Kamnao ke Nasheman - 3 in Hindi Love Stories by Husn Tabassum nihan books and stories PDF | कामनाओं के नशेमन - 3

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कामनाओं के नशेमन - 3

कामनाओं के नशेमन

हुस्न तबस्सुम निहाँ

3

‘‘हाँ...याद है‘‘ अमल ने कहा...‘‘और मैने तुम्हारे हाथों को परे कर दिया था...शायद एक उपेक्षा से।...यही याद दिलाना चाहती हो न...?‘‘

‘‘नहीं, तुम्हें आहत करने के लिए याद दिलाना नहीं चाह रही थी, बस अभी तुम्हारे इस स्पर्श से वह पल याद आ गए।‘‘ मोहिनी ने कुछ आत्मीय स्वरों में कहा- ‘‘मेरे कंधे से हाथ हटा क्यों लिया। मैने तो ऐसा मना नहीं किया। सिर्फ पूछा भर है यह जानने के लिए कि तुममें यह विवशता आई क्यों,...लाओ मैं ही तुम्हें बांहों में भरे लेती हूँ‘‘ इतना कह कर एक पूरी उष्णता के साथ मोहिनी ने अमल को बांहों में लपेट लिया। तभी अमल ने कहा- ‘‘इस तरह तुम्हारे पास जी लेने में, तुम्हारी तरफ से कोई शर्त तो नहीं होगी न?‘‘

‘‘होगी, जरूर होगी...‘‘ मोहिनी ने अमल के हांठों को चूमते हुए कहा।

‘‘क्या...?‘‘ कुछ सहम के साथ अमल ने पूछा।

‘‘पुरूष बहुत जल्छी डरता है शर्तों से‘‘ मोहिनी ने हँस कर कहा- ‘‘अरे, मैं कोई बहुत कठिन शर्त नहीं रखने जा रही हूँ।‘‘

‘‘फिर भी, कैसी शर्त?‘‘

‘‘अरे यही, कि तुम यहाँ से जाने के बाद मेरे साथ बिताए पलों को भूल जाओगे।‘‘

‘‘तुमने स्वयं वही बात कह दी है जो मैं तुमसे कहना चाहता था। सचमुच मुझे भूल जाने के लिए तुम कुछ सोचोगी तो नहीं?‘‘ अमल ने उसकी आँखों में एक प्रतिक्रिया जैसी चीज तलाशते हुए कहा- ‘‘मेरे अंदर का पुरूष जानवर बनने के लिए बहुत मजबूर हुआ है हनी।‘‘

‘‘मैं तुम्हारे अंदर के इस जानवर से सुख ही पाऊँगी अमल। मैं तुम्हारे उस पशु को ही प्यार करूंगी....तुम्हें नहीं।...तुम्हें कभी नहीं...।....वैसे पुरूष का पशुवत होना बहुत ही सच है एक औरत के लिए....मैं इसे महसूस करने लगी हूँ....‘‘

अभी मोहिनी किन अर्थों में यह बात कह गई है अमल जैसे उसके मोहक स्पर्श से कुछ विलग हो गए थे। इन क्षणों में मोहिनी एक क्षुधिता सी स्त्री महसूस हुई थी। अपनी इस उद्दाम लालसाओं से कहीं टूटी हुई सी।

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बहुत अंधेरे मुँह उठकर मोहिनी ने बगल सोए अमल को देखा। उनके चेहरे पर जो एक निरंतर थकान की शिथिलता थी, उस पर एक तृप्ति का उजास फैला हुआ था। जब स्त्री किसी पुरूष को एक ऐसी ही मोहक तृप्ति दे डालती है तो अंदर ही अंदर उस तृप्ति का उजास उसके भीतर भी उतर आता है। अभी मोहिनी ने उसी उजास से भर कर शायद अमल की बंद पलकों को उंगलियों से सहलाया है। अमल जाग गए। उन्होंने देख, मोहिनी उनके चेहरे पर एक अजीब अह्लाद से झुकी हुई है। वह उसकी उंगलियों को मुट्ठियों में भरते मुस्कुरा कर बोले- ‘‘बहुत जल्दी उठ गई हो।...रात में सोई नहीं क्या?‘‘

