Niyati - 2 in Hindi Women Focused by Apoorva Singh books and stories PDF | नियति... - 2

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नियति... - 2

नियति जो अध्ययन रूम में मंजू,और मंजरी को पढ़ा रही होती है। कर्ण उन दोनों से मिलने वहां मिसेज खन्ना के साथ आ जाता है।मिसेज खन्ना को वहां देख कर नियति अध्ययन बंद कर देती है और उनके आने का कारण पूछती है।

मिसेज खन्ना नियति को बताती है कि ये कर्ण है मेरी बड़ी बहन का बड़ा बेटा।अब से कुछ दिनों के लिए यहीं हमारे पास रहेगा।मंजू और मंजरी को देखने के उत्साह में मुझे जबरन कह कह कर यहां ले आया। सॉरी बेटा।।लेकिन आज की क्लास इतनी ही रहने दो।।वैसे भी अब दस मिनट की ही तो क्लास बची हुई है।घड़ी की ओर देखकर मिसेज खन्ना कहती हैं।

जी ठीक है माम्।कहते हुए नियति कृति को साथ लेकर क्लास ऑफ कर वहां से चली जाती है। कर्ण की नजरे नियति का पीछा करती है जब तक वो आंखो से ओझल नहीं हो जाती।

कर्ण (मिसेज खन्ना से -) - मासी,ये कौन थी।
मिसेज खन्ना - ये नियति थी।मंजू,और मंजरी की इतिहास की कोचिंग टीचर।बहुत प्यारी बच्ची है।और इंटेलिजेंट भी।

हिस्ट्री टीचर सुन कर्ण हैरानी से कहता है क्या मासी,सच में ये टीचर वो भी इतनी कम उम्र में।आप मज़ाक तो नहीं कर रही हैं।

अरे सच में कर्ण।।इसे मै जानती हूं जहां मै पढ़ाती हूं न ये वहीं पढ़ती है।इतिहास में पूरे स्कूल में सबसे ज्यादा नंबर लेकर आती है।इतिहास और संगीत दोनो में ही रुचि रखती है और दोनो पर ही इसकी पकड़ है।मिसेज खन्ना हॉल में आते हुए कहती हैं।

नियति के बारे सुनकर कर्ण को न जाने क्यों एक चिढन का एहसास होता है।शायद इसका कारण उसमे निवास करने वाली असुरक्षा की भावना हो सकती है।

खैर मै उस दिन घर पहुंचती हूं और अपना बैग रख हाथ मुंह धो कर हमेशा की तरह मां की मदद करने पहुंच जाती हूं।

मां जो उस समय घर की साफ सफाई में व्यस्त होती हैं।क्यूंकि पापा को धूल से एलर्जी है,तो घर किसी भी कौने में धूल हो उन्हें बर्दाश्त नहीं है।इस कारण न जाने कितनी बार मां को जलील किया गया।।लेकिन मां हर बार खामोश रहती है एक शब्द नहीं कहती।

मै जाती हूं और मां की मदद करने लगती हूं। सुमति भी हमारे साथ ही होती है। घर की साफ सफाई झाड़ू पोंछा करने के बाद हम तीनो कुछ देर बैठ ही पाए होते है तभी बड़ा भाई कीचड़ में सने पैर लेकर घर में आ जाता है।जिसे देख कर मुझे थोड़ा गुस्सा आ जाता है। मां उसे देख कर मुझसे कहती है उसके पैर साफ करवा कर चप्पल धुलने को और उसके गंदे कपड़े साफ करने को। मां की ये बात सुन कर मै उनसे धीरे धीरे कहती हूं। मां मुझे कोई परेशानी नहीं होगी भाई का कार्य करने में।लेकिन क्या यूं इस तरह छोटी छोटी बातो पर उसकी मदद कर हम सब उसे आलसी नहीं बना रहे।इस तरह से तो वो कर्म करने से डरने लगेगा।किसी और की मदद करना तो दूर मां,वो खुद के कार्य करने में आनाकानी करेगा।

चुप कर छोरी।क्या बोल रही है।तुझसे कार्य करने को कहा है यूं पटर पटर बोलने को नहीं।वो क्या करेगा क्या नहीं ये देखने के लिए अभी मै बैठी हूं न यहां।जाओ जाकर मदद करो उसकी।और हां साथ ही ये कीचड़ जो फर्श पर पड़ा हुआ है उसे भी साफ कर देना।

मै वहां से चली जाती हूं।और भाई की मदद कर मां ने जो कार्य बताया था उसे पूरा करती हूं।मन ही मन सोचती हूं ये मां है कैसी मां है।।अपने ही बच्चो में ऐसा व्यवहार..कभी कभी तो इनका व्यवहार देख लगता है जैसे हम तीनो बहने इस घर की बेटियां नहीं होकर कोई काम करने वाली हो।

खैर कार्य कर मै अपने कमरे में चली जाती हूं और किताबो में सर खपाने लगती हूं।क्यूंकि एक बात तो समझ गई थी मै कि इं सभी हालातों से निकलने का एक ही रास्ता था वो था शिक्षित होना।शिक्षित होकर अपने पैरो पर खड़ा हो आत्मनिर्भर बनना।जिस कारण मुझे जब भी समय मिलता मै अध्ययन में जुट जाती।आजकल के बच्चो को इस बात का ज्ञान बेहतर तरीके से होता है उन्हें जीवन में करना क्या है।किस क्षेत्र में जाना है।क्यूंकि उनके पेरेंट्स का गाइडेंस होता है उनके साथ जिस कारण सही समय पर निर्णय ले लेते है आजकल के बच्चे।।अगर माता पिता की सलाह बच्चो को नहीं समझ आती है तो आजकल तो काउंसलर से भी सलाह लेने में पीछे नहीं हटते है।लेकिन मेरे समय ऐसा कुछ नहीं था।मुझे सही सलाह देने वाला भी कोई नहीं था।मै कुछ तो जीवन में करना कहती थी लेकिन क्या इस बात का निर्णय नहीं ले पा रही थी।

नियति की बात सुनकर लेखिका कहती है कितना मुश्किल रहा होगा आपके लिए ये तय करना, एक ऐसी लड़की के लिए जिसके पास अपने होकर भी जीवन के निर्णय अकेले ही लेने पड़ रहे हो वो भी इतनी कम उम्र में।

खैर अभी मुझे घर जाना है क्यूंकि अब ऑफिस से मेरे पति के घर आने का समय हो गया है।कल फिर मै आऊंगी आपके आगे की कहानी जानने के लिए..

