सीमा पार के कैदी3
बाल उपन्यास
राजनारायण बोहरे
दतिया (म0प्र0)
3
इसके बाद उनकी यात्रा आरंभ हुई ।
पहले पैदल ,इसके बाद ऊँटों से।
अभय को बड़ा मजा आया ! मीलों दूर तक फैली रेत ही रेत, जो कहीं ऊँची कही भयानक खाइयों का रूप धारण किये थी। ऊँट बड़ी मस्ती से चला जा रहा था। अभय ने अपना ऊंट दौड़ा दिया, हिचकोले खाता हुआ अभय प्रसन्नता में डूबा जा रहा था।
वह भारत का अन्तिम शहर था। शाम होते-होते एक्स, वाय व जेड वहाँ पहुँचे। बाजार में विशेष राजस्थानी पोशाक घांघरा, चूनर पहन और पूरे शरीर पर जगह-जगह गुदे हुये गुदनों वाली औरतें सामान की खरीद फरोख्त कर रही थी। चूड़ीदार पैजामा नुमा धोती और शरीर पर छोटी घेरदार अचकन पहने पुरूष ऊंटो को साथ-साथ लिये घूम रहे थे। यहां से उन्होने अपने लिए भी राजस्थानी कपड़े खरीदे और बड़े सुबह रेत सीमा की ओर चल पड़े।
कुछ दूर चलते ही ढाणी (रेतीले गाँव) का सिलसिला शुरू हुआ। दो-दो और पाँच-पाँच कोस पर बसी यह ढाणियाँ बहुत कम लोगों की बस्तियां थी।
तीनों ने अपने शरीर पर पौटलियां उठा रखी थी। एक के पीछे एक चले जा रहे थे।
सीमा के ठीक पहले वाली अन्तिम ढाणी में रूक कर गांव के पटेल के पास विक्रांत कुछ देर को बैठा था। पटेल का दिया हुआ कड़वा हुक्का गुड़गुड़ाते हुये विक्रान्त ने पूछा ‘‘ सीमा पार जाकर कहाँ रूकना अच्छा रहेगा? मैं अपने इन दोनों छोटे भाइयों के साथ दूसरे देश में बस जाना चाहता हूँ, क्योंकि हमारी ढाणी में सीमा पार के डकैत चाहे जब आकर डाका डालते हैं। कुछ मिलता नही तो खूब मार पीट करते हैं।’’
अब पटेल क्या कहता वह भी ऐसी ही समस्या से परेशान था फिर भी उसने बताया कि उस पार उसके कुछ रिश्तेदार रहते है। वे तीनों उनसे मदद ले सकते हैं। विक्रान्त के कहने पर पटेल ने अपनी टूटी-फूटी हिन्दी में एक कागज पर कलम घसीट कर, कुछ लाइनों में एक पत्र लिख दिया और कहा कि सीमा पार की पहाड़ी की घाटी में बसी पहली ढाणी के पटेल को यह पत्र पढ़वा देना।
पटेल से सीमा पार करने की उम्दा जगह पूछ कर वे लोग आगे चले । अजय और अभय ने देखा कि पटैल ऐसी खतरनाक जगह पर रहता है लेकिन उसके चेहरे पर बिलकुल डर नही दिख रहा है।
ऐसी जगह जहाँ से सेना की दो चौकियों के बीच अन्तर था, वहाँ से शाम के फीके से उजाले में तीनों ने सीमा पार की, और दूसरे देश की सीमा में पहुँच कर, जल्दी-जल्दी कदम बड़ा दिये।
सीमा पार करके अब वे उसी पहाड़ी के नीचे बसी ढाणी की ओर बड़े जा रहे थ जिसके बारे में भारत के पटेल ने बताया था।
आस पास की छोटी छोटी झाड़ियां और धीरे- धीरे बढ़ता अंधेरा उनका सहायक बन रहा था।
लगभग एक घंटा चलने के बाद अंधेरे में दूर, एक धीमा सा उजाला दिखने लगा । लगता था कि ढाणी नजदीक ही थी। वे बहुत धीमे से कदम बढ़ाते हुये बिना आवाज करे आगे बढ़ने लगे।
ज्यों-ज्यों वे निकट होते गये, उजाले के आसपास का दृश्य स्पष्ट होता गया, और जब वह पूर्ण स्पष्ट हो गया, तो वे चौंक उठे, क्योंकि वह उजाला किसी ढाणी में से नही किसी के डेरों में से आ रहा था । वहाँ मैदान में दस-बारह तम्बू लगे हुये थे, जिनके एक ओर, पच्चीस-तीस ऊंट खड़े आसमान को ताक रहे थे। तम्बुओं के सामने ही लालटेन जल रही थीं।
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