Nakti part-3 in Hindi Fiction Stories by Rohitashwa Sharma books and stories PDF | नकटी - भाग-3

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नकटी - भाग-3

जीप हरसी को लेकर शहर महेश के घर पहुँची। महेश और उसकी माँ वहाँ पहले से तैयार थे। हरसी को वे सीधे हॉस्पिटल लेकर गये। महेश की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं होने के बावजूद भी उसने हरसी को बड़ी बहन मानकर बहुत सेवा की।हरसी को सात दिन में छुट्टी मिल गयी लेकिन उसके चेहरे पर ख़रोंच और नाक कटने के निशान रह गये थे। महेश ने महेश की सब्जी की दुकान थी। हरसी धीरे धीरे घर के कामों में हाथ बटाने लगी। घर के बाद वह महेश के साथ दुकान पर भी जाने लगी। महेश ने उसको बहुत मना किया लेकिन उसने कहा
"भाई घर में मन नहीं बदलता।"
हरसी के सहयोग से महेश की दुकान से अच्छी आमदनी होने लगी। हरसी की नाक कटी देखकर उसे नकटी कहने लगे। महेश की दुकान धीरे धीरे नकटी की दुकान के नाम से जानी जाने लगी।
हरसी ने बालक को जन्म दिया जिसका मामा ने नाम संजय रखा। बालक पूरे घर का लाडला था। कुछ वर्षों बाद हरसी ने भाई महेश की शादी एक सुंदर सी लड़की देखकर कर दी।
संजय भी बड़ा हो रहा था। दुकान भी अब अच्छी चलने लगी थी। हरसी ने बेटे संजय का प्रवेश शहर के प्रसिद्ध विद्यालय में करवा दिया। छुट्टी होने पर हरसी संजय को लेने जाया करती थी। रोजाना की भांति इस दिन भी संजय को लेने निकली थी।

मध्याह्न तीन बजे का समय था। शहर के एक निजी विद्यालय की छुट्टी हो गयी थी। बच्चे विद्यालय भवन से बाहर आ रहे थे। कुछ बच्चों को उनके अभिभावक स्वयं के वाहन से ले जा रहे थे। कुछ बच्चे पैदल ही घर के लिए रवाना हो गये थे। बच्चों का एक ग्रुप ग्राउण्ड में अभिभावकों के आने तक खेलने में व्यस्त था।

आधा चेहरा ढके एक ग्रामीण औरत, हरसी, स्कूल की ओर चली जा रही थी। एक लड़का उसे देखकर दौड़ता हुआ ग्राउंड में खेलते बच्चों के पास गया और वहाँ खेल रहे साधारण ड्रेस पहने लड़के संजय से कहा

“ऐ ढीलू, जा तुझे लेने नकटी आ गई है?‘‘

“नकटी कौन?‘‘ संजय ने आँखें दिखाते हुए कहा।

“वही जो तुझे लेने रोज आती है।“

“वो नकटी नहीं मेरी माँ है।“

“लेकिन है तो नकटी ही ना।“

सुनकर संजय गुस्से में भरकर बोलने वाले लडके को मारने के लिए दौडा। वहीं पास खड़ी एक लड़की ‘कंचन’ ने उसको रोका

‘‘संजू छोड़ इनको, जा जल्दी जा, माँ को और भी बहुत काम होंगे।‘‘

संजय को गुस्सा तो बहुत आ रहा था लेकिन कंचन की बात मानकर वह उस लडके को घूर कर देखते हुए माँ की तरफ जाने लगा।

