idgaah in Hindi Motivational Stories by Atul Kumar Sharma ” Kumar ” books and stories PDF | ईदगाह

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ईदगाह

(मुंशी प्रेमचन्दजी हिंदी साहित्य के कलम के सिपाही के रूप में एक विलक्षण लेखक की सशक्त छवि में कालजयी रचनाकारों में हमेशा के लिए स्वर्णाक्षरों में अंकित हो चुके है। उनकी सभी कहानियां उपन्यास स्वयम में विलक्षण कृति हैं। ठेठ देसी भाषा पर उनकी पकड़ मज़बूत थी। उनकी ऐसी ही एक कहानी * ईदगाह * जो आप सभी ने अवश्य पढ़ी होगी। उसी कहानी को मैने अपने ढंग से आगे बढाने का एक सुप्रयास किआ है। उम्मीद करता हूँ आपसभी सम्माननीय पाठकों को अवश्य पसन्द आएगा। ये कृति पूर्णतः मौलिक है। )

ईदगाह 2
मुंशी प्रेमचन्द जी की कहानी ईदगाह का हामिद अब बड़ा हो गया है। बचपन मे उसने बहुत गरीबी देखी,5 पैसे का चिमटा अपनी दादी के लिए लाया था क्योंकि उनके हाथ रोटी बनाते समय जल जाया करते थे । अब हामिद बड़ा जवान हो गया है । लेकिन उसके पास कोई ढंग का काम नही है। हामिद के बचपन के कुछ दोस्त तो अब कुछ ना कुछ बन गए थे,कोई वकील तो कोई पुलिस में नाम कर रहा था,कोई व्यापारी बन गया था सभी अपनी जिंदगी में मगन थे। बाकी बचे कुछ कौमी मज़हबी आग में जलकर आतंक के रास्ते पर चल पड़े थे। जेहाद के नाम पर अपनी मिट्टी से गद्दारी करने और दुश्मनो का साथ देना उनको खुदा की इबादत लगता था।......

लेकिन हामिद अपनी गरीबी से लड़ते हुये दोनों हाथ खाली लिए घूम रहा था। घर के हालात ठीक ना होने के कारण वो ज्यादा पढ़ लिख नही पाया। मज़दूरी करता जो कुछ मिलता उसमे जैसे तैसे अपने घर का गुजारा चलाता। उसकी दादी अब बूढ़ी हो चली थीं,लेकिन फिर भी छोटा मोटा काम करके खुद्दारी और इज़्ज़त से जी रहीं थीं।..यही शिक्षा उन्होंने हामिद को भी दी थी। लेकिन हालातों की मार से अब जीना भी मुश्किल हो रहा था,परेशानियां बढ़ रहीं थी। हामिद इन्ही सब सोच विचार में सड़क पर जा रहा था कि तभी कुछ बचपन के दोस्तो ने उसे पीछे से आवाज़ दी ।....

हामिद ने पीछे मुड़कर देखा तो वो लोग उसके पास आये और बोले....."" यार हामिद कहाँ रहता है आजकल..तेरे तो पते ही नही ।.."".......

हामिद ने ठंडी सांस खींचते हुए बोला.... "" नही भाई में तो यहीं हूँ कहां जाऊंगा...घर के हालात तो तुम लोगों से छुपे नही ..अब अम्मी की तबियत भी ठीक नही रहती,बस इन्ही सब मे खोया रहता हूँ।..""......

