Awara Adakar - 4 in Hindi Moral Stories by Vikram Singh books and stories PDF | आवारा अदाकार - 4

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आवारा अदाकार - 4

आवारा अदाकार

विक्रम सिंह

(4)

’’जी’’

’’कितना दे रहे हैं?’’

’’जी बस चार हजार।’’

’’आप को कितना मिलता है?’

’हमको पन्द्रह हजार। टैक्नीकल काम का पैसा ज्यादा मिलता हैं। बैठ कर ट्रीप तो कोई भी लिख लेगा।’’

गुरूवंश को उसकी बात पते की लगी। अगले दिन वह एक बियर की बोतल लेकर उसके पास गया और कहा,’’यार! यह बुलडोजर चलाना मुझे भी सीखा दो।’’

उसने कहा,’’यार पढ़े लिखे हो। यह सब सीख कर क्या करोगे?’’

’’पढ़े लिखे हैें। साथ में यह भी जान जायेगे तो अच्छा है।’’इतना कह कर बियर की बोतल उसके हाथ में पकड़ा दी।

…………

कहते हैं उस दिन के बाद से वो लगातार बुलडेाजर सीखने लगा। बुलडोजर का हेल्पर ट्रीप लिखता रहता। गुरूवंश ने हर किसी का दारू की बोतल देकर सबके मुँह बंद कर दिया था। उसके बुलडोजर सीखने में किसी ने भी मना नहीं किया। लेकिन जब वह बुलडोजर सीख कर घर लौटता तो उसके कपड़े मिट्टी से सने रहते। मगर वह इसकी परवाह नहीं करता था। उसके इस तरह के काम के बारे में बबनी से लोग चर्चा करते। बबनी को इससे चिढ़़ भी होती। मगर जब वह हैवी लाइसेंस बनाने के लिए आसनसोल गया तो ऐन वक्त पर दलाल ने उसे धोखा दे दिया था। दलाल ने तीन हजार रूपये लेकर यह कहा था कि कोई ट्रायल नहीं होगा। मगर उसे ट्रक आगे लेजाकर पीछे लगे इटों के बीच लगाने के लिए कहा गया। वह सोचने लगा मैंने तो बुलडोजर सीखा है। यह ट्रक चलाने के लिए कह रहे हैं। ट्रायल लेने वाले इंस्पेक्टर ने कहा,’’यहीं चला कर दिखाना होगा।’’ फिर आगे क्या हुआ इसका जिक्र पहले कर चुका हूँ। बस उस दिन पूरी कॉलोनी में इस बात की खूब चर्चा चली। लेकिन मित्र से पूछा,’’ यार तुम यह हैवी लाइसेन्स क्यों बनवाने चले गये।’’ फिर उसने पूरी कहानी मुझे बता दी। उसने यही सोचा था कि बूलडोजर आपरेटर वाली नौकरी में पैसे अच्छे मिलेगे। इसे मैं बबनी के साथ कहीं भी गुजारा कर लूँगा। बाकी मैं नौकरी के लिए आगे भी प्रयास करता रहूँगा। उस दिन मैंने अपने मित्र के चेहरे को गौर से देखा था। हम सब पढ़-लिख कर अच्छा कैरियर बनाना चाहते थे। मगर वह बबनी को पाने के लिए कैरियर को दांव पर लगा रहा था। लेकिन आप सब को एक बात बताऊँ। जिस बबनी को पाने के लिए वह यह सब कर रहा था, उसे यह सब पसंद नहीं आ रहा था। खैर दलाल ने किसी तरह पैसे खा कर लाइसेन्स बना दिया था।

लाइसेन्स पा कर वह बहुत खुश हुआ था। इतना खुश वो तो बी.ए की डिग्री पा कर भी नहीं हुआ था। पहले वह सार्टिफिकेट की फांइले लेकर घूमता था। फिर भी कहीं कामयाबी नहीं मिल रही थी। अब पाॅकेट में लाइसेंस लेकर नौकरी के लिए घूमने लगा। एक कोयला खद्यान में ट्रायल देते ही नौकरी हो गई। उस दिन वो खुद को कॉलोनी के एम.ए पास लड़को से भी ज्यादा काबिल महसूस कर रहा था। उस दिन उसने कॉलोनी में बड़े खुशी खुशी प्रवेष किया था।