कंचन ने पीछे से लडकों को समझाया

‘‘तुम लोगों को ऐसा नहीं कहना चाहिए था। वह नकटी का नहीं अपनी माँ का बेटा है।‘‘

लेकिन लडके नहीं माने। उस लडके की अगुवाई में तीन बच्चों का ग्रुप फिर चिल्लाने लगा

‘‘नकटी................नकटी...................नकटी.........‘‘

संजय ने पलट कर फिर गुस्से से उनकी ओर देखा।

‘‘प्लीज चुप हो जाओ, तुम लोग यह नहीं कर सकते।‘‘

‘‘तू बडी आई हिमायती नकटी के बेटे की।‘‘

“वो नकटी का नहीं, अपनी माँ का बेटा है।“

लेकिन बच्चे नहीं माने वे। फिर चिल्लाने लगे

‘‘नकटी................नकटी...................नकटी.........‘‘

कंचन ने संजय को आवाज दी

‘‘संजू................ संजू वापस आ। वापस आ संजू।‘‘

संजय से रुका गया, दौडता हुआ वापस आया। कंचन ने कहा

‘‘संजू लड। लड उससे जो तेरे वजूद को धिक्कारता है। संजय ने बच्चों के लीडर की गिरेबान पकड ली और नीचे पटक दिया । उसके साथी लडके संजय को मारने को हुए भी तभी कंचन बोली

‘‘पीछे देख संजू।‘‘

‘‘संजय ने पीछे वाले लडके को पकड कर आगे खींच कर पटक दिया।‘‘

आपसी उठा-पटक के अंत में संजय विजयी रहा। सभी लडकों ने अपनी गलती मान ली।

‘‘तुम फिर किसी की माँ के लिए गलत कहोगे?‘‘संजय ने पूछा।

‘‘नहीं कभी नहीं। कसम लेते हैं।‘‘एक बच्चे ने कान पकड़ आकर कहा।

‘‘कसम से काम नहीं चलेगा, माँ से माफी मांगनी पडेगी।‘‘

सभी बच्चे हरसी के पास गए और हरेक ने पैर छूकर प्रणाम किया।

‘‘बडे संस्कारी है तेरे दोस्त।‘‘ हरसी ने कहा।

‘‘अभी-अभी दिये है माँ।‘‘संजय ने कहा।

‘‘बहुत अच्छा किया।‘‘ हरसी ने एक बच्चे की पीठ पर लगी मिट्टी झाडते हुए कहा।

“इतने गंदे कैसे हो गये तुम लोग?”हरसी ने पूछा।

‘‘खेलने में हो जाता है आन्टी‘‘ एक बोला।

‘‘अच्छा हम जाते है आप लोग भी घर जाओ।‘‘

हरसी, संजय को लेकर घर को चल दी।

*****

दूसरे दिन स्कूल में संजय और कंचन सुबह सुबह मिल गए।

“मैंने उन लडकों को पैर छूने के लिए कहा था तुम्हे तो नहीं कहा था, फिर तुमने पैर क्यों छुए? संजय ने पूछा।

“माँ को देखते ही बस मन किया इसलिए छू लिए। तुम भाग्यशाली हो तुम्हारे पास माँ है।

‘‘क्यों, तुम्हारे माँ नहीं है?‘‘

‘‘नहीं।‘‘

‘‘कैसे नहीं है,अभी तो तुमने कहा माँ को देखते ही मन किया।‘‘

कंचन ने सिर झुका लिया।

*****

स्कूल की पढ़ाई पूरी होने के पश्चात कंचन ने लॉ कॉलेज में एल.एल.बी. के लिए और संजय ने एक प्रसिद्ध कॉलेज में बी.एस.सी. कोर्स में प्रवेश ले लिया। संजय के कॉलेज का पहला दिन था। वह कॉलेज भवन में प्रवेश करने ही वाला था कि कुछ सीनियर्स ने रोक लिया

“अरे ओ छछुंदर, कहाँ चले जा रहा है? देखता नहीं इधर सीनियर्स खडे है।“

“गुड मार्निंग बॉस“ संजय ने प्रत्युत्तर में कहा।

“इतना चिकना कैसे लग रहा है बे? क्या तेल का पूरा कनस्तर चुपड आया है? क्या नाम है तेरा?‘‘

