Aakha teez ka byaah - 15 - last part in Hindi Moral Stories by Ankita Bhargava books and stories PDF | आखा तीज का ब्याह - 15 - अंतिम भाग

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आखा तीज का ब्याह - 15 - अंतिम भाग

आखा तीज का ब्याह

(15)

आज हॉस्पिटल का शुभारम्भ था| तिलक सुबह से तैयारियों में जुटा था, नीयत समय पर समारोह शुरू हो गया था| एक बड़े से शामियाने के तले मंच पर विशिष्ट अतिथियों के बैठने की व्यवस्था थी| राजनेता, सरकारी अधिकारी जैसे बड़े और खास लोग ही नहीं बल्कि बड़ी संख्या में आम ग्रामीण लोग भी इस समारोह में शिरकत करने आये थे| तिलक की लोकप्रियता देख कर प्रतीक और वासंती तो हैरान ही रह गये| लोगों का हुजूम उमड़ा था तिलक को सुनने के लिए|

रिबन काट कर इलाके के एम.एल.ए. ने हॉस्पिटल का उदघाटन किया| जब हॉस्पिटल के विषय में उन्हें दो शब्द कहने के लिए आमंत्रित किया गया तो उन्होंने ज्यादा वक्त नहीं लिया, ‘इस संबंध में तिलकजी अधिक जानकारी दे सकते हैं’, यह कहते हुए माइक तिलक के हवाले कर दिया, हाँ इलाके के विकास में योगदान हेतु तिलक की भूरी भूरी प्रशंसा करन वे नहीं भूले|

“एम.एल.ए. साहब ने मेरे बारे में कुछ ज्यादा ही कह दिया, असल में मैं कोई महान आदमी नहीं हूँ, बल्कि आप लोगों में से ही एक हूँ, आप लोगों का ही भाई हूँ| मुझे भाषण देना तो नहीं आता पर अब जबकि मुझे कुछ कहने के लिए इस मंच पर आमंत्रित किया गया है तो फिर मैं अपने दिल की बात जरुर कहूँगा| आप लोग मेरे भाई बहन की तरह हो, मेरे संघर्ष के साक्षी भी हो और मैं भी आप लोगों के संघर्षों में आपका साथी हूँ| मैं हर दुःख में हर सुख में आप लोगों का साथ देने के लिए हर समय तैयार हूँ| ये स्कूल और कॉलेज खोल कर मैंने कोई बड़ा काम नहीं किया है, आज जमाना बदल गया है अब लड़कियां घर की चारदीवारी तक सीमित नहीं रहना चाहती, अब हर लड़की का सपना होता है पढ़ना, आगे बढ़ना अगर लड़कियों को मौका मिले तो वह भी अपने जीवन में बहुत कुछ कर सकती हैं|”

“हमारे सामने इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं डा. वासंतिजी का| डा. वासंतिजी इस गाँव की बेटी हैं और एक बहुत बड़ी डॉक्टर भी| गाँव की मिट्टी में खेल कर हमारे गाँव की इस बेटी ने जिस तरह से हमारा मान बढ़ाया है यह अपने आप में एक मिसाल है| आज मैं इन्हें गाँव की अन्य बेटियों के लिए एक आदर्श के रूप में पाता हूँ| चाहता हूँ कि मेरे गाँव की दूसरी बेटियां भी इसी तरह आगे बढ़ें, मगर यह नहीं चाहता कि जिन मुश्किलों का सामना वासंतिजी ने किया उनसे इन्हें भी दो चार होना पड़े| बेटियां भी पंछियों की तरह होती हैं अगर इन्हें उड़ने के लिए थोड़ा सा आसमान मिल जाये तो यह भी इतिहास रचने का दम रखती हैं| मैं तो बस इन्हें वही खुला और सुरक्षित आसमान देने की कोशिश कर रहा हूँ|”

“पर गाँव में कन्या शिक्षा की अलख जागते समय मेरे मन में एक शंका यह भी उठी कि यदि गाँव की लड़कियाँ पढ़ लिख कर आगे बढ़ गईं तो इन लड़कों का क्या होगा? क्या यह इनके साथ अन्याय न होगा? लड़कियाँ तो अपने हिस्से का आसमान अपने आँचल में समेट लेंगी पर लड़के यहीं खड़े रह जायेंगे इन गलियों में एक और तिलकराज बने, जो कभी खुद को मिटा देने को आमादा था| इसीलिए लड़कों के लिए भी स्कूल कोलेज खोले क्योंकि ऐसा तो है नहीं कि सपने देखने का अधिकार सिर्फ़ लड़कियों को ही है, यह हक तो लड़कों का भी है| मैं इन्हें भी अपनी किस्मत सवांरने का एक मौका देना चाहता था, क्योंकि जानता था कि सब लडके मेरी तरह किस्मत के धनी नहीं होते। सबके पास श्वेता जैसी जीवनसाथी नहीं होती, वह तो किस्मत ने मेहरबानी करके मेरी झोली में डाल दी| श्वेता के लिए क्या कहूं वह तो एक पारस है जिसने मुझे संवार दिया, आज मैं जो कुछ भी हूं सिर्फ और सिर्फ श्वेता की वजह से हूँ।"

