bagi atma 6 in Hindi Fiction Stories by रामगोपाल तिवारी (भावुक) books and stories PDF | बागी आत्मा 7

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बागी आत्मा 7

बागी आत्मा 7

सात

माधव चार-पांच दिन तक तो योंही इधर-उधर भटकता रहा, खाना जैसा मिला, जिससे मिला छीना और खाया। जीवन का यह पहला अवसर था। जब एक महिला को अपने पति के लिए भोजन ले जा रही थी। उससे छीनकर खाना खाना पड़ा,और करता भी क्या ? अब तो जीवन जीने के लिए यही विकल्प रह गया था। उसे इन दिनों लगने लगा, कि उसे पुलिस के सामने जाकर स्वयं हाजिर होना ही पड़ेगा, क्योंकि इस प्रकार भूख और प्यास के कारण तो वह वैसे ही दम तोड़ देगा।

इससे तो उस जेल में ही चैन से भोजल मिल जाता था। अब उसे ध्यान आया। इस बार तो फांसी के फन्दे से बचा ही नहीं सकता है। तब उसकी आशा का क्या होगा ?

पुलिस से बचकर रहना। दिन में कहीं भी पड़े रहना। रात में सफर करना। धीरे-धीरे बीहड़ों में पैर रखा। रात्रि हो गई। लोगों की आवाजें सुनाई पड़ने लगीं। टार्चों की रोशनी चमकने लगी। वह एक झाड़ी की ओट में छिप गया। कुछ आवाजंें पास आती चलीं गईं। उसका अन्दाज सही निकला। कुछ बन्दूकधारी वहां से गुजरे।

माधव बोला- ‘कौन ?‘

उधर से आवाज आई ‘तेरे बाप।‘

‘मेरा बाप तो कब का मर गया।

उनमें से एक बोला-‘अबे, वो नकली होगा।‘

‘अच्छा तो तुम असली हो।‘

उधर से फिर आवाज आई-‘हां ।‘

माधव को क्रोध आ गया, बोला- ‘तो हो जाये फिर, कौन किसका बाप है!’

एनमें से कोई बोला, ‘पंख लग गये क्या? मरने यहां तक चला आया।‘

‘पंख तो शायद तुम लोगों के लगे होंगे।‘

‘तू है कौन ं ं ं रे ?‘

‘और तुम लोग ?‘

‘बागी।‘

‘और तू।‘

‘नया बागी।‘

‘अबे सारे तब तो तूने पहले काहे नहीं बताई?‘ अब काहे छिपो है निकरिया।‘

उनकी यह बात सुनकर वह चौंकन्ना होकर उस झाड़ी में से निकला। वे सभी समझ गये। उनमें से एक बोला- ‘क्या नाम है तेरा ?‘

‘माधव‘

यह सुनकर उसने अपने साथी को डांटते हुए कहा-‘ नया रगरूट है। तू अभी इतना भी नहीं जान पाया। पहले उसे खाना तो खिला। बेचारा जाने कितने दिनों का भूखा होगा।‘

यह सुनकर तीसरे ने उसकी ओर रोटियां बढ़ा दी और बोला- ‘भई पहले प्रेम से कुछ खालो। पानी पी लो फिर बातें करेंगे।‘

जिस प्रकार नया बच्चा पैदा होता है। खुशियां मनाई जाती हैं। जश्न मनाया जाता है, फिरउसे अपने दल में मिलाने से पहले, उसकी परीक्षा ली जाती है। परीक्षा में खरा उतरने पर ही उसे दल में सम्मिलित होने की आज्ञा दे दी जाती है। कातिल पर सभी बागी पूरी तरह विश्वास कर लेते हैं। उसे ही पक्का बागी माना जाता है।

माधव इन बातें को पहले से जनता था। बोला-‘पंचमहल क्षेत्र के राव वीरेन्द्र सिंह का नाम सुना है।’

उनमें से एक ने उत्तर दिया-‘ जिसका इन दिनों किसी माधव नाम के व्यक्ति ने मर्डर किया है।’

माधव बोला-‘ मैं वही हूँ।’

इस परिचय के वाद ही माधव को उन लोगों की इतनी आत्मीयता मिलने लगी, जितनी उसे कभी किसी से न मिली होगी। अन्य सभी बागी अनपढ़ थे। माधव पढ़ा लिखा था। एक बहुत बड़े आदमी को मार आया था। इससे उसे अधिक इज्जत मिलने लगी। माधव के पास अच्छी बन्दूक थी। इतनी अच्छी बन्दूक दल के किसी भी बागी के पास न थी।

कुछ ही दिनों में लोग उसे अपने दल का सरदार मानने लगे, बागियों में पदों का निर्णय बन्दूक के अनुसार होता है। जिस पर जितनी अच्छी बन्दूक होगी, वही ऊंचे पद पर होगा। माधव को भी सबसे बड़ा पुलिसिया रेंक मिल गया था। पुलिस में होता तो सरी जिन्दगी तपस्या करने के बाद भी यह रेंक नसीब न हो पाता।

पुलिस की तरह बागियों में भी रेंक प्रथा प्रचलित है। इससे एक दूसरे के प्रति अनुशासित बने रहते हैं। अक्सर रेंक बन्दूक देखकर प्रदान कर दिये जाते हैं। नये बागी को भी विश्वास अर्जित होने पर जिसके पास अच्छी बन्दूक हैं बन्दूक के अनुसार रेंक प्रदान कर दिया जाता है।

सरदार बनने के बाद माधव ने सारे जंगल का निरीक्षण करना चाहा। इन घने जंगलों में रात्री में चलने की आवश्यकता न थी। एक बीहड़ में घुसे सारे दिन उसी में चलते रहे। दोपहरी में इस जंगलों में अन्धेरा सा छाया रहता है। सैंकड़ों फीट जमीन की सतह से गहरी खाइयां, जिनमें हजारों आदमी एक साथ वर्शों रह सकते हैं। सरकार जिन्हें खोज भी नहीं सकती। प्रकृति ने इन खाइयों को शायद इन्हीं लोगों के लिए बनाया होगा। मोर्चा बन्दी की सुविधा इनमें हर घड़ी अपने आप बनी रहती है।