naina ashk na ho - 9 in Hindi Love Stories by Neerja Pandey books and stories PDF | नैना अश्क ना हो... - 9

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नैना अश्क ना हो... - 9

रात में डिनर से थोड़ा पहले प्रशांत आ गया ।

जब तक प्रशांत फ्रेश हो कर , कपड़े चेंज कर आया रघु खाना लगा चुका था ।

सब ने साथ मिल कर खाना खाया।
प्रशांत खाते खाते बोला, "रघु आज तो सब्जी बहुत अच्छी बनाई है ,लगता है सिर्फ मेरे और मां के लिए खाना बना बना कर तू भी बोर हो गया है ;आज सब को देख कर तुमने
भी इतना स्वादिष्ट खाना बनाया है। "

रघु शरमा गया, बोला "नहीं साब ये नव्या भाभी का कमाल है,उन्होंने ही सब्जी बनाई है ,मै तो बस मदद कर रहा था।"

प्रशांत मां की तरफ शिकायती नजर से देखा, "क्या मां आपको बोल के गया था ना कि सब का ध्यान रखना ? और
आपने किचेन में काम करवा लिया ।" प्रशांत बोला।

निर्मला जी के कुछ बोलने के पहले ही नव्या बोल उठी," नहीं प्रशांत जी मै ही बैठे - बैठे ऊब रही थी तो आंटी से
रिक्वेस्ट कर परमिशन लिया था पर आपको बुरा लगा हो
तो माफ़ कर दीजिए अब नहीं जाऊंगी किचेन में ।"

प्रशांत नव्या के इस तरह बोलने से घबरा गया । उसे लगा कि अनजाने में हीं सही पर उसने अपनी बातों से नव्या को दुखी कर दिया है।

माफी मांगते हुए प्रशांत बोला ,"नहीं - मुझे बिल्कुल भी बुरा नहीं लगा । मै इस लिए कह रहा था कि आप सब क्या सोचेंगे कि दो दिन के लिए आए है तो हम आपसे घर का काम करवाने लगे ।
मेरे लिए तो और भी अच्छा है कि इस रघु के बोरिंग खाने से
जान तो बच गई ।"
ये सुन कर सभी रघु को देख कर मुस्कुराने लगे ।

रघु अपनी झेंप मिटाने को कहने लगा ," अब साब मै इतना भी बुरा नहीं बनाता हूं .........!!!! हां ! पर भाभी वाली बात
मेरे खाने में थोड़े ना आ सकती है.......??"

डिनर के पश्चात,
प्रशांत बोला, "अंकल आंटी आप सब सुबह पांच बजे तैयार हो जाइएगा । सुबह की परेड मै शामिल होने के लिए जल्दी
ही निकलना होगा । चेकिंग वगैरह की फॉर्मेलिटी में समय लगेगा ।
अब आप सब जल्दी सो जाइए। गुड - नाईट " कह कर प्रशांत अपने कमरे में चला गया ।
इसके बाद सभी अपने- अपने कमरे में आ गए।

नव्या बिस्तर पर लेटी तो ,पर नींद आंखों से कोसो दूर थी।
सब कुछ चल - चित्र की भांति उसके ख्यालों में घूमने लगा।
उसके और शाश्वत के स्कूल के दिन, कॉलेज के दिन, और फिर साथ - साथ घूमना , एक दूसरे के साथ बिताए पल और शादी के खूबसूरत लम्हें सब याद आने लगे।

सुबह अलार्म बजने पर साक्षी उठ कर बैठ गई ।आंखे बंद कर लेटी हुई नव्या को हौले से कंधे से हिला कर जगाया।

नव्या को रंगीन कपड़े में ही घर में सब देखना चाहते थे।
नव्या नहा कर निकली ,तो उसने सफ़ेद चिकेन का सूट पहना हुआ था । साक्षी ने देखा पर कुछ बोली नहीं ।
चाय सब को रघु कमरे में ही दे गया ।

प्रशांत ने लॉबी से ही आवाज देकर ,सब को बुलाया।

सब तैयार थे । कुछ ही देर में सभी आ गए ।

प्रशांत सब को गाड़ी में बिठा कर खुद ड्राइव कर कर लाल किले पर होने वाले गण - तंत्र दिवस पर होने वाले समारोह
के लिए के गया ।

वहां पहुंचने पर शांतनु जी की फैमिली को वीआईपी गेस्ट गैलरी में एस्कोर्ट कर ले जाया गया। सभी को सम्मान सहित बैठाया गया।

ध्वजा - रोहण के बाद राष्टरपति ने भाषण दिया । तत्पश्चात
तरह - तरह की मन मोहक झांकियां निकली गईं।

इन सब में काफी समय हो गया ।

कार्यक्रम समाप्त होने पर प्रशांत सब को लेकर घर आ गया।
रघु ने लंच तैयार रक्खा था ।
फ्रेश हो कर सब ने लंच किया। प्रशांत ने शांतनु जी से कहा,
"अंकल शाम को अवॉर्ड फंक्शन के लिए चलना है। आप सब थोड़ी देर रेस्ट कर के रेडी हो जाइएगा ।"

कह कर प्रशांत भी अपने रूम में चला गया।

लगभग चार बजे प्रशांत ने रघु को भेजा कि वो सब से तैयार होने के लिए बोल दे।

रघु ने जाकर शांतनु जी और नव्या को प्रशांत का संदेश दे दिया ।
नव्या ने साक्षी के लाख कहने के बाद भी दूसरी कोई ड्रेस पहनने की बजाय वही सफ़ेद सूट पहना।

जब जाने को सब निकले तो शांतनु जी ने नव्या को देख कर कहा ,"ये क्या बेटा तुमने चेंज नहीं किया?"