मगर पहली वार कॉलोनी में उसकी चर्चा न होकर किसी और की चर्चा हर घर से होते हुए चाय-पान की दुकानों तक हो रही थी। उस दिन कॉलोनी की एक लड़की कॉलेज जाने के बाद वापस नहीं आई थी। माँ-बाप उसे खोजने में लगे थे। मगर गुप-चुप तरीके से। अब जितनी मुँह उतनी बातें अर्थात उतनी कयासे लगा रहे थे लोग। कुछ लोग आइडिया लगा रहे थे कि कही लड़की को किसी ने किडनैप तो नहीं कर लिया। कुछ यह अनुमान लगा रहे थे कि जरूर माँ-बाप ने कुछ ऐसा कहा होगा जिसके कारण उसने आत्महत्या कर ली होगी। मगर कॉलोनी के जितने भी युवा थे वह साफ-साफ कह रहे थे लगता है सोनी ने भाग कर ब्याह कर लिया है। दरअसल कॉलोनी की जितनी भी युवा-युवतियाँ थीं उन्हें पहले से यह पता था कि सोनी का कॉलेज में किसी के साथ अफयेंर चल रहा था। कुल मिलाकर युवा-युवतियों का अनुमान ही सही निकला था। अगले दिन ही सोनी का फोन आ गया और उसने सब-कुछ साफ-साफ बता दिया। लोगों ने कयासे लगाना बंद कर कोसना शुरूर कर दिया। ’’माँ-बाप इसीलिए कॉलेज भेजते है।’’,लड़की को जरा भी शर्म नहीं आई। कुछ तो घर वालों के बारे में सोच लिया होता आदि....आदि..... अभी यह मामला ठंडा भी नहीं हुआ था कि कॉलोनी में एक दिन अचानक एक मित्र के घर लोगों से भरी एक गाड़ी आकर रूकी । उससे उतरे लोग हम सबके दोस्त मुन्ना के बारे में पूछने लगे। उसके पिता ने कहा कि वो काम से दिल्ली गया हुआ है। देखते ही देखते एक बंदे ने उसे जोर का चांटा रसीद कर दिया। चांटा मारने वाला सी.पी.आई का कार्यकर्ता था। उसने उससे कहा कि तुम्हारा लड़का किसी लड़की को लेकर फरार है। वह भी सी.पी.आई कार्यकर्ता की बेटी थी। खैर उस दिन जितनी मुन्ना की चर्चा नहीं हुई उससे कहीं ज्यादा मुन्ना के पापा को लगे चांटे की हुई। सब यही कह रहे थे कि बेटा मजे लूट रहा है और सजा बाप भुगत रहा है। इन दो बातों का पूरी कॉलोनी पर असर पड़ा था। खैर इन सब से बेखबर गुरूवंश नौकरी पाने के बाद नई-नई योजनाएँ तैयार कर रहा था। एक दिन गुरूवंश ने बबीता से कहा,’’ वह बबनी से मिलना चाहता है।’ मगर बबीता ने यह कह दिया कि अभी वह बीमार है बाद में मिलेगी।’’ मगर गुरूवंश मिलने की जिद्द करने लगा। बबीता ने कहा,’’ मैं खुद तुम्हें कहूँगी। मगर अभी नहीं मिल सकती।’’ उस दिन गुरूवंश को कुछ अच्छा नहीं लगा। दरअसल बबीता भी कॉलोनी के माहौल से डर सी गई थी। वह डरती भी क्यों नहीं? कहते हैं,बबीता पहले किसी और कॉलोनी में रहती थी। नई कॉलोनी में आने का कारण बबीता ही थी। एक वक्त बबीता ने भी किसी से प्यार किया था। मगर पिता ने उसका लिखा प्रेम पत्र पढ़ लिया था। उसने उस दिन उसकी खूब पिटाई की फिर वो कॉलोनी ही छोड़ यहाँ आ गये।

कई दिनों तक बबनी घर से बाहर भी नहीं निकली या यह समझिए घर से निकलना बंद कर दिया। गुरूवंश ने इसी तरह एक-दो दफा फिर बबीता को बबनी से मिलाने के लिए कहा। बबीता हर बार उसको कोई न कोई बहाना मार देती। यह सब देख वह खुद ही प्रयास करने लगा। वह हर दिन पीसीओ से उसे फोन लगाता मगर लम्बी रिंग होने के बाद भी किसी ने फोन रिसीव नहीं किया। कभी-कभी तो वह उतावलेपन में किसी भी वक्त फोन लगा देता। उस वक्त कभी फोन बबनी के पिता उठा लेते तो कभी उसका भाई। वह उनकी आवाज सुनते ही फोन काट देता। ऐसा कई बार हुआ। घर में सब इस तरह के आये फोन से खीजते। एक दिन जब घर पर कोई नहीं था और बबनी अकेली थी उस दिन गुरूवंश ने फिर फोन किया। बबनी ने फोन उठा लिया। बबनी के फोन उठाते ही गुरूवंश ने कहा,’’बबनी! आजकल तुम फोन क्यों नहीं उठा रही हो?’’

’तुम्हें भूलने की कोशिश कर रही हूँ। तुमसे बात करते हुए यह सब सम्भव नहीं है।’’

’’क्या ऊट- पटांग बक रही हो।’’

’’अब तुम जैसा अच्छा समझो।’’

’’मैं तुमसे मिलना चाहता हूँ।’’

’’मैं अभी नहीं मिल पाऊँगी।’’

’’क्यों क्या हुआ? मैं तुमसे कुछ जरूरी बात करना चाहता हूँ।’’

’’फोन पर ही बताओ क्या बात है?’’

’’मैं....तुमसे शादी करना चाहता हूँ।’’

यह सुनते ही बबनी खामोश हो गई। जैसे बबनी के पास इस सवाल का जवाब नहीं था। जो था उसका जवाब तत्काल देना नहीं चाहती थी।

’’चुप क्यों हो? बोलती क्यों नहीं?’’

