अध्याय - 3क्या लोगी रमा ? अनुज ने बैठते हुए पूछा।
मतलब ?
मतलब तुम्हे खाने में क्या पसंद है ?
तुमने बुलाया है जो तुम्हे पसंद है वो खिलाओ।
नहीं,नहीं। तुम बताओ ना क्या मगाऊँ ?
कुछ भी मंगा लो जो यहाँ अच्छा मिलता हो।
अच्छा ठीक है। भैया जरा यहाँ आईए। यहाँ क्या सबसे अच्छा मिलता है ?
हैदराबादी पुलाव और कश्मीरी पुलाव बहुत अच्छा है आप चाहे तो ट्राई कर सकतें हैं।
क्या बोलूँ रमा ?
जो भी, अच्छा कश्मीरी पुलाव मंगालो।
ठीक है भैया। यही ले आईये।
वेटर आर्डर लेकर चला गया।
अच्छा ये बताओ इतनी क्या आतुरता थी मुझे डिनर पर लाने की ? रमा नू पूछा।
यूँ ही तुमसे कुछ बात करनी थी। अनुज बोला।
हां तो सुबह क्यों नहीं बताया।
वहां तो सभी लोग थे। कुछ अकेले में बात करनी थी।
अच्छा, तो बताओ क्या बात है। वो मुस्कुरा रहीं थी उसे एहसास था कि अनुज क्या कहने के लिए बुलाया है इसलिए वो उसको छेड़कर उकसा रही थी।
कहने की हिम्मत नहीं हो रही है। अनुज बोला।
तो बुलाया क्यों ? ठीक है मैं जाती हूँ। कहकर वो जानबूझकर उठकर जाने का नाटक करने लगी।
अरे ये क्या कर रही हो बैठो ना प्लीज। प्लीज बैठ जाओ।
हाँ तो बोलो क्या बोलना है।
आज तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो। अनुज थोड़ा हिचकिचाते हुए बोला।
अच्छा ये बोलने के लिए बुलाया है ?
नहीं और भी कुछ बात है
तो उसको भी बता ही दो।
पिंक कलर की साड़ी में तुम सबसे ज्यादा खूबसूरत लगोगी।
अच्छा तुम्हें कैसे पता ?
कैसे पता नहीं रहेगा आखिर दो साल से मै तुमको................... अनुज चुप हो गया ?
दो साल मै तुमको क्या ?
अनुज चुपचाप सिर झुकाकर बैठा था। हाँ बताओ दो साल से मै तुमको क्या ? प्यार करतें हो ?
अनुज ने खट से आंख उठाकर देखा। उसकी आँखें भर गयी। उसने रमा का हाथ पकड़कर कहा-
हाँ रमा मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ।
रमा ने उसके हाथ के उपर अपना दसरा हांथ रखा और कहा तो पागल रोते क्यों हो ये तो खुशी की बात है। मैं भी तुमसे प्यार करती हूँ।
सच में रमा ? उसका मन खुशी से भर गया वो और रोने लगा।
अरे तुम तो चुप ही नहीं हो रहे हो। रमा उठी और उसके सिर को अपने सीने से लगा लिया।
चुप हो अनुज सब लोग देख रहें हैं।
थैंक्स रमा। अनुज शांत हो गया ।
रमा अपनी जगह आकर बैठ गई।
थैंक्स की कोई बात नहीं अनुज। मैं हमेशा से जानती थी कि तुम मुझे पसंद करते हो। परंतु मैंने भी कभी पहल नहीं की।
क्यों भला रमा। तुम्हें मेरी मायूसी दिखाई नहीं देती थी।
देती थी ना अनुज। पर हम दोनों के बीच एक बड़ी सामाजिक स्तर की दीवार जो है। उसने कभी कहने नहीं दिया।
मतलब ?
मतलब तुम बहुत अमीर परिवार से आते हो अनुज और मैं एक मध्यमवर्गीय परिवार की लड़की हूँ। मुझे अपनी चादर से बाहर पैर फैलाने की इजाजत भी नहीं है और हैसियत भी नहीं है।
ऐसा नहीं है रमा। मैंने कभी भी इस तरह नहीं सोचा परिवेश अब बदल गया है ऊँच-नींच की भावना अब खत्म हो गई है।
नहीं अनुज, दिक्कतें हैं। अभी भी कुछ दिक्कतें हैं।
मुझे उन सारी दिक्कतों से परे तुमसे प्यार है रमा। तुम ये बताओ तुम मेरा साथ दोगी कि नहीं ?
