girgit in Hindi Short Stories by Anil jaiswal books and stories PDF | गिरगिट

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मेट्रो स्टेशन पहुँचने पर गाना सुनने में तल्लीन अधेड़ उम्र के राकेश का ध्यान भंग किया ऑटो वाले ने, "सर जी, मेट्रो स्टेशन आ गया।"

राकेश ने कुछ नहीं कहा। गुनगुनाते हुए जेब से पचास का नोट निकाला और ड्राइवर की तरफ बढ़ा दिया।

तभी उसकी नजर नेहा पर पड़ी, जो उसके मोहल्ले में रहती थी। नेहा को देखते ही उसकी गुनगुनाहट बन्‍द हो गई। और उसकी जगह धीमे से निकलती सीटी ने ले ली। सीटी कोई ध्यान से सुनता, तो सिसकारी से कम नहीं थी।

"कैसी हो नेहा?" आवाज में मिश्री घोलते हुए राकेश ने पूछा। पर मन से तो पूछना चाहता था, "कहाँ जा रही हो नेहा? फ्री हो तो मेरे साथ चलो।" पर हिम्मत नहीं हुई पूछने की। बात न बिगड़ जाए, यह डर उसे अपने कदम पीछे खींचने को मजबूर कर रहा था।

"ठीक हूँ अंकल, आप कैसे हैं?" नेहा ने कुछ इग्नोर करने की अंदाज ने रूटीन जवाब दिया।

"एकदम बढ़िया।" कहते हुए राकेश की आवाज में कुछ मादकता-सी आ गई थी। लगा, शायद वर्षों की तमन्ना आज पूरी हो जाए।

नेहा कुछ न बोली। चुपचाप आगे बढ़ गई और एस्‍कलेटर पर जाकर खड़ी हो गई। राकेश भी उसके पीछे-पीछे था। एक्‍सरे मशीन-सी उसकी नजरें नेहा को ऊपर से नीचे देखे जा रही थीं। बस, लार टपकने भर की कसर रह गई थी।

प्लेटफार्म पर पहुँचकर दोनों को मेट्रो के लिए ज्यादा देर इंतजार नहीं करना पड़ा। मेट्रो आते ही दोनों एक ही कोच में चढ़ गए। अपने खड़े होने की कंफरटेबल जगह बनाकर नेहा अपने मोबाइल में व्‍यस्‍त हो गई थी। पर चिपकू उसके साथ खड़ा रहा।

दोनों जहाँ खड़े थे, वहीं सीनियर सिटीजन सीट थी। उस पर एक नवयुवक बैठा था। एक अधेड़ को अपने सामने पाकर वह उठने को हुआ, तो राकेश ने उसका कंधा थपथपा दिया, "नहीं-नहीं, बैठे रहो।" राकेश ने बड़े गर्व से नेहा की ओर देखा, पर उसे अपने पर ध्यान न देते देख बुझ-सा गया। मेट्रो में बढ़ती भीड़ के साथ ही घटती जा रही थी राकेश की नेहा से दूरी। होते-होते वह नेहा से चिपक ही गया था।

"अंकल।" नेहा ने धीरे से बस इतना ही कहा, पर कहने का अन्‍दाज और आवाज की कठोरता ने अपना काम कर दिया। दोनों के बीच की दूरी अपने आप बढ़ गई।

दाल न गलती देख, राकेश ने सीनियर सिटीजन की सीट का फिर से मुआयना किया। सीट पर पहले बैठा युवक वहाँ नहीं था, पर उसकी जगह एक दूसरे युवक ने ले ली थी। उसने सोचा, जब नेहा नहीं, तो सीट ही सही।

"एक्सक्यूज मी। सीट प्लीज।" बड़े अधिकार से राकेश ने युवक से कहा। युवक ने उस पर गहरी नजर डाली। पचास के पेठे में आया राकेश इतना बूढ़ा तो नहीं लग रहा था। युवक ने युवती के साथ खड़े अधेड़ से उलझना ठीक नहीं समझा। वह चुपचाप उठकर नेहा के पास खड़ा हो गया।

राकेश ने सीट पर कब्जा जमा लिया। फिर चोर नजरों से नेहा की ओर देखा।
नजरें मिलीं तो नेहा मुस्‍कराई और बोली, "कमाल है अंकल, मोहल्ले की आपकी जवानी मेट्रो में सीट के लिए बुढ़ापे में बदल जाती है।"