जी अवश्य आइएगा।नियति अमृता से कहती है।अमृता सभी को बाय कह वहां से चली जाती है।तो वहीं नियति की अब तक की दास्तां सुन वहां मौजूद महिलाओं की आंखो में आंसू आ जाते हैं।जिसे देख नियति कहती है अरे आप सबकी आंखो में आंसू, नॉट गुड...अरे आज पार्टी है तो खुशी का दिन है।पार्टी की तैयारियां कर पार्टी को एंज्वॉय करो।

राघव आप भी इन सबकी मदद कीजिए।इनफैक्ट हम सब यहीं रुक कर सबकी मदद करते हैं।नियति सभी की तरफ देखते हुए कहती है।सभी हां कहते हुए उन सभी महिलाओं की मदद करने लगते हैं।देखते ही देखते कुछ ही मिनटों में सभी ने उस स्थान की सज्जा बेहद करीने से कर दी। वेस्ट पड़े हुए सामानों का भूत ही सुंदर उपयोग किया।सभी महिलाओं के धारण करने के लिए को वस्त्र होते है जिनमे दुपट्टे स्कार्फ, रुमाल और साड़ियां,शामिल है।सभी का यथोचित उपयोग किया है। साड़ियों का उपयोग परदे और वाल डेकोरेशन के लिए किया गया है।वहीं दुपट्टों का उपयोग टेबल के लिए किया गया है।खाली प्लास्टिक, और कांच की बॉटल पर थोड़ी सी डिज़ाइन बना कर उनका उपयोग टेबल पर रखने के लिए किया गया है। गार्डेनिंग का शौक रखने वाली महिलाओं ने खुद के उगाए हुए पौधों के फूलों से लड़िया तैयार कर सज्जा में चार चांद लगा दिए हैं।उन फूलों में गुलाब, चमेली, तरह तरह के गेंदे के फूल शामिल होते हैं।वृद्ध महिलाओं ने अपने अनुभव का उपयोग कर महिलाओं को निर्देश देते हुए स्वादिष्ट खाना बनवाया है।

नियति पार्टी की तैयारियां देख काफी खुश होती है और सभी का हौंसला बढ़ाती है और दिल खोलकर सबकी तारीफ करती है।इतने में अक्षिता जाग जाती है।अक्षिता को देख कोमल उसे लेकर घर चली जाती है।अक्षत राघव और नियति वहीं बाकी सबके साथ बैठ पार्टी की बची हुई आखिरी तैयारियां देख लेते हैं।
जब पूर्ण रूप से संतुष्ट हो जाते है तो सभी को पार्टी के लिए तैयार होने का कह वहां से चले जाते हैं।

अक्षत कोमल राघव और नियति सभी तैयार हो जाते हैं।ये सारी खुशियां वो उन सभी महिलाओं के लिए है जो उनके एनजीओ का हिस्सा है।जिन्होंने अरसे तक पार्टी होते देखा ही नहीं है उसका हिस्सा रहना दो दूर की बात रही।

नियति - वाओ कोमल आप काफी आकर्षक लग रही हैं।काफी सुंदर तरीके से खुद को मेंटेन किया हुआ है आपने।
नियति की बात सुन कर कोमल थोड़ा इतराते हुए कहती है, हां तो करना पड़ता है न।।एक लड़की की खूबसूरती कितने मायने रखती है तुम तो अच्छे से जानती हो न।

हां जानते है हम।तभी तो आपको प्रेरित करती रहती हूं खुद को मेन्टेन रखने के लिए।राघव और अक्षत भी आ जाते है तैयार होकर और सभी नियति के साथ घर के दूसरे हिस्से में बने NGO में पहुंच जाते है।
जहां बाकी की महिलाएं भी रेडी हो इन सभी के आने का ही इंतज़ार कर रही होती है।
नियति के वहां पहुंचने पर सभी बेहद खुश होती है और नियति का हाथ पकड़ सबके बीच मे ले जाती है जहां बाकी महिलाये नियति से केक कट कर खुशी को सेलिब्रेट करने का आग्रह करती है।सभी महिलाओं की खुशी के लिए नियति केक कट करती है।सभी एक साथ कलैपिंग करती हैं और केक एक दूसरे को खिलाती है।जो वृद्ध महिलाये होती है वो इतनी सारी खुशियो को देख भावुक हो जाती है और हृदय से नियति को ढेरो आशिर्वाद देती है।वही किनारे पर साउंड सिस्टम रखा हुआ होता है जिस लर अपनी अपनी पसंद के गाने चला महिलाये खुदही से झूमती है।ngo की सभी महिलाएं अरसे बाद इतना खुश होती है तो भावुक हो जाती है।
नियति सभी को संबोधित करते हुए कहती है अपूर्व ngo में आंसुओ के लिए कोई स्थान नही है।आप सभी खुश होकर इस पार्टी को एन्जॉय कीजिये।मैं अब जाती हूँ और भी कार्य है जो पेंडिंग पड़े हुए है।वो भी करने है।
सभी एक साथ जी साहिबा जी कहती हैं।नियति वहां से चली जाती है।नियति को आता हुआ देख राघव भी उसके पीछे निकल आता है।नियति वहां से सीधा आकर लिविंग रूम में अपनी फैमिली फोटोज़ के पास आकर खड़ी होती है।उसकी आंखें नम होती है।राघव आकर उसके आंसू पोंछता है और कहता है नही नियति..आज खुशी का दिन है सो आज आंसुओ को रहने दो।...

नियति राघव को थैंक्स कहती है और वहां से अपने कमरे में चली जाती है।वहीं राघव भी अपनी बहन के पास चला जाता है और अध्ययन में उसकी मदद करने लगता है।

दिन व्यतीत हो जाता है।अगले दिन सुबह सभी उठ जाते है।और तैयार होकर डायनिंग पर पहुंच जाते है।नियति वहां से उठकर पहले घर मे बने देवी के मंदिर जाती है और हाथ जोड़ कर उन्हें प्रणाम करती है।तथा हाथ से दीपक जला आरती वंदन पूर्ण करती है।राघव को किसी दैवीय शक्ति पर विश्वास नही होता है बस नियति के लिये उसके साथ मंदिर जाकर खड़ा हो जाता है।वहीं अक्षत कोमल और उनकी फैमिली दैवीय शक्तियों के अस्तित्व पर पूर्ण विश्वास करती है।समय समय पर घर मे दैवीय कार्यक्रम होते रहते हैं।

नियति मंदिर से चली आती है औऱ रति से नाश्ता लगाने को कहती है।नाश्ते में सलाद जूस,कुछ शाही परांठे और टॉमेटो की चटनी शामिल होती है।सभी नाश्ता कर लेते हैं।अक्षत कोमल नियति से घर जाने का कहते है।

नियति - घर जाना है।ठीक है चले जाइयेगा।मैं ड्राइवर से कह दूंगी वो आप दोनों को घर ड्राप कर आएगा।नियति ड्राइवर को कॉल कर गाड़ी निकालने के लिए कहती है ।तथा अंदर जाकर सबके लिए खरीदे गए उपहार अक्षत को दे देती है।अक्षिता ये देख कहती है बुआजी..मेरे लिए कोई उपहार नही?