“बॉस मेरा नाम संजय है।“ उसे पता था मात्र संजय बोलने से उसे तंग किया जा सकता था।

“चल हमारे साथ।“

वे उसे कॉलेज चारदीवारी के गेट तक लेकर आये। सडक के दूसरी ओर गर्ल्स कॉलेज के बाहर कुछ लडकियाँ सिटी बस का इंतजार कर रही थी। उनकी ओर इशारा करते हुए एक सीनियर बोला

“उधर देख। वो जो बस स्टैंड पर तीन लडकियाँ खडी है, उनमें बीच में खुले बालों वाली लडकी से उसका नाम पूछ कर आ।‘‘

संजय गिड़गिड़या ‘‘बॉस ऐसा करने पर मेरी पिटाई हो सकती है। सडक पर हर कोई अपना हाथ साफ करेगा। इससे बेहतर ये रहेगा कि आप मेरी यहीं पिटाई कर लें।“

“सामने बोलता है!..............क्रालिंक करनी पड जायेगी। जाता है कि नहीं?‘‘ एक सीनियर ने घुड़की दी।

संजय मन ही मन पूर्व महाराजा के महाराजा व महारानी कॉलेज के आमने -सामने निर्माण के निर्णय को कोसता हुआ सडक पार कर उन लडकियों के पास पहुँचा। डरते-डरते जमीन में नजरें गड़ाये हुए उसने कहा

“बहन गुस्सा नहीं करियेगा। मेरी रैगिंग हो रही। वे जो सामने खडे है मेरे सीनियर्स है उन्होंने आपका नाम पूछा है।“

“ उन्होंने कहा और तुम चले आये?” लडकी ने नाराजगी भरे स्वर में कहा।

“अरे इस पर क्यों गुस्सा करती है? ये तो पहले से ही परेशान है। नया मुर्गा है। भैया बता देना कलावती नाम है इसका ।“ पासवाली लडकी ने हँसते हुए कहा।

“एक तरफ तो बहन कहता है। क्या ये लडके तेरी सगी बहन का नाम पूछने के लिए किसी को भेजते तब भी तू ऐसे ही बुत की तरह खडा रहता।“ खुले बालों लडकी ने तल्खी से कहा।

लडकी के व्यंग्य बाण सुनकर संजय के तेल वाले बाल भी खड़े हो गए। आँखें खून उतर आने से लाल हो गई। वह वापस मुड गया। रास्ते में पडी एक सूखे पेड की मोटी डाल उठा ली और लहराता हुआ सीनियर्स की तरफ आने लगा। सीनियर्स में एक बोला

“भागों भाई, छछुंदर सांप बन गया है।“

सीनियर्स उसका यह रूप देखकर भाग हुए। इस घटना की चर्चा सीनियर्स जूनियर्स सभी जगह हो रही थी। जूनियर उसे अपने रक्षक के रूप में जानने लगे थे। एक दिन दो जूनियर साथियों ने कहा

“संजय तुम तो बाहर रहते हो। हम हॉस्टल में रहते है। कॉलेज से जाने के बाद एक सीनियर शाम को बहुत तंग करता है।“

“क्या करता है?” संजय ने पूछा।

“रोज कपडे उतरवाता है और मारता है।“

“ठीक है मैं चलता हूँ।“

शाम को संजय उनके साथ हॉस्टल में गया। कुछ ही देर में एक सीनियर उनके कमरे में आ गया। दोनों जूनियर पहले से पैंट शर्ट उतार कर खडे थे। सीनियर को आश्चर्य हुआ। पहले तो सीनियर को ऐसा करवाने के लिए बहुत कठोरता से बोलना पडता था। संजय धधीरेधीरे दरवाजे की ओर खिसका और एक झटके से कमरे का दरवाजा बंद कर लिया।

“तुमने कमरे का दरवाजा क्यों बंद कर दिया?” सीनियर चिल्लाया।

संजय ने कहा ‘‘ज्यादा चिल्लाये तो मार पड़ेगी। इस समय हम यहाँ के बॉस है तुम फँस गए हो। पैंट शर्ट उतारो जल्दी।”