‘‘मुझे तुम्हारा सोता हुआ चेहरा हमेशा बहुत प्यारा लगा है।‘‘ मोहिनी ने मुस्कुराते हुए कहा- ‘‘उगते सूरज में जो सलोनापन होता है, उसे निरखने के लिए तो जल्दी ही उठना पड़ेगा न?‘‘

‘‘सच हनी, तुम वाकई में हनी हो।‘‘ अमल ने उसके बालों को सहलाते हुए कहा- ‘‘पूरी तरह टपकती हुई शहद, तुम्हारी मिठास मन से लेकर तन तक फैल जाती है।‘‘

‘‘एक बात पूछूं...?‘‘ उसने एक मोहक अर्थ के साथ अपने बालों को अमल के चेहरे पर छितराते हुए कहा।

‘‘क्या?‘‘

‘‘तुम्हारा मन मुझसे भरा या नहीं?‘‘

‘‘तुमसे या फिर एक औरत से?‘‘ अमल ने हँस कर कहा।

‘‘औरत से नहीं, सिर्फ मुझसे, इस मोहिनी से?‘‘ उसने एक मादक अंदाज में कहा।

‘‘सच कहूँ तो, तुमने मुझे सुखों से नहला दिया। मेरे पुरूष का पोर-पोर तुम्हारा ऋणी रहेगा।‘‘ अमल ने एक गहरी सांस लेकर कहा। वह फिर कहीं डूबते हुए बोले- ‘‘पिछले तीन सालों से स्त्री का सुख जाना ही नहीं। एक रेगिस्तान में निरंतर प्यास लिए किसी सरोवर की तलाश में भटकता रहा।‘‘ अभी यह कहते-कहते जैसे अमल के चेहरे पर उस भटकन की यंत्रणा झलकने लगी थी। उसे लगा जैसे अमल के भीतर कुछ अंदर ही अंदर रिस रहा है। वह अपने पुरूष को कहीं से ढक रहा है। फिर उसने उनकी आँखों में झांकते हुए पूछा- ‘‘इन तीन सालों में बेला तुम्हारे पास नहीं रही क्या? उनसे आते-आते ही झगड़ा कर लिया था क्या, तलाक वगैरह तो नहीं दिया न?‘‘

इस बात पर अमल पल भर के लिए खामोश हो गए। वह कुछ बताते-बताते थम गए जैसे, फिर हँस कर बोले, ‘‘बेला बहुत प्यारी स्त्री है। उसके बिना न रह पाने की मेरी अलग मजबूरी है। सचमुच मैं उसे बहुत प्यार करता हूँ‘‘

‘‘ओह, तुम पुरूषों में एक खास बात होती है। बहुत जल्दी मन भर जाना‘‘

मोहिनी ने एक विशिष्ठ अंदाज में हँस कर कहा- ‘‘यहाँ, मेरे पास एक चेंज के लिए आए हो‘‘ फिर कुछ सोचते हुए बोली- ‘‘मौसम का चेंज.....औरत का चेंज..‘‘

‘‘तुम सिर्फ चेंज नहीं हो मोहिनी।‘‘ अमल कुछ आकुल से होते हुए तेज स्वर में बोले- ‘‘तुम एक ठौर हो मेरे लिए। कुछ पल के लिए एक छांह...एक ठंडी छांह।‘‘ चाह कर भी अमल मोहिनी की उस चेंज वाली बात को काट नहीं पाए। तभी मोहिनी बोली- ‘‘एक बात कहूं? क्या तुम मेरे पास सोने का साहस बेला के सामने कर सकते हो? क्या रात के उन क्षणों में तुम बेला के लिए अपने आप को इमानदार महसूस करते हो?‘‘

