Kya Naam du - 4 - last part in Hindi Moral Stories by Ajay Shree books and stories PDF | क्या नाम दूँ ..! - 4 - अंतिम भाग

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क्या नाम दूँ ..! - 4 - अंतिम भाग

क्या नाम दूँ ..!

अजयश्री

चतुर्थ अध्याय

“मैं कब कहती हूँ कि तुम मुझसे प्यार नहीं करते, उसी प्यार का वास्ता ; मुझसे सचमुच प्यार करते हो तो अम्मा-बाबूजी को बता दो और दूसरी शादी कर लो ;वैसे भी तुम कोई नया काम नहीं करने जा रहे हो, सदियों से होता चला आ रहा है | क्या राजा दशरथ की तीन रानियाँ नहीं थी और कृष्ण की तो लाखों पटरानियाँ थी | विज्ञानं ने इतनी तरक्की कर ली की क्या नहीं हो सकता | आजकल तो किराये पर कोख मिल जाती है | शाहरुख-गौरी, आमिर-किरण के बेटे इसके वर्तमान उदाहरण हैं | या शादी कर लो या फिर...समझ गये मैं क्या कह रही हूँ ?”

आदर्श बस सुनता रहा...”ठीक है कल डॉक्टर से मिलते हैं | ”

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डॉक्टर की क्लीनिक से निकलते ही आदर्श ने ऑटो पकड़ा | दोनों ने एक दूसरे को देखा और सीधे मानसी के फ़्लैट के सामने आकर उतर गये |

“आओ-आओ !”सोफे पर बैठते मानसी ने कहा |

“बहुत दिनों बाद आई ! आदर्श से ऑफिस में मुलाक़ात होती रहती है मगर तुम्हारी तो खबर ही नहीं मिलती, क्या बात है, बहुत सीरियस हो ! कोई प्राब्लम?” प्रश्न किया मानसी ने|

“नहीं, आज आपसे कुछ माँगने आई हूँ!” किरन बोल पड़ी |

मानसी थोड़ा विचलित हुई पर बोली “मैं क्या दे सकती हूँ तुम्हें ?”

“मुझे जो चाहिए उसके लिए आप से बेहतर कोई नहीं हो सकता मेरे लिए!”

आदर्श बोला-“ क्या कह रही हो किरन!”

मानसी अभी कुछ कहती, उससे पहले बोल पड़ी किरन-“ एक बच्चा चाहिए हमें आप से!”

“व्हॉट !”चौक पड़ी मानसी| “व्हाट आर यू सेइंग? किरन तुम जानती हो क्या कह रही हो ?” दो मिनट को मानसी को लगा कि दुनिया उलट-पलट गयी | उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था |

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किरन, मानसी की मन:स्तिथि समझ रही थी| उसने मानसी का हाथ पकड़ा और आँखों में आँखें डाल कर बोली-“आप परेशान मत होइए | मैं सब जानती हूँ| “ मानसी आवाक रह गयी | आश्चर्य से किरन और आदर्श को देखती रही | उसे खुद पर यकीन नहीं हो रहा था कि क्या सुन रही है |

“आप तो जानती हीं, मैं माँ नहीं बन सकती; अम्मा -बाबू जी की अपेक्षाएँ कम नहीं हो रही हैं | हमने तो खुद को समझा लिया था पर उनको कौन समझाये!फिर हमने फैसला किया कि हम डॉक्टर से मिलकर सरोगेट मदर(किराये की कोख )की बात करेंगे | हम वही से आ रहे हैं, डॉक्टर ने हमारी बात सुनी और तय हुआ की कोई अपना जानने वाला हो तो इस काम में अधिक सुविधा होती है | मेरी नज़र में आप से ज्यादा अपना हमें कोई नहीं लगा | अगर आप कहेंगी तो जो खर्च आयेगा, उसके अलावा आपको उपहार स्वरूप भी कुछ देंगे | “

मानसी किरन की बातें सुन रही थी और निगाहें आदर्श को घूर रही थी| नज़र मिलते ही आदर्श बोला-“मैंने सारी बातें किरन को बताई है | ”मानसी विचलित हुई |

“मैंने समझाया, यह नहीं हो सकता, पर अंतिम निर्णय उसी का है | ”

