didi in Hindi Moral Stories by padma sharma books and stories PDF | दीदी

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दीदी

दीदी


सुगंधा ट्रेन में बैठी हुई रास्ते के दृश्य देख रही थी । वह सोच रही थी कि घर पर सभी उसका इंन्तजार कर रहें होगे -- मम्मी-पापा , भैया-भाभी एवं उनके बच्चे ।

उसने घड़ी पर नजर डाली तीन बज रहे थे। अब तक तो दीदी पहुँच गयी होगीं । दीदी की याद आते ही उसे बचपन की यादें आने लगी। कितने अच्छे दिन थे । खूब सारे खेल खेला करते थे । कभी आइसपाइस, कभी किलकिल कांटे, कभी इक्कल-दुक्कल तो कभी सितौलिया।कभी पचकुट्टे खेलते तो कभी अश्टा चंगा पौ । कुछ नहीं मिलता तो चोर -सिपाही , अंटे(कंचे) और गिल्ली -डंडा भी खेल लिया करते थे।

एक बार तो अंटे खेलते हुए एक सहेली ने देख लिया फिर क्या था उसने धमकाना शुरू कर दिया कि स्कूल में बहनजी से शिकायत करूंँगी कि ये लड़को वाले खेल खेलती है। उस समय जाने कहाँ से दीदी फरिश्ता बन कर आ गयंीं। उन्होंने उस लड़की को वो डांट लगायी कि वो घर के सामने से निकलना भूल गयी।

दीदी के बिना उसके जीवन का कोई अस्तित्व ही नहीं था । स्कूल में कक्षा में अकेले बैठना पड़ता था इसलिये उसने विज्ञान विशय छोड़कर दीदी वाले विशय ही ले लिये थे। धीरे-धीरे सब कुछ एक हो गया था - कक्षा भी , सहेलियाँ भी बस्ता एवं किताबें भी । यहाँ तक कि ब्लड ग्रुप भी एक था। रिश्तेदारों और परिचितों के यहाँ उनकी जुगलजोड़ी प्रसिद्ध थी । सभी लोग अलग-अलग नाम न लेकर रजनीगंधा कहकर ही बुलाते थे । कई लोगों को तो मालूम ही नही था कि रजनी कौन है और सुगंधा कौन है ? एक के उपस्थित रहने पर भी रजनीगंधा की ही पुकार लगती ऐसे में जो भी उपस्थित होती वह समझ जाती कि उसे ही पुकारा जा रहा है।

ट्रेंन रूक गयी थी । सुगंधा की तंद्रा भंग हो गयी । उसने फिर से घड़ी पर नजर डाली - चार बज रहे थे। उसने खिड़की से स्टेशन का नाम देखा अभी तो एक घंटा और लगेगा यह सोचकर वह मायूस हो गयी।

जैसे -जैसे घर की तरफ नजदीकी बढ़ती जा रही थी उसका दिल बल्लियों उछल रहा था। उसे लग रहा था कि वह जल्दी से घर पहुँचकर सबसे मिल ले। आज भतीजे का दश्टोन है और वह अपने पति रमेश के साथ घर जा रही है। उसके पति इंजीनियर हैं जबकि जीजाजी बिजनिस करते हैं जो अधिक अच्छा नहीं चलता ।

उसे अच्छी तरह से याद था कि पिताजी का आदेश था दीदी का सिर्फ नाम न लिया जाये उन्हें दीदी या जीजी संबोधन भी नाम के साथ दिया जाये। अब इतना समय उसके पास कहाँ था कि दिन में दस बार रजनी जीजी कहकर बुलाये सो उसने उसका संक्षिप्तिकरण कर लिया - रज्जी । इसके बाद सभी सहेलियों के बीच वे ‘‘रज्जी ’’ के नाम से ही प्रसिद्ध हो गयी और तो और रमेश भी उनको दीदी कहने की बजाये रज्जी कहने लगे।

वह फिर यादों में खो गयी। आज वह जिस नौकरी पर है उसमें दीदी का बहुत योगदान है। बिना किसी होड़ के वे घर के सारे काम स्वयं कर लेती थी और उसे पढ़ने का समय देती रहती थी । यहाँ तक कि कहींे जाने की बात हो तब भी वह घर के काम की वजह से कहीं नहीं जाती थी वरन् उसे भेज देतीं।

यकायक सुगंधा के चहरे पर मुस्कान फैल गयी । उसे मुस्कुराता देख कर रमेश ने पूछा - क्यों मुस्कुरा रही हो ?