अक्षिता की बात सुन नियति मुस्कुरा देती है और कहती है अरे मेरी नन्ही प्रिंसेस..आपके लिए है न उपहार और आपका उपहार ये रहा ये चॉकलेट से भरा हुआ बॉक्स।

अपनी पसंदीदा चॉकलेट देख अक्षिता खुश होते हुए नियति को गले लगाती हुई थैंक्स कहती है।

नियति - अच्छा प्रिंसेस ये बताइये आप ये चॉकलेट किसके साथ शेयर करोगी।

शेयर..अक्षिता अपनी आंखें बड़ी करते हुए पूछती है।

नियति - आप ऐसे हैरान क्यों हो रही हो।बिन शेयर किए अकेले अकेले खाना गलत आदत है।कोई भी चीज़ हो उसे मिल बांट कर खाना चाहिए।तभी तो हम अच्छे इंसान कहलायेंगे।और अच्छे इंसानो को माता रानी इनाम देती है।

ठीक है बुआजी!! हम याद रखेंगे।कहते हुए अक्षिता अपने चॉकलेट बॉक्स में से एक एक चॉकलेट सभी को देती है।अक्षत कोमल और अक्षिता ड्राइवर के साथ घर के लिए निकल जाते हैं।वहीं राघव उसकी बहन आरुषि और नियति ही घर रह जाते है।आरुषि को कॉलेज जाना होता है सो राघव से कह वो कॉलेज निकल जाती है

सुबह के दस बजकर तीस मिनट होने जा रहे हैं।नियति के घर की डोरबेल बजती है।रति जाकर दरवाजा खोलती है।दरवाजे पर अमृता जी होती है।उन्हें देख रति उन्हें अंदर आकर हॉल में बैठने के लिए कहती है।अमृता अंदर आकर एक निगाह चारो ओर फैलाती है फिर हॉल में पड़ी हुई कुर्सी पर जाकर बैठ जाती है।नियति भी ngo से आ जाती है।अमृता और नियति एक दूसरे को प्रणाम कर अभिवादन करती है।और रति से चाय नाश्ते का इंतज़ाम करने को कहती है।
मिस नियति ये सब तो होता ही रहेगा,फिलहाल आप मुझे अब आगे की दास्तां सुनाइये.. अमृता एक्सइटेड होकर कहती है।

नियति - जी बिल्कुल।।लेकिन एक छोटा सा कार्य रह गया है वो राघव से बोल दु, वो पूरा कर देगा।
नियति राघव को आवाज़ लगाती है और उससे कहती है राघव नए प्रोजेक्ट वाली फाइल जो है वो लगभग पूरी हो गयी है तुम जाकर ये फाइल ngo में रहने वाली महिलाओं को दिखा लाओ।और उनकी अभिरुचि के अनुसार ये सामने बने बॉक्सेस में निशान लगवा लाओ।जिससे हम सभी केटेगरी बना समझ सके किस की किसमे रुचि है।

राघव फाइल लेकर वहां से चला जाता है।और नियति अपनी दास्तां प्रारम्भ करती है..

अगले दिन जब मैं मिसेस खन्ना के घर पढ़ाने के लिए गयी तो वहां मौजूद कर्ण को अपनी तरफ देख मुस्कुराते हुए पाया।उसकी मुस्कुराहट देख एक क्षण के लिए मैं अंदर तक कांप गयी।क्योंकि अतीत में इसी मुस्कुराहट की वजह से मैंने अपने जीवन के महत्वपूर्ण दो वर्ष गँवा दिए।लेकिन फिर खुद को सम्हालते हुए मैं बिन कोई रिस्पॉन्स दिए वहां से चली गयी।और स्टडी रूम में दोनों लड़कियों का इंतज़ार करने लगी।आज से मुझे नया विषय शुरू करना था सिविलाइजेशन्स...!! जिनमे विश्व की कुछ महत्वपूर्ण सभ्यताएं शामिल थी।

कुछ ही देर में बच्चियां आ जाती है और मैं पढ़ाना शुरू करती हूं।तभी कर्ण भी वहां आ जाता है और नोटबुक लेकर वहीं बैठ रुचि से पढ़ने लगता है।

अब पढ़ाई तो एक बहाना होता है उसके लिए।दरअसल उसका मकसद कुछ और ही था और वो था मुझसे नजदीकियां बढ़ाना।लेकिन मैं अपने घर के नियम कायदों को अच्छे से समझती सो उसकी इस गतिविधि पर मैने कोई खास ध्यान नही दी।बस यही सोच लिया मैं अपनी जगह सही हूं और मुझे यहां पढ़ाने आना है फिर चाहे वो एक छात्र हो या फिर अनेक।
एक दिन,दो दिन,तीन दिन,....सात दिन।.
दस दिन हो गए इन सब दिनों में उसने हर सम्भव प्रयास किया मेरा ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करने का लेकिन सफल नही हो सका।
एक दिन जब मैं कृति के साथ मैडम जी के घर पहुंची तो उसने मुझसे दो मिनट के लिए बात करने का आग्रह किया।

कर्ण - जरा सुनिए मुझे आपसे कुछ बात करनी है।
मैं - समझ गयी थी उसे किस विषय पर बात करनी है तो मैंने भी बात को टालने के उद्देश्य से कहा अभी तो क्लास का समय है आपको जो भी बात करनी हो क्लास के बाद करना।ठीक है कह कर गर्दन नीची कर वही स्टडी रूम में ही बैठ गया।एक घंटे तीस मिनट क्लास चली फिर मैंने सभी की छुट्टी कर दी।

जब उसने देखा क्लास ऑफ हो चुकी है तो वो फिर से मेरे पास आया और कहा कि उसे मुझसे कुछ बात करनी है।जैसे ही उसने ये कहा मेरा तो मुंह बन गया और बुदबुदाई अजीब इंसान है अगर मुझे बात करनी ही होती तो कुछ देर पहले ही कर लेती।लेकिन ये महाशय तो गोंद की तरह चिपक रहे हैं।बात करनी है।बात करनी है।सडू सा फेस बनाते हुए मैंने उससे कहा,कहिये क्या बात करनी है आपको।उस समय कृति मेरे साथ ही थी।कृति को देख कर कहता है वो अकेले मे कुछ बात करनी है।जिसे सुन कर मेरा पारा चढ़ गया मैंने लगभग डांटने वाले अंदाज़ में उससे कहा क्यों ऐसी कौन सी बात है जो यहां नही हो सकती।।बताइये? और यहां है ही कौन अजनबी ये मेरी प्यारी छोटी बहन है।वो कुछ दूरी पर मिसेज खन्ना है जो मेरे लिए आदरणीय है।अब जो भी कहना है तुम यहीं कह सकते हो।अगर नही कहना है तो बात को भूल जाइए।मेरा रुख देख कर वो कहता है ठीक है मुझे कोई दिक्कत नही है।अब मैं कहूंगा नही ये लो(एक लेटर मेरे हाथ मे थमाते हुए)इसमे मैंने अपने हृदय की सारी बात लिख दी है।जो भी मुझे तुमसे कहना है घर जाकर आराम से पढ़ना और मुझे जवाब देना।उसकी इस हरकत को देख कर मैं बिफर पड़ी और चिल्लाते हुए बोली - ये क्या हरकत है कर्ण।तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ये सब करने की।कहते हुए वो लेटर मैने वापस कर्ण के हाथ मे थमा दिया।मेरे चिल्लाने की आवाज़ सुन कर मिसेज खन्ना और उनके बच्चे सभी मेरी तरफ देखने लगे जिससे लेटर कर्ण के हाथ मे देते हुए मिसेज खन्ना ने देख लिया ।मिसेज खन्ना ने लड़कियों को उनके कमरे में जाने के लिए कहा और खुद चल कर हम लोगो के पास आ गयी।

मिसेज खन्ना को वहां आया हुआ देख कर्ण सकपका गया।और इधर उधर झांकने लगा।वहीं मेरा मुंह तो गुस्से से लाल हो रखा था।आंखे अंगारो की तरह दहक रही थी।और सांसो की आवाज़ तो एक मीटर दूर खड़ा व्यक्ति भी सुन सकता था।इतना गुस्सा आ गया था मुझे उस समय।