“हम बड़ी उम्मीद से आये हैं आपके पास .मना मत करिएगा !” किरन बोल पड़ी |

आज मानसी की आँखों में पानी तैर गया | उस महिला की आँखों में पानी, जिसने कभी दूसरे के फैसले पर काम नहीं किया | दोनों को देख मानसी ने कहा -“कैसे सोच लिया तुमने कि मैं तुम्हारी यह बात मैं मान लूँगी; क्या समझ रखा है, जब चाहा ऐस किया और जब जी चाहा चले गए ! इतना सुनते ही किरन का रंग बदल गया|

आदर्श तो जानता था कि उसने जो किया है उसके बाद कोई औरत तैयार नहीं होगी, पर किरन की जिद के आगे बेबस था | आखिर हुआ वही जिसका डर था | किरन का चेहरा लाल हो गया | नजरें झुक गयीं | जी कर रहा था, धरती फटे और वह उसमें समा जाये |

आदर्श ने किरन को चलने का इशारा किया| दोनों चुपचाप उठे और चल दिये| मानसी दोनों के जाने के बाद चैन से सो ना सकी | रात भर अतीत की यादें पिघलती रहीं |

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नीद खुलते ही सूरज की किरने उसके चेहरे पर महसूस हुई जो सामने से खिड़की से आ रही थीं | उठते ही वह समझ गया कि किरन उठ गई है, तभी उसे पूजा घर से आती घंटी की आवाज सुनाई दी | वो उठा हाथ-मुँह धोकर चाय के इन्तजार में पेपर पढ़ने लगा | किरन अपनी और आदर्श की चाय रखते हुए बैठ गयी |

“आज बहुत जल्दी उठ गयी !” आदर्श ने पूछा |

“हाँ वैसे भी नीद कहाँ आई | ”

तभी मोबाइल की घंटी बज उठी | मानसी का नम्बर देखकर आदर्श ने किरन को बात करने के लिए कहा | किरन ने मोबाइल बात करने के साथ ही स्पीकर भी ऑन कर दिया |

“गुड माँर्निग !” उधर से आवाज आयी |

“नमस्ते! कैसी हैं आप| ” किरन ने जवाब दिया |

“मैं तैयार हूँ| ” बिना लाग लपेट के बोल पड़ी मानसी |

सुनकर चौक पड़ा आदर्श|

“क्या कहा आपने ?” किरन ने अविश्वास से पूछा |

“ हाँ मैं तैयार हूँ | ”

किरन ने फिर पूछा –“आप मजाक तो नहीं कर रही हैं | ”

“ नहीं | ”इस बार थोड़ा गम्भीर थी मानसी | “लेकिन मेरी दो शर्ते हैं| ”

यह सुनकर किरन के माथे पर शिकन आ गई | “मैं जानती हूँ कि मेरी बात आदर्श सुन रहा है | मेरी पहली शर्त है कि उस बच्चे पर मेरा भी अधिकार होगा | मैं सोरेगेट मदर नहीं बनूँगी, अस्पताल में आदर्श को मेरे पति के रूप में नाम देना होगा ; और सबसे अहम् दूसरी शर्त, टेस्टट्यूब की जगह फिजिकल रिलेशन बनाउँगी| ”

“हाँ हम तैयार हैं!” किरन बोली “आप नहीं जानती आपने हम पर कितना बड़ा उपकार किया है!”

आदर्श के मना करने पर भी किरन बोलती गयी |

“ओके बाय | ’ और मोबाइल डिसकनेक्ट हो गया |

“ यह क्या किया किरन तुमने! सब कुछ जानते हुए..| ”

“कोई गलती नहीं की मैंने... अगर तुम दूसरी शादी करते तो क्या होता ?”

नहीं बोल सका आदर्श |

“हाँ अम्मा-बाबूजी से घर चलकर एक सवाल जरूर पूछूँगी..!”

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“अरे कितना खाऊं ?खा-खा के फैलती जा रही हूँ | ”

“बस एक और| ”

“बिलकुल नहीं | ’ हँसते-हँसते अचानक किरन खामोश हो गयी | उसे शांत देखकर आदर्श के चेहरे से खुशी के भाव उड़ गये| किरन बोल पड़ी-“ आदर्श! इस लड्डू की असली हकदार मानसी अरोड़ा है | ”

यह नाम सुनकर आदर्श चौक पड़ा | सन्नाटा छा गया | करीब दो मिनट बाद आदर्श ने ख़ामोशी तोड़ी “हमें चलना चाहिए, ट्रेन का समय होने वाला है | ”

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“बाबूजी!“

पण्डित जटाशंकर मिश्र आवाज सुन कर चौक पड़े |

“बाबू क माई देख, का कहत हई दुल्हिन | ”

पण्डित जी ने पंडिताइन को देखते हुए इशारे से पूछा –“ का कहल चाहत हऊ दुल्हिन ?”