दूँगी अनुज पर मैं अपने माता-पिता की एकलौती संतान हूँ उनकी मर्जी मेरे लिए आवश्यक है। हाँ मैं तुमसे प्यार करती हूँ। कुछ रास्ता ऐसा निकालो कि मुझे दोनों मिल जाएँ।
देखो मेरे पिता को कोई आपत्ति नहींहोगी क्योंकि वो मेरे दोस्त की तरह हैं मेरी हर इच्छा से वो सहमत रहतें हैं। रही मेरी माँ की बात तो उनके सहमत या असहमत होने से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।
वो क्यूँ ? क्यूँ फर्क नहीं पड़ता ? रमा ने पूछा ।
क्योंकि वो मेरी माँ नहीं है।
अरे अभी तुमने कहा कि वो तुम्हारी माँ है।
माँ है पर सौतेली। मेरी अपनी माँ का देहांत तो काफी पहले हो गया था। और इन्होंने तो दौलत के लिए ही मेरे पिता से शादी की थी हालांकि उनकी बेटी यानि मेरी बहन बहुत ही अच्छी है, और मैं उससे प्यार भी बहुत करता हूँ। माँ का भी सम्मान करता हूँ।
ओह!! ये सब मुझे नहीं मालूम था। सॉरी।
सॉरी किस लिए रमा। हर इंसान के जीवन का अच्छा बुरा पक्ष होता है। और ये हमारे ऊपर है कि हम किस पक्ष को ज्यादा महत्व देते हैं।
तुम बहुत समझदार हो अनुज। आई रियली लव यू।
ओह सचमुच। तो मेरा एक गिफ्ट स्वीकार करोगी। कहकर उसने एक बड़ा सा पैकेट टेबल पर सरका दिया।
ये क्या है अनुज ?
खोलकर देखो।
रमा ने उसे खोलकर देखा उसमें एक पिंक कलर की फ्लावर प्रिंट वाली साड़ी थी।
ओह! तभी तुम पिंक कलर की साड़ी की बात कर रहे थे। रमा ने कहा।
हाँ। क्या तुम इसे मेरे लिए पहनोगी ? हाँ रमा ?
बिलकुल अनुज, पर किसी विशेष अवसर पर। इसे मैं जान से भी ज्यादा संभाल कर रखूँगी।
एक आखिरी बात तुमसे पूछनी थी रमा।
बताओं ?
क्या तुम मुझसे शादी करोगी ?
तो क्या प्यार तुमसे करूँगी और शादी किसी और से करूँगी बुद्धू।
सॉरी रमा पर मुझे लगा पूछ लेना जरूरी है तो मैं घर पर अपने पापा से बात करूँगा
और उनको तुम्हारे घर रिश्ते के लिए भेजूंगा। ठीक है।
नहीं ठीक नहीं है पहले तुम शादी के लायक तो बनो।
मतलब ?
मतलब मेरे माता-पिता यदि तुमसे पूछेंगे कि कितना कमाते हो, क्या करते हो तो क्या बताओगे?
पहले अपने पैरों पर खड़े हो जाओ फिर भेजना। रमा बोली।
अच्छा वैंसे, पर मुझसे धीरज नहीं धरा जाएगा रमा।
क्यों ? रमा ने पूछा।
क्योंकि मैं तुमसे ज्यादा दिन अलग नहीं रह पाऊँगा।
तो फिर जल्दी से एक काम करो और मुझे ले जाओ।
काम क्या करना है रमा मुझे तो बस पापा का बिजनेस संभालना है और मेरा काम चालू।
तो ठीक है ना तुम पहले काम तो संभालो। एक दो महीने सीख लो फिर भेजना।
एक दो महीने ? इतने दिन मुझे दूर रखोगी रमा।
जी हाँ। ये हम दोनों की बेहतरी के लिए है समझे। अब मै चलूँगी देर हो रही है। रमा बोली।
क्रमशः
मेरी अन्य तीन किताबें उड़ान, नमकीन चाय और मीता भी मातृभारती पर उपलब्ध है। कृपया पढ़कर समीक्षा अवश्य दें - भूपेंद्र कुलदीप।