""...क्या यार हमलोगों से तेरी परेशानी देखी नही जाती,इसलिए ही तो हम तुझे ढूंढ रहे हैं,गौर से सुन कल कुछ लोग आ रहें हैं हम उन्हें जानते हैं वो लोग बहुत अच्छे हैं हमारी फिक्र करते हैं। हमारी कौम के रहनुमा हैं,हम उन्ही की सरपरस्ती में हैं,उन लोगों ने हमारी सारी गरीबी दूर कर दी।...इतना पैसा है उनके पास,वो मज़हबी तकरीरें करते हैं।बहुत इल्म है उन्हें मज़हब की बातों और खुदा की बन्दगी का,कल वो आ रहे हैं । हम चाहते हैं कि तू भी हमारे साथ कल वहां चल,हमने तेरा उनको पहले ही बता दिया था,,तभी उन्होंने तुमसे मिलने की इक्छा ज़ाहिर की,,वरना वो लोग किसी से नही मिलते। तू कल चलना और बड़े
गौर से उनकी बातें सुन्ना।.... हम दुश्मनो के बीच रह रहे हैं।...देखो तभी हम और तुम कितने गरीब हैं।..ये मुल्क अपना नही बल्कि हम सभी इसके गुलाम हैं,,लेकिन अब हमलोगों को चिंता करने की जरूरत नही।.....अब हमें अपने खुदा मिल गए हैं।....हम चाहते हैं कि तू भी उनसे मिले और उनके बताए रास्ते पर चल वो सब हासिल करे जो इस मुल्क ने हमे कभी नही दिया।।......"".......

हामिद ये सब सुन सोच में पड़ गया....."" लेकिन भाई में कैसे वहां जा सकता हूँ,और तुम लोग ये क्या कह रहे हो,,ये वतन अपना है।हमने इसी मिट्टी में जन्म लिया है इसी में पले बड़े हैं,,में इस मिट्टी से गद्दारी कैसे कर दूं....नही नही....अपने हालातों के लिए में ऐसा कभी नही करूँगा।...."".......हामिद ने कहा।.....

"" अरे यार तू कल चल तो सही,,एक बार मिल तो सही,,बाकी करना ना करना तेरे हाथ मे है। देख हम कल चौराहे पर मिलते हैं तू आ जाना।..."".......ये कहकर उसके दोस्त चले गए।।......

हामिद खेत की मुंडेर पर उदास बैठा सोच के सागर में डूबता उतर रहा था। उसके दोस्तों की बातें उसे विचलित कर रहीं थीं,,अचानक तभी एक लम्बी मूंछो वाले सजजन से दिखने वाले व्यक्ति वहां से निकले । देखने मे कोई बड़े आदमी लगते थे,,उन्होंने एक लड़के को ऐसे उदास बैठे देखा,,तो पास आकर बोले......"" बेटा कैसे बेठे हो.....लगता है कुछ उदास हो । ""....

"" कुछ नही साहब ऐसे ही ,,आज कोई काम नही मिला ...""...हामिद ने चेहरे पर चिंता और मज़बूरी के भाव लिए कहा।....

वो आदमी उसकी बात सुन उससे बोला '" मेरे लिए काम करोगे....""... अच्छे पैसे मिलेंगे... रहने की जगह और 2 वक़्त का खाना भी।"".....

हामिद उसकी बात सुन उठ खड़ा हुआ,और हाथ जोड़कर बोला ""..बड़ी मेहरबानी साहब, में कोई भी काम करूंगा..2 दिन से भूखा हूँ..मेरी अम्मी की तबियत भी ठीक नही ""..........उस बड़े आदमी को उस पर दया आ गई,उसने उसे कुछ पैसे दिए और अपना पता दिया । ""..देखो ये पैसे रखो,खाना खा लेना और अपने लिए कपड़े ले लेना । ये रहा मेरा पता,कल आकर मिलो ।...'"...ये कहकर वो आदमी चलागया। .........हामिद उसे जाते हुए देखता रहा....""

आज भी खुदा ने अच्छे इंसान बनाना बन्द नही किये।....""यही सोचता हुआ और ऊपर वाले का शुक्रिया करता हुआ वो अपने रास्ते चल दिया।।.........

एक बड़ी सी आलीशान हवेली जिसके चारों तरफ पेड़ ही पेड़ और बड़ा सा बगीचा था। गेट पर एक मोटा दरबान खड़ा हुआ था।एक दुबले पतले लड़के को हवेली की तरफ बढ़ते देख तेज़ आवाज़ में बोला....."" ऐ छोकरे किधर को जाता है..आज से पहले कभी तुझे नही देखा ...कौन है तू किससे मिलने आया है।"".....

