Pata Ek Khoye Hue Khajane Ka - 22 in Hindi Adventure Stories by harshad solanki books and stories PDF | पता, एक खोये हुए खज़ाने का - 22

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पता, एक खोये हुए खज़ाने का - 22

अब उन्होंने संदूकों से सारा धन निकाल, अन्य धन के साथ जमीन में गाड़ दिया. और अपने पड़ाव पर जाते वक्त मार्ग में खाली संदूकों को जंगल में छोड़ दिया.
उन्हें ऐसा विश्वास था कि वे आदिम लोग इस संदूकों को खोजते हुए जरूर आएँगे. और इस संदूकों को पा, वे उनका पीछा छोड़ देंगे. पर उन्हें क्या पता था कि वे जिसे गंवार मान रहे हैं, वे इतने नादान नहीं थे. और दिमाग के मामले में तो वे उनके भी बाप साबित होने वाले थे. उनसे पीछा छुड़ाना भी उन लोगों के लिए इतना आसान साबित नहीं होने वाला था.
अपने पड़ाव पर पहुंचकर उन्होंने भोजन किया. और सोने चले. अब तो रात्रि बहुत थोड़ी ही शेष रह गई थी. फिर भी तीन लोगों को निगरानी पर छोड़ बाकी के लोग सो गए. सवेरा होने तक कोई अनहोनी घटित हुई नहीं. वे सुबह को देरी से निवृत्त हुए. फिर भी आंखों में से नींद गई नहीं थी. थकान भी बहुत थी. कुछ साथी थोड़े बहुत घायल भी हुए थे. दोपहर तक वे वहां ठहरे रहे. फिर अपने टेंट उठा, आगे बढ़े.
अब उन्होंने यह तै किया था कि अब पड़ाव को खोह वाली पहाड़ी से कहीं दूर ले जाया जाए. फिर धन को भी यहाँ से निकाल दूर कर दिया जाए. क्यूंकि इस पहाड़ी पर उन आदिम लोगों की आवाजाही लगातार बनी रहती थी. और वे कभी भी उनके लिए परेशानी की वजह बन सकते थे.
पर इससे पहले वे अपने छिपाए धन की खबर प्राप्त कर लेना चाहते थे. क्यूंकि रात्रि के दौरान जल्दी में काम करने से अगर कोई कमी रह गई हो तो पूरा कर लेना चाहते थे. इसलिए वे उस और बढ़े. मार्ग में उन्होंने देखा, जहां उन्होंने वे खाली संदूकें छोड़ी थी, वे गायब थी. वे आदिम लोग जरूर खोजते हुए आये होंगे और उसे उठा ले गए होंगे. उन्होंने सोचा. फिर वे आगे बढ़े.
अभी थोड़े ही दूर निकले होंगे कि कहीं से कुत्तों के भोंकने की आवाज़ सुनाई दी. वे थम गए. और इधर उधर देखने लगे. तभी उनकी नजर कुत्तों को साथ लिए आते आदिम लोगों पर पड़ी. वे जरूर उनकी ही खोज में निकले होंगे. इस बात की दहशत उनके दिलों में पैदा हुई. वे जल्दी से आगे बढ़े. पर तुरंत उन्हें विश्वास हो गया कि वे आदिम लोग उनका ही पीछा कर रहे हैं. उनके कुत्ते दौड़ते हुए राजू और उनके साथियों के नजदीक आ पहुँचे. और उसे भोंकने लगे.
अब भीमुचाचा ने अपनी बंदूक उठाई. और कुत्तों के थोड़े और नजदीक आने का इंतज़ार किया. जैसे ही वे कुत्ते बंदूक की रेंज में आए, भीमुचाचा ने बंदूक चलाई. उनका निशाना अचूक था. तुरंत चार कुत्ते जमीन पर ढेर हो कर गिरे. अन्य कुत्ते अपने साथी कुत्तों की हालत देख भाग खड़े हुए. और दूर जा भोंकने लगे. तब तक वे आदिम लोग भी वहां आ पहुँचे. वे अचरज से अपने मरे कुत्तों की हालत देखने लगे.