‘‘कोई सरोवर सूख जाए और व्यक्ति प्यासा सा वहीं खड़ा रहे‘‘ अमल ने उठ कर बैठते हुए तेज स्वर में कहा- ‘‘यह तो उस व्यक्ति का हठ ही होगा। एक व्यर्थ की नैतिकता की खातिर। जिस ईमानदारी का सवाल तुमने अभी उठाया है, क्या उस ईमान की सलीब पुरूष जिंदा ही अपने कंधों पर उठाए फिरे।‘‘ फिर अमल ने बहुत ही आहत भाव से कहा था- ‘‘बेला कल मुझे बहुत याद आई थी। मैं झूठ नहीं बोल पाऊँगा तुमसे। लेकिन मुझे महसूस हुआ था कि वह न तो मुझे तुम्हारे पास सोने के लिए रोक पा रही थी और न ही स्वीकृति दे पा रही थी जैसे।‘’

‘‘आई एम वेरी सॉरी।‘‘ मोहिनी ने अमल के उत्तेजित से चेहरे पर एक गहरी सहानुभूति से उंगलियां फिराते हुए कहा- ‘‘अब मैं तुमसे ऐसी कोई बात नहीं करूंगी, मेरे भी तो अपने पल हैं जिसमें तुमने आकर इंद्रधनुष तान दिया है...जो कब मिट जाए पता नहीं।...मैं उस तने हुए इंद्रधनुष में तुम्हें जी लेना चाहती हूँ। अच्छा, मूड फ्रेश करो मैं तुम्हारे लिए चाय बना के लाती हूँ।‘‘ इतना कह कर मोहिनी किचेन की तरफ चली गई।

फिर चाय लेकर लौटी तो अमल के पास बैठती हुई बोली- ‘‘जल्दी तैयार हो जाओ, पचमढ़ी बहुत ही प्यारी जगह है। तुम्हें ले चलती हूँ फाल्स दिखाने। तुम्हारे साथ बहुत अच्छा लगेगा।‘‘

अमल के चेहरे पर जो एक अवसाद सा घिरा हुआ था, उसे पोंछते हुए मुस्कुरा कर कहा- ‘‘मैं कहीं घुमने नहीं जाऊँगा, बस यहीं तुम्हारे पास रहूँगा। तुम मेरे पास रहो तुम ही मेरे लिए खूबसूरत रमणीक स्थल हो।‘‘

पुरूष भी कितना रहस्यमय होता है। वह किन-किन आकांक्षाओं को जला कर एक नयी, दूसरी आकांक्षा निर्मित करता चला जाता है। वह स्वयं भी तो इस रहस्य को नहीं जान पाता। अजब उसका मन होता है। वह कभी पानी की सतह पर चलना चाहता है तो कभी सूखी रेत पर चलना चाहेगा। वह डूबता कहीं है और उबरता कहीं है।

अमल जैसे फिर अभी मोहिनी के साथ चाय पीते-पीते उसे जीने लगे थे। वे एक आग्रही पुरूष की तरह उसके समूचे व्यक्तित्व को निरखने लगे थे। उसने जो सफेद सी नाईटी पहन रखी थी उसकी सिलवटें अभी बहुत ताजा थीं। उसके काले, छितरे से पड़े घने केश जैसे किसी बीते मादक पलों के साक्ष्य सा दे रहे थे। फिर वह मुस्कुरा कर बोले-‘‘अभी तुम्हारी इस साक्ष्यता में कोई आ जाए तो वह तुम्हारे बारे में क्या-क्या सोचेगा।‘‘

‘‘कौन आएगा यहाँ मेरे पास।...बस एक मोती है, वही पास रहता है‘‘ मोहिनी ने हँस कर कहा।

‘‘यह मोती...‘‘ अमल कुछ कहते-कहते रह गए।

मोहिनी ने अमल की आँखों में मोती को लेकर एक असहज सा प्रश्न बूझ कर मुस्कुराते हुए कहा- ‘‘शायद तुम मोती के बारे में और ज्यादह जानना चाहते हो।‘‘ वह कुछ देर सोचती रही फिर एक बेबाकी के साथ बहुत ही खुलेपन के साथ कहा- ‘‘बहुत बदनाम हुई हूँ इस मोती को लेकर। लोगों ने क्या-क्या नहीं कहा।...और सच भी है वही है मेरे इस एकांत में एक निश्चल सा पुरूष‘‘