सुगंधा बोली -‘‘ रज्जी की पुरानी बात याद आ गयी ।’’

सुगंधा ने रमेश के चेहरे पर उत्सुकता देखी तो वह कहने लगी -‘‘ बात उस समय की है जब हम लोग छोटे थे । गर्मियों में गेहूँ रखने के लिए पिताजी ने लोहे की टंकी धूप में रख दी थी । टंकी में जंग लगी होने के कारण वे मम्मी से बोले-‘‘ईंट का टुकड़ा घिस दो तो जंग छूट जायेगी।’’ दीदी भी उसी दिन अपनी यूनीफॉर्म धोने बैठी। लोहे की बाल्टी में कपड़े गलाने से उनकी सफेद शर्ट में जंग का निशान लग गया । उन्हें याद आया पिताजी जंग छुड़ाने का कोई तरीका बता रहे थे। वो आनन -फानन में पिताजी के पास पहुँच गयी । पिताजी की नींद लगती ही जा रही थी। उन्होंने पूछा-‘‘ जंग कैसे छूटेंगी ?’’

पिताजी उनींदी आवाज मे बोले-‘‘ ईंट घिस दो।’’

फिर क्या था दीदी नंे सफेद शर्ट पर ईंट रगड़ना शुरू कर दी। कुछ देर बाद शर्ट में छेद हो गया । वे फिर से पिताजी से जाकर बोली-‘‘ पिताजी वो तो फट गयी ।’’

पिताजी बोले - क्या ?

वे डरकर धीरे से बोली - ‘‘शर्ट’’।

पिताजी को सारा माज़रा समझ आ गया वे खिलखिलाकर हँंस पड़े और बोले-‘‘ पगली मैने तो टंकी की जंग छुड़ाने का उपाय बताया था।’’

इस बात पर कई दिनों तक वे संकोच में घूमती रही।

रमेश ने मुस्कुराते हुए कहा - ‘‘तुम्हारी दीदी बहुत सीधी हैं । चलो अब दीदी से मिलने का समय नजदीक आता जा रहा है। स्टेशन भी आने वाला है।’’

घर पहुँचते ही उसे सभी ने घेर लिया । सब उसका हाल चाल पूछने लगे। उसने देखा आज दीदी को सारी भाभियाँ घेरे हुए थीं । दीदी के किस्से और ठहाकों की आवाजों ने उसके मन में चुभन पैदा कर दी ।

हॉल में संगीत का आयोजन चल रहा था। नाच-गाने में रजनी और सुगंधा की जोड़ी बहुत प्रसिद्ध थी।बन्ने - बन्नी , जच्चा, बधाये , दादरे और माता की भेंट गाने में वे माहिर थीं। दीदी हाथ पकड़कर लगभग खींचती सी यह बोलते हुए उसे अपने साथ ले गयी-‘‘चल गंधा अपन पुराने गाने गाते हैं।’’

सभी लोग सुगंधा से नाचने की जिद करने लगे। सम्पन्नता उसके शरीर पर अपना प्रभुत्व जमाये थी । वह स्थूलकाय हो गयी थी इसलिए उसने नाचने से मना कर दिया । दीदी के सौन्दर्य को देखकर लगता था कि उम्र वहीं ठहर गयी है। सब ने दीदी से नाचने के लिए आग्रह किया तो वे थोड़ी सी आना कानी के बाद तैयार हो गयी। दीदी के कमर की लचक देखकर सभी लोग उनकी तारीफ करने लगे।

दीदी हमेशा छोटा सा उपहार ही लेकर आ पाती थीं, लेकिन इस बार वे भतीजे के लिये पाँच जोड़ी कपड़े, झूला और सोने की चैन साथ लायी थीं। वे अपने साथ लाये सामान को दिखाने लगी। कपड़े और चैन सभी को पसंद आये।

सुगंधा जब भी मायके आती उसकी ही तारीफ होती। सब लोग उसके आस पास ही मंडराते रहते थे इसलिये मन को केवल अपनी ही तारीफ सुनने की आदत पड़ गयी थी। आज दीदी की सब लोग तारीफ किये जा रहे हैं। यह उसे सहन नहीं हो पा रहा था।

सुगंधा हल्के गुलाबी रंग की साड़ी पहने थी। कुछ दिन पहले रमेश सिंगापुर से लाये थे। वह जानबूझकर पल्ला लहराती घूम रही थी कि कोई साड़ी के बारे में पूछे तो उसका पहनना सार्थक हो जाये।

