Lahrata Chand - 6 in Hindi Moral Stories by Lata Tejeswar renuka books and stories PDF | लहराता चाँद - 6

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लहराता चाँद - 6

लहराता चाँद

लता तेजेश्वर 'रेणुका'

6

रोज़ की तरह उस दिन भी घरेलू सामान खरीदने अनन्या बाजार गई। राशन और सब्जियाँ लेकर लौट ही रही थी कि उसने देखा कुछ लोग भरी बाजार में एक दुकान में घुसकर उसके सामान की तोड़फोड़ कर दुकानदार से जबरन पैसे छीनने लगे। वे लोग सब्जी वालों से दुर्व्यवहार कर मार पीट करने लगे और चेयर टेबल तोड़ कर बक्से से पैसे निकाल लिए। वे लोग गरीब चायवालों तक नहीं छोड़े उनकी दिन भर की कमाई को छीनकर खुद के जेब भरे। जब कोई देने से इनकार करता तो उसकी दुकान के सामान बाहर फेंककर दुकान तहसनहस करने में नहीं चूके। इनकी गुंडागर्दी से डरकर लोगों ने उन्हें चुपचाप पैसे दे देने में ही समझदारी समझने लगे। किसीको पुलिस में खबर करने की हिम्मत नहीं थी। उन्हें अच्छे से पता था कि पुलिस भी इन गुंडों के साथ मिली हुई है। इनसे दुश्मनी मोल लेने से फायदा से ज्यादा नुकसान ही है।

अनन्या ने देखा एक बूढ़ा आदमी निम्बू पानी बेच रहा था। गरमी के मौसम में नीबू पानी बेचकर कुछ पैसे कमा लेता था जिससे उसके पूरा परिवार का एक वक्त का पेट भरता था। उसकी उम्र करीबन 60 साल होगी। गुंडे उस निम्बू पानी बेचनेवाले को भी नहीं छोड़े। उसके बटुए से पूरे दिन की कमाई को छीन लिए। जब उसने रोकने की कोशिश की, दूसरे आदमी ने उसे धकेल कर नीचे गिरा दिया। उस बूढ़े आदमी ने उन गुंडों के आगे अनुनय करने लगा "आज नहीं साब, मेरी बेटी राह देख रही होगी आज की कमाई छोड़ दो साब कल... कल ले जाना मैं दे दूँगा। आज मेरी बेटी को अस्पताल ले कर जाना है। वो पेट से है, आज का दिन छोड़ दो साब।" वह विनती करने लगा।

वे सब जोर-जोर से हँसने लगे और कहा, "गाय और शेर की कहानी सुनी है? वह शेर तो पागल था इसलिए वह गाय को जाने दिया। लेकिन हम पागल नहीं हैं, मेरे सामने जो भी है वह मेरा है। अब ये पैसे मेरे सामने है तो ये मेरा है।"

- दया करो बाबा मुझ गरीब पर रहम करो।

- अबे जा जा, तू अगर आज पैसा नहीं देगा तो हमें शराब कौन देगा? तेरा बाप? जा जा।

- मेरी बेटी मर जाएगी साब। उसे जल्द से जल्द अस्पताल में भर्ती करना है। आज छोड़ दो बाबा। बाबा ..बाबा।" वह गुंडे के पैर पकड़कर विनती करने लगा।

अनन्या उस बुजुर्ग की सहायता के लिए आगे बढ़ ही रही थी कि एक औरत ने उसका हाथ पकड़कर उसे पीछे खींच लिया। अनन्या अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश की लेकिन वह औरत उसके हाथ को जोर से पकड़े रखा। अनन्या असहाय देखती रही। जैसे ही वह हाथ छोड़ने को कहती वह औरत 'श्' कहकर चुप करा देती।