हामिद डरकर रूक गया। और अपनी जेब से एक पर्ची निकालकर उसे दी..""" साहब मेरा नाम हामिद है .. कल एक साहब मिले थे.....उन्होंने ये पर्ची दी थी और आज बुलाया था।."".....

दरबान उस पर्ची को देखके बोला "" तू यहीं रुक में आता हूँ.... ये साहब भी पता नही किस किसको बुला लेते हैं। "".....बड़बड़ाते हुए वो हवेली के अंदर चला गया.......हामिद वहीं बेठ गया..और इंतज़ार करने लगा। कुछ समय बाद दरबान ने आकर उसे अंदर जाने का इशारा किया। हामिद खुश हो गया और तेज़ तेज़ कदमो से अंदर जाने लगा।.....

हामिद बड़े आश्चर्य से अंदर की हर एक चीज़ को निहार रहा था । दीवारों पर गांधीजी सुभाष चन्द्र बोस आदि स्वतन्त्रता सेनानियों की तस्वीरें लगी हुई थीं । लम्बी लम्बी बन्दूकें X के आकार में टँगी हुई थीं। ये सब उसके लिए एक सपने से कम नही था।....

"" आ गए तुम "".....
एक कड़क स्वर हामिद के कानों में पड़ा। हामिद कुछ डर सा गया,,लेकिन फ़ौरन खुद को सम्भालते हुए बोला ..."""" जी आपने आज बुलाया था।""......

"" हाँ ..बैठो.... देखो तुम क्या कर सकते मुझे बताओ ..... फिर में सोचूंगा की तुमको क्या काम दिया जाए।..."".....

चेहरे पर कुछ नरम भाव लिए उस बड़े आदमी ने हामिद की और देख के बोला।...

हामिद .."" जी आप जो कहोगे में करूँगा,,कोई भी काम ,,घर का हो या खेत का,,मेहनत मजदूरी से में नही घबराता। ""................उस आदमी ने हंसते हुए बोला......... "" अरे नही नही,,में तुमसे ये सब नही करवाऊंगा । तुम जवान हो ....कहां तक पढ़े लिखे हो?????....""" .

""जी गरीबी की वजह से ज्यादा पढ़ लिख नही पाया। 10वी जमात तक ही पढ़ाई की है,,पर लिखा पढ़ी का काम भी कर सकता हूँ।।..""हामिद उम्मीद की किरण आंखों में लिए तपाक से बोला।।..............

"" अच्छा...देखो बेटे में सेना के ऊंचे ओहदे से रिटायर हुआ हूँ। और मुझे तुम जैसे कुछ करने की इक्छा लिए जवानों से बहुत लगाव है । में चुने हुए लोगों को सेना में भर्ती करवाता हूँ।आज़कल कोई सेना में जाना ही नही चाहता ..सबको आरामतलबी की नॉकरी और पैसा चाहिए। लेकिन तुमको देख के लगा कि में तुम्हारे लिए कुछ कर सकता हूँ । क्या सेना में भर्ती होकर देश की सेवा करना चाहोगे?????...."".....

हामिद कुछ देर सोच में पढ़ गया फिर बोला ""...... लेकिन साहब मुझे तो इस बारे में कुछ नही पता ना ही कुछ आता है। ..""......बड़े भोले अंदाज़ में हामिद के मुंह से ये शब्द सुनकर वो आदमी हंस पड़ा......

"" उसकी चिंता तुम मत करो। तुमको ट्रेनिंग में सब सिखा दिया जाएगा । यदि तुम्हारी इक्छा हो तो में आज ही तुम्हारा नाम भेज देता हूँ । अभी बड़े युद्ध स्तर पर सैनिकों की भर्ती चल रही है । आराम से तुम्हारा चयन हो जाएगा ,, बोलो करोगे ?????.......