नव्या ने कहा "नहीं पापा ठीक तो है क्या हुआ है इन कपड़ों में?"
"नहीं बेटा , मैंने सुबह तुम्हे कुछ नहीं कहा ,पर अब तुम जाओ और चेंज कर के आओ।" शांतनु जी बोले।
पापा के आदेश को नव्या नहीं तक नहीं कर सकती थी।

नव्या ने कपड़े बदले तो पर फिर उसने सफ़ेद साड़ी जिसपे
सफ़ेद सीक्वेंस से वर्क किया था ,पहन लिया।
उसे देख शांतनु जी हृदय तार- तार हो गया।
सफ़ेद संगमरमर की मूरत को झिलमिलाते सफ़ेद कपड़ों मै लपेट दिया गया हो । नव्या को देख कर बिल्कुल ऐसा प्रतीत हो रहा था।

समारोह राष्ट्रपति भवन में था , और उन्हीं के द्वारा प्रदान किया जाना था ।

समारोह स्थल पर सभी समय से पहुंच गए।

वहां पर सभी सैनिकों के परिवार के सदस्य आए थे जिन्हें
वीरता पुरस्कार दिया जाना था।

कुछ ऑपचारिकता के बाद बारी बारी से सब को अवॉर्ड दिया जाने लगा ।

देश के कोने - कोने से जांबाज बहादुरों की पत्नियां परिवार सहित आई थीं ।

किसी की गोद में दुधमुंहा बच्चा था तो किसी के वृद्ध मां बाप थे।
किसी की विवाह योग्य बेटी थी ? तो किसी के छोटे बच्चे ?
जिनकी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था कि वो अब अपने
पिता को कभी नहीं मिल पाएंगे।

नव्या सोच रही थी कि क्या इन आतंकियों के दिल नहीं होता
जो ये हंसते - खेलते परिवार को बरबाद कर देते है ?
क्या इनके परिवार नहीं होते ?
कोई इंसान ऐसा नहीं कर सकता..... !

ये अवश्य आदमी का चोला धारण किए, उनके वेश में वहशी
खूंखार जानवर है ।
एक मां बाप तो इतने वृद्ध थे कि चल भी नहीं पा रहे थे,उन्हे
जवानों ने गोद में उठाकर अवॉर्ड के लिए के पहुंचाया।शहीद
उनका इकलौता पुत्र था। अब वो किसके सहारे जिएंगे?



जब नव्या की बारी आई ,उसे पुकारा गया।

तब ये घोषणा हुई कि, "कैप्टन शाश्वत की बेमिसाल कोशिश से एक बहुत बड़ी आंतकवादी घटना को विफल हो गया
उन्होंने अभूतपूर्व साहस का परिचय देते हुए सैन्य छावनी पर होने वाले हमले को नाकामयाब कर दिया ।"

नव्या खुद पर काबू कर भारी कदमों से स्टेज पर जाने लगी
साक्षी भी भाभी को सहारा देने के लिए स्टेज तक गई,फिर
वापस आएगी।

आगे आकर प्रशांत ने सपोर्ट दिया और साथ स्टेज पर गया।
नव्या ने अवॉर्ड लिया ।
राष्ट्र पति जी ने नव्या को सांत्वना सवरूप सर पर हाथ फेरा।

जब नव्या से दो शब्द कहने को कहा गया तो उसने एक कविता सुनाई ।

नैनों में समन्दर आंसू का
हृदय में हाहाकार है
क्या कोई समझेगा मेरी पीड़ा को
उनके लिए तो व्यापार है
सर्वस्व न्यौछावर किया देश पे
इसका मुझको अभिमान है
करके दफन अपनी जख्मों को
पूरे अपने फर्ज करू
कष्ट ऊठाऊं चाहे जितना
हर जनम तुम्हरा वरण करूं
हर जनम तुम्हरा वरण करू।

नव्या के एक एक शब्द दिल को छलनी किए दे रहे थे। वहां मौजूद हर शख्स की आंखे भीग चुकी थी।

अगर पड़ोसी देश ने आतंक का व्यापार ना किया होता तो
आज कितने ही घर उजड़ने से बच गए होते।

फिर समारोह के बाद बिग्रेडियर जनरल साहब ने नव्या के आगे आर्मी ज्वाइन करने का प्रस्ताव रक्खा । जिसे नव्या ने स्वीकार कर लिया ।



क्या शांतनु जी और उनका परिवार नव्या के इस फैसले में साथ देगा ?

जानने के लिए पढ़े अगला भाग
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