is rishte ko kya naam du - 5 in Hindi Fiction Stories by Kalpana Sahoo books and stories PDF | इस रिश्ते को क्या नाम दूँ ? - 5

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इस रिश्ते को क्या नाम दूँ ? - 5

 

       अबतक आप पढे हैं की स्रुती को दीपक् कुछ सबाल पुछता है उसको जबाब देने को बोलता है । स्रुती जबाब के साथ-साथ अपना अतीत की कुुछ बातेंं सुनाने जा रही है । उसे लगती है सायद दीपक् जो पुछ रहा है उसको उसका जबाब मिलजाये या फिर अपनी अन्दर जो तकलीफ है सायद वो कुछ कम हो जाये । अब आगे पढते हैं........

       स्रुती :- तुम्हे पता है में प्यार की लब्ज तब से पढ रही हुं जब से में छोटी थी । में हमेशा सच्चा महबत् करती हुं पर मुझे धोखा मिलती है । पता नहीं क्युं फिर भी में उसको माफ् कर देती हुं कैसे और क्युं ?

          स्रुती ये बोलते ही रो पडती है ।

       दीपक् :- प्यार में यैसे होता है यार । यही तो है सच्चा महबत् ! इसलिए तो तु अब भी रो रही है उसके लिये । चल् दिल छोटा मत कर आगे बोल.......में भी सुनु तेरी दिल में कितनी दर्द है ? 
 
       स्रुती :- में 10th से एक लेडका को प्यार की थी । हमारे बिच में सबकुछ सही चल रही थी । वही अपनापन, वही प्यार और वही बाते सबकुछ वैसा थी जो में सुनना चाहंती थी । मगर पता नहीं अचानक क्या हुआ जो में बारबार phone करने के बाबजुद भी वो recive नहीं कीया । जब की पेहले यैसा कभी नहीं किया था । में बहत घबरागयी । अजीब अजीब खेयालात मेरी मन में आ रही थी । फिर भी हीम्मत नहीं हारी । बारबार phone लगा रही थी । सोच रही थी वो कभी तो phone उठायेगा, पर नहीं हुआ यैसा । में लेडकी थी रात में ना कहीं जा सकती थी, ना कुछ कर सकती थी । अन्दर ही अन्दर बहत डरी हुई थी में । क्या हुआ होगा ? क्युं यैसा कर रहा है वो ? वो ठीक् तो होगाना ? ना मुझसे बात नहीं करना चाहता है वो ? कितने सारे बाते सुझ रही थी मुझे । यैसा लगती थी कहीं वो मुझे छोड तो नहीं देगा ? दिल घबराती रही अगर वो मुझे छोड देगा तो कैसे जीऊगीं में उसके बिना ? बहत प्यार करती थी में उसे । वो मेरी पेहली प्यार था । उसे में खोना नहीं चाहती थी । ये सब सोच सोच के परेसान थी और call करती रहती थी । तभी किसीने call को काटा । मुझे लगा अभी call आयेगी पर आयी नहीं । थोडी देर बाद फिर से call की तो वो recive किया और झठसे एक बात बोला में तुम्हारे लिये अपना मा-बाप को खोना नहीं चाहती हुं । बस् इतना ही । उसके बाद call काट दिया । में सोची सायद कुछ problem हुई है इसलिए वो यैसा बोल रहा है । पर बाद में मुझे call करेगा और बतायेगा क्या हुआ था ? मगर पुरी रात बीतगई उसका call के इन्तेजार में पर कोई call नहीं आयी । सुबह call कि तो phone लगा नहीं । ओर परेसानी बढ गयी थी मेरी । चार दिन हो गेयी फिर भी call नहीं आयी । में भी call की नहीं उसे ।
   
      फिर ठीक् 10 दिनों के बाद उसका call आया । में बहत खुस थी बात करने केलिए । जब phone recive की उसने मुझपर इनजाम लगाया इतने दिनों से मुझे phone क्युं नहीं किये हो ? में उसे बोली तुम क्या बोले थे मुझे सायद तुम्हे याद नहीं ? वो बोला तुम आज भी उसी बात को लेकर बैठी हो । आरे में थोडा tension में था इसलिए यैसा बोलदी मैंने । बरना तुम्हे लगती हैं में यैसा कुछ कर सकता हुं । तुम जान हो मेरी, में तुम्हे छोड नहीं सकता हुं । फिर मैंने मुसकुराते हुई बोली छोडो उस बात को । अब ये बताउो हुआ क्या था ? क्युं इतना परेसान् थे तुम ? उसने बोला तुम्हारे और मेरे बारे में घरमें सबको पता चलगयी । उसी बात को लेकर थोडी बेहेस् हो गया था । इसलिए पापा suiside करने चले थे । मरते मरते बचे है वो । बरना में आज उनको खो देती । 

         यैसे बोलते ही वो दुःखी हो गया । में उसको सम्भाली और बोली अब कैसे हैं ? वो बोला ठीक् है । मैंने बोली अब हम दोनो को लेकर चर्चा ! वो बोला नहीं......पर क्या करू में ? मैंने बोली तुम्हे जो ठीक् लगता है तुम वो करो । यैसे बोलते ही call काटदी । 

      उसकी बाते सुनकर कुछ समझ में नहीं आ रही थी । सीफ् एक बात बारबार याद आती थी.....(उसका कहा हुआ बाते) में तुम्हारे लिये मेरा मा-बाप को नहीं खो
सकता ।

           to be continue........