muskurahat ki maut.. - 2 in Hindi Adventure Stories by Rohiniba Raahi books and stories PDF | मुस्कुराहट की मौत..... - 2

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मुस्कुराहट की मौत..... - 2

माँ अमृतादेवी की मौत की ख़बर देते हुए पिता भूपतदेव ने अपनी बेटी कुँवर को ये गाँव छोड़कर जाने के लिए मनाने लगे।

" बेटा कुँवर तुम्हें यहाँ नही आना चाहिए था। वो अब तुझे नही छोड़ेगा। मार देगा वो तुझे भी। अभी ही तुम लौट जाओ। वापस शहर चली जाओ बेटा।" - डरे सहमे पिताने अपनी बेटी से कहा।

" क्या हुआ ये तो बताओ बापू..! आप इतना डर किससे रहे है? " - कुँवर पूछ रही है।

बेटी कुँवर की कई मिन्नतों के बाद पिता ने पूरी बात बताई।

" तेरे जाने के बाद जब विमलराय को पता चला कि हमने तुजे उसकी नजरों से छुपा के बाहर शहर भेज दिया है तो उसने तुजे हर शहर में धुँधवाया। तू नही मिली। तो उसने तेरी माँ को कैद कर लिया। और मुजे धमकाने लगा।"

" बता अपनी बेटी को हमारी मर्जी के ख़िलाफ़ इस गाँव के बाहर कहा भेज दिया है..? " - ग़ुस्से से तिलमिलाता हुआ विमलराय भूपतदेव को धमकाने लगा।

" तू चाहे तो मेरी जान ले ले विमलराय, पर मेरी पत्नी को छोड़ दे। " - गिडगिडाता हुआ पति।

" बता कुँवर कोनसे शहर में है? अग़र कुँवर को यहा वापस नही बुलाया तो तेरी बीवी को जला के मार देंगे हम। " - विमलराय

" नही कुँवर के बापू..! कुँवर के बारे में इस दरिंदे को कुछ मत बताना। भले ही वो मेरी जान ले ले। " - अमृतादेवी कुँवर के बापू से कहने लगी।

और पूरे गाँव के सामने उस दरिंदे ने तेरी माँ को जला के मार दिया। मेने बहोत कोशिश की तेरी माँ को बचाने की। पर उसके हैवान आदमियों ने मुजे लोहे की जंजीरों में बांध के पकड़े रखा था। मैं तेरी माँ को नही बचा पाया। यहा तक कि तेरी माँ की लाश के पास भी नही जाने दिया। उसकी आधिआधुरी जली लाश को भेड़ियों के हवाले कर दिया। और मैं देखने के अलावा कुछ नही कर शका।

तब से एक ही प्राथना मैं माँ भवानी से करने लगा कि वो तुजे यहा कभी न भेजे। पर लगता है माँ भवानी को भी मुझपे इतने ज़ुल्म होने पर भी दया नही आती।

" बेटा कुँवर मैं तेरी सलामती चाहता हूँ। महेरबानी करके तुम वापस शहर चली जाओ। "

कुँवर ने कोई जवाब नही दिया। वो जैसे सदमें में चली गई। ना ही कुछ बोल पाई ना ही कोई इशारा कर पाई। उसे अपनी माँ की यादों का बवंडर अंदर ही अंदर खाए जा रहा है। वो अपनी माँ की मौत बर्दास्त नही कर पाई। और अचानक ही ज़मीन पर गिर पड़ी।


कुँवर की ये हालत देख के उसके बापू बोहोत ही घबरा गए। और कुँवर को संभालेन लगे। किसी की नज़रों में कुँवर ना आ जाये इस डर से वो बेहोश कुँवर को माँ भवानी के मंदिर के पीछे वाली एक छोटी सी जोपड़ी में गए जहा कोई आता जाता नही था।

वो कुछ ज़्यादा ही परेशान हो गया। क्योंकि वो डॉक्टर को भी नही बुला सकते थे। क्योंकि अगर डॉक्टर को बुलाने जाए तो लोगो को कुँवर के आने का पता लग सकता है।

( क्या करेंगे भूपतदेव? अपनी बेटी को बचाने क्या करेंगे..? )

.......क्रमशः......