Arman dulhan k - 21 in Hindi Fiction Stories by एमके कागदाना books and stories PDF | अरमान दुल्हन के - 21

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अरमान दुल्हन के - 21

अरमान दुल्हन के

सरजू को पत्र मिलता है। वह पुरी तन्मयता से पढ़ता है। उसका दिल और दिमाग काम करना बंद कर देते हैं। इस धोखेबाज दुनिया में किस पर यकीन करूँ? मां सही है या मीनू? हे ईश्वर मुझे रास्ता दिखा। क्या करूँ? वह असमंजस में अपने सिर को खुजलाता है। वह पछताता है कि मीनू से बात सुननी चाहिए थी मुझे?
तभी ऑफिस का चपरासी आता है और कहता है
"बाबूजी आपका फोन है।"
"मीनू का फोन हो सकता है ! चलो उससे माफी मांग लूंगा। " सरजू सोचते हुए फोन की तरफ लपकता है।
दूसरी तरफ कविता के भाई ने बधाई दी। आप पापा बन गए।सुनते ही सरजू खुशी के मारे चिल्ला पड़ा था। सोचा ये खुशी मां को दूंगा तो वो सब गिले- शिकवे भूल जाएगी।मगर ये उसका भ्रम मात्र था जो घर पहुंचते ही टूट गया।वह मिठाई लेकर घर पहुंचा।
"मां बधाई हो तैं दादी बणग्गी। " सरजू ने खुशी जाहिर करनी चाही।
"उसकै तो सात छोरी होवैगी बेटा चिंता ना कर। बांट लिए डब्बे।"पार्वती फिर उटपटांग बोलने लगी थी।परंपरा के अनुसार ना तो उसने थाली बजाई और न ही मिठाई बांटने की जहमत उठाई।
"मां तेरै पोता होग्या खुशी मना। क्यूं सारी हाण बांगी (नाराज) होई रह सै।"
सरजू ने मां को समझाने की भरपूर कोशिश की। मां टस से मस न हुई। सरजू ने सुबह वापस जाने की तैयारी कर ली।
" ठीक सै मां , तन्नै आपणा आळी (अपनी मन मर्जी)कर ली नै! ईब्ब मेरी बाट (इंतज़ार) ना देखिए।"
सरजू इतना कहकर अपना बैग उठा घर से निकल गया।

हमारी सामाजिक परंपरा के अनुसार वह कविता और बेबी के कपड़े, घी वगैरह लेकर ससुराल चला गया।कविता बहुत खुश हुई।सरजू ने कविता से माफी मांगी। बेबी भी उन दोनों का प्यार देखकर मुस्कुरा उठा। कविता ने ससुराल में लाड-प्यार के जो अरमान देखे थे वो तो पूरे नहीं हो पाये।किंतु अब उसको जीवन से दुख के बादल छंटते हुए दिखाई दे रहे थे।उसका जीवन खुले आसमान सा हो गया था। उन्होंने तय कर लिया था कि दोनों अपने बच्चे के साथ सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करेंगे। सरजू कविता और अपने बच्चे अपने साथ ले जाता है ।

जब सरजू की मंझली बहन को पता चलता है तो वह अपने पति के साथ जाकर कविता और सरजू को वापस घर लाने के लिए मिन्नतें करती है।

"देख बेबे (बहन)तन्नै बेरा कोनी (पता नहीं) माँ और सुशी नै कविता गैल(साथ) किस्सा (कैसा) व्यवहार करया सै! तु बीच मै मत ना आ(तुम बीच में मत आओ) ।" सरजू ने ममता को समझाता है ।
"किंतु ममता उसे कसम दे देती और समझाते हुए कहती है -" देख भाई घर के बड़े छोटे रोळे (डांट) भी कर दिया करैं। सारी बातां का बतंगड़ न्हीं बणाया करते! तैं सब तैं बडा सै (तुम सबसे बडे़ हो), अर तेर तईं हाम्म छोटे समझावां या के आच्छी बात सै भाई ! समाज मै रहके किम्मे सहन भी करणा पड़ज्या सै । लोग के कहवैंगे?? एक ए छोरा सै वोए माँ नै एकली नै छोड के चल्या गया सहर(शहर) । तैं बी किम्मे दिमाग लगा ले! "
सरजू भी सोचने पर मजबूर हो गया । उसने बहुत सोचा और आखिरकार निर्णय लेना ही पड़ा ।



एमके कागदाना
फतेहाबाद हरियाणा