अरमान दुल्हन के 20
इधर सरजू घर आया, इधर -उधर नजर दौड़ाई।कविता कहीं नजर न आई। आखिर मां से पूछ ही लिया - "मां कविता कोन्या दिखी! कित्त सै ( कहाँ है)?
" वा गई आपकै घरां । न्यु कह थी(ऐसे कह रही थी) अक (कि)तलाक ल्यूंगी।"
"मां तन्नै फेर किम्मे (कुछ) कही होग्गी कविता तईं (से) । न्यु तो ना जा वा(ऐसे तो नहीं जाती वो)। किम्मे नै किम्मे बात तो जरूर सै?"
सरजू को मां पर शक होने लगा था । मां ने बहुत सफाई से सरजू को अपने जाल में फांसने की कोशिश की।
"राम की सूं बेटा...., मन्नै किम्मे ना कही।" और जोर जोर रोने का ढ़ोंग करने लगी।
"ठीक सै मां तैं रोवै ना, मैं जाके आऊंगा उस धोरै।"
" बेटा वा मेरी गैल बी लड़कै गई सै। कहवै थी के सरजू कै साथ जाऊंगी। अर ना साथ लेके जावैगा तो तलाक ल्यूंगी। उसका बाबू आया था उसनै बेरा नै के कह दी। न्यु बोली ईब मैं ना आती।मन्नै तेरै मामा कै घर तैं आये पाच्छै उसतैं किम्मे नहीं कही। मन्नै सोच लिया बेटा । सब किम्मे थारै ए सै ,मन्नै तो दो टैम की रोटी चईयै बस।बेटा वा घूनी(तेज) सै। "
पार्वती का टोटका काम करने लगा था। सरजू सोचने पर मजबूर हो जाता है । वह सोचता है कि एक बार कविता से मिलना चाहिए। वह कविता से मिलने जाता है।
"देखो सरजू!अब मैं ओड़ै न्ही जांगी। ब्होत हो चुक्या बर्दाश्त, ईब और न्हीं। तुम अपणे साथ लेके जाओ तो ठीक सै वरना.......
" वरना के......, तलाक लेवैगी! तड़कै ए भेजूँ कागज! मां ठीके कहवै थी।"सरजू ने कविता की बात बीच में ही काटते हुए कहा।
कविता को सरजू से ऐसे व्यवहार की अपेक्षा कदापि नहीं थी। उसने सरजू के चेहरे को गौर से देखा।साफ दिखाई दे रहा था ये सरजू की नहीं , सासु मां की वाणी थी। कविता ने कुछ कहना चाहा। किंतु सरजू ने कविता की बात सुनना शायद उचित ही नहीं समझा। एक ही झटके में उठकर बाहर चला गया।कविता देखती रह गई। उसे यूं लगा जैसे कोई बेसकिमती मोतियों की माला टूटकर बिखर गई हो। एक पल सब खत्म हो जायेगा। ऐसा तो कविता ने कभी सोचा ही नहीं था। कविता की आंखों से जलधारा बह निकली थी। सासू मां ऐसा भी कुछ कर सकती है उसने सोचा ही नहीं था। तभी वो तलाक की बात कर रही थी।लेकिन वो अनपढ़ है फिर भी इतनी चालाक हैं! कविता सोचने पर मजबूर हो गई। लगता है ये सब उनके टीवी सीरियलस का असर है। वो कितनी तन्मयता से सभी सीरियलस जो देखती हैं । शायद वहीं से सीखी है चालाकियां। कितनी बेवकुफ औरत है, अपने ही बेटे का घर बर्बाद करने पर तुली है।
सरजू कविता को बिना सुने ही चला जाता है कविता बहुत बेचैन रहती है।
कई दिन बीत गए। कविता को नौवां महीना लग चुका था।न सरजू दोबारा मिलने आया और न ही कोई पत्र डाला। आखिरकार कविता ही पत्र लिखने का निर्णय लेती है।
प्रिय सरजू,