मिसेज खन्ना आकर पूछती है क्या बात है क्या किया कर्ण ने।और नियति तुम ये क्या दे रही थी कर्ण को
ये सुन कर कर्ण बातें बनाते हुए कहने लगा देखिए न मासी।ये दिया नियति ने मुझे (लेटर दिखाते हुए कहता है)।जब मैंने उसे वापस लौटा दिया तो गुस्से में कहने लगी ये क्या हरकत है।

अच्छा।मैं भी तो देखु ऐसा क्या लिखा है इस लेटर में।जो नियति मुंह से नही कह पाई।इस लेटर में लिख कर कहने को मजबूर हो गयी।कहते हुए उन्होंने कर्ण के हाथ से वो लेटर ले लिया।और खोल कर पढ़ने लगी।इससे पहले कि वो कुछ पढ़ पाती कर्ण ने ये कह कर मिसेज खन्ना का ध्यान बंटा दिया कि मासी आप पढ़ते ही रहो तब तक नियति यहां से खिसक ले रही है।मिसेज खन्ना ने लेटर वाला हाथ नीचे कर गर्दन उठा कर देखा तो कर्ण फुर्ती से मेरी तरफ आ गया और मेरा हाथ पकड़ मैडम जी के हाथ से वो लेटर छिनवा दिया।जिससे सारि गलती मेरे सर आ जाये।हुआ भी ऐसा ही।मेरे हाथ मे लेटर देख वो कहती है ये क्या बदतमीजी है नियति।इसका अर्थ तो यही हुआ कि कर्ण सही कह रहा है।
नही मैडम जी।ये गलत है।मैंने ऐसा कुछ भी नही किया।ये तो कर्ण ने ही मुझे दिया है।और अभी अभी उसने ही ये... मैं आगे कुछ कह पाती तभी कर्ण ने एक जोरदार चांटा मेरे गाल पर दे मारा।और कहने लगा कितनी झूंठी हो तुम।ये सब तुमने किया।तुम्हारे ही चरित्र में खोट है।तुमने ही मुझसे अपनी क्लास में पढ़ने के लिए कहा था।और तो और तुमने ही उस दिन मुझसे कहा था कि तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो।इसी तरह कुछ और बातें झूठ मिलाकर मैडम जी से कह देता है।

नही मैडम जी मैं सच कह रही हूं।ये सब इन्होंने ही किया है।इनकी कहि हुई एक एक बात झूठ है।मेरा यकीन कीजिये।आप चाहे तो कृति से पूछ लीजिये।ये तबसे मेरे ही साथ है।

ओ हेल्लो मिस झूठी।अब इस सफाई का कोई फायदा नही है और कृति वही कहेगी जो तुमने उससे बोला होगा कहने को।बहन है तुम्हारी।तुम्हारा ही साथ देगी।

नही !! कर्ण तुम झूठ क्यों बोल रहे हो।सच कहिये अपनी मासी से।मैं रोते हुए कर्ण से कहने लगी।मेरे हृदय की पीड़ा उस समय सिर्फ मैं ही समझ सकती थी।क्योंकि ये सारी बात अगर घर पहुंच गई तो मेरे साथ क्या होगा ये मैं सोच सोच कर ही सिहर उठती थी।आंसू मेरी आँखों से रुक ही नही रहे थे।मैंने बहुत अनुनय विनय की कर्ण से कि वो मैडम जी से सावन कहे।लेकिन वो अपनी बात पर अड़ा रहा।जिसे देख मैडम जी मुझसे कहती है

नियति मैने तुम्हे क्या समझा और तुम क्या निकली।तुम ऐसी लड़की होगी छी.. अब से तुम्हे यहां आने की कोई जरूरत नही है।कर्ण मेरी दीदी का बेटा है मुझसे झूठ क्यों कहेगा।तुम्हारा सारा हिसाब किताब मैं कल स्कूल में कर दूंगी अभी तुम जाओ यहां से।और अब से आने की कोई जरूरत नही है।

मैडम जी की बात सुन मैंने उनसे बहुत रिक्वेस्ट की कि मेरी बात का यकीन कीजिये।मैं झूठ नही बोलती मैडम जी।उनसे हाथ जोड़ कर मिन्नते की,लेकिन उन्होंने यकीन नही किया।अंत मे मैं अपनी बहन कृति को साथ लेकर आंखों में आंसू भरे वहां से चली आती हूँ।मैडम जी का घर कस्बे में होता है और मेरा गांव में।रास्ते मे आते समय बहुत से बाग बगीचे पड़ते है।बड़ी मुश्किल से मैंने अपने आंसुओ को रोके रखा था क्योंकि मैं नही चाहती थी कि मेरे आंसूओ पर किसी की नज़र पड़े और मुझसे उसका कारण पूछने लगे।दुपट्टे को मुंह पर डाल रखा था।मैडम के घर से निकल जैसे ही आम के बगीचे के पास पहुंची एक आम के पेड़ के नीचे बैठ जोर जोर से रोने लगी।मेरी आँखों मे आंसू देख मेरी छोटी बहन भी भावुक हो गयी और उसकी आंखें भी नम हो गयी।अपने हाथो से मेरे आंसू पोंछ कहने लगी जीजी आप रोइये नही।मुझे सब पता है मैंने सब देखा है।आपकी गलती नही है वो गन्दे वाले भैया की गलती है।उस समय एक कृति ही थी मेरे पास मेरे आंसू पोंछने के लिए।उसकी बातें सुन कर मन को थोड़ी शांति मिली।मैं ज्यादा देर वहां बैठ भी नही सकती थी सो कृति का हाथ पकड़ घर की ओर चलने लगी।घर पहुंच कर जब हाथ मुंह धो मां की मदद करने के लिए उनके पास गई तब मेरा उतरा हुआ मुंह देख उन्होंने कारण पूछा।मुझे समझ नही आ रहा था कि क्या कहूँ तभी कृति कहती है ये तो इसीलिए है मां अब दी को वहां पढ़ाने जो नही जाना।क्योंकि उनका सिलेबस पूरा जो हो गया है।इतने दिनों में उनसे एक तरह से लगाव हो गया था तो इसीलिए दी का चेहरा उतरा हुआ है।

ठीक है।तो अब तुम दोनों छत पर जाओ और सूखे हुए कपड़े उतार लाओ।जी मां कहते हुए मैं और कृति छत पर पहुंचे जहां मैंने कृति को गले लगा थैंक यू कहा।उस दिन मुझे कृति के रूप में सबसे अच्छी सहेली मिली।अपने मन की सारी अच्छी बुरी बातें मैं कृति से शेयर कर लेती थी।नियति अपने आंसू पोंछते हुए कहती है।

अमृता रति से पानी लाने को कहती है।क्योंकि नियति उस समय बहुत ही भावुक हो गयी थी।अमृता नियति के कंधे पर हाथ रख दूसरे हाथ से उसके सर पर हौले हौले थपकी देते हुए कहती है।बस बस नियति।ये जो भी था वो अतीत था।तुम शांत हो जाओ।और ये लो पानी पियो।जो रति अभी अभी लेकर वहां आयी होती है।

अमृता नियति को पानी का ग्लास देती हैं जिसे रति वहां लायी हुई होती है।नियति थोड़ा पानी पीती है और बाकी वही पास में पड़ी टेबल पर रख देती है।

मैं अब बेहतर महसूस कर रही हूँ अमृता जी।शुक्रिया आपका।आप चिंतित न हो।कहते हुए नियति अमृता जी का हाथ पकड़ अपने दूसरे हाथ से दबाते हुए कहती है।जवाब में अमृता भी मुस्कुरा देती है।