- जा जा, रे बूढ़े, जा अगर मर भी गई तो क्या होगा धरती का बोझ हल्का हो जाएगा, बची रहेगी तो कल ले जाना डॉक्टर के पास, ठीक है। कहकर विकृत हँसी हँसते हुए उसके उस दिन की कमाई लेकर एक धक्का दिया। जिससे उस निम्बू पानी बेचने वाले ने पास में रहे बत्ती की खम्बे से टकरा गया और उसके सिर से खून बहने लगा। आस-पास खड़े लोग देख रहे थे पर उसकी मदद करने कोई नहीं आया। अनन्या उसे बचाने जा ही रही थी की उस औरत ने रोक दिया, "न बेटा ये गुंडे हैं, बड़े बदमाश हैं। अभी रुक जाओ नहीं तो उस आदमी का जो होगा सो होगा, तेरा भी बहुत बुरा हाल करेंगे।"

- नहीं, वो मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते, मुझे छोड़िए ।"

- देखो बेटी मेरी बात सुनो। अच्छे घर की बेटी लगती हो, कुछ देर रुक जाओ पहले ये गुण्डों को जाने दो, इसी में तेरी भलाई है फिर तुम्हें जो करना है करो।"

अनन्या चुप रहने के अलावा कुछ न कर सकी। गुंडों ने उस बुजुर्ग आदमी के डिब्बे से पैसे लूटकर चले गए। अनन्या उस औरत के हाथ से अपना हाथ छुड़ाकर उस बुढ़े आदमी के पास दौड़ गई। उसे सहारा दे कर उठाया।

- काका, उठिए सँभल कर उठिए। उस बुजुर्ग को पास में रखी बेंच पर बिठाया। अपने बैग से पानी की बोतल निकालकर उसे पानी पिलाया। आस-पास के लोग फर्श्ट ऐड बॉक्स ले आए और उस निम्बू बेचने वाले के सिर पर लगी चोट को साफ़कर चोट पर पट्टी बाँधा। बूढ़ा आदमी रोता रहा तब उस औरत ने सामने आकर उस बुढ़े आदमी का हाथ पकड़कर सहारा दिया। अनन्या उसे देखते ही गुस्से से उसका हाथ धकेलकर कहा - तुम! तुम तो खड़े-खड़े तमाशा देख रही थी फिर अब क्यों आई हो? जाओ छिप जाओ कहीं। अगर तुममें साहस नहीं है तो फिर मेरा हाथ पकड़कर मुझे क्यों रोका?"

उस औरत ने पछताते शब्दों में कहा, - "नहीं बेटी, वे लोग बड़े ही खतरनाक हैं। तुम अकेली उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकती थी, उल्टा वे तुम्हें सबके सामने अपशब्द कहते और तुम्हारा तमाशा बनाकर रख देते। वे कुछ भी करने में माहिर हैं। तुम अकेली शरीफ घराने की लड़की उनका गन्दा बर्ताव सह नहीं सकती। हमारा क्या हम तो इसी तरह पले बढ़े हैं। ये सब रोज़ का सुनना हमारी तक़दीर बन चुकी है। चुप चाप सहने के अलावा और कोई रास्ता नहीं।"

- "नहीं मैं ये सब जुर्म देखकर चुप नहीं रह सकती। अभी पुलिस में शिकायत करती हूँ।" अनन्या अपना मोबाइल उठाकर पुलिस को नंबर लगा ही रही थी उस औरत ने उसे रोक लिया और कहा, "पुलिस कुछ नहीं करेगी बीबीजी, ये सब एक दूसरे से मिले हुए हैं। ये जब आते हैं न, पुलिस खुद ही सैल्यूट कर घूस लेकर चुपचाप चली जाती है। सब के सब ईमान बेच खाए हैं। कोई इनका कुछ बिगाड़ नहीं सकता। ये देख रहे हो न मर्द कैसे खड़े देख रहे हैं और तुम तो अभी बच्ची हो, इन गुंडे मवालों से दूर ही रहो नहीं तो वह सब तुम्हें भी नोच कर खा जाएँगे। तुम से पहले कई पत्रकार आकर गए कोई कुछ नहीं बिगाड़ सका इनका।" उनसे लड़ने का कोई फ़ायदा नहीं। जुबान सख्त होने पर भी उस औरत की बातों में हकीकत नज़र आ रही थी। यूँ लग रहा था ऐसे माहौल में रहते हुए रोज़ रोज़ का जुर्म बरदाश्त करते कड़वाहट उसके रोम-रोम में जीर्ण हो चुकी है। मगर उसकी आँखों में सच्चाई साफ-साफ दिख रही थी।

