Corona kaal ki kahaniyan - 2 in Hindi Motivational Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | कोरोना काल की कहानियां - 2

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कोरोना काल की कहानियां - 2

"सपनों की सेल"
पिछले एक घंटे में उसने सातवीं बार मोबाइल में समय देखा था। गाड़ी आने में अब भी लगभग सवा घंटे का समय बाक़ी था।
निधि को अपनी चिंता नहीं थी। उसके तो रात - दिन मेहनत करने और जागने के दिन थे ही। फ़िक्र तो पापा की थी जो इतना लंबा सफ़र करके परसों ही तो अपने देश लौटे हैं और बिना विश्राम किए फ़िर उसे लेकर सफ़र पर निकल पड़े।
वो भी क्या करे? बच्चे साल भर तक पढ़ाई करके परीक्षा में जो अंक लाते हैं उनसे थोड़े ही पूरा पड़ता है? अच्छे संस्थान तो प्रवेश के लिए फ़िर से अपने इम्तहान लेते ही हैं।
पापा प्लेटफॉर्म पर टहल कर इधर - उधर लगे बोर्ड्स पढ़ने में तल्लीन थे और वो मन ही मन मना रही थी कि जल्दी से ट्रेन आए और इंतजार की घड़ियां ख़त्म हो।
समय न रुके इसके लिए तो चांद- सूरज मजदूरों की तरह दुनिया बनने के दिन से ही अनवरत मेहनत कर ही रहे हैं।
आख़िर गाड़ी अाई।
एंट्रेंस परीक्षा के दो पेपर थे और अगले ही दिन सफल होने वाले विद्यार्थियों की लिस्ट भी लग जानी थी।
दूर का मामला था इसलिए पापा और निधि इस तैयारी से आए थे कि दो दिन यहीं रुकेंगे और निधि का प्रवेश पक्का होने के बाद ही लौटेंगे।
पापा पिछले तीन साल से कतर में थे। वे तो चाहते थे कि परिवार को अपने साथ वहीं लेे जाएं और बच्चे वहीं पढ़ें। किंतु निधि की ज़िद थी कि चाहे कुछ भी हो, उसे यहीं पढ़ना है, इसी संस्थान में।
पापा ने पिछले सालों में बहुत पैसा कमाया था, बेहिसाब, बेशुमार। गर्व से कहते थे- इसीलिए तो तुम लोगों को छोड़कर अकेला परदेस में पड़ा हूं ताकि तुम्हारे सपने खरीदने की हैसियत बना सकूं।
बस, यही एक बात थी जो निधि की निगाह में पापा के चेहरे को विकृत कर देती थी। उसके जान से भी प्यारे पापा निधि को किसी खलनायक जैसे लगने लगते थे जब वो सपने "खरीदने" की बात करते। गंदा लफ़्ज़!
परिणाम अा गया। निधि का नम्बर परीक्षा में नहीं आया। प्रतीक्षा सूची में भी नहीं।
ओह! कितनी तो मेहनत की थी! रात- दिन एक कर दिया। मम्मी तो कहती भी थीं - ऐसा कैसा नामी कॉलेज है जो लड़की की जान लेकर ही एडमिशन देगा?