मगर फिर भी बबनी चुप रही। जैसे उसे कोई जवाब नहीं सूझ रहा हो। गुरूवंश ने झुंझलाते हुए कहा,’’मेरा बिल बड़ रहा है। कुछ बता क्यों नहीं रही हो।’’

बबनी ने बड़े धीमें स्वर में कहा-’’मैं सोच कर बताऊँगी।’’

इतना सुनते ही गुरूवंश ने फोन का रिसीवर पटक दिया। वह यह सोच नहीं पा रहा था कि जिसके लिए उसने कुछ नहीं सोचा और सब कुछ दांव पर लगा दिया आज वही कितना सोच रही है। वह यह सब सोच कर इतना दुखी हुआ था कि इससे पहले वह कभी इतना दुखी नहीं हुआ था। बबनी ने कुछ देर तक रिसीवर कान में लगाए रखा फिर पटक दिया।

कई दिनों तक गुरूवंश ने कोई फोन नहीं किया। बबनी भी घर बैठे-बैठे सोचती रही क्या जवाब दूँगी। जब भी फोन की घंटी बजती वह चिंतित हो जाती क्या जवाब दूँगी? मगर जब भी फोन रिसीव करती फोन किसी और का होता अर्थात हाजिरी बनाने वाले कर्मचारियों का। आखिर वह क्या करे? एक तरफ माँ-पापा,घर-समाज,दूसरी तरफ गुरूवंश उसका प्यार जिससे वह बेइंतहा प्यार करती हैं। एक तरफ वो माँ-पापा जिन्होंने उसे इतने लाड-प्यार से पाल-पोस कर इतना बड़ा किया है। दूसरी तरफ गुरूवंश जिसे वह दिलो जान से चाहती है। वह इन सब ख्यालों में डूबी थी कि एक दिन जब वह अकेली थी कि फोन घनघना उठा। जैसे ही बबनी ने फोन उठाया उसने पूछा’’,क्या सोचा तुमने।’ उसने इसी एक सवाल के उत्तर के लिए ही फोन किया हो। बबनी खामोश रही। उसका पूरा जिस्म पसीने से भीग गया। उसके सिर पर पसीने की दो-चार बूंदे उभर आई। कुछ समय तक बूंदें माथे पर रहतीं फिर गिर जातीं। गुरूवंश ने दोबारा पूछा,’’तुमने कहा था तुम सोच कर बताओगी।’’ जीवन की कोइ् मूल्यवान वस्तु होती तो वह सब-कुछ छोड़-छाड़ कर गुरूवंश के साथ भाग कर चली जाती। मगर उसके ऐसा करने से माँ-पापा,भाई सबके मुँह में कालिख पुत जाएंगी। इज्जत की धज्जियाँ उड़ जाएंगी। चाय-पान की दुकान से लेकर गली मुहल्ले के लोग थू-थू करेंगे। जीते-जी पापा मर जाएंगे। शायद यह रिश्ता यहीं तक लिखा था। सिर्फ गुरूवंश ही नहीं मैं भी जीवन भर उसके लिए तडपूंगी। गुरूवंश लड़का है। वह कुछ भी गलत कर दे लोग उसे दोषी न मानकर मुझ पर ही दोष मढ़ेेंगे। क्या है आज गुरूवंश को इंकार भी कर दूं। आज मेरे ना बोलने से उसका थोड़ा दिल ही टूटेगा। अपने-आप बाद में सब ठीक हो जाएगा। बबनी ने यह सब सोच तो आसानी से लिया पर कहना इतना आसान नहीं था। उसने कहा,’’मुझे गलत तो नहीं समझोगे?’’

’’नहीं’’

’’मैं तुमसे प्यार करती थी,करती हूँ,करती रहूँगी। मगर मैं बस शादी नहीं कर पाऊँगी।’’

’’यह तुम्हारा आखिरी फैसला है।’’

’’हम दोनों एक अच्छे दोस्त की तरह भी रह सकते हैं।’’

’’यह सब पहले सोचना चाहिए था। ऐसे मुकाम पर तुम यह सब कह रही हो जब मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह सकता। क्या तुम मेरे बिना जी लोगी?’’

’’जीना पड़ेगा। और कोई चारा नहीं है। बहुत बदनामी होगी हमारे इस तरह भाग कर ब्याह करने पर।’

’’इसका मतलब तुम मेरे साथ आज तक टाइम पास कर रही थी।’’

’’यह तुम सोचते होगे। और तुम्हारे लिए यह सब टाइम पास होगा।’’

’’तुम गलत कर रही हो।’’

’’मैं जानती हूँ तुम हमेशा मुझे गलत समझोगे।’’

’’इसका मतलब तुम हमेशा के लिए मुझसे रिश्ता खत्म करना चाहती हो।’’

’’बबनी खामोश रही। इसके पहले कि बबनी कुछ कह पाती घर में कोई आया है। बाद में बात करते हैं।’’ उसने फोन पटक दिया।