दीदी हमेशा फंक्शन मंे उसके ही गहने पहनती तो उसे मन ही मन बड़ी तुश्टि मिलती लेकिन आज दीदी ने उससे कुछ नहीं मांगा। ना ही वे साड़ियाँ उसके पास लायीं कि- ‘‘गंधा तू ही बता मैं कौन सी साड़ी पहनूँ।’’

रात्रि मंे पार्टी चल रही थी सुगंधा ने दीदी को निहारा उनके चेहरे पर असीम संतुश्टि और प्रसन्नता झलक रही है। आज वे गहरे नीले रंग की महँगीं साड़ी पहने हैं उसी रंग से मिलती जुलती बिन्दी और हाथांे मंे चूड़ियाँ और मैचिंग का पर्स भी हाथों मंे झूल रहा है। आसपास सोने के जड़ाऊ कंगन भी हैं। सोने का भारी सा नेकलेस गले मंे पड़ा हुआ है। उसकी चमक से लग रहा है नया बनवाया है। उसने सुना छोटी भाभी उनसे पूछ रहीं हैं - ‘‘ हार कितने तौले का है ?’’ बातांे-बातांे मंे पता चला जीजाजी का बिजनिस अच्छा चल रहा है।

उसे अनजाने ही दीदी पर क्रोध आने लगा। ऐसा क्रोध उसे तब भी आता था जब दीदी

उसे पढ़ने के लिये डांटती थीं । उसका मन होता था कि वह कह दे खुद तो पढ़ती नहीं है फेल हो गयी इसलिये मेरी ही क्लास में हो नहीं तो मुझसे आगे नहीं होती। लेकिन जबान तालू से चिपक जाती। आँखांे के आगे मम्मी का चेहरा घूम जाता उनके शब्द कानों में गूंजने लगते-‘‘बड़ों को जबाव नहीं देना नहीं तो जबान खींच लूंगी।’’ यह दहशत शादी के बाद भी मन मंे बनी हुयी थी। आज भी सुंगधा क्रोध व्यक्त नहीं कर पा रही थी। उसके मन में क्रोध के कीड़े ठहरे पानी में हलचल मचाए दे रहे थे। विचार दूध की तरह उफान पर थे।

दीदी के जेवर आँखों में चुभन पैदा कर रहे थे। अचानक उसे याद आया कि जल्दी-जल्दी मेकअप करने के चक्कर मंे वह डायमंड सेट तो पहनना भूल ही गयी। वह सेट पहनकर आयेगी तो सब उसकी तरफ आकर्शित हांगे। एक पल को मन मंे आलस आया रहने दो ऊपर कमरे मंे कौन जाये। लेकिन दीदी का डाह तो मन मंे फन फेलाये खड़ा था जो बार-बार फुसकारे छोड़ रहा था। इसी उधेड़बुन में उसके कदम ऊपर की ओर चल दिये। वह तेजी से सीढ़ियाँ चढ़ने लगी। ऊपर पहुँचती इससे पहले ही मन की हड़बड़ाहट के कारण उसका पैर साड़ी मंे उलझ गया। पेन्सिल हील और भारी शरीर के कारण वह अपने आपको संभाल नहीं पायी और नीचे लुढ़कती चली गयी।

सुगंधा बिस्तर पर अचेतन लेटी थी धीरे-धीरे उसे होश आ रहा था। उसने अपने पलकंे खोली, सामने सभी लोगांे को खड़े पाया।

रमेश बोले-‘‘सुगंधा, रज्जी का शुक्र अदा करो उन्हांेने ही तुम्हें बचाया है, सिर पर चोट लगने की वजह से खून ज्यादा बह गया । वो तो गनीमत है कि तुम दोनांे का एक ही ब्लड ग्रुप है सो रज्जी ने जल्दी खून दे दिया।’’

सुगंधा को याद आया कि एक बार मम्मी दीदी को किसी बात पर मार रही थी सुगंधा को सहन नहीं हुआ वह उनका का पक्ष लेने लगी। परिणाम यह हुआ कि दीदी तो छूट गयी सुगंधा की पिटाई लगने लगी। उसे लगा कि जब वह दीदी को इतना चाहती थी तो आज क्यांे वह दीदी से ईर्श्या करने लगी। हमेशा उसकी तारीफ होती तब दीदी ने कोई विरोध नहंी किया। आज उनके अच्छे दिन आये हैं तो वह सहन नहीं कर सकी। उसकी नजरंे दीदी को खोजने लगीं। दीदी सिरहाने खड़ीं थीं। वह दीदी से लिपट गयी और रोते हुये बोली-‘‘रज्जी सॉरी।’’