सीमा पार के कैदी -4
बाल उपन्यास
राजनारायण बोहरे
दतिया (म0प्र0)
4
सीमा पार करके अब वे उसी पहाड़ी के नीचे बसी ढाणी की ओर बड़े जा रहे थ जिसके बारे में भारत के पटेल ने बताया था।
आस पास की छोटी छोटी झाड़ियां और धीरे- धीरे बढ़ता अंधेरा उनका सहायक बन रहा था।
लगभग एक घंटा चलने के बाद अंधेरे में दूर, एक धीमा सा उजाला दिखने लगा । लगता था कि ढाणी नजदीक ही थी। वे बहुत धीमे से कदम बढ़ाते हुये बिना आवाज करे आगे बढ़ने लगे।
ज्यों-ज्यों वे निकट होते गये, उजाले के आसपास का दृश्य स्पष्ट होता गया, और जब वह पूर्ण स्पष्ट हो गया, तो वे चौंक उठे, क्योंकि वह उजाला किसी ढाणी में से नही किसी के डेरों में से आ रहा था । वहाँ मैदान में दस-बारह तम्बू लगे हुये थे, जिनके एक ओर, पच्चीस-तीस ऊंट खड़े आसमान को ताक रहे थे। तम्बुओं के सामने ही लालटेन जल रही थीं।
तीनों रूके और एक दूसरे को ताकने लगे।
‘‘ यह कौन हो सकते हैं ?’’ अजय फुसफुसाया ।
‘‘ वही तो मैं सोच रहा हूँ। इतना तो सच है कि ये लोग सेना के लोग नहीं हैं।’’ विक्रान्त बोला।
‘‘ तो कौन हो सकते हैं ?’’ अजय ने कहा । फिर खुद ने अनुमान लगाया- ‘‘ ये डाकुओं के डेरे तो नहीं हैं। ’’
‘‘ आल राईट !’’ विक्रान्त संतुष्ट होते हुये बोला- ‘‘यह डाकुओं के ही डेरे पड़े हैं।’’
उनको वहीं रूकने का संकेत करके, विक्रान्त धीमे से एक ओर को खिसका।
एक्स, वाय ने देखा, विक्रांत छिपकली के समान जमीन पर खिसकता हुआ, अंधेरे में बड़ रहा था। उसका लक्ष्य था बीचों-बीच बना एक रेशमी डेरा।
कुछ देर बाद, वह डेरे के पीछे लेटा हुआ था।
अन्दर की आवाजों से लगता था, जैसे उस डेरे में सारे तम्बुओं के लोग उपस्थित हों।
एक स्वर उभरा- ‘‘रशीदा, पिछले डाके में तुम तो हमारे साथ थे न। तुमने तो पूरा रास्ता देखा हुआ है। ’’सिवड़िया’’ ढाणी का यहाँ से घोड़ों पर केवल दो घंटे का ही रास्ता है। ’’
विक्रांत सन्न रह गया ‘‘ सिवड़ियाँ उस ढाणी का नाम था जहां वे लोग पटेल के पास रूके थे। इस का मतलब है कि डाकुओं का धावा इस बार उसी ढाणी में होगा। ’’ वह सोचने लगा।
‘‘ हाँ सरदार रास्ता अच्छा है। फिर उस रास्ते में भारत के सिपाही नहीं रहते हैं। ’’ दूसरा स्वर उभरा था।
‘‘ भारत के सिपाही,’’ हंसते हुये पहले वाले सरदार ने कहा- ‘‘हां-हां-हां-हां हमारे देश के सैनिक उस समय पटाखे चलाकर उनका और सेना का ध्यान तो सीमा की ओर खींच लेगें और हमारा रास्ता साफ हो जायेगा। ’’
इसके बाद देर तक विक्रान्त उन की बातें सुनता रहा । उन लोगों का डाके का प्रोग्राम बनता रहा। काम की बात यह पता लगी थी कि उन्हें आज रात डाका नही डालना कल रात डालना था और अभी एक रात और इसी स्थान पर पड़े रहना था, तभी तक ऐसे लगड़े घोड़े आ पायेगें। जिनकी पीठ पर 4-6 घंटे बैठकर चलना संभव है।
विक्रांत वहां से खिसका। उसने अजय और अभय को इशारा किया।
कुछ देर बाद तीनों एक ओर को बढ़े जा रहे थे।
सारा माज़रा सुनाकर विक्रांत ने पूंछा ‘‘ अब तुम दोनों का क्या विचार है। इन लोगों से पंगा लें या अपन लोग अपना रास्ता पकड़ें?’’
’’ देखो-जेड साहब, हम लोग उस दूसरे काम के लिये यहाँ तक आये हैं, इसलिये हम इस काम में नहीं उलझते। अभी तो अपुन लोग सीधे चलें।’’
’’यानि डांका पड़ जाने दें, विक्रान्त पूंछ रहा था।
’’हम भारतीय सेना को खबर भी कर सकते हैं। हमारे ट्रांसमीटर किस काम आयेंगे ? एक्स बोला।
’’आल राइट ।’’ कहते हुये जेड ने ट्रांसमीटर संभाला और सम्पर्क करने लगा।
’’ हलो.....हलो.... जेड स्पिीकिंग । विक्रांत स्पिीकिंग...हलो...हलो...’’
कुछ प्रयत्न के बाद सिगनल मिल गया, भारतीय सेना से सम्पर्क हो गया। जैड ने सेना के कैप्टन को बताया कि कल की रात सिवणिया ढाणी पर पढ़ौसी देश के डाकू हमला करेगे आप लोग उनकी मेहमान नवाजी का बढ़िया इंतजाम कर लीजिये और ट्रांसमीटर बंद कर दिया। डाकुओं के भारतीय सीमा में प्रविष्ट होते ही स्वागत का प्रबंध बहादुर भारतीय सेना द्वारा किया जाने लगा।
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