सीनियर कुछ बोलने को हुआ संजय ने एक थप्पड जड दिया।

“ये अब तक की तुम्हारी बदमाशियों का इनाम है। उतारो जल्दी।“ दोनों जूनियर भी अब जोश में थे।

सीनियर ने मजबूरी में कपडे उतारना शुरू किया। कपडे उतरने पर संजय ने कहा

“हम तुम्हारी ऐसी हालत बना देंगे किसी को बता भी नहीं पाओगे।“ सीनियर डर के मारे कमरे की खिडकी खोलकर कूद गया। कमरा दूसरी मंजिल पर था। कूदने से सीनियर के पैरों में फ्रेक्चर आ गया। कुछ लडके उसे उठाकर हॉस्पिटल लेकर गए जहाँ उसके दोनों पैरों पर प्लास्टर चढा दिया गया। संजय और दोनो साथी भी उससे मिलने गए। सीनियर उनको देख कर बस हाथ जोड रहा था।

संजय के बगावती तेवर संघर्ष से आरम्भ हो कर धीरे धीरे मारपीट की शक्ल लेने लगे थे। छोटी सी बात या विरोध पर हाथ उठ जाना अब सामान्य सी बात बन गई थी। बहुत मुश्किल से उसने कॉलेज की पढ़ाई पूरी की। कॉलेज के बाद वह साथियों के साथ आवाराओं की तरह घूमता रहता था। रोज किसी न किसी से मारपीट की खबर अखबारों में छपती रहती थी। शहर के मवालियों के सिरमौर के रूप में उसे जाना जाने लगा था।

एक दिन एक यूट्यूबर टीम शहर में बढ़ती छेड़खानी और समाज की संवेदनहीनता पर प्रैंक वीडियो बना रही थी। कैमरा छुप कर लगा दिया गया था। प्रैंक टीम की एक लड़की सड़क पर आगे आगे चल रही थी और टीम का दूसरा लड़का उस पर फब्तियां कसता हुआ चल रहा था। कमरे के पास एक लड़का बाइट दे रहा था

"देखिये नपुंसक समाज को, एक व्यस्त सड़क पर सरे आम एक लड़की को एक लड़का छेड़ रहा है लेकिन कोई सहायता के लिए कोई आगे नहीं आ रहा है।"


संयोग से संजय भी अपनी मोटरसाइकिल से उधर से गुजर रहा था। उसने देखा कि एक लड़का एक लड़की को परेशान किये जा रहा था। लड़की के विरोध के बावजूद लड़के ने लड़की का हाथ पकड़ लिया था। संजय ने मोटर साइकिल रोक दी और लड़के को पकड़ लिया। लड़का कुछ स्थिति स्पष्ट करता तब तक संजय उसे उठा कर पटक पटक कर लहूलुहान कर चुका था। प्रैंक टीम के साथियों ने आकर उसे छुड़ाया।


मारपीट से व्यथित लड़के ने संजय के ख़िलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज़ करवा दी। संजय को पुलिस पकड़ कर ले गई।