नियति अब आगे बताती हूँ ---

कृति ने मिसेज खन्ना के घर जो भी हुआ बस अपने तक ही सीमित रखा।शायद इस घर के हालातों से वो भी अब वाकिफ होने लगी थी।

अपने इरादों में कामयाब न होने पर कर्ण ने इसे अपनी इंसल्ट समझी।उसे लगा उसे न क्यों कहा ।।

मेरी स्कूलिंग की लास्ट ईयर थी।उस पर भी परीक्षाएं नजदीक ही थी।इसी बात का सुकून था कि परीक्षाए नजदीक है परीक्षाओ के बाद मुझे वापस इस जगह नही आना होगा।न ही मिसेज खन्ना का सामना करना होगा।मिसेज खन्ना के लिए मेरे मन मे कुछ कड़वाहट आ गयी थी।शायद इसका कारण उनका एकतरफा फैसला लेना भी रहा।

परीक्षाएं भी शुरू हो गयी।मां अब बस रसोई का
कार्य भार ही देखती।बाकी सारा कार्य मेरे जिम्मे आ पड़ा था।घर का कार्य करने के बाद आठ बजे स्कूल पहुंचना थोड़ा मुश्किल जो जाता था।लेकिन अभ्यस्त हो गयी थी इस बात के लिए।सुबह चार बजकर तीस मिनट पर उठना ,उसके बाद अपने दैनिक कार्य करना।पांच बजे फ्री हो जाना।फिर घर के कार्यो में हाथ बटाना।पूरे घर का झाड़ू पोंछा,साफ सफाई ये कार्य मेरे ही जिम्मे था।सुमति को बाहर तबेले का कार्य करने दिया गया।और कृति को रसोई में मां की मदद करनी होती है।

परीक्षाएं शुरू हुई।पहले दिन सही समय पर पहुंच गई।लेकिन अगले दिन थोड़ा लेट हो गयी।क्लास रूम में ड्यूटी मैसेज खन्ना की थी।मुझे लेट आता देख वो सबके सामने मुझे सुनाने लगी।

मिसेज खन्ना - ये कोई समय है परीक्षा में आने का।घड़ी देखी है पूरे पंद्रह मिनट लेट हो तुम।खैर तुमसे कहने ला कोई लाभ तो है नही।

उस दिन मेरी गलती थी तो चुपचाप खड़ी खड़ी सुनती रही।मुझे कोई जवाब न देता देख मिसेज खन्ना कहती है ये स्कूलिंग की लास्ट ईयर के फाइनल एग्जाम है तुम्हारे भविष्य का प्रश्न है।इसीलिए तुम्हे परीक्षा में बैठने की अनुमति दे देती हूं।लेकिन अगली बार दोबारा देर हुई तो फिर तुम्हे अनुमति नही दी जाएगी।समझी!! जाओ क्लास में।

मिसेज खन्ना को धन्यवाद कह कर मैं वहां से अपने परीक्षा कक्ष की ओर चली गयी और बैठ कर प्रश्न पत्र पढ़ने लगी।चूंकि इतिहास का एग्जाम था तो सबसे पहले सारे प्रश्न हल कर दिए बैठ गयी।बीस मिनट बाकी थे एग्जाम खत्म होने में।तो दोबारा प्रश्न ही पढ़ने लगी।मुझे बैठा हुआ देख एग्जाम नर कहता है क्या हुआ कैसे बैठी हुई हो।प्रश्न पत्र सॉल्व हुआ कि नही।
मैं - जी मैम हो गया है सॉल्व।आप कॉपी जमा करेगी नही इसीलिए आपसे कहा ही नही।
ठीक है कह एग्जाम नर क्लास में राउंड लगाने लगे।समय हो गया और पेपर छूट गया।
धीरे धीरे समय निकलता गया।एग्जाम भी हो गए।और मैं अच्छे नम्बरो से पास भी हो गयी।

कॉलेज में एडमिशन लेने का समय भी आ गया।लेकिन समस्या वही कि घर कहे कैसे।आगे पढ़ने की इच्छा थी लेकिन असमंजस की स्थिति थी कि घर कहूँ या न कहूँ।अगर न कहते भी है तो बात आगे बढ़ेगी नही।और अगर कहते है तो पता नही कैसा रिएक्ट करे।क्योंकि कॉलेज हमारे गांव में नही था।और न ही आस पास के गांवों में था।कॉलेज में पढ़ने के लिए मुझे शहर में रहना होता और मेरे घर पर शायद ही मेरी इस इच्छा को कोई सम्मान देता।जब वहां हम लड़कियों का ही सम्मान नही है तो उनकी इच्छाओ का भला क्या सम्मान होता।
इसी ऊहापोह की स्थिति में कब मां के पास पहुंच गई पता ही नही चला।

मुझे किसी समस्या में उलझे हुए देख कर मां ने मुझसे प्रश्न किया क्या हुआ नियति ये कैसा मुंह बनाये हुए हो।अगर कोई दिक्कत है समस्या है तो बताओ मुझे।

मां की बात सुन मैंने उनसे कहा हां मां एक बात है जो मैं आपसे कहना चाहती हूं।

मां - तो इसमें इतना सोचने विचारने की क्या जरूरत है।जो भी कहना है कहो।

मां का जवाब सुन मैंने मन ही मन जै माता दी कहा और हिम्मत करते हुए मां से कहती हूँ

मां मेरा स्कूल पूरा हो गया है।और अब आगे की पढ़ाई के लिए कॉलेज एडमिशन लेना चाहती हूं।

कॉलेज ?? नाम सुनते ही मां कहती है अब कोई जरूरत नही है आगे पढ़ने की।और पढ़ लिख कर कौन सा तुम कलक्टर बन जाओगी।इंटर हो गया न वही बहुत है।और छोरी वैसे भी मैंने तुम्हें सहमति दे भी दी तो तुम्हारे पापा इस बात के लिए मना कर देंगे।तुम्हारी बुआ ने भी इतनी पढ़ाई नही की जितनी तुम्हे करा दी है हम सब ने।और अब तुम्हारे पिताजी तो तुम्हारे विवाह के विषय मे सोच रहे हैं।शायद एक दो रिश्ते देखे भी है उन्होंने।बातचीत चल रही है।तो ऐसे में तेरा पढ़ने की बात मुझे नही लगता वो इसके लिए सहमति देंगे।

इतने समय मे अपनी बात रखनी आ गया था मुझे।मैंने अपनी मां को कन्विंस करते हुए कहा

मां बस पढ़ाई ही तो करना चाहती हूं।और पढ़ना कोई बुरी बात या बुरी आदत तो है नही।मैं पढ़ना चाहती हूं।जीवन मे कुछ करना चाहती हूं।रही विवाह की बात तो मैं कौन सा मना कर रही हूं।बस एक बार मेरा कॉलेज पूरा हो जाये मुझे डिग्री मिल जाये।फिर आप लोग जो करना चाहते है कर सकते है।
मेरी बात सुन कर मेरी मां मुझसे कहती है
देख छोरी मुझे इस बारे में कुछ नही कहना तू खुद ही अपने पापा से बात करना अगर वो मान जाते है फिर मुझे कोई दिक्कत नही।तू जितना चाहे उतना पढ़ना।फिलहाल तो अभी घर के कामो में ही हाथ बंटा।

मैं अपने जिम्मे के सारे कार्य करने लगी।और मिनटों बाद कार्य खत्म हो भी गया।दोपहर के भोजन का समय हो रहा था।पापा दादाजी,दादी सभी घर के सदस्य डायनिंग पर आकर एकत्रित हो गए थे।मेरे पास भी यही समय था बात करने का।क्योंकि इसके बाद पापा शाम को ही घर दिखेंगे।और अगले दिन मुझे कॉलेज फॉर्म भरना था।लास्ट डेट जो थी।बाकी दिन तो मैंने ये सोचने विचारने में ही गंवा दिए क्या कहूँ,कैसे शुरुआत करू बात की,पता नही कैसा रिस्पॉन्स मिले मेरी बात का......

