पहली माचिस की तीली
अध्याय 5
अमृता और अजंता दोनों कमरे में घुसने की आवाज सुनकर सरवन पेरूमाल ने मुड़कर देखा। चेहरे में जो आश्चर्य था उसे छुपा कर मुस्कुराए।
"क्या बात है.... अम्मा और बेटी दोनों मिलकर आ रहे हो ?"
अमृतम बिना जवाब दिए उनके पास आई।
"क्या बात है जी...."
"हां..."
"अभी आकर गया वह कौन था...?"
"वह... जो है ना...."
"वह एक जानकार..... आदमी...."
"कोई जानकार आदमी तो पर कौन है?"
"पंढरीनाथ।"
"वे कौन है यही पूछा...?"
सरवन पेरूमल पत्नी को आश्चर्य से देखा।
"क्या है अमृतम .... इस तरह के स्वर में मुझसे बोल रही हो पहले कभी ऐसा नहीं हुआ.?"
"आपका व्यवहार ही आज आश्चर्य जनक है तो ऐसी बात तो करना ही पड़ेगा...?"
"तुम क्या बोल रही हो अमृतम...?"
"अप्पा..."
बीच में अजंता बोली "कानून और नीति दोनों मेरी दो आंखें हैं बोलने वाले आप अभी कानून और नीति को बेचने वाले व्यापारी कैसे बन गए....?"
सरवन पेरूमाल सदमे को छुपा कर मुस्कुराए।
"मैं व्यापारी?"
"हां..."
"तुम क्या बोल रही हो बेटी ?" उन्होंने पूछा।
"अप्पा...! आप किसी भी बात को मुझसे नहीं छुपा सकते। मैंने सब देख लिया..."
"देख लिया..." किसे...?"
"उस पंढरीनाथ से आपने जो रुपए आज लिए हैं और आज 11:00 बजे कोर्ट में जो फैसला आपको सुनाना है उसकी कॉपी को देते हुए भी...."
सरवन पेरूमाल लाल आंखों से बेटी को देखा।
"कहां देखा....?"
"चाबी के द्वार से...."
"चोरी से देखा बोलो..."
"मैंने जो देखा वह चोरी से नहीं। आपने जो किया है वह चोरी है...."
"ठीक है... दोनों नीचे जाओ...."
"नहीं जाएंगे... ! कितने दिनों से आप ऐसे व्यापार कर रहे हो...?"
"यह व्यापार नहीं है भाई..."
"फिर क्या है...?"
"एक छोटा एडजस्टमेंट..."
"मेरी समझ में नहीं आया..."
"जजमेंट में एक एडजस्टमेंट...."
"अर्थात् न्याय वाले फैसले के बदले अन्याय वाले फैसला देना। उसका रेट 5 लाख रुपये । ऐसा ही है ना अप्पा...?"
सरवन पेरूमल ने एक दीर्घ श्वास छोड़ा।
"यह देखो बेटा.... और दो साल में मेरा रिटायरमेंट है। उसके अंदर मैं थोड़ा रुपए पैसे जमा करने की इच्छा करता हूँ ।"
"उसके लिए फैसले को बदल कर लिखना चाहिए...?"
"फैसले को बदल के नहीं लिखा भाई। ठीक ही लिखा है..."
"कैसा सही फैसला 18 साल की कॉलेज की बिलक-बिलक कर रोते लड़की के साथ बलात्कार कर उसे मार डाला | उन पापियों को छोड़ देना क्या सही फैसला है.... यह सही फैसला है ऐसा बोलने का आपका मन कैसे किया !"
सरवन पेरुमाल हंसे।
"पेपर वाले जो लिखते हैं उन न्यूज़ को पढ़कर जज फैसला नहीं दे सकता। सचमुच में क्या हुआ पर्दे को हटाकर देखना पड़ेगा।"
अमृतम अब बीच में फट पड़ी।
"ऐसा आपने पर्दा हटाकर देखा तो उन तीनों ने लड़की के साथ बलात्कार कर हत्या की नहीं दिखा?"
"हां...! अपराध को देखने वाला कोई आई विटनेस नहीं था । लड़की को किडनैप करते समय भी ठीक, बलात्कार करते समय भी, हत्या करते समय भी... इन सब को देखने वाला कोई साक्षी नहीं। हो सकता है यह तीनों ही सचमुच में निरपराधी हो?"
"ठीक है...! ऐसा है तो उस लड़की को नाश करने वाला कौन...?"
"पुलिस को ही सचमुच के अपराधी को ढूंढना चाहिए ऐसा मैंने फैसले में बोला है..."
अब अजंता दहाड़ी।
"यह आपका फैसला है.... यह फैसला देने के लिए पांच लाख रुपए लेने की कहां जरूरत थी...?"
"अजंता! यह सब तुम्हारी जानने के विषय नहीं हैं। छोटी लड़की जैसे चुपचाप बाहर जाओ। तुम्हारी मां से मैं बात कर लूंगा।"
अजंता ने कुछ बोलने की कोशिश की - सरवन पेरुमाल कमरे के बाहर की तरफ हाथ दिखाया।
"तुम जाओ..."
"अजंता के हिचकते हुए बाहर जाने को देखकर अमृतम के आंखों में आंसू लिए पति को देखा।
"यह सब क्या है...?"
"रुपए कमाने का रास्ता....! लड़की की और लड़के की शादी नहीं करनी क्या...?" अडैयार में एक बंगला नहीं बनाना है क्या...?"
"नहीं...! अपने पास जो रुपए हैं वही बस। सम्मान जनक एक पद पर बैठे हो... ऐसा हाथ फैला कर रुपए लेने की बात बाहर पता चले तो कितनी लज्जा की बात है...?"
"बाहर मालूम होने पर ही तो लज्जा की बात है.....? यह बाहर किसी को भी मालूम नहीं पड़ेगा।"
"कभी भी किसी दिन बाहर पता चल जाएगा। यह सब नहीं चाहिए...."
"यह देखो अमृतम...! आजकल के जमाने में बिना रिश्वत के कोई भी जगह नहीं है। रिश्वत देना गलत नहीं है तो लेना भी गलत नहीं है ऐसा हो गया। अब इस देश में कौन रिश्वत नहीं लेता है। प्रधानमंत्री से तालुका ऑफिस के चपरासी तक अपने स्टेटस के अनुसार रिश्वत लेते हैं..... मैंने जो रुपए लिए उसे बड़ी बात मान कर मन को दुखी मत करो.... फुर्सत के समय अजंता को भी समझा दो।
"यह... क्या है जी...?"
"बोलो मत...! मुझे भूख लग रही है। जाकर टिफन टेबल पर रखो..."
अब कुछ बोले तो भी नाराज होकर चिल्लाएँगे इस डर से अमृतम धीरे से पीछे की तरफ मुड़ कर जाने लगी।
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