कहते कहते तिलकराज ने एक उड़ती सी नज़र पहले वासंती पर डाली और फिर एक प्रशंसा और गर्व से भरी नज़र श्वेता पर| वासंती तिलक की नज़रों का ताब बर्दाश्त नहीं कर पाई और उसने अपनी आँखें झुका लीं, पर श्वेता की ख़ुशी ने आसमान छू लिया उसे तो अंदाज़ा भी नहीं था कि तिलक जैसा रूखे से स्वभाव का इंसान कभी उसकी यूं सार्वजानिक रूप से प्रशंसा भी कर सकता है, वह तो बेकार ही परेशान हो रही थी, वासंती के गाँव वापस आने को लेकर जाने क्या क्या सोच बैठी थी। नहीं! वासंती को वापस गाँव बुलाने का तिलक का निर्णय गलत नहीं था|

“गाँव में आवारा फिरते इन बच्चों में से कल कौन हमारे गांव के जमाईजी डॉ. प्रतीकजी जैसा बन जाये या फिर इंजीनियर या वैज्ञानिक बन कर देश विदेश में हमारे गाँव का नाम रोशन कर जाये कौन जानता है| मैं तो बस इन बच्चों की आँखों में कुछ सपने भरना चाहता हूँ और उनके सपनों के पूरे होते देखने का सुख पाना चाहता हूँ|” तिलक की बात अभी खत्म नहीं हुई थी और सब दम साधे उसे सुन रहे थे|

“इस हॉस्पिटल के बारे में क्या कहूं! बस इतना समझ लीजिये कि यह मेरा एक सपना था जो मैंने कभी आप लोगों के लिए अपनी पत्नी के साथ मिल कर देखा था|” एक बार फिर तिलक की नज़रें ना चाहते हुए भी वासंती की ओर उठ गईं और एक बार फिर वासंती की आँखें जमीन निहारने लगीं| “मेरा यह सपना, कुछ परिस्थितियों के कारण अधूरा रह गया था पर जब मनीराम काकाजी को दिल का दौरा पड़ा और उन्हें ईलाज के लिए जयपुर ले जाना पड़ा तो मुझे अपने गाँव में एक हॉस्पिटल बनाने की ज़रूरत एक बार फिर बहुत शिद्दत से महसूस हुई| जब मैंने इस बारे में अपनी पत्नी श्वेता से बात की तो वह अपनी नौकरी छोड़ कर मेरा यह सपना पूरा करने आ गयी और साथ ही डॉ. वासंतीजी और उनके पति डॉ. प्रतीकजी भी हमारी मदद के लिए शहर के बड़े हॉस्पिटल की अपनी नौकरी छोड़ कर आ गए| अब आपकी ये बहू और बेटी-जमाई और इनके नेतृत्व में काबिल डॉक्टरों की एक टीम आपकी स्वास्थ्य समस्याओं का निदान करेगी| इनके साथ मैं आपका बेटा-आपका भाई हमेशा आपके हर सुख दुःख में आपके साथ खड़ा ही हूँ, यह तो आप जानते ही हैं इसीलिए यह मुझे बार बार दोहराने की जरुरत नहीं है फिर भी मैं आपसे उम्मीद करता हूँ कि जीवन रक्षा हॉस्पिटल की इस टीम को आप लोगों का सहयोग वैसा ही मिलेगा जैसा कि मुझे मिलता आया है|”

तिलक ने भावुक शब्दों में अपने विचार सबके सामने रखे| उसका भाषण पूरा होते ही तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा पंडाल गूँज उठा| तालियों की यह गूंज आसमान तक पहुंचती सी जान पड़ती थी और इस बार तालियों की इस गूँज में तिलक को अपने अपमान की नहीं अपितु लोगों के दिलों में अपने लिए अथाह प्रेम और सम्मान की अनुगूँज सुनाई दे रही थी|

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