मेरे चेहरे की हवाइयां उड़ी हुई थी।हलक में पानी सूख गया था।लेकिन कहना तो था ही यही सोच कर एक बार मैंने कृति की तरफ देखा जो मेरी ही तरफ देखे जा रही थी और आंखों आंखों से इशारे कर रही थी बात शुरू करने के लिए...।

लेकिन मेरी हिम्मत जवाब दे रही थी।जब मैं कुछ नही कह पाई तो कृति ने गुस्से से मेरी तरफ देखा और खड़े होकर पापा से विनम्रता से कहने लगी..

पापाजी वो नियति दी को आपसे कुछ बात करनी है..

पापा ने कृति से कहा अगर नियति को बात करनी है तो तुम क्यों बोल रही हो।वो स्वयं कहेगी उसे क्या कहना है।और मेरी तरफ प्रश्नवाचक निगाहों से देखने लगे।

पापा को मेरी तरफ देखता देख मैं सकपका गयी और मरी हुई अटकती सी आवाज़ में कहने की कोशिश करने लगी..

वो ..पापाजी.. मैं आगे पढ़ना चाहती हूं।।यहां अब आगे की पढ़ाई नही हो सकती।क्योंकि स्कूलिंग खत्म हो गयी है मेरी..अब कॉलेज में ही पढ़ाई करनी होगी तो....!! कहते हुए मेरी जबान सुख गयी और मैं चुप हो गयी।

मेरी बात सुनकर पापाजी पहले तो चुप हो गए।।फिर कुछ क्षण सोचने के बाद कहते है ठीक है पढ़ना चाहती हो पढ़ लेना।मेरे जानने वाला है आगरा कॉलेज में।उससे बोल दूंगा तुम्हारा एडमिशन हो जाएगा।और रहने की व्यवस्था भी हो जाएगी।

पापा की बात सुन मुझे जोर का झटका लगा।औऱ उस समय ऐसा लगा जैसे मैं सपना देख रही हूं।ये मेरे जीवन का पहला वाकया था पिताजी के साथ जब बिन कोई प्रश्न पूछे,या बिन कोई आर्गुमेंट किये उन्होंने किसी बात के लिए अपनी सहमति दी हो।
मैंने सहमति में अपना सर हिलाया और कार्य मे लग गयी।
लंच खत्म हो गया।सभी अपने अपने कार्य के लिए चले गए।लेकिन मेरे मन मे अभी भी उथल पुथल मची हुई थी।क्योंकि आज जो भी पापाजी ने किया वो उनके स्वभाव के विपरीत था।न जाने क्यों मेरे मन मे कुछ गड़बड़ होने के ख्याल चल रहे थे।और अपने ही ख्यालो में उलझी हुई मैं इधर से उधर ,उधर से इधर राउंड लगा रही थी।मेरी इस उलझन को देख कृति मुझसे कारण पूछती है।

कृति मै बस ये सोच रही थी कि पापाजी बिना कोई ना नुकुर किए मेरे कॉलेज के लिए मान गए।कैसे और क्यों।मेरे समझ से परे है ये बात।

कृति - हां दी कह तो सही रही है आप।हो सकता है पापाजी चाहते हो आप आगे पढ़े।आपके स्कूल रिकार्ड देखकर शायद उन्हें ऐसा लगा हो कि आपको आगे पढ़ाना चाहिए।

ओह हो कृति।अब पापाजी को तुम भी जानती हो और मै भी।बचपन से देखते आ रहे है उन्हें।मुझे तो सच में अभी तक यकीन नहीं हो रहा कि पापाजी ने हां कह दी।

कृति - ठीक है दी।अब जो होगा आगे देख लेंगे फिलहाल तो आप और मै यही सोच कर खुश हो लेते है कि अब इस घर की रोक टोक से निकल कुछ सालो के लिए ही सही सुकून कि सांस तो ले सकेंगे।कुछ सालो के लिए ही सही भेदभाव के इस दम घोंटू वातावरण से दूर रहेंगे।जहां आप अपने मन के हिसाब से जीवन के कुछ खूबसूरत पल चुरा कर जी लोगी।जो आगे हमारे साथ एक खूबसूरत याद की तरह हम में एक नहीं ताजगी का संचार करेगा।

कृति की बाते सुन मन को मेरे बहुत सुकून मिला।और ऐसा ही हो मेरी बहन।तेरे मुंह में घी शक्कर।।सच में इस समय तेरे मुख में माता सरस्वती का वास हो और तेरी कहीं हुई ये बात सच हो जाए।कहते हुए उसे गले से लगा लेती हूं।

जिसे देख कृति कहती है ओह हो दी।आप भी न।खुश होते ही सबसे पहले गला पकड़ती हो

चल हट पगली।।हसंते हुए मै उससे कहती हूं और उससे अलग होती हूं।लेकिन इस बात से पूर्णतः अनजान कि वाकई में पापा ने कुछ और सोचकर ही मुझे कॉलेज में पढ़ने के लिए हां किया है।जिसका पता तो मुझे बाद में चला..

खैर अगले दिन मुझे कॉलेज जाना होता है।जो शहर आगरा में होता है यानी हमारे यहां से लगभग पचास किलोमीटर दूर।। मै पापाजी के ड्राइवर के साथ घर से कोलेज के लिए निकल गई।पापाजी ने अपने दोस्त से पहले ही फोन कर मेरे आने के विषय में बता दिया था और एडमिशन की जिम्मेदारी भी उसी को दी।
पापाजी का वो दोस्त दरअसल आगरा में ही एक स्कूल में प्रिंसिपल था जिस कारण कोलेज के लेक्चरर से उसकी अच्छी खासी जानपहचान हो गई थी।मुझसे जानबूझकर ये कहा गया कि वो कोलेज में ही कार्य करते हैं।जिससे मै अपनी लिमिट न भूल जाऊ।कुछ भी ऊटपटांग ख्यालात भी अपने दिमाग में न लाऊ।

एक ढेड घंटे बाद मै आगरा पहुंच गई।इस बात से अनजान कि वहां मुझे मेरी किस्मत लेकर जा रही है जहां जाकर मुझे प्रेम के उस रूहानी रूप का एहसास होने वाला था जो हम सभी अक्सर किस्से और कहानियों में सुना करते हैं......जहां जीवन के कुछ अहम रिश्ते मुझे मिलने लिखे थे..वो रिश्ते जो स्वार्थ से परे थे!! सच्चे।।और आत्मीयता के रिश्ते..जिन रिश्तों में शामिल थे दो सच्चे भाई,एक प्यारा और सच्चा दोस्त राघव,और वो...जिससे मिलने के बाद मेरी जिंदगी, मेरी सोच,मेरा व्यक्तित्व सब बदल गए...