“ का तोहरे कौनो एतराज बा...का तू नाहीं चाहत बाड़ू कि खानदान क वंश आगे बढे ?”

प्रश्न किया पंडिताइन ने |

“नाहीं अम्मा जी, ऐसी बात नहीं है, छोटा मुँह बड़ी बात होई, पर मन नाहीं मानत बा | मान ली अम्मा जी, अगर हमारे जगह आपके बेटा और हमरे पति के कुछ हो गइल रहत, जेकरे कारण ऊ ए लायक नाहीं रहते कि आप क वंश आगे बढ़े, त का आप लोग हमके वशं बढ़ावे के खातिर दूसरे मर्द के साथ...| ”

“जबान के लगाम द दुल्हिन !” गरज पड़े पण्डित जी| “तू सोच कैसे लेहलू; पंडीताइन कही द अपने पतोह (बहू) से, ढेर दिमाग न चलावे नाहीं त गजब हो जाई | ”

“ नाहीं आप बताई, हर बार औरत ही काहें दोषी होले ..आखिर हमार का दोष बा भगवान के घर से आपके घर ले सब ठीक-ठाक अइनी.. | ”

“जाये द दुल्हिन, विधाता के कुछ और मंजूर बा, नाहीं त तुहार ई हालत नाहीं होत... और ऊ मानसी बिना बिआहल महतारी (माँ) नाहीं बनत | ”

“ ठीक कहत हैं अम्मा जी ; चाहे किरन हो चाहे मानसी, भुगतान औरत के ही करे के बा... मर्द महान बन के किनारे बा!” इतिहास गवाह बा, दशरथ नंदन से ले के कुंती पुत्रों तक सब ऋषी-मुनि और दैवीय शक्ति की उत्पत्ति हैं | घर खानदान, मर्द के इज्जत बचावत रही गइल औरत, और वंश त बढ़ल रघुकुल और पाण्डू के| ”

“दुल्हिन लौट जा अपना घर में, अब नाहीं बर्दास्त होत बा तुहार बात...साफ-साफ कह तू का चाहत बाड़ू ? बाबू क साथ या तलाक ?”

यह सुनते किरन की आँखें डबडबा गयीं | “ठीक कह रहे हैं बाबूजी आखिर सच्चाई आ गयी आप के जुबान पे | ”

“ चुप करा दुल्हिन! ससुर-भसुर के सामने ढेर नहीं बोलल जाला ; जा तु हम समझा देब | “ पंडिताइन अपना गुस्सा नहीं रोक सकी |

“ का समझा देब अम्मा जी ?अब कहाँ बा, ऊ जाति धरम के, भेदभाव के बात, ऊ मानसी, जेकरे कोख में पल रहल अपने खून के भी अपनावे के तैयार बानी | ”

किरन की बातें सुनकर पण्डित जी को जैसे साँप सूंघ गया | मन किरन की बातों को मानता पर दिमाग मानने को तैयार नहीं | संस्कार, परम्परा, समाज के नाम पर अन्दर का मर्द जाग उठता, पर कहीं न कहीं सच्चाई मन को कुरेद जाती |

इसी कशमकश में -“किरन))))))))))))))))))))))))))))))!” चीख पड़े, पण्डित जटाशंकर मिश्र “अपने औकात में रही के बात कर, ते भुला गइले केकरे खानदान क बहूँ हैवे, यहाँ मेहरारू ऊँचा आवाज में बात नाहीं करेली | ”

“बाबू जी आप चिन्ता ना करी, हमके आपन मर्यादा मालूम बा ;यही देश में सावित्री जइसन पत्नी अपने पति के खातिर यमराज से लड़ गइली, सीता, पति के साथ बन-बन घूमली और बिना कारण त्याग दीहल गइली, पर उफ़ ना कहली | हमहूँ अपने खानदान के खातिर विष पी लेब...नीलकण्ठ की तरह पर कण्ठ नीला नाहीं होखे देब| ”-----

@अजय कुमार मिश्र “अजयश्री” मोबाईल-09415017598 what’sapp no.-8604571199

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