‘‘पुरूष...?‘‘ अमल ने फुसफुसा कर कहा।

‘‘हाँ, मोहिनी ने कहा- ‘‘वह मेरे लिए एक पुरूष ही है। एक पूरा पुरूष। भले ही वह सोलह साल की उम्र का ही हो।....वह मेरे साथ अपने किसी भविष्य को तो नहीं सोचता। वह मेरे किसी बंधन को तो नहीं स्वीकारता और मैं भी वादों जैसी फालतू बातों में उससे नहीं बंधती।‘‘ फिर मोहिनी ने अमल के चेहरे पर तिर आए किसी भाव को जैसे परे करते हुए कहा- ‘‘देखो न, तुम मेरे पास हो, उसमें कहीं कोई भी ईष्र्या वाली बातें नहीं मिलेंगी। वह बस उस एक गिलास पानी की तरह है, जब भी मुझे प्यास लगी, हाथ बढ़ा कर उठाया और पी लिया। कभी-कभी मैं जरूर अपने को उस मासूम के प्रति बहुत ही क्रूर महसूस करती हूँ। जैसे मैं उसका शोषण कर रही हूँ। लेकिन फिर कभी परिपक्व बन जाए तो मुझे छोड़ कर चला जाए। मुझे इसका ग़म भी नहीं रहेगा। मेरे पास उसे याद करने के लिए कोई भावनात्मक लगाव भी तो नहीं है। बस, साथ रहने का एक लगाव भर है।‘‘

‘‘तुम कितनी बदल गई हो।‘‘ अमल ने मोहिनी के प्रति एक गहरी सहानुभूति जताते हुए कहा- ‘‘कहीं से तुम बहुत ही टूटी हुई सी लगती हो‘‘

‘‘मेरे टूटने का अर्थ नहीं रह गया अब।‘‘ मोहिनी ने एक गहरी सांस ली और मुस्कुरा कर कहा- ‘‘अपने पैरों पर खड़ी हूँ जैसा चाहती हूँ वैसा जीती हूँ। विवशताओं से समझौता कर लिया है।‘‘ फिर उसने अमल की ओर देख कर कहा-‘‘मन कहीं तुम्हारी तरफ अरसे से एक हल्के छोर से बंधा था, तुम्हें स्वीकार कर लिया। नहीं तो कहती, जाओ कहीं किसी होटल या गेस्ट हाउस में ठहर जाओ या फिर तुम्हें किसी और कमरे में सुला देती।‘‘

अमल ने इस बात पर गंभीर स्वर में कहा- ‘‘एक बात बहुत सच कहूँ मोहिनी, मैं तुमसे जरा भी बंधा नहीं महसूस करता हूँ। तुम मुझे कभी याद नहीं पड़ीं। बस एक प्लेजर के लिए ही तुम्हारे पास चला आया। सिर्फ तन की भूख मिटाने। उस अंदाज में जो मुझे बहुत अपना सा लगे। बिना किसी औपचारिकता के।‘‘

अमल की इस बेबाकी पर वह जोरों से हंस पड़ी। बोली- ‘‘मैं एक स्त्री हूँ पुरूष के मिजाज को अच्छी तरह समझ सकती हूँ। तुम मेरे पास कुछ पल जीने आए थे क्या मैं इसे नहीं समझती थी? मैं रात तुम्हारे सो जाने के बाद बड़ी देर तक जागती सोचती रही मोती और तुममें क्या फर्क है।‘‘

‘‘क्या....?‘‘

‘‘बस, इतना सा ही फर्क! तुम मुझसे वही पल पाना चाहते थे जिन पलों को मैं मोती से पाना चाहती हूँ।‘‘ मोहिनी बहुत बेबाकी से कह कर हँस पड़ी और फिर अमल की नाक को एक अजीब अंदाज में हिलाते हुए कहा- ‘‘बहुत गहरे मत जाओ अमल। सब अपनी-अपनी गहराई जीते रहते हैं। यह उनकी अपनी गहराई होती है बिल्कुल निजी। जितने दिनों तक मेरे पास हो सतह पर ही रहा जाए।‘‘