मेरी नियति मुझे वहां लेकर जा रही थी।मै और मेरी बहन अपनी गाड़ी में बैठे हुए थे।जुलाई शुरुआत का महीना था।जब मै घर से निकली थी तो आसमान साफ था।बस हल्की हल्की घटाए थी।आगरा पहुंचते पहुंचते बादल घिर आए थे।ठंडी ठंडी हवाओं ने चलना शुरू कर दिया। बादलों की गड़गड़ाहट स्पष्ट रूप से सुनाई दे रही थी।मानो गरज गरज कर मुझे आगाह कर रहे हो सम्हल जाना नियति ये एक हवा का झोंका ऐसा आयेगा जिसमें या तो तुम खुद को सम्हाल लोगी या फिर तिनके तिनके होकर बिखर जाओगी।
ड्राइवर ने आगरा कॉलेज के मुख्य द्वार पर अपनी गाड़ी रोकी।

मै - ड्राइवर भैया,हम लोग कॉलेज पहुंच क्या,वो आपने गाड़ी रोक दी इसीलिए पूछ रही हूं

ड्राइवर - हां बिटिया।ये रहा सामने आगरा कॉलेज का प्रवेश द्वार।आप यहां उतर जाइए मै गाड़ी पार्किंग में लगा कर यही मुख्य दरवाजे पर आप दोनों का इंतजार करता हूं।

ठीक है भईया कहकर हम दोनों ही गाड़ी से उतरते है।कॉलेज का आर्किटेक्चर देख मन बग बाग हो गया।

मै और मेरी बहन अपना पहला कदम कोलेज में रखते हैं। न जाने कैसी एक गुदगुदाती हुई अनजानी मुस्कुराहट स्वत मेरे चेहरे पर आ गई।मानो मेरे सपनो को साकार करने की मेरी मंज़िल इस कोलेज के रूप में मेरे सामने खड़ी हो।और उस मंज़िल तक ले जाने वाला एक अनजान साथी अपना हाथ बढ़ा मेरे कांपते हाथो को सहारा देने को आतुर हो..

हम दोनों ही गांव से आए हुए थे डरा सहमा माहौल मिला था अब तक।जिसका प्रभाव मेरे पहनावे और मेरे व्यक्तित्व पर साफ तौर पर दिखाई दे रहा था।

मैंने कोलेज में एंट्री ली और नज़रे झुका अपनी बहन के साथ आगे बढ़ने लगी।अब पहला दिन था कोलेज का,न प्रिंसिपल रूम का पता, जहां फार्म मिलते है उस काउंटर का मुझे पता नहीं था फिर भी मै चलती चली जा रही।मुझे देख मेरी बहन कहती है दी आप यहीं रुको मै जरा यहां आसपास खड़े हुए छात्रों से कार्यालय का पता पूछ कर आती हूं।आपसे कुछ न होना। कॉलेज है ये यूं इस तरह दब्बू किस्म का व्यवहार करोगी तो यहां सब आपका मज़ाक उड़ाएंगे।अरे माना किसी से बात नहीं कर सकती आप लेकिन अपनी नज़रे उठा कर चारो तरफ देख तो सकती हो।रास्ता तो पता चल ही जाएगा।।और अभी यूं कहां चलती चली जा रही थी आप..।। हां न ही ऑफिस का रास्ता पता,और न ही काउंटर का।फिर किधर..।

अपनी बहन कि बाते सुन मुझे एहसास हुआ कितनी नर्वस हो गई थी मै।यहां आकर।।सारी हिम्मत,सारी समझदारी सब छू मंतर हो गए थे।मैंने उसे थैंक यूं कहा और आगे से ध्यान रखेगी ये कह कर अपने आप में आत्मविश्वास लाने की चेष्टा करने लगी।मेरी बहन ने वहां मौजूद कुछ छात्रों से एप्लीकेशन फार्म मिलने वाले काउंटर का पता पूछा।और वो मुझे लेकर वहां चली गई।वहां जाकर मैंने काउंटर पर मौजूद व्यक्ति से एक फार्म मांगा और सुमति को साथ लेकर पास ही पड़ी बेंच पर बैठकर भरने लगी।
तभी एक मीठी सी लेकिन आत्मविशवास से लबरेज आवाज़ सुनाई दी..हेल्लो..सुनिए जरा..
अब क्यूंकि मेरे साथ सुमति थी कृति नहीं और मुझे उस पर भरोसा भी इतना नहीं था सो उपर देख कर सुमति से ही पूछने के लिए इशारा किया।

सुमति - जी कहिए।।

आवाज़ - मेरे पेन की इंक ख़तम हो गई है अगर आपके पास कोई एक्स्ट्रा ब्लैक पेन हो तो प्लीज़ दे दीजिए।।न जाने कैसी खनक थी उस आवाज़ में जो मुझे खींच रही थी।लेकिन खुद को मजबूत बना रख बैठी रही और अपना कार्य करने में व्यस्त रही।क्यूंकि एक गलती और मेरा कॉलेज फिनिश..

सुमति - पेन तो है ये लीजिए।और हां वो सीट खाली है वहां बैठ कर फिल कर लीजिए और पेन लौटा दीजिए।

जी थैंक्यू कहा उसने और पेन लेकर मेरे बगल से होकर पास ही पड़ी खाली सीट पर बैठ गया।बदल तो थे ही हवाएं भी चल ही रही थी कि तभी न जाने कैसे मेरे दुपट्टे का एक कौना उड़ कर उसके चेहरे पर लग उसे परेशान करने लगा।मै अपने कार्य में लगी हुई थी तो मैंने कुछ ध्यान ही नहीं दिया ..
उधर वो अपना कार्य छोड़ दुपट्टे की ओट से मुझे कार्य करते हुए देखने लगा।लेकिन मेरी गुंथी हुई चोटी के आगे आने के कारण वो मेरा चेहरा नहीं देख पाया।सुमति ने जब ये दृश्य देखा तो मुझसे कहने लगी क्या दी आप इतना मग्न हो गई कि आपका दुपट्टा कहां है आपको ये ध्यान तक नहीं रहा।

सुमति के कहने पर मैंने मुड़कर अपने दुपट्टे को देखा जिसका एक छोर उस अजनबी लड़के के चेहरे पर था।ये देख मै सहम गई और उससे सॉरी कह अपना दुपट्टा जल्दी से ठीक कर लिया।
मेरा फार्म भर गया था तो मै सुमति को साथ लेकर फार्म जमा करने चली गई।वहीं सुमति ये कह खड़ी हो गई नहीं जीजी पहले मै अपना पेन तो ले लूं।इकलौता पेन है मेरा,ऐसे कैसे छोड़ दूं।

मेरी बात सुन वो कहता है आप टेंशन न लो मेरा फार्म भी अल्मोस्ट भर गया है आप काउंटर तक पहुंच नहीं पाएगी तब तक मै आपका पेन लौटा दूंगा।

सुमति धन्यवाद कह वहां से मेरे साथ काउंटर पर चली आती है हम लोग फार्म जमा भी नहीं कर पाते तब तक वो आ जाता है और थैंक यूं कहते हुए पेन लौटा देता है।

