Google Boy - 13 in Hindi Moral Stories by Madhukant books and stories PDF | गूगल बॉय - 13

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गूगल बॉय - 13

गूगल बॉय

(रक्तदान जागृति का किशोर उपन्यास)

मधुकांत

खण्ड - 13

अनेक नौजवान, छात्र लाल रंग के हेलमेट पहने स्कूटर-मोटर साइकिल पर घूमते दिखायी देने लगे हैं। इनकी तुरन्त पहचान हो जाती है कि इन्होंने रक्तदान किया है। इससे भी रक्तदान के कार्य में बहुत सहायता मिल रही है। लोगों में जागरूकता आ रही है। गूगल के पास कई अजनबी लोगों के फ़ोन आते हैं यह पूछने के लिये कि वह अगला रक्तदान शिविर कब लगायेगा। इन सब बातों से उसका उत्साह बढ़ता है। माँ भी आस-पड़ोस में गूगल की प्रशंसा सुनती है तो खुश हो जाती है।

गूगल ने सचिव महोदय के पास दस हज़ार रुपये भिजवा दिये तो रक्तदान अंकुरण सम्मान आयोजित होने लगा। स्कूलों के माध्यम से प्रत्येक गाँव-शहर में रक्तदान के प्रति जागरूकता फैलने लगी। नयी-नयी संस्थाएँ रक्तदान शिविर लगाने लगीं। मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारे तथा संतों-महात्माओं के मठों में रक्तदान शिविर लगने लगे।

सड़क के दोनों ओर अनधिकृत मकान टूट जाने के कारण गूगल का मकान मुख्य सड़क पर आ गया। सड़क के किनारे छ: सौ गज का पुराना मकान... उसके आसपास बड़ी-बड़ी दुकानें बनने लगीं।

एक दिन गूगल की दुकान के आगे से गुजरते हुए बैंक अधिकारियों की जीप रुक गयी। उसी बैंक में गूगल का खाता था, इसलिये मैनेजर से अच्छी जान-पहचान थी। जीप से उतरकर मैनेजर ने गूगल की दुकान में प्रवेश किया और उसकी नमस्ते का उत्तर देने के बाद कहा - ‘गूगल, रक्तदान के कारण आपकी पहचान बड़ी हो गयी है। आज मैं आपके सामने एक प्रस्ताव लेकर आया हूँ।’

‘जी कहिए?’ गूगल ने उनके बैठने की व्यवस्था करने के बाद चाय के लिये बोल दिया।

चाय बनाते हुए नारायणी के कान भी उनकी बातों में लग गये।

मैनेजर ने कहा - ‘आप तो जानते हैं कि हमारा बैंक अभी किराये के भवन में है। हमारे बैंक का काम बढ़ता जा रहा है, इसलिये हमारे जी.एम. ने अपनी बिल्डिंग बनाने का फ़ैसला किया है। मेरी इच्छा यह है कि हमारा बैंक आपकी ज़मीन में बने। ...भवन बनाने में आपका कोई खर्च नहीं होगा। बैंक आपको लोन देगा और बाद में आपके किराये में से काटता रहेगा।....आपकी ज़मीन देखकर मैं आपको एक राय और देना चाहता हूँ’, चाय पीते हुए मैनेजर ने बात को आगे बढ़ाया - ‘आप अपने लिये भी फ़र्नीचर का एक शोरूम बना लो, बैंक उसके लिये भी आपको लोन दे देगा।’

‘धन्यवाद मैनेजर साहब, आपने बहुत अच्छे प्रस्ताव रखे हैं। मैं एक-दो दिन में घर पर सलाह करके बता पाऊँगा।’

‘देखो गूगल, सबसे पहला प्रस्ताव आपके लिये है। दो दिन तक जवाब दे देना। आपकी ना होने पर ही मैं किसी और से बात करूँगा।’ मैनेजर इतना कहकर बाहर खड़ी जीप में बैठकर चला गया।

बैंक के दोनों प्रस्ताव उत्साहजनक थे, इसलिये गूगल तुरन्त माँ से सलाह करने के लिये अन्दर चला गया।

‘माँ, अभी-अभी बैंक का मैनेजर मेरे पास आया था..।’

‘मुझे सब पता लग है। मैं दरवाज़े की ओट में खड़ी सारी बातें सुन रही थी।’

‘तो बोलो, क्या कहती हो?’