राजू और उनके साथियों को वक्त मिल गया. वे उनसे काफी दूर निकल गए.
पर अब उन्हें अपने धन की चिंता सताने लगी. कहीं वे मनुष्य वहां तक तो नहीं पहुँच गए होंगे? उन्हें इस बात की दहशत लगी थी कि वे जरूर उनका पीछा करते हुए पीछे पीछे आएँगे.
पर तभी संजय को जैसे कुछ याद आया. उसने अपनी बेग से अरुणाचल प्रदेश के जंगल से लाई हुई वह विचित्र गुर वाले पौधे की पत्तियाँ निकाली. और उसे मसलकर जहां जहां उनके और उनके साथियों के पैर पड़े थे, वहां मार्ग में दाल दिया.
"तुमने यह बहुत बढ़िया काम किया. अब वे कुत्ते जब इनको सूंघेंगे, तब उन्हें हमारे चमत्कार का पर्चा मिलेगा." राजू ने हस्ते हुए संजय को कहा.
राजू की बात सुन, सब मुस्कुराए. फिर वे आगे बढ़ गए.
अब वे उनके गाड़े धन की जगह तक आ पहुँचे. वहां सब कुछ पहले जैसा था. वे आदिम मनुष्य यहाँ तक नहीं पहुँच पाए थे. फिर भी उन्होंने वहां की हालत थोड़ी बहुत ठीकठाक कर दी. फिर वे नए पड़ाव की तलाश में बढ़ गए.
वे पहाड़ी से नीचे उतर, तलहटी में आगे बढ़ रहे थे. तभी उन्होंने दूसरी और से उन आदिम मनुष्यों के झुंड को भी पहाड़ी से नीचे उतरते देखा.
सचमुच उस विचित्र गुर वाले पौधे की पत्तियों ने अपना चमत्कार दिखाया था. उनके कुत्ते पीछा करने में असफल रहे थे. इसलिए वे भटक गए थे.
पर फिर भी वे उनसे पीछा नहीं छुड़ा पाए थे. फिर उनसे पीछा छुड़ाने के लिए क्या किया जाए? सब के मन में एक ही सवाल था.
तभी उन्होंने एक और आदिम लोगों के झुंड को आगे बढ़ते पाया. अब वे तेजी से तलहटी में आगे बढ़े. वे लोग भी उनका पीछा करते हुए आ रहे थे. वे थोड़े आगे बढ़े ही थे कि एक और झुंड को सामने उनका रास्ता रोके खड़े पाया. वे उनकी ही और घूर घूर कर देख रहे थे.
"देखो. ये लोग जितने हम समझते हैं उससे कहीं ज्यादा चालाक हैं. अब रास्ता बदलों." भीमुचाचा ने निर्देश किया.
भीमुचाचा की बात सुनते ही सब दूसरी और चल पड़े. थोड़े आगे बढ़े कि सामने से पंद्रह बीस जंगली भेड़ियों के झुंड को भागते हुए उनकी और आते देखा. उनके पीछे वे आदिम मनुष्य हाथों में जलती हुई लकड़ियाँ लिए दौड़ते हुए आ रहे थे. राजू और उनकी टीम के दिमाग में यह बात समझते देर न लगी कि वे आदिम मानव उस भेड़ियों को पीछे से डरा कर भगा रहे हैं.
"ये भी हमारे खिलाफ उनकी कोई रणनीति का हिस्सा तो नहीं?" राजू ने संदेह प्रगट किया.
"हो भी सकता है! जल्दी करो! तुम सब अपनी अपनी बंदूक संभाल लो! ये देखो, भेड़िये नजदीक आ गए!" भीमुचाचा ने आदेश देते हुए कहा.
तब तक भेड़िये नजदीक आ पहुँचे थे. राजू और उनके साथी भेड़ियों के मार्ग में थे. रास्ते के एक और गहरा खड्डा था, तो दूसरी और कंटीली झाड़ियाँ थी. सुरक्षित स्थान पर हट जाने की संभावना भी नहीं थी. और वापस भागने का मौका भी रहा नहीं था.
