा करते। ऐसे ही घूमते-घूमते वह एक बार पुणे के रेसकोर्स पहुंच गए। वहां लंबे-चौड़े फुर्तीले घोड़े और हलके फुलके जाकी उनके मन को भा गए। उन्होंने ठान लिया कि वह जाकी यानी घोड़ों को दौड़ाने वाले बनेंगे। पर जिंदगी में कुछ बनना इनसान के अपने हाथ में नहीं होता, खुद के प्रयत्न के साथ भाग्य का साथ भी जरूरी है। आगा बड़े हुए, तो उनकी कद काठी अच्छी खासी हो गई। इस लंबाई के कारण उनका जाकी बनने का सपना टूट गया।
क्या हुआ था किसी को नहीं पता, न कभी आगा न बताया। अपनी जिंदगी की कहानी खुद लिखने के लिए वह बाम्बे (आज की मुंबई) भाग आए। यहा दक्षिण मुंबई के नागपाड़ा में उन्होंने अपना ठिया बनाया। उसी मोहल्ले की एक नाटक कंपनी से वह जुड़ गए। इस तरह अभिनय से उनका नाता जुड़ना शुरू हुआ। आखिर उन्होंने 1933 में कंवल मूवीटोन फिल्म कम्पनी में प्रोडक्शन मैनेजर के रूप में काम करना शुरू किया। फिल्म और फिल्मी लोगों से उनकी यह पहली मुलाकात थी। प्रोडक्शन मैनेजर को एक्टिंग की तरफ मुड़ने में ज्यादा समय नहीं लगा। 1935 में उन्होंने अपनी पहली फिल्म की, स्त्री धर्म। इसका अंग्रेजी नाम था पेंटेड सिन। इसके बाद अगले पांच सालों में कारवां ए हुस्न, रंगीला मजदूर और अनुराधा जैसी फिल्मों ने उन्हें हास्य कलाकार के रूप में स्थापित कर दिया।
फिर 1944 में फिल्म आई ज्वार भाटा। इस फिल्म के हीरो थे आगा। परंतु इस फिल्म को लोग याद करते हैं फिल्म के साइड हीरो दिलीप कुमार की पहली फिल्म के रूप में। इसी फिल्म से दिलीप कुमार और आगा की दोस्ती शुरू हुई जो आगा की मृत्यु तक चलती रही। आगा ने अपने जमाने में 300 से ज्यादा फिल्मों में काम किया। उन्होंने एक्टिंग करते हुए अपनी अलग पहचान बनाई। कोई बात पहले आराम से सुनकर, फिर उस बात पर गौर करते हुए चौंकने का अभिनय करना उनकी पहचान बन गया। यह स्टाइल इतना लोकप्रिय हुआ कि हिंदी फिल्मों में आने के बाद उत्पल दत्त ने इसका अपनी एक्टिंग में बखूबी प्रयोग किया। गोलमाल और नरम गरम फिल्में उदाहरण हैं।
आगा केवल अभिनय से ही हास्य अभिनेता नहीं थे। वह सचमुच जिंदादिल थे और सेट पर साथी कलाकारों को ही नहीं, स्पाट बाय से लेकर टेक्निशियंस तक सबको हंसाते रहते थे। वह सबसे उनकी भाषा में बात करने की कोशिश करते थे।
आगा खुद तो पढ़ न सके, पर उन्होंने कोशिश की कि उनके बच्चे फिल्मी चकाचौंध से दूर रहकर पढ़-लिख लें। वह अपने बच्चों खासकर लड़कियों के फिल्मों में काम करने के सख्त खिलाफ थे। इस मामले में वह दकियानुसी विचार के थे। वह बेटियों से बोलते थे, तुम्हें अभिनय करने की जरूरत नहीं है। बस किचन में जाकर खाना बनाना सीखो।
पर इनसान के रोकने से क्या होता है। आगा की तीन बेटियां और एक बेटा था। और भगवान की लीला देखिए, चारों ने फिल्में की। पर नाम कमाया बेटे जलाल आगा और एक बेटी शहनाज आनंद ने। जलाल आगा की पहली फिल्म अगर दिलीप कुमार के साथ थी, तो शहनाज की पहली फिल्म अमिताभ बच्चन के साथ थी। दोनों की पहली फिल्म थी-सात हिंदुस्तानी। इस फिल्म में जलाल आगा भी थे। उनके दोस्त थे टीनू आनंद। उन्हीं से शहनाज ने शादी की थी। यह वही टीनू आनंद हैं, जिन्होंने अमिताभ बच्चन के साथ शहनशाह फिल्म बनाई थी। टीनू ने एक फिल्म दुनिया मेरी जेब में बनाई थी और उसमें अपने ससुर आगा को डायरेक्ट किया था। टीनू ने एक मजेदार बात बताई थी कि आगा सेट पर डायलाग पढकर तो आते थे, पर याद करके नहीं। वह सीन के बीच में अपने डायलाग खुद बनाकर बोलते थे।
आगा अपने बेटे जलाल के बचपन में फिल्मों में काम करने के सख्त खिलाफ थे। उन दिनों मुगले आजम फिल्म बन रही थी। शहजादा सलीम का रोल दिलीप कुमार कर रहे थे। उनके बचपन का रोल था। दिलीप के घर अपने पिता के साथ जलाल आते रहते थे। दिलीप को अपने बचपन के रोल के लिए जलाल पसंद आ गए। उन्होंने निर्देशक के. आसिफ से बात की। उन्हें कोई एतराज न था। पर आगा अड़ गए कि जलाल फिल्मों में काम नहीं करेगा।
अब दिलीप कुमार कहां जिद छोड़ने वाले थे। कुछ दिनों बाद दिलीप कुमार आगा से बोले कि वह आपने जन्मदिन पर कुछ बच्चों को तीन दिन के लिए एक ट्रिप पर ले जा रहे हैं। वह चाहते हैं कि जलाल भी ट्रिप पर उनके साथ जाए। अपने दोस्त को आगा कैसे मना कर देते। लिहाजा उन्होंने जलाल को दिलीप के साथ भेज दिया।
अब ट्रिप पर न ले जाकर दिलीप कुमार जलाल के साथ मुगले आजम के सेट पर पहुंच गए। वहां सारी तैयारियां थीं। तीन दिन में जलाल की सारी शूटिंग पूरी कर ली गई और चौथे दिन जलाल अपने घर में थे।
बाद में जब आगा को यह बात पता चली, तो वह बहुत नाराज हुए। दिलीप साहब से उनकी बोलचाल बंद हो गई। परंतु बाद में जब उन्होंने रीलीज होने से पहले मुगलेआजम फिल्म देखी, तो उनकी आंखों में खुशी के आंसू थे। दिलीप साहब के वे गले लग गए।
बेटे जलाल ने पिता की इच्छी पूरी की। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद ही उन्होंने पुणे फिल्म संस्थान में एडमिशन लिया। जलाल आगा को लोग शोले फिल्म के महबूबा महबूबा गाने से जानते हैं इस तरह फिर से आगा परिवार का पुणे से नाता जुड़ा।
1986 में अपनी अंतिम फिल्म बात बन जाए में अभिनय करने के बाद आगा पुणे में ही बस गए। पुणे में ही 30 अप्रैल 1992 को उनका देहांत हो गया। आगा का सफर जिस शहर से शुरू हुआ था, उसी शहर में सफर का अंत भी हुआ।