वो - ( हाथ बढ़ाते हुए) हाई।।मै अमर प्रताप सिंह।।इतिहास विषय से इस कोलेज में एडमिशन लिया है मैंने।

सुमति ये देख हाथ जोड़ कर कहती है - शुक्रिया,लेकिन मैंने किसी विषय में एडमिशन नहीं लिया है।सुमति का बिहेव देख अमर थोड़ा हैरान होता है।लेकिन फिर कहता है अगर एडमिशन नहीं लेना है तो फार्म फिल क्यों कर रही हो।

सुमति - अरे ये आपसे किसने कहा कि एडमिशन नहीं लेना है।मुझे एडमिशन नहीं लेना है लेकिन इनको लेना है इन्हीं के साथ यहां पर आईं हूं।
फार्म फिल कर देती है और फी भी जमा कर दोनों वहां से निकल जाती है।कोलेज राउंड के लिए।

अमर भी फार्म फिल कर वहां से चला जाता है और अपने ग्रुप के दोस्तो के पास जाकर उनसे बतियाने लगता है।
उसके ग्रुप में कुल चार लोग होते हैं।जिनमें तीन लड़के और एक लड़की होती है। जिनमें अमर,अक्षत,आशीष और उसकी चचेरी बहन सुचिता है।

अक्षत नाम सुन अमृता नियति से कहती क्या ये यही अक्षत है जो अभी वर्तमान में आपका मुंहबोले भाई हैं।
नियति - जी यही अक्षत भाई है।लेकिन उस समय ये मेरे भाई नहीं थे बस एक छात्र के तौर पर इन्हें जानती थी मैं।

काफी रुचिकर वाकया होगा इसके पीछे भी। जो समय के साथ अवश्य पता चलेगा।अभी के लिए आप अपनी दास्तां जारी रखिए प्लीज़....

जी अवश्य कह नियति आगे कहती है।हमने पूरा कोलेज घूम लिया कहां पुस्तकालय है,कहां,कैंटीन है,कहां प्रधानाचार्य ऑफिस है,कहां स्टाफ रूम है। और यहां तक कि सारे कमरों के भी राउंड लगा लिए।पूरा कोलेज घूमने के बाद हम दोनों कोलेज के गार्डन में आकर बैठ गई।कुछ देर बैठने के बाद हम दोनों वहां से घर के लिए निकल गई।एक सप्ताह बाद कॉलेज का एंट्रस एग्जाम होना था।घर आकर मैंने तैयारी भी शुरू कर दी।उस समय तक कोलेज में एंट्रेस एग्जाम होने शुरू हो चुके थे।क्यूंकि आगरा कॉलेज नामचीन कॉलेज था जिसमें दाखिले के लिए भीड़ लगी रहती थी।धीरे धीरे एंट्रेस का समय भी आ गया और मेरा पेपर भी अच्छा गया।अब तो मै बस परिणाम की प्रतीक्षा करने लगी।एक सप्ताह के अंदर ही परिणाम भी आ गया और कॉलेज की पहली और दूसरी लिस्ट कोलेज के नोटिस बोर्ड पर दिखने लगी।
सुमति को साथ ले मै दोबारा कोलेज गई और लिस्ट में चेक करने लगी।क्यूंकि गांव से थी और हमेशा लास्ट से अपना रिजल्ट चेक करने की आदत थी सो अपना रोल नम्बर नाम के साथ चेक करने लगी।नीचे से उपर की तरफ आते आते एक निराशा मन में आने लगी अभी तक नाम नहीं आया पता नहीं इस लिस्ट में मेरा चयन हुआ भी होगा या नहीं।लेकिन जब खुद का नाम ऊपर देखा तो शॉक्ड हो गई।क्यूंकि इस बात की कल्पना की ही नहीं थी कि सबसे उपर मेरा नाम भी आ सकता है।सुमति ये देख कर बहुत खुश हुई।
वहां से जब हम लोग थोड़ा साइड से हुए तो सुमति ने खुशी से मुझे लगा लिया।

सुमति - जीजी आपका चयन हो गया वो भी प्रथम स्थान पर।है न कितनी खुशी की बात।इसी बात पर आज दही जलेबी हो जाए।आज कोई ना नूकुर नहीं।
मै भी ठीक है कहते हुए उसकी इस इच्छा को सहमति से देती हूं।
हम दोनों वहां से चले आते है और घर आकर सुमति ये बात सबको बताती है तो किसी के भी चेहरे पर कोई विशेष भाव नहीं आता है जिसे देख मै थोड़ा सेड हो जाती हूं लेकिन ये कोई पहली बार तो था नहीं सो जल्द ही सब भूल भी जाती हूं।कुछ दिन बाद ही मुझे निकलना था क्यूंकि हॉस्टल में शिफ्ट जो होना था और उसके दो दिन बाद से ही क्लासेज शुरू होने वाली होती है।मेरे आगरा शिफ्ट होने का दिन भी आ जाता है और पैकिंग कर मै सबको बाय कहने के लिए हॉल में सबके पास आ जाती हूं।

मां दादी कि नसीहते,पापाजी की वार्निंग, बहनों का स्नेह, और भाइयों के आदेशों के साथ मै अपने गांव को छोड़ आगरा के लिए कदम बढ़ा देती हूं।
धीरे धीरे कोलेज के हॉस्टल में पहुंच जाती हूं।और वहां की वार्डन से मिल अपने कमरे के बारे में पता करती हूं।
वार्डन मुझे सभी आवश्यक निर्देश देती है और तमाम नसीहतों के साथ मुझे मेरे कमरे तक छोड़ कर आती है।मेरे साथ उस कमरे में एक लड़की और होती है।
वार्डन मेरा उससे परिचय करवाती है और वहां से चली जाती है।
उस लड़की का नाम रश्मि सिंह होता है।

मै अपना सामान अंदर ले आती हूं जिसमें मेरे पहनने के कुछ कपड़े,पूरी फैमिली की एक फोटो,कुछ खाने पीने का हलका फुल्का सामान और मेरी स्नातक कि कुछ किताबें,और डेली यूज कि चीज़े शामिल होती हैं।
मै रश्मि से अपना सामान रखने के लिए जगह पूछती हूं लेकिन वो सीधे मुंह बात तक नहीं करती।शायद मेरे पहनावे कि वजह से।

मै - देखिए रश्मि।अब ये कमरा आपके साथ साथ मेरा भी है और अगर मैंने आपकी बिन मर्ज़ी के अपना सामान कहीं भी रख दिया तो असुविधा आपको ही होगी।अगर अब भी आप यही चाहती है तो फिर मै अपने हिसाब से अपना सामान रख लेती हूं।

ये सब बाते मैंने बहुत ही हिम्मत करके उससे कहीं होती है क्यूंकि इस बात का एहसास तो हो ही चुका था अपनी बात रखनी भी जरूरी होती है अगर नहीं कुछ कहेंगे तो लोग हमें कमजोर समझ हमारा फायदा उठाने की कोशिश करना शुरू कर देंगे।।

मेरी बात सुन रश्मि दूसरे कबर्ड कि तरफ इशारा करती है और मै जाकर उसमे अपना सामान करीने से रख देती हूं।

मै रश्मि से जान पहचान बढ़ाने की कोशिश करती हूं लेकिन वो कुछ विशेष रुचि नहीं दिखाती है।और अपनी किताबे लेकर पढ़ने में लग जाती है।

क्रमशः...

अपूर्वा सिंह