वे भेड़िये उनपर हमला करते, इससे पहले भीमुचाचा ने चिल्लाते हुए आदेश दिया. "फायर!" इतना कहते भीमुचाचा ने एक हथगोला भेड़ियों के सामने चला दिया. बड़ा धमाका हुआ. भीमुचाचा का आदेश पाते ही अन्य साथियों की बंदूकें भी गरज उठी. हथगोले का धमाका और बंदूक की गोलियों से पल भर में ही तीन चार भेड़िये ढेर होकर गिरे. और अन्य भेड़िये डरकर वापस मुड़ भागे. वे आदिम लोगों का झुंड उस भेड़ियों के झुंड को जलती हुई लकड़ियों से डरा कर वापस राजू के साथियों की और भगाने लगा. पर खोफ खाए भेड़िये छितरबितर हो कर जहां राह दिखाई दी, भाग खड़े हुए.
"ये जंगली लोग सचमुच में ही बड़े शातिर्द दिमाग मालूम पड़ते हैं. अगर हमारे पास हथियार नहीं होते तो ये लोग कब का हमें जहन्नुम में मिला देते." भीमुचाचा क्रोध से गरज उठे.
आगे भी आदिम लोग थे और पीछे भी आदिम ही थे. अतः, राजू और उनके साथी वापस मुड़े. और पहाड़ी पर चढ़ना आरम्भ कर दिया. उन्होंने पीछे मुड़कर देखा, वे आदिम लोग तलहटी तक आ पहुँचे थे. उन्होंने तेजी की. वे आधी पहाड़ी तक ऊपर चढ़े थे कि पीछे से उनपर तीरों की बौछार होने लगी. पीछे मुड़कर जानना चाहा, कि तीर कौन चला रहे है? तो पता चला कि तीर पेड़ों के ऊपर से बरस रहे हैं. पर पेड़ों पर कोई दिखाई नहीं दे रहे थे.
वे आदिम लोग पेड़ों पर छिपकर बैठे हुए थे और वहीँ से तीर चला रहे थे. राजू और उनके साथियों ने मोटे जाकेट, हेलमेट, घुटनों तक के जूते इत्यादि पहन रखे थे, फिर भी नुकीले तीर थोड़ी बहुत तो उन्हें चोट पहुंचा ही रहे थे.
उन्होंने तीरों की दिशा में बंदूक से फायर किया. पर कुछ परिणाम न मिला.
अब कोई सुरक्षित स्थान देखना था, जहां से छिपकर वे भी हमले का जवाब दे सके. इधर उधर नजर दौड़ाई. थोड़े दूर एक पेड़ों का झुरमुट नज़र आया. वे तेजी से चले. पर तभी आदिम लोग दिखाई दिए. वे वहीँ पेड़ों पर चढ़ रहे थे.
"ये हरामख़ोरों ने हमें चारों और से घेर लिया हैं. अब तो सालों को मजा चखानि ही पड़ेगी." भीमुचाचा खीज कर बोले.
अब वे रास्ता बदल दूसरी और भागे.
पर तभी उन लोगों की चीख पुकार से जंगल कांप उठा. पेड़ों से उन पर आफत बरस पड़ी थी. और उसका सामना करने के लिए उनके पास कोई हथियार भी नहीं था.
कहीं से दो चार पत्थर आ कर उनके नजदीक के पेड़ों पर लटकते मधुमख्खियों के छज्जों पर गिरे. और बिफरी हुई मधुमख्खियों ने राजू और उनके साथियों पर धावा बोल दिया.
उन्होंने मोटे जेकेट, दस्ताने, हेलमेट आदि पहन रखे थे. फिर भी कुछ मधुमख्खियाँ जहां से राह मिली, वहां से उनके कपड़ों में अन्दर घुस गई. और फिर जो हंगामा मचाया, उनका हाल तो वे ही जानते हैं.