‘बेटे, तू तो मुझसे अधिक समझदार हो गया है, इसलिये तू ही बता, क्या करना चाहिए?’

‘माँ, बैंक बनाने में हमारा कुछ लगना नहीं। अच्छा भला किराया आने लगेगा। रही फ़र्नीचर का शोरूम बनाने की बात, तो बैंक लोन दे देगा। शोरूम के ऊपर हम अपनी रहने की जगह बना लेंगे...फिर भी इतना बड़ा काम है, एक-दो लाख रुपये तो नक़द अपने हाथ में होने ही चाहिएँ।’

‘गूगल, रुपयों की तो तू चिंता मत कर। परन्तु एक-दो समझदार आदमियों से सलाह कर ले। यदि तुझे सारी बातें जँच जाएँ तो बैंक मैनेजर को हाँ कह देना’, फिर माँ ने उसे सचेत भी कर दिया - ‘बेटे, एक ध्यान रखना, बाँके बिहारी जी के ख़ज़ाने की ओर नज़र न करना। यह सब उन्हीं की कृपा से फल-फूल रहा है।’

‘बिलकुल माँ। उसके बारे में तो मैं सोच भी नहीं सकता।’ माँ के पास से उठकर गूगल फिर दुकान पर आ गया।

माँ को अचानक कुछ ध्यान आ गया तो वह भी पीछे-पीछे दुकान में आ गयी और बोली - ‘गूगल बेटे, कल पूर्णिमा है। यदि तू परिक्रमा करके बाँके बिहारी जी के दर्शन कर आये तो अच्छा दिन है। बिहारी जी की भेंट-पूजा भी रखी है, उसे भी चढ़ा आना।’

‘मैं चला तो जाऊँगा, परन्तु मुझे कई बार ख़्याल आता है कि एक बार अपनी माँ के साथ भी बाँके बिहारी जी के दर्शन करूँ। अच्छा अवसर है माँ, आप भी साथ चलो।’

‘ठीक है बेटे, तू कहता है तो मैं भी चल पड़ती हूँ। बिहारी जी के दर्शन करने का मेरा भी बहुत मन है।’

‘तो ठीक है माँ, कल चलते हैं। सब तैयारी कर लो। इस बार तो अच्छे से दर्शन करके आयेंगे।’

माँ द्वारा साथ चलने की हामी भरने के बाद तो गूगल का उत्साह दोगुना हो गया। माँ अन्दर जाकर तीर्थ-यात्रा की तैयारी करने लगी।

वृन्दावन पहुँच कर धर्मशाला में ठहरने की व्यवस्था करने के बाद सायं के समय दोनों रिक्शा में बैठकर बिहारी जी के मन्दिर में पहुँचे। वहाँ बहुत कम लोग दर्शन करने वाले थे। इसलिये प्रसाद ख़रीदकर वे सीधे मन्दिर में प्रवेश कर गये। गूगल ने पुजारी जी को बाँके बिहारी जी पर चढ़ाने के लिये फूलों की माला और प्रसाद दिया। माँ ने इशारे से पुजारी जी को बुलाया और कान में फुसफुसा कर कहा - ‘पुजारी जी, बिहारी जी की सेवा में यह सोने की गिन्नी चढ़ानी है। सँभाल कर बिहारी जी पर चढ़वा दो, कहीं इधर-उधर न हो जाये..।’

सोने की गिन्नी देखकर पुजारी तो नाचने लगा। ‘अरे सेठानी जी, आप अन्दर आकर अपने हाथ से बिहारी जी को भेंट पूजा चढ़ाओ..आओ, आओ, इधर से आओ’, कहते हुए पुजारी जी उनको आदर सहित गर्भ-गृह में ले गया।