- "आप सब इनकी गुंडा गर्दी सहते क्यों हो? आप सहते हो इसलिए ये लोग मनमानी करते हैं। आप सब एकजुट होकर थाने में रिपोर्ट करके तो देखो।"

- कोई फायदा नहीं है बेटी पुलिस ही नहीं ऊपर मंत्रियों तक सब मिले हुए हैं। हमारी कौन सुनता है। तुम्हें क्या लगता है ये गुंडागर्दी हम ख़ुशी से सह रहे हैं? नहीं! इससे पहले भी कइयों ने पुलिस में रपट लिखाया, जानते हो क्या हुआ उनके साथ? इन हैवानों ने उनके हाथ-पैर तोड़कर घर पर बैठा दिया और उसे देख रहे हो, उसका जवान बेटे को रास्ते पर छुरी घोंपकर मार डाले। तब से कोई भी इनसे उलझने का साहस नहीं करता।" कहते हुए उस बुजुर्ग ने उठने की कोशिश की लेकिन चक्कर आने से फिर से वही बैठ गया।

अनन्या ने उसको रिक्शे में बिठाया और उसके घर छोड़ने गई। झोपडपट्टीयों के बीच से गुजरते उसकी चॉल में पहुँचे। जहाँ उसकी गर्भवती बेटी दर्द से तड़प रही थी। उसके साथ एक महिला बैठी हुई थी।

उसकी हालात देखकर अनन्या ने पूछा, - इन्हें क्या हुआ?"

उसके पास बैठी वह महिला उठ खड़ी हुई और कहा, "जानकी का बच्चा पेट में ही मर गया, अगर तुरंत ही ऑपरेशन करके उसे निकाला न जाए तो माँ की जिंदगी के लिए खतरा है। यह कहकर वह मुँह में कपड़ा रखकर रोने लगी। वह गर्भवती महिला धीरे से उठने की कोशिश कर रही थी, अनन्या उसे उठने को मना किया। कुछ लोगों के सहारे उसी रिक्शे में अस्पताल ले गई और उसे अस्पताल में भर्ती कराया।

अनन्या जब घर पहुँची शाम के सात बज चुके थे। अवन्तिका बहुत देर से बेसब्री से उसका इंतज़ार कर रही थी। अनन्या को देखकर उसके लिए रसोई से पानी ले आई। अनन्या बहुत थकी हुई थी। वह सोफ़े पर ही सिर को तकिए पर रख कर बहुत देर यूँ ही चुपचाप बैठी रही।

अनन्या को परेशान देखकर अवन्तिका पश्न करने लगी, - "दीदी .. क्या हुआ? आज आप ने बहुत देरकर दी?" अनन्या ने उसकी आवाज़ में रुकावट महसूस किया। अवन्तिका जब भी बेचैन हो जाती या परेशान रहती तब उसकी रुक-रुक कर बोलने की कमजोरी सामने आती है। उसकी आवाज़ में शब्दों को दोहराते सुनकर अनन्या उसके पास आकर बैठी। उसकी शब्दों का दोहराव से अनन्या समझ गई कि अवन्तिका किसी कारण घबराई हुई है। उन दोनों का सालों का गहरा रिश्ता है। अनन्या उसकी पसंद न पसंद बखूबी जानती है। किस समय में उसे क्या चाहिए, किस बात पर वह दुखी हो जाती है और कैसे उसे मनाया जाए सभी ख्याल रखती आई है। बिल्कुल एक माँ सी अपनी जिम्मेदारी सँभाला है।

- "अरे! क्या हुआ अवन्तिका तुम परेशान क्यों हो? मुझे कुछ काम से रुकना पड़ा इसलिए थोड़ी सी देर हो गई। तुम ठीक तो हो ना, क्या हुआ मुझे बताओ।" अनन्या उसके पास बैठकर प्यार से उसके हाथों को जोर से पकड़कर बोली।

- कु...कुछ नहीं दीदी बहुत देर से आ..आप की राह देख रही थी। देर हो गई तो चिंता हो रही थी। आप ठीक हो?