हामिद ने सोचा कि ऐसे भी कुछ काम नही मिलता। सेना में जाऊंगा तो एक नई दुनिया से परिचय होगा।...वैसे भी मुझे बचपन से बन्दूको अच्छी लगतीं है।और फिर देश के लिए कुछ करने का मौका भी मिलेगा। इससे अच्छा और मुझे कुछ नही मिल सकता। यही सब सोचकर उसने हाँ कर दी।...

1 साल पूरा होने आया,,हामिद की ट्रेनिंग पूरी हो चुकी थी। वो अब बिल्कुल बदल चुका था।.....उसके सेना में नए मित्र बन गए थे। अभी उसकी पोस्टिंग नही हुई थी,मिलेट्री हेडक्वार्टर में ही ड्यूटी लगी थी। आर्मी के अनुशासन ने उसकी जिंदगी पूरी तरह बदल दी थी। अब वो एक जिम्मेदार और फ़र्ज़ के प्रति वफादार इंडियन आर्मी का एक जवान था।...समय अपनी रफ्तार से आगे बढ़ता रहा,,हामिद की शादी हुई। उसका घर परिवार सब उसकी मां और पत्नि से था।सुंदर सुशील पत्नि पाकर हामिद की जिंदगी ही बदल गई। सपनो को पंख मिले,,आखिर जिंदगी अपना रास्ता ढूंढ ही लेती है।....

हामिद अपने परिवार में बहुत खुश था। छुट्टियों में वो घर आया।..एक दिन वो ऐसे ही कुछ सोच में डूबा हुआ था,,तभी उसकी पत्नि सलमा ने उसे इस तरह बैठे देख पूछा...."" आज आप किस यादों में खोए हुए हैं।.....""......

हामिद की तन्द्रा टूटी....."" बस अपने माज़ी को याद कर रहा था ....पता है सलमा बेगम ....एक दिन ऐसे ही में सोच में डूबा हुआ था तभी एक फरिश्ते ने मेरा हाथ थामा,, आज में जो कुछ हूँ उन्हीं की वजह से। मेने अब्बू को कभी नही देखा लेकिन उस फरिश्ते के रूप में मुझे अब्बू मिल गए,,में तो बेमकसद यूँ ही भटक रहा था । उन्होंने मुझे जीने का मकसद दिया,मेरी जिंदगी उनकी हमेशा कर्ज़दार रहेगी। आज वो नही हैं ,,पर उनकी नेकी ने एक भटके हुए को इंसान बना दिया।।उन्ही की वजह से मुझे देश की सेवा करने का मौका मिला । वरना में कबका अपराधी बन गया होता,,मेरे कुछ दोस्तों के कहने में आकर में भी गलत कदम उठाने जा रहा था । अपने वतन की मिट्टी को नापाक करने जा रहा था।आज कबका बदनाम होकर गुमनामी में खो गया होता!!!!!!....""......एक खामोशी सी हामिद के चेहरे पर छा गई।...................

"" खुदा कभी अपने नेक बंदों के साथ गलत नही होने देता जी,,जो ईमान और वतन परस्ती की राह पर चलते हैं वही अपना मुकद्दर और इतिहास दोनों बदलते हैं। जिस मिट्टी ने हमे पहचान दी उससे कभी हम गद्दारी नही करेंगे,,नमक का हक़ अदा करने में कोई कमी नही रखेंगे।...."".......सलमा ने हामिद के चेहरे को ऊपर करते हुए उसकी आँखों मे देखते हुए अपने मन की बात कही।........

सीमा पर हालात बिगड़ने लगे। पड़ोसी देश फिर अपनी नापाक हरकतों से अपने मंसूबों को अंजाम देने की तैयारी में था।.....सैनिकों को बॉर्डर पर भेजने का आर्डर आ चुका था। हामिद के लिए ये पहला मौका था,फ्रंट पर जाने का। वो पूरे जोश के साथ तैयारी में लगा था। इधर सलमा कुछ उदास सी थी।....