निधि की आंखों में नमी आ गई। पापा के चेहरे की मायूसी उसे भीतर तक ज़ख्मी कर गई।
वो गेस्ट हाउस में आराम करने के नाम पर बिस्तर पर पड़ी रही और पापा नया शहर देखने के नाम पर दोपहर से ही बाहर निकल गए।
शाम को पापा लौटे तो हाथ में सुन्दर रंगीन कागज़ों में लिपटे एक शानदार गिफ्ट हैंपर को देख कर निधि की आंखों में नमी और गहरी हो गई।
पापा ने बताया कि किसी से मिलने चलना है।
तबियत ठीक नहीं होने का बहाना कर के भी काम नहीं चला। उसे डिनर के बाद पापा के साथ जाना ही पड़ा।
पापा ने कोई शहर- वहर नहीं घूमा था, वो न जाने कहां- कहां से जुगाड़ लगा कर शहर में रहने वाले उन शिक्षक के घर का पता तलाश लाए थे जो इस विभाग के डीन तो थे ही, प्रवेश परीक्षा के भी प्रभारी थे।
कुछ समय बाद डीन साहब के बंगले के ड्राइंगरूम में पापा ठीक उस भिखारी की तरह बैठे थे जो भगवान की कृपा पाने को आने- जाने वाले लोगों के सामने हाथ फैलाता है।
सिर झुकाए खड़ी निधि को ये सब बेहद नागवार गुजर रहा था। वो अपने करोड़पति पापा के पीछे इस तरह खड़ी थी मानो पापा को कोई रात की बासी रोटी का टुकड़ा दे देगा या फ़िर उनकी हथेली पर कोई सिक्का रख देगा।
उसके गले में घुटी सिसकियां फंस रही थीं।
पापा सामने बैठे प्रोफ़ेसर से कह रहे थे कि उन्होंने जो कुछ कमाया है,सब बिटिया के लिए ही है। वो इसे मायूस नहीं देख सकते। वो कह रहे थे कि उन्हें वापस विदेश चले जाना है वो केवल इसी प्रयोजन से यहां आए हैं कि बेटी का दाखिला इस संस्थान में करवा दें।
प्रोफ़ेसर साहब लगभग हर तरह के सुर में पापा को समझा चुके थे कि प्रवेश परीक्षा में उनकी बेटी पास नहीं हुई है लिहाज़ा वो कुछ नहीं कर सकते।
पापा पर उनकी किसी बात का असर नहीं हुआ था। पापा का लाया शानदार गिफ्ट और एक मोटा सा लिफ़ाफा सामने मेज पर पड़ा हुआ था।
सहसा प्रोफ़ेसर उठे और निधि से बोले- ओके, अब तुम्हारे पापा यही चाहते हैं तो तुम्हें एक इम्तहान अभी देना होगा। आओ मेरे साथ। कह कर प्रोफ़ेसर साथ ही बनी अपनी स्टडी में दाख़िल हो गए।
पापा ने निधि की ओर विजयी भाव से देखा, मानो कह रहे हों, देखा, मैं न कहता था कि पैसा हर सपना ख़रीद सकता है? साथ ही उन्होंने निधि को भीतर जाने का इशारा किया।
निधि ख़ामोशी से सिर झुकाए भीतर चली गई।
भीतर एक मेज पर एक बड़े से काग़ज़ पर ए, बी, सी, डी लिखा हुआ था।
प्रोफ़ेसर ने निधि से कहा- बेटी, ये चार अक्षर नहीं, बल्कि चार सपने हैं।
पहला सपना एक ऐसी निर्धन मां का है जिसका बेटा एक्सीडेंट में अपने पिता को खो बैठा है फ़िर भी दिन रात मेहनत कर के परीक्षा में पास हुआ है।
दूसरा सपना एक तलाकशुदा नर्स का है जिसने अपनी बेटी को खुद पढ़ा - पढ़ा कर ये परीक्षा दिलवाई है और बेटी सफल रही।
ये तीसरा सपना एक ऐसे लड़के का है जिसने गलियों में सब्ज़ी बेचते हुए रात को सड़क किनारे की रोशनी में पढ़ाई पूरी की। अब वो सफल है।
और ये चौथा सपना एक ऐसी विवाहित लड़की का है जो पहले भी इस परीक्षा में फेल हो चुकी है पर अब ससुराल से ये धमकी मिलने के बाद अपनी मेहनत से कामयाब हुई है कि यदि पास नहीं हुई तो पढ़ाई छुड़ा दी जाएगी और घरेलू काम करके ज़िन्दगी बितानी होगी।
अब तुम्हारे पापा ने मुझे इतना पैसा दे दिया है कि मैं इनमें से किसी का भी सपना उससे छीन कर तुम्हें दे सकता हूं, बोलो, किसके भविष्य में अंधेरा करूं??
निधि की ठहरी हुई सिसकियां किसी टूटे बांध की तरह बह चलीं। वो रोती हुई प्रोफ़ेसर साहब के पैरों पर झुक गई। फ़िर पलटकर अपने पापा को हाथ पकड़कर लगभग घसीटती हुई बाहर लेे चली।
लिफाफा और गिफ्ट हाथ में लेकर लौटाने के लिए प्रोफ़ेसर पीछे - पीछे दौड़ पड़े।
- प्रबोध कुमार गोविल, बी 301, मंगलम जाग्रति रेसीडेंसी,447 कृपलानी मार्ग, आदर्श नगर, जयपुर- 302004 (राजस्थान)