- हाँ! मैं ठीक हूँ पर ऐसा क्या हुआ? तुम ऐसे घबराई हुई क्यों हो?

- कुछ नहीं दीदी। कि... कि... किसी ने फ़ोन करके आप के लिए पूछ रहा था, तो मैं परेशान हो गई। वह शब्दों का उच्चारण में दबाव महसूस करती है, इसलिए वह कभी रुक-रुक कर बोलती है। इस कमी के बजह से खुद दूसरे बच्चों से दूरी रखती है। उसे कई डॉक्टरों के पास लेकर गए। कई दवाइयाँ खाई मगर कोई फर्क नहीं पड़ा। अवन्तिका के मन में माँ का प्यार का अभाव को वह खूब जानती है।

- इसमें डरने वाली बात क्या है? इतनी सी छोटी बात पर कोई डरता है भला? क्या पूछा उसने?" अनन्या ने अवन्तिका के सिर पर हल्के से हाथ फिराते हुए पूछा ।

- यही कि आप कहाँ हो? मैने कहा पता नहीं ऑफिस में होगी।"

- उसकी आ...आवाज़ मुझे डरावनी लगी।"

- कुछ कहा क्या उसने?"

- नहीं कुछ क...क....कहा तो नहीं लेकिन..."

- बस इतनी सी बात और मेरी बहन डर गई? मैं तो समझी थी मेरी बहन बड़ी बहादुर है और छोटी-छोटी बातों से तुम कब से डरने लगी? चलो खाना खा लेते हैं बहुत भूख लगी है।"

- ठी..ठी...क है दीदी।"

अनन्या फ्रेश होकर आई तब तक अवन्तिका ने टेबल सजा दी थी। अनन्या खाने की चीज़ एक-एक कर टेबल के ऊपर लाकर रखी और अवन्तिका उसकी मदद की।

- अवन्तिका डैड का कोई फ़ोन आया था?"

- हाँ, मै.. बताना ही भूल गई कुछ दे..र पहले फो...ने आया था आप के लिए पू..पूछ रहे थे, आप वाशरूम में थी न मैने कहा तो उन्होंने आप को बाहर आते ही फ़ोन करने को कहा।"

- अच्छा।

- ठीक है मैं अभी फ़ोन लगाती हूँ।

इससे पहले अनन्या फ़ोन करती फ़ोन की घंटी बज उठी।

- हेल्लो..

- जी मैडम आप आ गई?

- हाँ, कौन?

- मैडम कपड़े लेने आप के घर आना था थोड़ी देर पहले भी फ़ोन किया था। क्या छोटी बेबी आप को नहीं बताई?

- कपड़े?

- हाँ मेडम मैं राघव, आपने आयरन के लिए कपड़े लेने शाम को बुलाया था न?

- हाँ हाँ आ जाओ मैं कपड़े निकालकर रखती हूँ। कहकर फ़ोन बंद कर दी।

- देखा राघव का फ़ोन था और तुम खमोखा डर गई ।

- अच्छा वह था ।

- अनु, अभी तो थोड़ी बड़ी हो जाओ। छोटी-छोटी बात पर डरना अच्छी बात नहीं है।

- हाँ दीदी।

राघव को कपड़े देकर अनन्या ने संजय को फ़ोन लगाया।

- डैड आप कहाँ हैं?

