ek panv rail me -yatra vrittant - 1 in Hindi Travel stories by रामगोपाल तिवारी books and stories PDF | एक पाँव रेल में: यात्रा वृत्तान्त - 1

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एक पाँव रेल में: यात्रा वृत्तान्त - 1

एक पाँव रेल में: यात्रा वृत्तान्त 1

देशाटन

रामगोपाल भावुक


सम्पर्क -कमलेश्वर कालोनी (डबरा)

भवभूति नगर जि0 ग्वालियर, म0 प्र0 475110

मो0 9425715707 , 8770554097

अनुक्रम

1 यात्रा वृतान्तों का औचित्य

2 जा पर विपदा परत है

सो आवत यही देश

3 अमरनाथ का अस्तित्व

4 आज के परिवेश में गंगा मैया

5 जगन्नाथ का भात जगत पसारे हाथ

6 रत्नावली और द्वारिका पुरी

7 ग्ंगा सागर एक बार

8 हिमाचलप्रदेश की देवियों का अस्तित्व

9. मल्लिकार्जुन की पहाड़ियाँ

10 नासिक दर्शन

11 कुरुक्षेत्र में एकलव्य

12 ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा


एक पाँव रेल में: यात्रा वृत्तान्त 1

1 यात्रा वृतांतों का औचित्य

यात्राओं का चलन आदिकाल से ही रहा है। हमारे ऋषि- मुनि जंगलों में यहाँ से वहाँ विचरण करते रहे हैं। जिससे लोक संस्कृति की आभा सम्पूर्ण देश में प्रसारित होती रही है। याद आती है आदि शंकराचार्य की, उन्होंने कम उम्र में ही देशाटन कर डाला था। देश के उन सीमान्त क्षेत्रों में अपने मठ एवं तीर्थ स्थापित किये थे, जहाँ से देश और संस्कृति की सीमाओं पर दृष्टि रखी जा सके। उत्तर में केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री एवं जमनोत्री ऐसे तीर्थ हैं जहाँ से चीन देश की सीमायें स्पर्श करती है।

कश्मीर में श्रीनगर के मध्य में स्थित शंकराचार्य पहाड़ी, अमरनाथ की गुफा एवं दूर दराज में स्थित सीमा क्षेत्र के गाँव आज भी पर्यटन स्थल बने हुए है। कश्मीर में शंकराचार्य पहाड़ी से सम्पूर्ण श्रीनगर शहर पर दृष्टि में रखी जा सकती है। आदि शंकराचार्य ने इन स्थानों को धार्मिक वाना पहिना कर सारे देश बासियों में इनके वारे में श्रद्धा उत्पन्न कर दी है। जिससे इन विन्दुओं पर देश के जन जन की दृष्टि रह सके औरा देश और संस्कृति की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। देश का जन मन इन पुरातत्वों को धर्मिक दृष्टि से अवलोकन करता रहे और हमारी सीमायें अपने आप सुरक्षित बनी रहें। समुद्र के किनारों पर भी यही सोचकर पूर्व में जगन्नाथ पुरी दक्षिण में रामेश्वरम् एवं पष्चिम में द्वारिका पुरी का अवलोकन कर अपने को सुरक्षित महसूस करने लगते हैं।

इन बातों से लगता हमारी सीमायें चारों ओर से सुरक्षित है। इस तरह हमारी राष्ट्रीय भावना अपने आप पल्लवित होती चली आ रही है। उसे किसी राष्ट्रवादी नारे केी जरूरत नहीं रही। हमारे परम संतों एवं मनीषियों के चिन्तन के कारण राष्ट्र स्वमेव पल्लवित होता चला गया और वही आज हमारे सामने है। उस समय के कुछ प्रतीक ।मानसरोवर एव माउन्ट एवरेस्ट जैसे हमारे हाथ से निकल गये है, उनके कारण आज हम अपने को असहज महसूस करते हैं।

यात्रा में हम विभिन्न भाषाओं के एवं वहाँ की साँस्कृतिक विरासत के सम्पर्क में आते हैं। इससे वहाँ की संस्कृति से हम रू-ब-रू होते चले जाते हैं एवं अपने स्पर्श से भी वहाँ के लोगों को आल्हादित करते जाते हैं। इस तरह राष्ट्र की कल्पना परिपक्व होती चली जाती है। उनके पहनाव एवं उनके रहन-सहन खान-पान से हम परिचित होते चले जाते हैं। इस तरह हमारी आपसी निकटता इसकी पोषक बन जाती है।

राष्ट्रीयता के लिये निश्चित भूभाग का होना आवश्यक है। उसका सीमांकन भी हो, साथ में उस पर कोई सत्ता भी विराजमान हो। ये बाते हम राष्ट्र के स्वरूप में जान चुके हैं।

उसके वाद इसके लिये कोई एक भाषा भी आवश्यक है। देश कें विभिन्न प्रान्तों की भिन्न भिन्न भाषायें हिन्दी को पल्लबिवत करती चली आ रही हैं। जिससे विचार विमार्श की सुविधा का विस्तार होता चला जा रहा है। यात्राओं में हम जहाँ जाते हैं वहाँ अपनी आवश्यक की पूर्ति के लिय वहाँ की शब्दावली को आत्मसात कर लेते है। हम जिस भाषा का उपयोग करते हैं वही हमारी मानक भाषा बन जाती है। वहाँ के लोग धन उपार्जन के लिये, अपनी बस्तुओं के क्रय विक्रय कें लिये काम चलाउ भाषा सीख लेता है। वही भाषा हमें एक दूसरे से जोड़ लेती है। यात्राओं से यह कार्य भी सहज होता चला जाता है।

दक्षिण भारत के शहरों में ओटो- रिक्शा वाले सभी प्रान्त वालों की भाषा सामझ लेते हैं। यह समझना उनकी रोजी रोटी है। सच कहें तो आदमी को पेट की भूख ने ही भाषायें सिखाई हैं और जिनका पेट भरा है वे किसी की भाषा को क्यों सीखें। वे तो अपनी ही भाषा और संस्कृति की पैरोकारी करोंगे। जिसे उनके सम्पर्क में रहना हैं वे उनकी भाषा सीखें। उनकी कहन में चलें।

हमारी यात्रायें इन सब बातों कों सहज ही बनाती चलीं जाती हैं। इस तरह हम कह सकते हैं यात्रायें भी रास्ट्रीय एकता के लिये अन्य तत्वों की तरह महत्वपूर्ण तत्व है।


सारा विश्व पर्यटन को बढावा देने के प्रयास में है। इससे विदेशी मुद्र का अर्जन होता है। हम ऐसे स्थलों की तलाश में है जहाँ से विश्व के पर्यटकों को अपनी ओर आकर्शित कर सकें। हमारे सभी प्राचीन धार्मिक स्थल, प्राकृतिक सम्पदा के केन्द्र केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री एवं जमनोत्री हमारे पास ऐसीं अनेक धरोहरें हैं जिनकी सहायता से विश्व के पर्यटकों कों आकर्षित किया जा सकता है। जिनके एक वार सामने आने पर लोग उन्हें जीवन भर विस्मृत नहीं कर पातें।

यात्रा वाले प्रसंगों में जिन मित्रों की सहभागिता रही है, उनका भी हृदय से आभार मानता हूँ जिनके कारण यात्राओं के महत्व एवं संस्कृति के अवदान को समझ कर आत्मसात कर सका जो आज आपके सामने है।

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