तभी मोती ने दरवाजा खटखटाया। मोहिनी ने उठते हुए अमल से कहा- ‘‘सुबह-सुबह मोती को भी चाय पीने की तलब लगी है। बर्तन भी मांजने हैं।‘‘ इतना कह कर मोहिनी बेडरूम से बाहर चली गई।

बाहर वह मोती के अलावा किसी और से भी बात कर रही थी शायद। बतियाने की कुछ आवाज सुनाई पड़ रही थी। किसी पुरूष की आवाज थी। वे लोग शायद ड्राईंगरूम में ही बात कर रहे थे। तभी कुछ देर बाद मोहिनी बेडरूम में आई अमल को चुपचाप निहारती खड़ी हो गई। वह उस वक्त कुछ ज्यादह तनाव में थी। उसके चेहरे पर जो अभी कुछ देर पहले एक बहुत ही मादक कोमलता थी वह अचानक कहीं खो गई थी। वह क्षणों तक एकटक अमल को निहारती रही और फिर जैसे किसी निर्णय पर पहुँचती हुई अमल से कहा- ‘‘बुरा न मानना, मोती के साथ तुम थोड़ी दूर पर ही कॉलेज के गेस्ट हाउस में चले जाओ। वहीं ठहर जाना।‘‘

अमल अचानक मोहिनी से यह बात सुन कर अवाक् रह गए। वह मोहिनी की आँखों में जैसे किसी भयावह अर्थ को टटोलने लगे थे। चुपचाप। तभी बेडरूम के दरवाजे पर एक खूबसूरत सा मर्द आकर खड़ा हो गया। फिर उसने बहुत ही टटोलती निंगाह से अमल को देखते हुए एक अजीब अंदाज में मोहिनी से कहा- ‘‘इनको यहीं रहने दो, मैं ही गेस्ट हाउस में ठहर जाता हूँ। इनका भी तो कुछ हक होगा यहाँ ठहरने का।‘‘

उस आदमी की यह कसैली सी बात शायद मोहिनी को कुछ आहत सी कर गई। उसका यह कटाक्ष अमल को अजीब लगा। अमल बेड पर से उठ कर खड़े हो गए। फिर वह थोड़ा पास आ कर अमल की ओर चुपचाप निहारने लगा। उसने साथ-साथ मोहिनी को भी देख। शायद ऐसे बीते हुए पल छिपाना कठिन हो जाता है जिन्हें बहुत गोपनीय बना कर जिया जाता है। अमल उसकी आँखों को जैसे झेल नहीं पा रहे थे। अजीब हिंस्रता भरती जा रही थी उसकी आँखों में। एक खून उतरता आ रहा था। उसके चेहरे पर फ्रेंचकट दाढ़ी और बड़ी-बड़ी मूंछें उसके चेहरे पर तैरते एक खूंख्वार से भाव में और भयानक लग रहे थे।

इस स्थिति से जैसे बचने का प्रयास करते हुए अमल ने मुस्कुरा कर पूछा- ‘‘ कौन हैं ये मोहिनी....?‘‘

उसने एक तेज आवाज में कहा- ‘‘मैंने तुमसे नहीं पूछा कि तुम कौन हो...?‘‘

मोहिनी ने मोती को बुला कर एक सपाट ढंग से कहा- ‘‘साहब का सामान कॉलेज के गेस्ट हाउस में जाकर पहुँचा दे।‘‘

मोहिनी शायद उस आदमी की बातों में उलझना नहीं चाहती थी। इस क्षण अचानक इस तरह मोहिनी का किसी पहाड़ से जैसे ढुलक जाना कुछ अजीब लगा है। कभी-कभी सामने ऐसे द्वंद्ध खड़े हो जाते हैं कि ढेर सारे निर्णय लटकते रहते हैं और व्यक्ति चुपचाप उन्हें निहारने के लिए विवश होता है। यह स्थिति बहुत ही मारक होती है उस व्यक्ति के लिए।