आपसे ये उम्मीद तो कदापि नहीं थी। मैंने तलाक के बारे कुछ नहीं बोला था। मां ने ही मुझे परेशान किया और कहने लगी तुझे तलाक दिलवा के रहूंगी।आपने सोचा भी कैस?आप इतने कठोर दिल तो नहीं हो सकते। मेरे स्पर्श मात्र से पिघलने वाला सरजू नारियल के जैसा है।ऊपर से भले ही तुमने गुस्सा दिखाया, पर मैं......मैं जानती हूं तुम बहुत ही कोमल स्वभाव के हो। तुम्हें याद हैं वो ....वो प्यार भरे पल ? जब हम सारी रात बांतों बांतों में बीता दिया करते थे? वो ...वो....रातें कितनी छोटी हुआ करती थीं ,है ना! तुम्हारी वो हंसी, वो हंसी कैसे भूल जाऊं? कैसे उन सपनों को चकनाचूर होने दूं! जो हमने.... साथ देखे थे।कैसे ..कैसे भूल जाऊं, तुम्हारा यूं... ख्याल रखना। तुम्हारी यादें... मेरा पीछा करती हैं और चुपके से तकिए के नीचे छिपकर मेरी ....मेरी नींद का हरण करती हैं। कभी तुम ....ख्वाबों में आकर मेरे बालों को सहलाते हो, तो ...तो..कभी ऊंगलियों में ऊंगली डाल कर ....मेरी आंखों में खो जाते हो। कभी खिड़की से झांकता तुम्हारा अक्स आंख मिचौली खेलता है तो कभी वो...वो.गुस्से वाला चेहरा डराता है।तुमने ...तुमने...तुमने सोच भी कैसे लिया तलाक के बारे में। तलाक नाम से ही मेरी..मेरी तो रूह तक कांप जाती है। इतने दिनों से तुमने कोई पत्र ही नहीं डाला क्यों ? तुमने मेरी बात सुने बिना ही मां की बातों पर यकीन कर लिया। और तुम्हें याद नहीं आती जरा भी। इस समय मुझे सबसे ज्यादा जरूरत है तुम्हारी है तुम्हें.....तुम्हें जरा भी अहसास नहीं? क्या हमारा प्यार बस ..बस इतना ही था जरा सा तूफान आया और कर गया सबकुछ तहस- नहस। नहीं सरजू...नहीं, तुम ..तुम यूं मुझे अकेला......अकेला नहीं छोड़ सकते। अगर मुझे समझते हो ,प्यार करते हो मुझसे तो ...तो प्....ली..ज पत्र मिलते ही तुंरत आ जाना।तुम्हारे पत्र के इंतज़ार में ।
बनाने वाले ने काश मुझे पे बिल बनाया होता
तुम लिखते लिखते सो जाते मुझे सीने से लगाया होता।
जिंदगी आप बिन उलझन सी लगती है
एक पल की जुदाई मुद्दत सी लगती है।
तुम से दूरी का अब एहसास सताने लगा
तुम्हारे साथ गुजारा हर लम्हा याद आने लगा
भूलने की कोशिश की तुम्हें
मगर तु दिल के और भी करीब आने लगा।
शराबी इल्जाम शराब को देखता है
दीवाना इल्जाम शबाब को देता है
कोई नहीं करता कबूल अपनी भूल
कांटा भी इल्जाम गुलाब को देता है।
मेरी चाहत का तुम इम्तिहान ना लेना
जो निभा ना सको वह वादा ही ना देना
जिसे तुम्हारे बिना जीने की आदत ना हो
उसे लंबी उम्र की कभी दुआ ना देना।
प्यार सच्चा हो तो वक्त भी रुक जाता है
आसमान लाख ऊंचा हो फिर भी झुक जाता है
प्यार में दुनिया लाख बने रुकावट
अगर तुम साथ हो तो खुदा भी झुक जाता है।
तुम्हारी याद में
मीनू
क्रमशः
एमके कागदाना
फतेहाबाद हरियाणा