Sajna sath nibhana - 5 in Hindi Love Stories by Saroj Verma books and stories PDF | सजना साथ निभाना--भाग(५)

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सजना साथ निभाना--भाग(५)

मोटर से टकराते ही विभावरी बेहोश होकर गिर पड़ी,
ड्राइवर ने अचानक से ब्रेक लगाकर मोटर रोक दी तभी मोटर में से एक जनाना आवाज आई___
क्या हुआ रामदीन? मोटर क्यो रोक दी?
लगता है मालकिन !कोई टकरा गया है मोटर से, रामदीन बोला।।
इतना सुनकर मोटर की मालकिन फ़ौरन मोटर से उतर पड़ी।।
और उसने विभावरी को फ़ौरन उठाकर पूछा, ज्यादा चोट तो नहीं लगी आपको,मोटर की मालकिन ने विभावरी को सीधा किया,विभावरी का चेहरा देखकर मोटर की मालकिन बोली ये तो बच्ची है कितनी मासूम है बेचारी।।
लेकिन विभावरी उस समय बेहोश थी, उसके माथे से खून बह रहा था,
मोटर की मालकिन ने रामदीन से कहा, रामदीन जरा थरमस से पानी तो लाओ।।
ठीक है, मालकिन !! इतना कहकर रामदीन फ़ौरन थरमस में से पानी ले आया।।
मोटर की मालकिन ने विभावरी के चेहरे पर पानी के छींटें मारे,विभावरी थोड़ी हिली।।
मोटर की मालकिन बोली, बेटी ये लो थोड़ा सा पानी पीलो,विभावरी ने थोड़ा पानी पिया और फिर लेट गई उसे बिल्कुल भी हिम्मत नहीं थी,मोटर की मालकिन ने अपने रूमाल से विभावरी के माथे का खून पोछा और रामदीन से बोली,चलो इसे मोटर में बैठाने में मेरी मदद करो, अभी इसे अपने घर ले चलते हैं, ठीक हो जाएगी तो इसके घर भेज देंगे।।
और मोटर की मालकिन विभावरी को अपने घर ले आई, उसके माथे पर पट्टी करवाई फिर बोली बेटी अब बताओ तुम कौन हो?
इतना सुनकर विभावरी रो पड़ी, बोली मेरा इस दुनिया में अपना कोई भी नहीं है, मैं तो अनाथ हो गई, इतना कहकर विभावरी रो पड़ी।।
कोई बात नहीं बेटी, ऐसे नहीं रोते,मन दुखी नहीं करते, थोड़ी थोड़ी बातों से यूं हताश नहीं होते ,मोटर की मालकिन बोली।।
मैं मंगला देवी,मेरा छोटा सा कुटीर उद्योग हैं उसी के सिलसिले में गई थी दूसरे शहर,रास्ते में लौटते समय तुम मेरी मोटर से टकरा गई ,तुम बेहोश थी तो हम लोग तुम्हें यहां ले आए।।
अच्छा अब तुम आराम करो और जब तक तुम्हारा मन चाहे तुम यहां रह सकती हो इसे अपना ही घर समझो और मैं बाज़ार खुलते ही तुम्हारे कुछ कपड़े ला देती हूं।।
विभावरी को थोड़ी तसल्ली हुई मंगला देवी की बातों से।।
उधर मधुसुदन सुबह सुबह घर पहुंचा,उसे सारी बात पता चली उसका मन बहुत ही दुखी हुआ, अपनी मां के ऐसे व्यवहार से।।
मां,ये तुमने क्या किया, तुम्हें इस तरह से विभावरी को घर से नहीं निकालना चाहिए था, मधुसुदन अपनी मां से बोला।।
लेकिन क्यो?वो मेरे घर में धोखे से बहु बनकर आई थीं, मुझे ये मंज़ूर नहीं था उसके मां बाप ने हमें धोखा दिया और तूने भी तो बिना दान दहेज के ये शादी की थी,अब मैं कोई अच्छी सी लड़की देखकर तेरा दोबारा ब्याह करूंगी, शांति देवी बोली।।
नहीं मां,मैं दूसरा ब्याह नहीं करूंगा,विभावरी के साथ मैंने सारे समाज के सामने सात फेरे लिए है,अब वो ही मेरी पत्नी है,मैं उसे नहीं छोड़ सकता,वो जहां भी होगी मैं उसे ढूंढकर लाऊंगा, मधुसुदन बोला।।
कैसी पत्नी?समाज तो यही जानता है कि तुम्हारा ब्याह तो यामिनी के साथ हुआ,किसको किसको समझाते फिरोगे कि ब्याह वाले रोज क्या हुआ था, तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है, शांति देवी गुस्से से बोली।।
मधुसुदन बोला,तो ठीक है , मैं आपका घर छोड़कर जा रहा हूं,विभावरी को ढूंढकर, मैं उसके साथ ही रहूंगा और मधुसुदन उसी समय घर छोड़कर विभावरी को ढूंढने निकल पड़ा।।
उसने उसी समय चंदननगर की बस पकड़ी और पहुंच गया,सेठ धरमदास जी के घर___
जैसे ही मधुसुदन, धरमदास जी के घर पहुंचा सब आवभगत में लग गए,जब कुछ देर तक उसे विभावरी नजर नहीं आई तो बोला,जरा विभावरी को बुलवा दीजिए, मैं उसे लेने आया हूं।।
तभी दादी बोली,विभावरी तो आपके घर ही होगी ना।।
मधुसुदन बोला,तो क्या विभावरी यहां नहीं आई।।
दादी बोली, नहीं तो।।