- अनु बेटे! अभी पेशेंट हैं, कुछ देर में बात करता हूँ।

- डैड हम आप का इंतजार कर रहे हैं और अभी आप वहीं से निकले भी नहीं। जल्दी आइए भूख लगी है।

- बेटा आज मुझे देर हो जाएगी। तुम खाना खा लो।

- नहीं डैड हम आप के लिए इंतज़ार कर रहे हैं।

- बेटा प्लीज आज मुझे क्लिनिक में देर हो जाएगी, किसी पेशेंट की इमरजेंसी आ गई है।

- अच्छा ऐसी बात है तो ठीक है हम इंतज़ार करेंगे।

- नहीं मैं यही पर कुछ खा लूँगा, आप दोनों खाना खा लो। संजय ने अनुनय करते हुए कहा।

- अच्छा ठीक है पापा। लेकिन वक्त से पहले खाना लीजिए। मैं कुछ ही देर में फ़ोन करूँगी यह पूछने कि आप ने खाना खाया कि नहीं। देर मत करना, काम में रहकर खाना खाना भूल न जाओ।

- अगर मैं भूल गया तो मेरी बेटी है न याद करवाने के लिए।" हँसते हुए कहा। "ठीक है अब मैं फ़ोन रखता हूँ।" कह कर संजय ने फ़ोन काट दिया।

अनन्या फ़ोन रखकर अवन्तिका के पास आ बैठी।

- आज का दिन कॉलेज में कैसा रहा?" अनन्या ने अवन्तिका से पूछा।

- अच्छा रहा दीदी, पता है दी आज कॉलेज में क्या हुआ वो शालिनी है न...." अवन्तिका बोलती गई, अनन्या 'हूँ, हूँ' कहती रही लेकिन उसका मन भरी बाजार में उस निम्बूवाले पर हुए अत्याचार को याद कर बेचैन हो रहा था। इस देश में राजा महाराजा के समय से लोगों से कर वसूली के नाम से शोषण किया जाता था। कुछ राजा अपने शासन काल में प्रजा को बच्चों के समान देखते थे और उनकी सुरक्षा का ध्यान रखते थे। कुछ राजा राज्यों को कब्जे में लेकर अपने राजकोष भरने हेतु सामान्य प्रजा का शोषण करते थे जिसे वे शराब, जुए और नृत्यशाला में लुटाते थे। उन राज परिवारोँ के कोषागार को तो बदलते समय के चलते सरकार ने कब्जे में ले लिया। लेकिन उस प्रथा का प्रचलन आज भी जारी है। आज का हादसा इसका सबूत है।

कुछ मुस्टण्डे अपने रोज़ी-रोटी और अय्याशी के लिए इन बेसहारा दुःखी गरीबों के ऊपर जुर्म करते हैं और उपनी शराब और जुए के लिए इन निसहाय लोगों से हफ्ता वसूली कर उनकी सारी मेहनत की कमाई को लूट लेते हैं। जिस् तरह वह औरत बता रही थी हो न हो इन गुंडों के ताल्लुक बड़े-बड़े लोगों से है। इसलिए वे बिना किसी डर के अपने गुंडाराज को कायम रखे हुए हैं। इसमें किस-किस का हाथ हो सकता है पता करना पड़ेगा। पुलिस का तो संबंध सीधे तौर पर है लेकिन इस कार्य को पीछे रहकर समर्थन देनेवाले कौन हो सकते हैं? कोई नेता या किसी कॉर्पोरेटस् के भी हाथ है? जो इन गुंडों को समर्थन देकर खड़ा किया हो। या परदे के पीछे रहकर गेम खेल रहे हैं। इनके पीछे अपनी टीम को लगाना पड़ेगा और सच्चाई को बाहर लाना पड़ेगा। बेचारे छोटे-मोटे व्यापारियों को और उन गरीबों को इन अत्याचार से कब मुक्ति मिलेगी।

- दीदी, क्या सोच रही हो खाना तो खाओ।" अवन्तिका ने अनन्या के हाथ को हिलाकर कहा। अनन्या सोच से बाहर आई और - "बस हो गया।" कहकर अनन्या खाना पूरा कर हाथ धोने चली गई।