दोनों पुजारियों ने मीठे-मीठे स्वर में मंत्रोचारण किया और विशेष पूजा करायी। ढेर सारा प्रसाद थैली में डालकर दिया। गुलाब के फूलों की दो मालाएँ दोनों के गले में डालीं और कृष्ण जी का अंग वस्त्र तथा राधारानी का झुमका माँ को भेंट किया। बाँके बिहारी के इतने भव्य और मनोहारी दर्शन पाकर माँ बहुत खुश थी। आज उसके मन की बहुत बड़ी इच्छा पूरी हो गयी थी।

बाँके बिहारी जी के दर्शन करके आने के बाद पता लगा कि गूगल की मौसी का दामाद एक बैंक में प्रबंधक है। नारायणी ने फ़ोन मिलाकर गूगल से उसकी बात करायी तो उसने तुरन्त कह दिया - ‘लोग तो बैंक को बिल्डिंग किराये पर देने के लिये सिफ़ारिशें करवाते हैं, उनके चक्कर लगाते हैं और तुम्हें घर बैठे-बिठाये ऐसा प्रस्ताव मिला है तो फटाफट हाँ कर दो। हाँ, जिस दिन सारी शर्तें तय करनी हों, उस दिन मुझे बुला लेना, मैं आ जाऊँगा। अच्छे से तुम्हारी डील करवा दूँगा।’

‘बहुत-बहुत धन्यवाद जीजा जी।’

माँ-बेटे के मन की शंका दूर हो गयी और गूगल ने बैंक मैनेजर से मिलकर बिल्डिंग बनाने के लिये हाँ कर दी।

बाँके बिहारी वाले मन्दिर की घटना सारे गाँव में फैल गयी। हुआ यूँ कि उस दिन राधारमण भी बाँके बिहारी जी के मन्दिर में उपस्थित था और उसने सारा दृश्य अपनी आँखों से देखा था। घर पहुँचते ही राधारमण ने सारी घटना अपनी पत्नी कमला को सुनाते हुए बताया - ‘कमला, ग़ज़ब हो गया। जैसे ही अपने गूगल ने प्रसाद पुजारी जी को दिया तो बाँके बिहारी जी ने माँ-बेटे को गर्भ-गृह में बुला लिया। दोनों पुजारियों ने मिलकर उनसे विशेष पूजा करायी, थैली भरकर प्रसाद दिया और एक पुजारी तो उनको बाहर तक छोड़ने आया।’

‘यह तो वाक़ई ही कमाल की बात है। हम तो बाँके बिहारी के लिये इतना भजन-पाठ करते हैं, नारायणी तो सारा दिन अपने बेटे के साथ दुकान में लगी रहती है’, कमला के स्वर में नारायणी के प्रति ईर्ष्या झलक रही थी।

‘कमला, तू तो बावली है...बाँके बिहारी जी तो भगत के भाव से प्रसन्न होते हैं। हमेशा कर्म की पूजा करने के लिये उनका संदेश रहता है। भगवान को दिखावा पसन्द नहीं...समझी!’ राधारमण ने पत्नी को समझाया।

‘ठीक है जी। मैं आपकी बात समझ गयी। मेरे मन में तो नारायणी के प्रति ईर्ष्या जाग उठी थी,’ उसने थू करते हुए बाँके बिहारी जी से क्षमा मांगी और कहा - ‘मैं नारायणी को बधाई देने जाऊँगी।’

कमला गाँव की भजन मंडली की मुखिया थी। कमला ने उसी दिन भजन मंडली में इस घटना का ज़िक्र कर दिया। सब महिलाएँ सत्संग के बाद नारायणी के घर आयीं और उसे बधाई देने लगीं। नारायणी ने सभी को बाँके बिहारी जी का प्रसाद दिया। सबके हृदय में नारायणी के प्रति आदर-भाव बढ़ गया।

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