संजय की माँ हरसी को जब इसका पता चला तो विलाप करने लगी
"इस लड़के ने मेरे को कहीं का नहीं छोड़ा। कितने दुःख झेलकर मैंने इसे पाला है। एक दिन सुख से नहीं बैठने देता। अब मैं कैसे इसकी जमानत करवाऊं ? मेरे पास तो पैसे भी नहीं है।"
हरसी फिर भी कुछ कागज लेकर कोर्ट पहुँची। एक वकील से हाथ जोड़ कर प्रार्थना की।
"महाराज, मेरे बच्चे की जमानत करवा दो।"
" करवा देंगे और हमारा काम ही क्या है? क्या किया है उसने?"
" लोग कह रहे हैं किसी के साथ मारपीट हो गई उसकी। "
" कोई बड़ी बात नहीं। हो जाएगी जमानत। पचास हजार लगेंगे।"
" मेरे पास इतने पैसे कहाँ हैं मालिक। मैं तो बर्बाद हो गई इस लड़के के चक्कर में। कुछ ये चाँदी के दो चार गहने बचे हैं आप ले लीजिये।" हरसी ने एक पोटली आगे करते हुए कहा।
"मैं कोई सोने चाँदी खरीदने बेचने का काम नहीं करता हूँ। आप किसी और से बात कर लीजिये।" वकील ने झिड़कते हुए कहा।
हरसी हताश होकर वहाँ से उठकर जाने लगी। कुछ दूरी पर एक महिला वकील उनकी बातें सुन रही थी। वह उठ कर आई और उससे बोली
" आप संजय की माँ हैं ना ?"
" हाँ आप उसे जानती हो?"
" मैं तो आपको भी जानती हूँ। मैं कंचन हूँ, संजय के साथ स्कूल में पढ़ती थी। आप उसे लेने आया करती थी। क्या करता है संजय आजकल?"
" कुछ नहीं करता। रोज कहीं न कहीं झगड़ा कर बैठता है। अभी थाने में बंद है। जमानत के लिए भटक रही हूँ लेकिन मेरे पास पैसे नहीं है। आप करवा दो, बड़ा अहसान होगा आपका।"
" जमानत हो जाएगी। आप चिंता मत कीजिये। एक और निवेदन है आप मुझे ‘आप’ नहीं, ‘तुम’ या ‘तू’ बोलिये। आपके लिए बेटी सामान हूँ।"
कंचन ने कोर्ट में जमानत अर्जी लगा दी। सरकारी वकील और वादी के वकील ने पुरजोर विरोध किया। उन्होंने मारपीट का वीडियो भी पेश किया।
"सर ये अधूरा वीडियो है। अर्ध सत्य है। पूरा वीडियो मैं आपको दिखाती हूँ।" विरोध जताते हुए कंचन ने अपना मोबाइल जज साहब की तरफ आगे कर दिया। जज साहब ने पूरा वीडियो देखा। कंचन ने फिर कहा
"सोशल मीडिया पर लाइक की चाहत में इस तरह के प्रैंक वीडियो बनाकर ये लोग समाज में बची खुची संवेदना को भी समाप्त कर देना चाहते है। यदि संवेदनशीलता दिखाने वाले लोगों पर भी केस होने लगेंगे तो बची खुची संवेदनशीलता भी ख़त्म जाएगी।"
जज साहब ने बहस सुनकर संजय की जमानत अर्जी स्वीकार कर ली।
हरसी ने कंचन को आशीर्वाद दिया "जुग जुग जिओ बेटी।"
" ये तो मेरा फ़र्ज़ था।"
संजय भी छूट कर उनके पास आ गया। माँ के पैर छुए और कंचन से बोला
" थैंक्स मैडम।"
सुनकर हरसी और कंचन दोनों हँस पड़ी। संजय ने उनको विस्मयभरी नज़रों से देखा।
"अरे ये मैडम नहीं।कंचन है जो स्कूल में तुम्हारे साथ पढ़ती थी" हरसी ने कहा।
" तुम तो एकदम बदल गई कंचन।"
" मैं बदली नहीं हूँ, बड़ी हो गई हूँ, बदल तो तुम गए हो। रोज़ मारपीट की खबरें पढ़ती थी अब देख भी लिया।"
“इसके लिए तुम ही जिम्मेदार हो। पहली बार तुमने ही लड़ने के लिए कहा था।" संजय ने कहा।
"स्वयं के लिए लड़ना तो जरूरी है लेकिन हर कहीं किसी के लिए भी लड़ बैठना ठीक नहीं। कुछ लड़ना औरों के लिए भी छोड़ दो। वैसे क्या करते हो आजकल?"
"बस यही समाज सुधार का काम।"
"तुम अपने पेपर मुझे देकर जाओ। मैं करती हूँ कुछ तुम्हारे लिए।"

संजय हँस कर बोला ”दे दूंगा, लेकिन कौन मुझे देगा नौकरी! कुछ नहीं होगा।“