तभी पूर्णिमा रोते हुए बोली, मांजी आई थी वो यहां,कल आधी रात गये लेकिन मैंने उसे अंदर नहीं आने दिया कि बेटी को ससुराल से निकाल दिया है चार लोगों पूछेंगे तो क्या जवाब देंगे।।
तभी दादी बोली पड़ी, सही कहते हैं लोग औरत ही औरत की दुश्मन होती है,तुझे जरा भी दया ना आई पूर्णिमा!!वो तेरी पेटजाई बेटी थी, कैसे तुझसे कहते बना कि इस घर में मत आ, बेचारी कहां गई होगी आधी रात को, तूने कुछ नहीं सोचा, बेचारी तुझसे आसरा मांगने आई थी और तूने उसके साथ परायों जैसा व्यवहार किया।।
क्या? आपने विभावरी को घर के अंदर नहीं आने दिया, कैसी मां है आप,आप विभावरी की सगी मां ही हैं ना? कैसे कर सकतीं हैं आप ऐसा? मधुसुदन गुस्से से बोला।।
मधुसुदन उठा और घर के बाहर निकल पड़ा,विभावरी की तलाश में, उसने सब जगह ढूंढ़ा लेकिन विभावरी कहीं नहीं मिली, पुलिस चौकी वो नहीं गया उसे डर था कि इससे सेठ धरमदास की बदनामी ना हो जाए क्योंकि पहले यामिनी का भाग जाना फिर विभावरी का ना मिलना,समस्या खड़ी हो सकती थी।।
मधुसुदन वापस अपने घर नहीं लौटा, दूसरे कस्बे में अपने एक दोस्त के साथ रहने लगा, उसने वहीं अपनी एक छोटी सी क्लीनिक खोल ली,अब धीरे धीरे मरीज भी आने लगे कुछ दिनो में वो वहां भी मशहूर डाक्टर बन गया लेकिन उसने विभावरी की तलाश जारी रखी।
अब विभावरी भी मंगला देवी के पास ठीक से तो रह रही थी लेकिन उसका मन यही करता था कि मंगला देवी को सब सच सच बता दें, विभावरी को ऐसे उदास और अनमने देखकर मंगला देवी ने भी कई बार विभावरी से पूछना भी चाहा लेकिन विभावरी हमेशा टाल जाती।।
ऐसे ही समय बीत रहा था__
फिर एक दिन विभावरी मंदिर गई___
उसने मंदिर में पूजा की,वापस आकर मंदिर की सीढ़ियों में बैठे भिखारियों को प्रसाद बांटने लगी, तभी एकाएक उसकी नज़र एक औरत पर पड़ी,वो अपनी फटी-पुरानी , मैली-कुचैली साड़ी से अपना सिर और चेहरा छुपाने की कोशिश कर रही थी।
विभावरी उसके पास प्रसाद देने पहुंची, उसने प्रसाद तो ले लिया लेकिन वो रो पड़ी__
क्या बात है?तुम रो क्यों रही हो?विभावरी ने पूछा।।
बस ऐसे ही, उसने कहा!!
ऐसे ही बिना किसी कारण कोई भी नहीं रोता बहन!! कोई ना कोई बात तो है,विभावरी बोली।।
वो बोली,ये ही तो बात है, मैं अपने बुरे कर्मों का फल भुगत रही हूं, तुमने मुझे बहन कहा, मैं ही तो वो तुम्हारी अभागी बहन हूं!!
क्या कहा? इतना कहकर विभावरी ने उसके चेहरे से उसका पल्लू हटाया!!
देखा तो वो यामिनी थी, बहुत ही बीमार हालत में थी,शरीर में जैसे खून ही नहीं था, सिर्फ हड्डियों का ढांचा बचा था।।
यामिनी दीदी तुम!!ये क्या हाल बना रखा है तुमने, और क्यो किया तुमने मेरी और अपनी जिंदगी के साथ खिलवाड़, पता उस दिन तुम्हारे जाने के बाद मुझे मण्डप में बैठना पड़ा और शादीशुदा होने के बावजूद भी मेरी कोई पहचान नहीं है, मुझे दोनों घरों से निकाल दिया गया,विभावरी बोली।।
और दोनों बहनें आपस में खूब फूट-फूटकर रोई,विभावरी ने उस दिन वाली सारी बातें यामिनी से कह दी।।
यामिनी बोली, मैं जिसके साथ भागी थी,वो मेरे सारे गहने और रूपए लेकर भाग गया, मुझे किसी और को बेचना चाहता था लेकिन मैं वहां से किसी तरह भाग निकली, मैंने बहुत बड़ी गलती की,मां बाप कभी भी अपने बच्चों के बारे में ग़लत नहीं सोचते,काश मैं उसी से शादी कर लेती जो घरवालों ने मेरे लिए पसंद किया था।।
विभावरी बोली, कोई बात नहीं दीदी,अब जो हुआ सो हुआ।।
विभावरी, यामिनी को भी मंगला देवी के घर ले गई और आज उसने सारी सच्चाई मंगला देवी को बता दी,
मंगला देवी बोली, कोई बात नहीं बेटी और आज से तुम दोनो ही मेरी बेटियां हो मेरे बेटे तो कभी काम नहीं आए।।
विभावरी बोली,आपके बेटे भी है।।
हां,बेटी फिर कभी फुर्सत से बताऊंगी, अभी यामिनी का किसी अच्छे डॉक्टर से इलाज करवाते हैं,मंगला देवी बोली।।
विभावरी बोली, ठीक है।।
मंगला देवी ने कस्बे के सबसे अच्छे डाक्टर को बुलवा भेजा।।
डाक्टर साहब को देखकर यामिनी और विभावरी दोनों बहने ही आश्चर्य में पड़ गई।।

क्रमशः____
सरोज वर्मा__