वे सब मधुमख्खियों से पीछा छुड़ाने के लिए बदन सहलाते हुए दूसरी और भागे. तभी उनको सामने ही एक गुफा नज़र आई. वे तेजी से वहां पहुँचे. अन्दर दाखिल होना ही चाहते थे कि राजू चिल्लाया: "अरे! रुको. रुको. कहीं वे हमारी दशा उस खोह जैसी न बना दे!"
"नहीं! तुम सब जल्दी चलो! इस बार वे ऐसा करने की हिम्मत नहीं कर सकते. वहां उन लोगों का क्या हाल हुआ था, यह तो वे जरूर जानते ही होंगे!" भीमुचाचा ने चिल्लाते हुए आदेश दिया.
सब गुफा में दाखिल हो गए. अन्दर सब सलामत ही है, यह पक्का कर लिया. फिर हमले का जवाब देने की तैयारी करने लगे.
तभी तीरों की बौछार होने लगी. कई तीर गुफा के बाहर ही दीवार से टकरा कर अटक गए. और कुछ तीर अन्दर आ गए. पर किसी को कोई नुक्सान न हुआ. उन्होंने देखा. वे आदिम लोग कहीं छिपकर हमला कर रहे थे. पर कोई दिखाई न दे रहा था.
"क्या हम भी गोली चलाए?" पिंटू ने गुस्से से पूछा.
"नहीं! अभी नहीं! ऐसे ही कोई गोलियां बर्बाद नहीं करेगा." भीमुचाचा ने आदेशात्मक अंदाज़ में कहा. वह परिस्थिति का मुआइना कर, कोई व्यूहरचना बना रहे थे.
रुक रुक कर तीरों की बरसात जारी थी. पर किसी को कोई नुकसान नहीं पहुँच रहा था. और कोई आदि मानव दिखाई भी नहीं दे रहे थे. अतः, प्रतिवार करने का मतलब भी न था.
अचानक नजदीक के पेड़ों पर कुछ हलचल हुई. और वे जिस गुफा में घूसे हुए थे, उस गुफा के द्वार पर ऊपर से सूखे घाँस पत्ते एवं लकड़ियाँ गिरने लगी. जरा सी देर में तो मोटा ढेर तैयार हो गया.
और कोई कुछ समझे विचारे, उससे पहले कई सुलगते तीर आ उस ढेर पर गिरे. तुरंत उस ढेर ने बड़ी आग का स्वरूप ले लिया. धुआं उठा. और गुफा में भरता चला गया.
यह सब इतनी जल्दी हो गया कि किसी को सोचने तक का मौका न मिला. अन्दर बैठे सब की साँसों में जहरीला धुआं घुसते ही खांसी चढ़ आई. आंखों में जलन शुरू हो गई. और दिमाग सुन्न पड़ने लगा.
इस अप्रत्याशित हमले से वे चकित रह गए. ऐसे तो दो ही मिनटों में उन सब के प्राण चले जायेंगे. पर किसी के होश ठिकाने ही कहाँ थे? कि कुछ करें!
मौत उनके बदन पर अपना वहशी पंजा पसारने लगी. उन्हें ऐसा लगने लगा जैसे यह गुफा ही उनकी जिंदगी का अंतिम ठिकाना हो. मृत्यु उनकी आंखों के सामने दिखाई देने लगी. वे आखरी बार अपने अपने इश्वर को याद करने लगे.
कहते है; जो हिम्मतवान होते है, उनको तो खुदा भी मदद करता है. फिर इन सब बहादुरों की दुर्दशा खुदा को कैसे मंजूर होती?
तभी नियति ने इन साहसी लोगों की मौत को नामंजूर कर दिया. और वो हो गया; जो अप्रत्यासित था!
क्रमशः
राजू और उनके साथी इस मुसीबत से कैसे बचेंगे? अगले हप्ते जाने.
कहानी अब अंतिम दौर में प्रवेश कर चुकी है. अतः कहानी के साथ बने रहे.
अगले हप्ते यह कहानी अपनी मंजिल पर पहुँच जायेगी.