हामिद ने उसका उदास चेहरा देखा तो पूछा........

""" मुझे यूँ लटके हुए चेहरे से विदाई दोगी..देखो में मिट्टी का कर्ज चुकाने जा रहा हूँ,,ये मुकद्दस मौका अल्लाह खुशकिस्मत बंदों को देता है। तुमको तो खुश होना चाहिए कि तुम्हारा शौहर वतन के लिए कुछ करने जा रहा है। मुझे हंसकर खुश होकर विदा करो।...."".......

सलमा अपने आंसू पोंछते हुए बोली ""....में इस वजह से उदास नही जी, की आप जंग पर जा रहे हैं...मेरे लिए तो ये फख्र की बात है ।..."".............

."" फिर हमारी बेगम क्यों उदास है?????."".....हामिद ने मुस्कुराते हुए पूछा।......

"" कल कुछ तबियत ठीक नही लग रही थी। दादीजान मुझे दवाखाने ले गईं। वहां जांच से पता चला कि आप अब्बा और हम अम्मी बनने वाले हैं। ये खुशखबरी देनी थी लेकिन आपका जाने का सुनकर मन उदास सा हो गया।.."".....

सलमा खिड़की से बाहर कुछ बच्चों को खेलते हुए देखकर बोली.......

"" क्या !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!............इतनी बड़ी खुशी और आप मुझे इस तरह मुंह लटकाकर दे रहीं हैं। ......"" हामिद खुशी से उछलते हुए बोला......."" अरे ये तो बड़ी खुशी की बात है कि आप अम्मी और हम अब्बा बनने जा रहे
हैं।""

सलमा के उदास चेहरे को अपनी तरफ करते हुए हामिद खुशी से बोला।......

"" बस थोड़ा सा दुख इस बात का है कि अल्लाह ये खुशी थोड़ा पहले दे देते। तो में भी अपने बच्चे का स्वागत करने यहां होता। खेर वतन पहले बाकि सब बाद में आकर खूब धूम धाम से जश्न मनाऊंगा। अपने साथी दोस्तो को भी साथ लेकर आऊंगा। फिर देखना कैसा जश्न होता है ""........उसने सलमा को हिम्मत देते हुए बोला।।.....

अपना बैग उठाकर हामिद अम्मीजान से मिलने उनके कमरे में गया। और उनके कदमो में बैठकर बोला

"".....दादीजान आपको याद है बचपन मे जब में मेले में गया था तो आपने मुझे 5 पैसे देते हुए बोला था कि तुझे जो अच्छा लगे खरीद लेना। पर आपके जले हुये हाथ मुझसे नही देखे गए, और में एक चिमटा ले आया था। तब आपने बड़े प्यार से मुझे गले लगा लिया था। आज मेरी भारत मां के हाथ जल रहे हैं दादीजान ......मुझे फिर जाना होगा अपनी मां के लिए... आज भी आप उसी तरह मुझे गले से लगाकर विदा करो।......""........

हामिद की दादीजान ने बहती आंखों से अपनी पोटली से एक 5 पैसे का पुराना सिक्का निकाला और हामिद की हथेली पर रखकर बोलीं.... """ जा बेटा तूने मेरा कर्ज़ तो बरसो पहले चिमटा लाकर पूरा कर दिया , अब अपनी मिट्टी अपनी भारत माँ का कर्ज तुझे अदा करना है। मुझे पूरा यकीन है मेरा बेटा वतन का और मेरा सर कभी नही झुकने देगा । ......""......डबडबाई आंखों से उन्होंने आशीषों की झड़ी लगा दी थी ।......

हामिद चल दिया एक और ईदगाह के लिए...............

सलमा सर पर दुपट्टा लिए दरवाज़े पर खड़ी उसे जाते हुये देखती रही।।


लेखक - अतुल कुमार शर्मा ' कुमार '