the world of my imagination in Hindi Short Stories by शुभेन्द्र सिंह संन्यासी books and stories PDF | कुछ खफ़ा सा हूँ खुद से जुदा सा हूँ

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कुछ खफ़ा सा हूँ खुद से जुदा सा हूँ

जब कभी हम को खुद पर गुस्सा आता है या खुद से ही नफरत हो जाती है तो हम फावड़ा उठाकर खेतो की तरफ चल देते है और तब तक काम करते है जब तक शरीर खुद न बोल पड़े अब तो रहने दे भाई क्या अब आज ही मांझी द माउंटेन बनना है।😃😃😃😃😃

इस प्रकार हम इस कदर थक जाते है कि फिर घर आकर हम को दो चीजें दिखेंती है एक भोजन और दूसरा बिस्तर

फिर हाथो के छालों पर गर्म तेल का लेप करके बेसुध होकर सो जाओ।

फिर अगली सुबह देखते है कि क्या एंटीबायोटिक इलाज ढूंढते है क्योकि जिंदगी है इस को इसके मुकाम तक पहुँचना हमारी जिम्मेदारी है।

यह जिंदगी अपनी शर्तों पर कोई भी जी सकता है मजा तो तब आता है जब नियम कोई और बनाये और जी कर हम दिखाए।

एक लघुकथा कुछ यूँ जहन में आई कि

अविनाश.... कुछ सोचते हुए अपनी डायरी पर कलम चला रहा था....

मैं लड़की से प्रेम करता था,हूँ और रहूँगा। क्या हुआ जो प्रेम अपनी मंजिल न पा सका। ऐसा तो हर सच्ची प्रेम कहानी में होता है। प्रेम का टाइटैनिक जहाज आखरी में डूबता ही है और नायक नायिका को बचाने के लिए खुशी-खुशी ठंडे पानी मे स्वयं में रख देता है क्योकि नायक नायिका की जिंदगी चाहता है और उसकी हँसती खेलती जिंदगी देखना चाहता है।अब क्या हुआ जो उस जिंदगी में उसका कोई स्थान नही।

एक ग़ज़ल आँसुओं में भिगोकर लिखना शुरू करता है और गजल को पूरा नही कर पाता क्योकि पन्ना आंसुओ से इस कदर भीग जाता है कि उस पर कलम चलाना मुमकिन नही होता है।

अजीब बात है न प्रेम भी अधूरा और गजल भी अधूरी जिंदगी भी अधूरी इन्सान भी अधूरा अगर पूरा है तो सिर्फ अधुरा प्रेम ......

अपना क्या है...अकेले तेरी यादों संग जी लेंगे
कभी कभी मंचन करेंगे और आँसू सारे पी लेंगे।

तेरा स्थान किसी को दे यह हम से न हो पायेगा
इससे अच्छा है दिल अपना अपने हाथों से सी लेंगे।

सब जीते ही है यहाँ अकेले सबके हिस्से प्यार कहा
हम तुम को गाकर सारे जज़्बात कल्पना में जी लेंगे।

मेरी दुनिया मेरी है इसमें किसी का हस्तक्षेप नही
अपनी कुटिया में अकेले हम हर हाल में जी लेंगे।

तुम खुश हो तो अब इससे ज्यादा कोई चाह नही
हम चाहत को सदा संग लिए अपने दर्द ही पी लेंगे।।

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कुछ शेर अर्ज कर रहा हूँ.....

मेरी खैरियत पूछने की जरूरत नही
मरूंगा भी तो सबसे ज्यादा तुम रोओगी।।
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तेरे हर दर्द की वजह मै हूँ शायद
माफ करना यदि कभी दिल दुखाया हो।।
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साहिब मैंने एक गुनाह किया है
तुम से इश्क बेपनाह किया है।।
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मेरा दर्पण भी अब हँसता है मुझ पर
यह देखो हारकर भी कैसा हँस रहा है।।
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यूँ तो कोई गिला शिकवा नही जिंदगी से
बस आज तक जो चाहा वो हम पा न सके।।
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जीवन कोई अमृत तो है नही साहिब
जहर है पीना मजबूरी बन जाती है।।
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"एक दूसरे से दूर है शायद दरम्यान मजबूरियाँ ने जगह बना ली होंगी......"



©®शुभेन्द्र सिंह संन्यासी