बेटी का अधिकार
सात सात बेटे हैं ,हमारे सातों के पास सर्वसुविधा युक्त घर हैं ,कारें हैं ,जमीनें हैं हम निश्चिंत हैं उनकी तरफ से ,बेटी भी आत्मनिर्भर है, ससुराल में सुख से है।
पत्नी -हाँ हमें और क्या चाहिए?
(पति खाँसते खाँसते बेहोश सा हो जाता)
क्या हुआ आपको????
बेटा!!
बहू!!!
जल्दी आओ !!!!!
देखो क्या हो गया इन्हे!!!!!
बेटा -क्या हुआ मां क्यों सुबह-सुबह नींद खराब कर रही हो
मां- इनकी तबीयत अचानक खराब हो गई बेहोश हो गए
बेटा-आप परेशान मत हो बुढ़ापा है अब ये इससे ज्यादा ठीक नहीं हो सकते
मां बेटा एकबार चैकअप करवा....
बेटा कुछ नहीं होना उससे बस पैसों की बर्बादी के सिबा!!!!
और मेरी जिम्मेदारी केवल मेरे बीबी बच्चों तक है।
(फोन की घंटी बजती है )
हेलो....
हाँ बेटी ..............
मैं ठीक हूँ ......।।।।
बस तेरे पापा की थोड़ी तबियत खराब है.....
बेटी-आप यहाँ ले आओ उन्हे उनका पूरा चैकअप कराते हैं
नहीं बेटा दामाद जी परेशान होंगे
नहीं होंगे मां वह बहुत समझदार है वह अपने माता-पिता और आपकी बहुत इज्जत करते हैं क्योंकि उनके माता पिता की भी हम दोनो को जिम्मेदारी उठानी है आज अगर वो मेरे माता पिता को अपना नहीं समझेंगे तो मैं उनके रिश्तों को कैसे अपना पाउंगी!!!
आप बस तैयारी कर लो मैं गाड़ी भेज रही हूं
बेटा हमने तुझे दिया ही क्या है ??
बहुत कुछ दिया है अच्छी शिक्षा अच्छे संस्कार,आगे बढ़ने के अवसर, और सच्चा जीवनसाथी इससे कीमती कुछ हो सकता है क्या!!
पर मेरे भाईओं के साथ बड़ा अन्याय किया उन्हे तैरना सिखाये बिना समंदर में धक्का दे दिया
कब दिया बेटा???????
आपने उन्हे मकान तो बनाकर दिया पर उसे घर कैसे बनाते हैं सिखाना भूल गए
पैसा तो दिया पर उसकी कीमत सिखाना भूल गए
उनके प्रति कर्तव्य तो निभायेे पर जिम्मेदारी सिखाना भूलगये
स्वतंत्रता तो दी पर भले बुरे की परख कराना भूल गए
पर ये सब तो हमने तुझे भी नहीं सिखाया
आपही ने सिखाया
तुझे पराये घर जाना है रोज
बार बार दोहराये जाने वाले बस इस एक वाक्य ने सब कुछ सिखा दिया
सिखा दिया कि ये घर ये व्यापार मेरा नहीं इतने सालों में आप नहीं अपना पाए तो दूसरे परिवार से कैसे अपेक्षा करती कि अपनाऐंगे बस यही सोचकर मैंने अपनी पूरी ऊर्जा खुदको आत्मनिर्भर बनाने में लगाई!!!!!!
वर्षों की मेहनत से नौकरी और पूरे महीने की मेहनत से सैलरी मिली, तो पैसे की कीमत खुद समझ आगई!!
इन्हे यहीं रहना था खुद के अनुकूल वातावरण में इसलिए संघर्ष से मिलने वाली समझ और अनुभव इन्हे नहीं मिला और मेरा सबकुछ बदलना तय था इसलिए हर माहौल में ढलना सीख लिया!!
इन्हे आप दोनों को खोने का डर कभी था ही इसलिए कभी कद्र नहीं कर पाए
मुझे पाला पोसा आपने पर वृद्धावस्था में सेवा उनकी करनी थी जिन्हे मैं जानती तक नहीं इसलिए आपसे ज्यादा लगाव है क्योकि जब नये रिश्तों के प्रति कर्तव्य निभा सकती हूं तो आपके प्रति तो है ही है इस उम्र में आपकी देखभाल का भी मुझे अधिकार नहीं है क्या?
ये सवाल मेरा समाज से भी है, अगर बेटे माता पिता को अच्छे से नहीं रखते तो बेटियों को क्या ये अधिकार नहीं मिलना चाहिए??
-
--भावना पटवा--