अमल उस पास खड़े व्यक्ति की आँखों को जैसे झेल नहीं पा रहे थे। वह चुपचाप उठे और बेड की वाल पे रखी पैंट को इस तरह उठाया जैसे वह किसी अपराध को चुपचाप स्वीकार करने के लिए मजबूर हुए हों। एक अजीब खिलती हुई खामोशी वहाँ तन आई थी। कोई भी कुछ कह सकने की स्थिति में जैसे नहीं था। अमल इतने पलों को जैसे एक तेज आंच को झेलते कपड़े बदलते रहे। फिर वे चुपचाप सिर झुकाए किसी अपराधी की तरह बिना किसी की ओर निहारे बेडरूम से बाहर चले गए हैं।

उन्होंने मोती से गेस्ट हाउस जाते हुए रास्ते में पूछा- ‘‘कौन है यह आदमी?‘‘

‘‘मैंने भी आज उन्हें पहली बार देखा है। मैं कह नहीं सकता कि ये कौन हैं।‘‘ मोती ने सपाट लहजे में जवाब दिया।

फिर अमल कुछ नहीं बोले। अभी भी वह उस आदमी की जलती हुई आँखों में जो हिंस्रता भरी हुई थी, उसे जैसे वह भूल नहीं पा रहे थे। तभी हठात् एक निर्णय पर पहुँचते हुए अमल ने मोती से पूछा- ‘‘यहाँ से जाने के लिए कितने बजे बस मिलती है?‘‘

मोती ने आश्चर्य से अमल का चेहरा देखा और बोला- ‘‘मेमसाहब ने तो आपको गेस्टहाउस पर छोड़ने को कहा है।‘‘

‘‘बेचारी के पास और चारा ही क्या था।‘‘ अमल ने खुद ही बड़बड़ा के कहा जैसे। कभी शब्दों में भी जान नहीं होती है। वे निकलते कुछ है और अर्थ कुछ होता है।

मसूम सा मोती शायद अमल की बातों का मतलब नहीं समझ पाया। वह चुपचाप चलता हुआ उनका चेहरा ही निहारता रहा। उसने फिर पूछा- ‘‘साहब, सामान कहाँ ले चलूं, गेस्टहाउस या फिर बस स्टैंड?‘‘

था तो बहुत सरल सा सवाल लेकिन अमल जैसे इस सवाल के उत्तर में बुरी तरह फंस गए थे। वह सहसा जैसे कुछ निर्णय नहीं ले पा रहे थे। मुट्ठियों में जब कितने सारे निर्णय बंद हों तो व्यक्ति बड़ी असहजता महसूस करने लगता है कि किस निर्णय को बंद मुट्ठी में से निकाला जाए। अमल बिना कोई उत्तर दिए चुपचाप साथ चलते रहे। एक चैराहे पर मोती खड़ा हो गया और पूछा- ‘‘साहब, ये रास्ता बसस्टैंड की तरफ जाता है और दायीं तरफ वाला रास्ता गेस्टहाउस की तरफ। बताईए आपको किधर ले चलूं?‘‘

अमल ने मोती की ओर मुस्कुरा कर देखा और कहा- ‘‘अब तेरी मर्जी पर है। तू जिधर ले चलेगा उधर ही चलूंगा।‘‘

अमल जैसे इस निर्णय को मोती पर एक सहजता के साथ छोड़ कर कुछ हल्का महसूस करना चाहते थे। जैसे वह इस निर्णय को किसी टॉस की तरह मोती के हाथ में एक सिक्का थमा कर पाना चाहते थे।

तब मोती ने मुस्कुरा कर कहा था- ‘‘मैं तो साहब आपको गेस्टहाउस ही ले चलूंगा। क्योंकि मेमसाहब ने गेस्टहाउस ही ले जाने के लिए कहा है। उनसे पूछे बगैर आप जाईएगा कैसे?‘‘ और वह बहुत ही मासूमियत के साथ कह कर गेस्ट हाउस के रास्ते की तरफ चल दिया।

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